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लोकतंत्र की ओट में तानाशाही

पुतिन को मिली पंचंड जीत

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर से चुनावी जीत हासिल कर चुके हैं। दमदार विपक्ष की नामौजूदगी में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज कराने के बाद पुतिन ने तीसरे विश्व युद्ध की चेतावनी जारी कर स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि पश्चिमी देशों, विशेषकर ‘नाटो’ से जुड़े देशों के प्रति अब रूस कठोर रुख अपनाने का मन बना चुका है। भले ही पुतिन खुद को लोकतांत्रिक जननेता साबित करने का प्रयास करते हों अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों से लेकर पश्चिमी देशों का मानना है कि पुतिन के नेतृत्व में रूस लोकतांत्रिक व्यवस्था के बजाए तानाशाही में बदल चुका है

रूस-यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है। इसी युद्ध के बीच रूस में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं। यह चुनाव स्वतंत्र मीडिया और मानवाट्टिाकार समूहों के दमन, पुतिन को राजनीतिक व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण देने और यूक्रेन के खिलाफ मॉस्को के युद्ध के दो साल पूरे होने के बाद हो रहा है। अब इसमें कोई संशय नहीं रहा गया है कि लंबे समय से राष्ट्रपति रहे व्लादिमीर पुतिन ही पांचवी बार राष्ट्रपति बनेंगे। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के अनुसार पिछले 24 साल से रूस की सत्ता पर काबिज रहने वाले पुतिन का फिर से राष्ट्रपति बनना तय है। रूस में पहली बार दो चरणीय चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में पुतिन को भारी बहुमत प्राप्त हुआ है और अन्य उम्मीदवार उनकी इस प्रचंड जीत के नीचे दब गए हैं। पुतिन 88 प्रतिशत वोट पाकर अनौपचारिक तौर पर राष्ट्रपति घोषित हो चुके हैं। भारत समेत कई देशों ने इसके लिए पुतिन को बधाई दी है, वहीं
अमेरिका, जर्मनी,यूक्रेन जैसे देशों ने रूसी चुनाव की आलोचना की है। रूस और पुतिन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये चुनाव अलोकतांत्रिक और तानाशाही पूर्ण थे।

रूस दावा करता रहा है कि वह मजबूत लोकतांत्रिक देशों में से एक है। ऐसा देश जहां निष्पक्ष चुनाव होते हैं। लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स ने दावा किया है कि वास्तविक धरातल पर यहां केवल तानाशाही है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होता है, जिन्हें चुनाव के दौरान सत्ता में आने का अवसर मिलता है जिससे उन्हें देश का प्रतिनिट्टिात्व करने का मौका मिलता है लेकिन रूस में लगभग दो दशकों से सत्ता पर व्लादिमीर पुतिन ही रहे हैं। पुतिन के ज्यादातर विरोधी या तो जेल में हैं या उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया है। पुतिन समर्थक इसे अपने नेता की लोकप्रियता का प्रभाव करार देते हैं तो वहीं दूसरी ओर कई पश्चिमी देशों और संगठनों का मानना है कि रूस में कभी भी चुनाव न तो निष्पक्ष हुए हैं न ही रूस लोकतांत्रिक देश है। ऐसे समय में जब रूस में चुनाव चल रहे हैं, 17 मार्च को रूस के कब्जे वाले शहर बर्डियांस्क में चुनाव आयोग के एक अधिकारी के मारे जाने की खबर भी सामने आई है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुतिन के समर्थक बैलेट बॉक्स लेकर लोगों के घर जा रहे थे ,उनके साथ सेना भी थी। लाखों लोगों ने इसलिए पुतिन को उनके पांचवे कार्यकाल के लिए वोट दिया क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। पुतिन विरोधियों का कहना है कि क्रेमलिन ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य से कोई भी विश्वसनीय प्रतिद्वंद्वी रहने ही नहीं दिया। या तो पुतिन के विरोधियों को जेल में डाल दिया जाता है या तो वो निर्वासित कर दिए गए।

मजबूत विपक्ष की कमी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रूस में अब विपक्षी दलों का पूरी तरह दमन हो चुका है। ऐसे उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में आने से पहले ही बाहर कर दिया गया जो पुतिन को चुनौती देने में सक्षम थे। अट्टिाकतर उम्मीदवार मृत हो जाने, जेल जाने, निर्वासित होने, चुनाव लड़ने से रोक दिए जाने के चलते पुतिन के सामने खड़े नहीं हो सके। तीन उम्मीदवार जो पुतिन के प्रतिद्वंद्वी हैं, वो मजबूत नहीं है। रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग (सीईसी) ने पुतिन के विरोध में जिन तीन उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतरने की इजाजत दी वे क्रेमलिन समर्थक हैं। इनमें से कोई भी यूक्रेन पर आक्रमण का विरोध नहीं करता है।

