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शीतकालीन नहीं युद्धकालीन सत्र

 

संसद का शीतकालीन सत्र गत सप्ताह 20 दिसम्बर को समाप्त होते-होते ऐसे विवाद छोड़ गया जिसकी छाप आगे भी संसदीय कार्यवाही पर दिखते रहने के पूरे आसार हैं। इस सत्र में अडानी, सम्भल हिंसा, मणिपुर हिंसा, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले और बाबा साहेब अम्बेडकर के कथित अपमान और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का पीएम मोदी पर दिए गए विवादित बयान जैसे मुद्दों को लेकर तीखी नोक-झोंक हुई। यहां तक कि धक्का-मुक्की और एफआईआर की नौबत भी आ गई। देश की सबसे बड़ी पंचायत में आखिर के दो दिन जिस तरह के दृश्य दिखे उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि यह संसद का शीतकालीन सत्र नहीं, बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच युद्धकालीन सत्र था

पिछले महीने की 25 नवम्बर से शुरू हुआ संसद का शीतकालीन सत्र गत सप्ताह 20 दिसम्बर को समाप्त होते-होते ऐसे विवाद, मुद्दे और टकराव छोड़ गया जिसकी छाप आगे भी संसदीय कार्यवाही पर दिखते रहने के आसार हैं। इस पूरे सत्र के दौरान एक ओर जहां दोनों सदनों में उद्योगपति गौतम अडानी और जॉर्ज सोरोस के सहारे सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर हमला करते रहे वहीं दूसरी तरफ पहली बार लोकसभा में पहुंची कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कभी अपने बैग पर फिलिस्तीन टैग लिखवाकर संसद में प्रवेश किया तो कभी मोदी अडानी भाई-भाई लिखे बैग के साथ चर्चा में रहीं, वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी पर विवादित बयान दे राज्यसभा का माहौल तल्ख कर डाला। संजय सिंह दिल्ली के विकास कार्यों का जिक्र कर रहे थे जब बीजेपी के एक नेता ने ‘आप’ संयोजक अरविंद केजरीवाल को चोर कहकर सम्बोधित किया। इस पर संजय सिंह ने अपना आपा खो दिया और प्रधानमंत्री मोदी को भी चोर कह डाला। उनका बयान था, ‘गली-गली में शोर है, ‘नरेंद्र मोदी चोर है।’ इसके बाद सभापति ने संजय को वार्निंग दी कि वह अपने शब्दों पर ध्यान दें।

देश की सबसे बड़ी पंचायत में आखिर के दो दिन जिस तरह के दृश्य दिखे उनकी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। बाबा साहेब अम्बेडकर को लेकर की गई गृहमंत्री की एक टिप्पणी पर विपक्ष ने संसद के अंदर और बाहर तूफान खड़ा किया तो सत्तापक्ष ने भी इसका जवाब देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नतीजे धक्का-मुक्की, सांसदों का अस्पताल में भर्ती होना और एफआईआर के रूप में सामने आए जिन्हें संसदीय लोकतंत्र के लिए तो दुर्भाग्यपूर्ण बताया ही जा रहा है साथ ही इस सत्र को सरकार और विपक्ष के बीच शीतयुद्ध के रूप में भी देखा जा रहा है। आजाद भारत के इतिहास में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के मध्य इस प्रकार का तनाव पहले कभी देखने में नहीं आया है। अडानी समूह, सम्भल हिंसा, मणिपुर हिंसा, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले और बाबा साहेब अम्बेडकर के कथित अपमान जैसे मुद्दे इस सत्र में छाए रहे। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोक-झोंक हुई। यहां तक कि धक्का-मुक्की और एफआईआर की नौबत भी आ गई। इस सत्र के 26 दिनों में सिर्फ 20 बैठकें हुईं और दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा में लगभग 105 घंटे कार्यवाही चली। सदन में कुल चार बिल पेश किए गए। हालांकि, कोई पारित नहीं हो सका। सबसे चर्चित एक देश, एक चुनाव के लिए पेश हुआ 129वां संविधान (संशोधन) बिल रहा। बिल को 39 सदस्यीय जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया गया है। कमेटी में लोकसभा से 27 और राज्यसभा से 12 सांसद हैं। राजस्थान के पाली से भाजपा सांसद पीपी चौधरी को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। कमेटी को अगले संसद सत्र के आखिरी सप्ताह के पहले दिन लोकसभा में रिपोर्ट देनी है।

