उत्तर प्रदेश में अपनी हार के कारणों की समीक्षा कर भाजपा भले ही सार्वजनिक तौर पर उन कारणों को न गिनाए जिनसे उसकी प्रदेश ईकाई की आंतरिक रार और प्रदेश नेतृत्व का केंद्रीय नेतृत्व संग टकराव का सच सामने आ उसकी शर्मिंदगी का कारण बनें, यह तय है कि इस मंथन से अमृत कम विष अधिक निकलने वाला है। राजनीतिक पंडितों की राय में इस हार के कारण एक नहीं कई हैं। यदि पार्टी नेतृत्व ईमानदार तरीके से इन कारणों की तह तक पहुंचने का प्रयास करेगा तो निश्चित ही प्रदेश भाजपा में चौतरफा पसरी गुटबाजी तो सतह पर आ ही जाएगी, मुख्यमंत्री योगी के रामराज में केंद्रीय नेतृत्व का लगातार हस्तक्षेप का मसला भी उभर कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के मध्य पहले से ही चले आ रहे तनावपूर्ण सम्बंधों को रसातल में पहुंचाने का कारण बन जाएगा
चार जून को आम चुनाव के नतीजे आने थे और उसके अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्म दिन था। लखनऊ के दिल का खिताब पाए हजरतगंज स्थित भाजपा के प्रदेश कार्यालय में भारी जश्न दोनों ही दिन मनाया जाना तय था। उत्तर प्रदेश की जनता ने लेकिन इस जश्न पर पानी फेरने का काम चार जून को कर दिखाया। 2019 में 80 में से 62 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार राज्य की 75 सीटों पर जीत का दावा कर रही थी और उसे उम्मीद थी कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण बाद कम से कम 65 सीटों पर तो उसकी जीत पक्की है। ‘हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा’ सरीखे नारों और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘बुल्डोजर नीति’ लेकिन इस बार काम न कर पाई और भाजपा 2019 की बनिस्पत राज्य में मात्र 33 सीटों पर सिमट कर रह गई। विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन 43 सीटें जीता जिसमें अकेले सपा की झोली में 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश से मिला झटका एक बड़ा सदमा है। यदि पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा 62 सीटंे भी जीत लेती तो केंद्र में अपने दम पर सरकार बना पाने की स्थिति में आ जाती। ऐसा लेकिन हुआ नहीं और अब पार्टी नेतृत्व सदमे से उबर इस अप्रत्याक्षित हार के कारणों की समीक्षा करने में जुट गया है।
भाजपा नेतृत्व के समक्ष सबसे बड़ा और तात्कालिक खतरा हार के कारणों की समीक्षा ही है। यदि पार्टी नेतृत्व ईमानदार तरीके से इन कारणों की तह तक पहुंचने का प्रयास करेगा तो निश्चित ही प्रदेश भाजपा में चौतरफा पसरी गुटबाजी तो सतह पर आ ही जाएगी, मुख्यमंत्री योगी के कामराज में केंद्रीय नेतृत्व का लगातार हस्तक्षेप का मसला भी उभर कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के मध्य पहले से ही चले आ रहे तनावपूर्ण संबंधों को रसातल में पहुंचाने का कारण बन जाएगा। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिले प्रचंड जनादेश का सेहरा योगी आदित्यनाथ के सर बंधा था। ऐसे में अब इस लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा भी उन्हीं के खाते में डालने का प्रयास किया जा सकता है। इस सच से न तो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मुंह मोड़ सकता है और न ही योगी आदित्यनाथ कि 2019 के आम चुनावों में 49.6 प्रतिशत वोट पाने वाली भाजपा का ग्राफ आमजन में इस तेजी से गिरा है कि 2024 के चुनाव में वह मात्र 41.4 प्रतिशत वोट ही पा सकी है।
हार के हैं कई कारण