पुतिन की जीत का राज

पुतिन के सामने खड़े रहने वाले दो मजबूत विरोट्टाी पार्टियों को चुनावी मैदान में उतरने ही नहीं दिया गया हैं। येकातेरिना डंटसोवा को उसके पंजीकरण दस्तावेजों में कथित त्रुटियों के लिए चुनाव आयोग ‘सीईसी’ द्वारा खारिज कर दिया गया। 6 नवंबर 2023 को डंटसोवा ने 2024 के चुनाव में रूस के राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा की थी। उस दौरान उन्होंने कहा था कि वह युद्ध-विरोधी मंच पर एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगी। अगले महीने ही उनके नामांकन दस्तावेजों को केंद्रीय चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। इसके अलावा एक अन्य पुतिन विरोट्टाी और आलोचक की भी मौत चुनाव से एक महीने पहले हो गई। दरअसल यह चुनाव 16 फरवरी को आर्कटिक दंड कॉलोनी में पुतिन के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी एलेक्सी नवलनी की मृत्यु के तुरंत बाद हुआ है। गौरतलब है कि नवलनी लंबे समय से कैद में थे। जेल अधिकारियों के अनुसार नवलनी टहलने के बाद अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। उनकी मृत्यु के लिए प्राकृतिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया। कथित तौर पर कहा जाता रहा है कि नवलनी की हत्या की गई है जिसके पीछे पुतिन का हाथ है। हालांकि क्रेमलिन ने उनकी मृत्यु में किसी भी तरह की संलिप्तता से साफ इनकार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नवलनी को नर्व एजेंट नोविचोक नामक जहर दिया गया था। ‘सीएनएन-बेलिंगकैट’ जो कि नीदरलैंड स्थित एक खोजी पत्रकारिता समूह है, उसने अपनी जांच में पाया कि रूसी सुरक्षा सेवा (एफएसबी) की एक इकाई ने उन्हें यह जहर दिया।

एक ओर जहां पुतिन पर हत्या जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं , वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वियों की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया है। पहली बार ऐसा हुआ है कि पुतिन ने अपने प्रमुख आलोचक और विरोधी एलेक्सी नवलनी का खुलकर नाम लिया वो भी तब, जब एक महीने पहले उनकी जेल में मौत हो गई है। नवलनी को लेकर उन्होंने कहा कि ‘पश्चिमी देशों में बंद रूसी कैदियों के बदले नवलनी को विदेश जाने के विकल्प के बारे में विचार किया था लेकिन शर्त थी कि वह वापस रूस नहीं लौटेंगे। मैंने कहा था कि मैं इसके लिए तैयार हूं लेकिन दुर्भाग्य से जो हुआ वो हुआ, क्या कर सकते हैं, यहीं जिंदगी है।’ पुतिन यह कह सम्भवतः अपनी ओर उठ रही उंगलियों को दबा देना चाहते हैं जिनका यह मानना था कि पुतिन के कहने पर ही नवलनी की हत्या की गई। गौरतलब है कि पिछले ही महीने नवलनी की सहयोगी मारिया पेवचिख ने दावा किया था कि एलेक्सी नवलनी कैदी अदला-बदली में रिहा होने वाले थे लेकिन साइबेरियाई जेल में पुतिन के धुर विरोधी एलेक्सी नवलनी की मौत हो गई। पेवचिख ने कहा कि 15 फरवरी की शाम को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि अदला-बदली के लिए बातचीत अंतिम चरण में है। उन्होंने आरोप लगाया कि नवलनी को इसलिए मार दिया गया था, क्योंकि पुतिन उनके स्वतंत्र होने के विचार को बर्दाश्त नहीं कर सके थे।

पिछले महीने भारी पुलिस बल की उपस्थिति और गिरफ्तारी की धमकी के बावजूद नवलनी के अंतिम संस्कार के लिए हजारों लोग मास्को में एकत्र हुए। इसी दौरान पुतिन के खिलाफ भीड़ द्वारा ‘पुतिन एक हत्यारा’ है नाम के नारे लगाए गए। साथ ही ‘युद्ध नहीं’ के नारों से भी मास्को गूंज उठा। नवलनी की मृत्यु ने रूसी लोकतंत्र से मजबूत विपक्ष को छीन लिया, और पुतिन के प्रमुख विपक्षी नेता से छुटकारा दिला दिया। नवलनी की पत्नी यूलिया नवलनाया ने पहले चुनावी चरण के अंतिम दिन 17 मार्च को रूसियों से विरोध-प्रदर्शन के रूप में सामूहिक रूप से उपस्थित होने का आग्रह किया था। इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘चुनावों से ठीक एक महीने पहले पुतिन ने मेरे पति की हत्या कर दी। ये चुनाव फर्जी हैं’।