सत्र की शुरुआत अडानी मुद्दे पर हंगामे से हुई। फिर विपक्षी सांसदों ने मणिपुर और किसानों का मुद्दा भी उठाया। सत्र खत्म होते-होते अम्बेडकर मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ। 19 दिसम्बर को तो बात धक्का-मुक्की पर आ गई और दो भाजपा सांसद घायल हो गए जिसका आरोप राहुल गांधी पर लगा। संसद परिसर में हुई धक्का-मुक्की के बाद स्पीकर ओम बिरला ने संसद के सभी गेटों पर प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा ‘मैंने राहुल गांधी को मकर गेट पर चढ़ते देखा। हमने उन्हें जगह देने की कोशिश की। ऊपर चढ़ने के बाद उन्होंने प्रताप सारंगी और संतोष पांडे को धक्का दिया जो हमारे बगल में खड़े थे। मुकेश राजपूत को धक्का दिया गया और जो लोग वहां खड़े थे, उन सभी को धक्का दिया गया। पहली बार मैंने इस पार्टी का घिनौना चेहरा देखा। जिस तरह से हमारे सांसदों को धक्का दिया गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया वह निंदनीय है।’

सत्र के पहले दो हफ्तों में विपक्ष ने कई मुद्दों को लेकर सरकार का विरोध किया। अडानी मुद्दा और संभल विवाद जैसे मुद्दों पर विपक्ष ने कड़ी नारेबाजी की और सरकार को घेरा। इस विरोध के कारण संसद में कई बार हंगामा हुआ और कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी, वहीं जॉर्ज सोरोस के मुद्दे ने राज्यसभा में इतना जोर पकड़ा कि विपक्ष ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सम्बंधी नोटिस भी दिया जो खारिज हो गया है। विपक्ष का आरोप था कि सभापति का आचरण अस्वीकार्य है। वह भाजपा से ज्यादा वफादार दिखने का प्रयास कर रहे हैं।

सत्र के पहले दिन राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच बहस हुई। धनखड़ ने खड़गे से कहा कि हमारे संविधान को 75 साल पूरे हो रहे हैं। उम्मीद है आप इसकी मर्यादा रखेंगे। इस पर खड़गे ने जवाब दिया कि इन 75 सालों में मेरा योगदान भी 54 साल का है तो आप मुझे मत सिखाइए। वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में कभी अडानी, सम्भल, देशद्रोही, जॉर्ज सोरेस, सांसदों के बीच धक्का-मुक्की तो कभी अम्बेडकर के मुद्दे पर हंगामा के चलते दोनों सदनों को स्थगित करना पड़ा। एक तरह से कहा जाए तो शीतकालीन सत्र में काम कम हंगामा ज्यादा देखने को मिला है। एक ओर जहां विपक्ष ने सरकार को सम्भल, अडानी और अम्बेडकर मुद्दे पर घेरा है तो सत्ता पक्ष जॉर्ज सोरेस और सिंघवी की सीट पर मिली नोटों की गड्डी के मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं था।