भाजपा अपनी इस हार के कारणों की समीक्षा कर भले ही सार्वजनिक तौर पर उन कारणों को न गिनाए जिनसे उसकी प्रदेश इकाई की आंतरिक रार और प्रदेश नेतृत्व का केंद्रीय नेतृत्व संग टकराव का सच सामने आ उसकी शर्मिंदगी का कारण बनें, राजनीतिक पंडितों की राय में इस हार के कारण एक नहीं, कई हैं। सबसे बड़ा कारण भाजपा का बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित की जाने वाली परिक्षाओं के पर्चो का लीक होना, अग्निवीर योजना इत्यादि को नजरअंदाज कर राम मंदिर निर्माण और योगी सरकार की बुलडोजर नीति पर भरोसा करना रहा है।
योगी ही नहीं स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण और योगी की बुलडोजर नीति को इन चुनावों में तरूप का इक्का मान चल रहे थे। बुलडोर नीति को लेकर प्रट्टाानमंत्री का भरोसा चुनाव प्रचार के दौरान दिए एक वक्तव्य से साफ झलकता है। उन्होंने दंभ पूर्ण स्वर में कहा था ‘कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को योगी आदित्यनाथ से ट्यूशन लेने की जरूरत है कि बुलडोजर कहां चलाया जाना चाहिए।’ स्वयं योगी ने बिहार में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए कि ‘मैं आप सबका ट्टान्यवाद देना चाहता हूं कि आपने मेरे आने से पहले यहां बुलडोजर मंगवा लिया। ये माफिया और आतंकवादियों का सबसे उचित इलाज है।’ उत्तर प्रदेश की जनता ने लेकिन इस बुलडोजर नीति पर ही बुलडोजर चला यह स्पष्ट संदेश भाजपा नेतृत्व को दे डाला कि बुलडोजर और मंदिर से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण वे जमीनी मुद्दे हैं जिन्हें हाशिए में रखने का काम भाजपा करने में जुटी थी।
राजनीतिक विशेषकों का एक बड़ा वर्ग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काडर की नाराजगी को भी एक बड़ा कारण बता रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने चुनाव प्रचार के ठीक मध्य दिए एक साक्षात्कार में भाजपा को अपने पैरों पर खड़ा ऐसा संगठन बता डाला जिसे अब संघ की बैसाखियों की जरूरत नहीं। यह बयान संघ कॉडर को नागवार गुजरा और वह ‘स्लीप मोड़’ में चला गया। इसी प्रकार टिकट वितरण की कमान पूरी तरह केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में होने के चलते प्रदेश भाजपा के नेताओं की एक न सुनी जाने, विशेषकर मुख्यमंत्री योगीनाथ की सलाह विरुद्ध लगभग 25 टिकटों का वितरण भी भाजपा की करारी हार का एक कारण उभर कर सामने आया है।
क्या बढ़ेगी योगी-शाह की तकरार
आम चुनाव के दौरान एक चर्चा खासी चली कि मनमाफिक नतीजे आने बाद भाजपा नेतृत्व उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन कर सकता है। इस प्रकार की चर्चाओं ने उस मतदाता को सशंकित कर डाला जो योगी की कड़क छवि और उनके घोर हिंदुत्ववादी एजेंडे़ का समर्थक है। उसकी आशंकाओं को तब बल मिला जब भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने बड़ी तादात में ऐसों को टिकट दे दिया जिन्हें लड़ाने के योगी खिलाफ थे। अब जबकि उत्तर प्रदेश में भाजपा को खासा झटका लग चुका है, चौतरफा यही चर्चा है कि कांग्रेस-सपा गठबंधन की सफल रणनीति ने नहीं, बल्कि भाजपा भीतर योगी विरोधियों की उस जमात ने हराने का काम किया है जिसकी डोर केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में है। योगी समर्थक खुलकर कहने लगे हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा अपना वर्चस्व वापस पाना चाहती है तो उसे योगी ही हासिल कर सकते हैं, बर्शते उन्हें खुलकर काम करने दिया जाए। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसा बहुत कुछ देखने को मिलना तय है जो पार्टी के नेताओं की आपसी रार को सतह में लाने का काम करेगा और मोदी बाद की भाजपा पर कब्जा करने की रणनीति का हिस्सा होगा।