राष्ट्रपति बने रहने के सफर की शुरुआत

राजनीतिक विषेशज्ञों के अनुसार रूस के राष्ट्र प्रमुख रहे पुतिन ने अपने जीत की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। इस बार राष्ट्रपति बनने से पुतिन का कार्यकाल वर्ष 2030 तक बढ़ जाएगा। 2020 में हुए संवैधानिक बदलावों के तहत वह फिर से चुनाव लड़ सकेंगे और संभावित रूप से 2036 तक वे सत्ता में बने रहेंगे, जिससे वह सोवियत तानाशाह जोसेफ के बाद रूस के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले शासक के रूप में अपनी जगह सुरक्षित कर लेंगे।

वर्ष 1993 तक रूसी संविधान में प्रावधान था कि कोई राष्ट्रपति लगातार केवल दो बार ही इस पद पर बने रह सकता है। 24 साल पहले साल 2000 में पहली बार पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने थे। वर्ष 2000 से 2008 तक वो राष्ट्रपति रहे। साल 2007 में बतौर राष्ट्रपति पुतिन का दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने जा रहा था। इसलिए सत्ता में बने रहने के लिए पुतिन ने संविधान में संशोधन कर डाला। साल 2008 तक दो बार राष्ट्रपति रहने के बाद पुतिन ने अपने प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव को रूस का राष्ट्रपति बनवा दिया। दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति पद पर अपना उत्तराधिकारी घोषित करने से पुतिन को चार सालों तक प्रधानमंत्री बनने और साल 2012 में राष्ट्रपति पद पर लौटने का मौका मिल गया। दिमित्री के औपचारिक तौर पर रूस के राष्ट्रपति बने रहने के दौरान भी पुतिन की पकड़ देश पर बनी रही। नवंबर 2008 में दिमित्री ने संविट्टाान संशोधन कर राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 से बढ़ाकर 6 साल कर दिया। 4 साल बाद वर्ष 2012 में पुतिन ने फिर जीत हासिल की और सत्ता में लौटे। तब से लेकर अब तक एक के बाद एक प्रचंड जीत के साथ पुतिन राष्ट्रपति बने हुए हैं। जनवरी 2020 में पुतिन ने संविधान संशोधन के जरिए दो बार तक राष्ट्रपति रहने की सीमा भी खत्म कर दी थी।

पुतिन का सफर

रूसी जासूसी एजेंसी केजीबी में एक सामान्य जासूस रहे व्लादिमीर पुतिन वर्ष 1999 में पहली बार देश के राष्ट्रपति बने थे। तब से लेकर अब तक पुतिन ने रूस की कमान अपने हाथों में ली हुई है। इस साल वह अब तक की सबसे बड़ी जीत के साथ वैश्विक व्यवस्था बदलने के अपने मजबूत इरादे को साथ लेकर आगे बढ़ने की तैयारी में हैं। रूसी चुनाव आयोग (सीईसी) के अनुसार यह पहली बार है कि देश में दो चरण में चुनाव हो रहे हैं। पहला चरण का चुनाव 15 से 17 मार्च तक हो चुका है। पहले चरण में चुनाव देश के 11 ‘टाइम जोन’ के साथ ही यूक्रेन के अवैध रूप से कब्जाए क्षेत्रों में भी चुनाव कराए गए। जहां के चुनावी परिणामों से स्पष्ट है कि 2024 में पुतिन भारी मतों से पांचवी बार राष्ट्रपति चुनाव जीतने की ओर बढ़ रहे हैं। जिसमें पुतिन को 88 प्रतिशत वोट मिले हैं जो पिछले राष्ट्रपति चुनाव से कहीं ज्यादा है। करीब 7.6 करोड़ लोगों ने पुतिन को मतदान किया है। पुतिन के सामने केवल तीन व्लादिस्लाव दावानकोव, लियोनिद स्लटस्की, निकोले खारितोनोव ही उम्मीदवार हैं। पुतिन की इस प्रचंड जीत का कारण दमदार विपक्षी नेताओं को चुनाव प्रक्रिया से रोक देना है।

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