किन मुद्दों पर हुआ हंगामा

सत्र शुरू होते ही गौतम अडानी पर अमेरिका में रिश्वतखोरी के आरोपों पर कांग्रेस ने सरकार को घेरा। राहुल गांधी ने अडानी की गिरफ्तारी की मांग की। राज्यसभा में कांग्रेस सांसद की सीट से नोटों की गड्डियां मिलने पर भी विवाद हुआ। सत्र खत्म होते-होते गृहमंत्री अमित शाह के अम्बेडकर पर दिए बयान को लेकर हंगामा मचा। इसी मुद्दे पर प्रदर्शन के दौरान सांसदों में धक्का-मुक्की हुई जिसका आरोप राहुल गांधी पर लगा।

शीतकालीन सत्र में क्या-क्या हुआ

संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसम्बर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। यह सत्र पिछले महीने 25 नवम्बर को शुरू हुआ था और 26 दिनों तक चले सत्र में लोकसभा की 20 तो राज्यसभा की 19 बैठकें हुईं। सत्र के दौरान लोकसभा में पांच विधेयक पेश किए गए और चार विधेयक पारित किए गए तथा तीन विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित किए गए। दोनों सदनों द्वारा ‘‘भारतीय वायुयान विधेयक, 2024’’ नामक एक विधेयक पारित किया गया। विधेयक का उद्देश्य विमान अधिनियम, 1934 में समय-समय पर किए गए संशाधनों चलते होने वाली अस्पष्टता को दूर करने के लिए विमान अधिनियम को फिर से लागू करना है।

सभापति पर अविश्वास
संसद के इस सत्र के नाम एक यह रिकॉर्ड भी आया कि इतिहास में पहली बार राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। हालांकि यह प्रस्ताव उपसभापति ने तकनीकी और प्रक्रियागत वजहों से खारिज कर दिया लेकिन इससे सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच की बढ़ती हुई दूरी जरूर रेखांकित हुई।

एक देश, एक चुनाव

यह प्रकरण भी इस बात के एक उदाहरण के ही रूप में दर्ज हुआ कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के नजरिए में जो अंतर है, उसे पाटने की कोई खास कोशिश किसी तरफ से नहीं हो रही। विपक्ष के विरोधी रुख से अच्छी तरह वाकिफ होते हुए भी सरकार यह बिल लेकर आई, हालांकि इसे पास कराने के लिए जरूरी दो तिहाई बहुमत फिलहाल उसके पास नहीं है। इससे जाहिर होता है कि इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजकर भी सरकार ने देशवासियों को यह संदेश देना जरूरी समझा कि इस मुद्दे पर वह कोई समझौता नहीं करने वाली।

गौरतलब है कि 26 नवम्बर को एक ऐतिहासिक उपलब्धि का दिन बतौर मनाया गया जो संविधान को अंगीकार करने की 75वीं वर्षगांठ का प्रतीक थी। उस दिन चार थीमों के तहत साल भर चलने वाले समारोह का शुभारम्भ किया गया। इनमें प्रस्तावना अपने संविधान को जानें, संविधान का निर्माण और इसकी महिमा का जन मनाना। इस अवसर को मनाने के लिए 26 नवम्बर को संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में एक विशेष समारोह आयोजित किया गया, जहां एक स्मारक सिक्के और डाक टिकट के लॉन्च के अलावा ‘‘भारत के संविधान का निर्माण और इसकी गौरवााली यात्रा’’ एक झलक’’ शीर्षक से दो पुस्तकों का विमोचन भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने किया। संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ के वर्षभर चलने वाले समारोह के हिस्से के रूप में, 13-14 दिसम्बर को लोकसभा और 16-17 दिसम्बर को राज्यसभा में देश के संविधान के 75 वर्षों की गौरवााली यात्रा’’ पर एक विशेष चर्चा आयोजित की गई।

लोकसभा में यह चर्चा 15 घंटे 43 मिनट तक चली जिसमें 62 सदस्यों ने भाग लिया और प्रधानमंत्री ने इसका उत्तर दिया। राज्यसभा में यह चर्चा कुल 17 घंटे 41 मिनट तक चली, जिसमें 80 सदस्यों ने भाग लिया और गृहमंत्री ने इसका उत्तर दिया।

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