पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि एक बेहद तेजतर्रार और लड़ाकू नेता की रही है। पश्चिम बंगाल में दशकों से सत्ता में काबिज वामपंथियों को अपनी इसी लड़ाकू स्टाइल की बदौलत ममता 2011 में सत्ता से बेदखल कर पाई थी। अब लेकिन उनकी छवि ऐसी नेता की बनने लगी है जिसके नियंत्रण से हालात तेजी से फिसल रहे हैं। कोलकत्ता रेप केस के बाद आरजी कार मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों ने धरना-प्रदर्शन और बेमियादी हड़ताल कर ममता बनर्जी की आयरन लेडी वाली छवि को ध्वस्त करने का काम किया है। कोलकत्ता के सत्ता गलियारों में कानाफूसी का दौर इस बात को लेकर चल रहा है कि यदि ऐसे ही हालात रहे तो 2026 के विधानसभा चुनाव पार्टी कैसे जीत पाएगी? चर्चा ममता के भतीजे और उनके वारिस कहलाए जाने वाले अभिषेक बनर्जी की कार्यशैली को लेकर भी जमकर होने लगी है। ममता के पुराने सहयोगियों को अभिषेक सख्त न पसंद हैं। ऐसे में कमजोर पड़ती मता बनर्जी पर उनके सहयोगी दबाव बनाने लगे हैं कि वे पार्टी मामलों में अभिषेक के हस्तक्षेप को कम करें। चर्चा तो यह भी है कि यदि हालात ज्यादा बिगड़ते तो तृणमूल के कई बड़े चेहरे भाजपा की शरण में जा सकते हैं।
कमजोर पड़ती ममता

