- संजय कुंवर
वर्ष 2023 उत्तराखण्ड के इतिहास में कई उपलब्धियों को लेकर आया। इनमें एक जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशंस है। एक दिन में ही 18 जीआई टैग पाकर उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य बन चुका है। इससे उत्तराखण्ड की चौलाई, झंगोरा, रम्माण के मुखोटे और कुमाऊंनी रंगवाली पिछोड़ा को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई पहचान मिलेगी
उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जिसे एक दिन में सबसे अधिक 18 जीआई प्रमाण पत्र मिले हैं। गत् दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास स्थित मुख्य सेवक सदन में जीआई प्रमाण पत्रों का वितरण किया। ये उत्तराखण्ड के लिए बहुत बड़े गौरव का विषय है कि यहां के मौलिक उत्पादों को वैश्विक पहचान मिलती जा रही है। अब तक उत्तराखण्ड के कुल 27 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। उत्तराखण्ड के ये सभी उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में देखने को मिलेंगे और आप इन्हें विभिन्न देशों में खरीद सकते हैं। उम्मीद की जा रही कि भविष्य में ये उत्पाद वैश्विक पहचान बनाने में सफल होंगे। स्थानीय प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार में जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय प्रोडक्ट को देश के साथ ही इंटरनेशनल मार्केट में पहचान दिलाने में जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जीआई टैग मिलने के बाद न केवल उत्पादों को बाजार मिलेगा अपितु लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
इन 18 को मिला जीआई प्रमाण पत्र
उत्तराखण्ड चौलाई, झंगोरा, मंडुआ, लाल चावल, अल्मोड़ा लखोरी मिर्च, बेरीनाग चाय, बुरांस शरबत, रामनगर नैनीताल लीची, रामगढ़ आडू, माल्टा, पहाड़ी तोर, गहत, काला भट्ट, बिच्छूबूटी फैब्रिक, नैनीताल मोमबत्ती, कुमाऊंनी रंगवाली पिछोड़ा, चमोली रम्माण मास्क तथा लिखाई वुड कार्विंग शामिल हैं।
ये है जीआई टैग
वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी ऑर्गनाइजेशन (विप्रो) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्रांतीय और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है। भारतीय संसद में सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है।
भारत में ये टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स को दिया जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला जी आई टैग दिया जाता है। उदाहरण के लिए बासमती चावल है जिस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है। भारत में वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग दिया जाता है।
इन नौ उत्पादों को पहले ही मिल चुका है जीआई टैग
उत्तराखण्ड के नौ उत्पादों तेजपत्ता, बासमती चावल, ऐपण आर्ट, मुनस्यारी का सफेद राजमा, रिंगाल क्राफ्ट, थुलमा, भोटिया दन, च्यूरा ऑयल तथा ताम्र उत्पाद को पहले ही जीआई टैग भौगोलिक संकेतांक (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस) प्राप्त हो चुका है। तेजपत्ता प्रदेश का पहला जीआई टैग प्राप्त करने वाला उत्पाद था। जीआई टैग को हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं, एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक ये टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है। पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को मिला था।