Country

चरमराने की कगार पर संघीय व्यवस्था

  •      वृंदा यादव

वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता पर भाजपा नेतृत्व की सरकार गठन के बाद विपक्ष शासित राज्यों और केंद्र सरकार के मध्य रिश्ते तेजी से खराब होने लगे। हालात इस कदर खराब हो चले हैं कि देश के संघीय ढांचे की बुनियाद पर इसका असर पड़ने लगा है। केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों पर आरोप है कि वे विपक्षी दलों की सरकारों को काम करने से रोक रहे हैं। राज्यपालों की भूमिका को लेकर कई राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी है। हालांकि कोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकारों को राहत फौरी तौर पर जरूर मिली है लेकिन केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के रिश्तों में तल्खी बनी हुई है

भारत की संघीय व्यवस्था में दो स्तर पर सरकारें होती हैं। जिसके अनुसार पूरे देश के लिए एक सरकार का चुनाव किए जाने के साथ-साथ हर राज्य में अलग से एक राज्य सरकार का गठन किया जाता है। जो सिर्फ उस राज्य की शासन व्यवस्था को संभालती है। हर राज्य में केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति एक राज्यपाल नियुक्त करता है, जो राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधित्व या संवैधानिक मुखिया के रूप में कार्य करता है। कई बार राज्यपाल और राज्य की सरकार के बीच कुछ विषयों पर मतभेद के कारण विवाद खड़ा हो जाता है। इन दिनों कुछ ऐसा ही विवाद पंजाब, तमिलनाडु और केरल की राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच भी देखने को मिल रहा है। इन सभी राज्य की सरकारों ने राज्यपाल के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है।

जिस पर गत सप्ताह 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और केरल की राज्य सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से पिछले 2 सालों तक के विधेयकों को लंबित रखने का क्या कारण है, इसका जवाब मांगा है तो वहीं तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्यपाल रविंद्र नारायण रवि द्वारा विधानसभा को लौटा दिए गए 10 विधेयकों पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आरएन रवि ने दस विधेयकों पर अपनी मंजूरी तब तक नहीं दी जब तक हमने राज्य सरकार की याचिका पर गवर्नर को नोटिस नहीं भेजा। बेंच ने राज्यपाल से प्रश्न भी किया है कि ये विधेयक पिछले तीन साल से लंबित थे, गवर्नर तीन साल तक क्या कर रहे थे? बिलों पर एक्शन न लेना गंभीर चिंता का विषय है। इससे पहले 10 नवंबर को पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहा विवाद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शांत हो गया। जिसके परिणाम स्वरूप पंजाब विधानसभा में मार्च 2023 में शुरू हए बजट सत्र को 15 नवंबर को सत्रावसान कर दिया गया है। साथ ही राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने 20 और 21 अक्टूबर को पेश किये गए विधेयकों को भी मंजूरी दे दी गई। जिसे अगले विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा।

राज्यपाल और सरकारों के बीच क्या है विवाद
केरल राज्यपाल विवाद: केरल में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ है जहां राज्य सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच कई बार विवाद खड़ा हो चुका है। पिछले साल के अंत में आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को पत्र लिखकर वित्तमंत्री केएन बालगोपाल को एक विश्वविद्यालय में टिप्पणी करने के आरोप में बर्खास्त करने की मांग की थी। केएन बालगोपाल ने कहा था कि जो लोग यूपी जैसे स्थानों से आते हैं, उन्हें केरल के विश्वविद्यालयों में एडजस्ट करना और यहां की बातों को समझना मुश्किल हो जाता है। जिसपर आरिफ ने विरोध जताते हुए कहा है कि बाल गोपाल केरल और भारतीय संघ के अन्य राज्यों के बीच एक दरार पैदा करने की कोशिश की है। जैसे कि भारत के विभिन्न राज्यों में उच्च शिक्षा के अलग-अलग कायदे हों जिसके आधार पर राज्यपाल ने सरकार को बाल गोपाल पर संवैधानिक रूप से कार्यवाही करने के लिए कहा। लेकिन मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज्यपाल के अनुरोध को तुरंत ठुकरा दिया। साथ ही राज्यपाल ने कुछ नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए 9 विश्वविद्यलयों के कुलपतियों को कहा कि वो इस्तीफा दे दें। जिसके बाद इस्तीफा न देने पर राज्यपाल और सरकार के बीच विवाद खड़ा हो गया।

केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कहा कि राज्यपाल ने विधानसभा के जरिए पारित किए गए कई बिलों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं। सरकार का कहना है कि वह ऐसा करके लोगों के अधिकारों को निष्प्रभावी बनाने का काम कर रहे हैं। लंबित पड़े ये विधेयक सात से 21 महीनों से मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।
तमिलनाडु विवाद: तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल के बेवजह और गैर-जरूरी दखल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर 10 नवंबर को कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया था। जिसके बाद 13 नवंबर को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने 10 लंबित बिलों को विधानसभा को वापस लौटा दिया। जिस पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरएन रवि ने दस बिलों पर अपनी मंजूरी तब तक नहीं दी जब तक हमने राज्य सरकार की याचिका पर गवर्नर को नोटिस नहीं भेजा। बेंच ने राज्यपाल से प्रश्न भी किया है कि ये बिल पिछले तीन साल से लंबित थे, गवर्नर तीन साल तक क्या कर रहे थे? हालांकि राज्य सरकार ने तत्काल विशेष सत्र बुलाकर इन विधेयकों को राज्यपाल के पास वापस भेज दिया है। इससे पहले तमिलनाडु के संबंध में, सत्तारूढ़ प्रमुख के नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन ने राज्यपाल रवि को बर्खास्त करने की मांग करते हुए आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ‘सांप्रदायिक घृणा को भड़काया है।’ गठबंधन के संसद सदस्यों ने राजयपाल के पास लंबित विधेयकों में स्वीकृति के लिए देरी पर सवाल उठाया था।

पंजाब राज्यपाल विवाद: पंजाब में राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और राज्य सरकार के बीच शुरुआत से ही मतभेद रहा है। इस टकराहट की शुरुआत 21 सितंबर 2022 को तब हुई, जब सत्तारूढ़ दल द्वारा भाजपा पर राज्य सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाने के बाद राज्य सरकार ने विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विधान सभा का सत्र बुलाया। जिस पर विपक्ष ने विरोध किया कि सरकार तो विश्वास प्रस्ताव ला ही नहीं सकती। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। भाजपा ने पहले ही विधानसभा सत्र का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी थी क्योंकि उसने सरकार पर विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लाकर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। विपक्ष द्वारा किए गए इन विरोधों के चलते राज्यपाल ने इस विशेष सत्र को मंजूरी देने से इंकार करते हुए कहा कि संविधान में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं किया गया है कि विश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए विशेष सत्र बुलाया जा सकता है।

इसके बाद से राज्यपाल ने पंजाब सरकार द्वारा की गई कुछ नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए नियुक्ति की पूरी जानकारी मांगी थी। जिसके लिए सरकार ने इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री भगवंत मान एक का कहना है कि वह केवल राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं, केंद्र द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के प्रति नहीं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल द्वारा उठाए गए सभी मुद्दे राज्य के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे हैं और इन मुद्दों के लिए वह तीन करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं। अपने पत्रों के प्रति सरकार की उदासीनता और नियुक्तियों का विवरण न दिए जाने के कारण राज्यपाल ने बजट सत्र में विस्तार देने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया। हालांकि राज्यपाल ने 28 फरवरी को बजट सत्र बुलाने को मंजूरी दी थी जिसके बाद सरकार ने 3 से 24 मार्च तक विधानसभा का बजट सत्र बुलाया था।

24 मार्च को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने के बाद विस्तारित सत्र के रूप में 19 व 20 जून को बुलाया गया, जिसका विवरण न देने पर राज्यपाल ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया। इसके कारण सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद और बढ़ गया। इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार ने इस बजट सत्र का सत्रावसान नहीं किया। काफी लंबे समय तक चले विवाद के बाद सरकार ने 20 और 21 अक्टूबर को बजट सत्र को विस्तार देने के लिए एक बार फिर बैठक बुलाई। जिस पर राज्यपाल ने अपना एतराज जताते हुए कहा कि पंजाब सरकार को भेजे गए पत्र में वह पहले ही कह चुके हैं कि इस प्रकार का बुलाया गया कोई भी सत्र गैरकानूनी होगा ऐसे सत्र के दौरान किया गया कोई भी कार्य अवैध होगा। लेकिन सरकार का कहना है कि अगर सत्र का सत्रावसान नहीं किया गया है तो इसमें अब राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है। स्पीकर जब चाहे विधानसभा की बैठक बुला सकता है। सरकार और राज्यपाल के विवादों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि राज्य सरकार और राज्यपाल को आपस में मिलकर इन मुद्दों को सुलझाना चाहिए। साथ ही राज्यपाल को प्रस्तुत बिलों पर निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ने के लिए कहा है जो कि 19 और 20 जून को आयोजित सदन में पारित किए गए थे।

राज्यपाल और सरकार के बीच क्यों है विवाद
राज्यपाल और सरकार के बीच होने वाले विवाद के अधिकतर मामले ऐसे राज्यों में देखे जाते हैं जहां केंद्र की विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ होती हैं। एबीवीपी में प्रकाशित खबर के अनुसार श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े एक वरिष्ठ शोधार्थी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि इनका विवाद विशुद्ध रूप से राजनीतिक होता है। ये अधिकांश उन राज्यों से ही सामने आता है, जहां विपक्ष की सरकार है। इन राज्यों में राज्य की सरकार का अपना एजेंडा और विजन होता है। लेकिन राज्यपाल केंद्र के प्रतिनिधि होते हैं और वे केंद्र का एजेंडा और विजन को बढ़ाने की कोशिश करते हैं जो टकराव की वजह बनती है।

इस टकराव के कारण ही कई बार राज्य में राज्यपाल के पद को खत्म करने की मांग भी उठ चुकी है। संविधान के अनुसार राज्यपालों को केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं। अब राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच खड़े होने वाले विवादों के कारण राज्यपाल के पद को खत्म करने की मांग भी उठने लगी है। अप्रैल 2023 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा सांसद विनॉय विश्वम ने राज्यपाल के पद को गैर-जरूरी बताते हुए खत्म करने की मांग की थी। इसके अलावा साल 2016 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस पद को खत्म करने की मांग कर चुके हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD