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भाजपा को नए कप्तान की तलाश : टॉस अब तक अटका

केंद्र और देश के अधिकांश राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो चला है लेकिन उनके उत्तराधिकारी को चुनने में लगातार देरी हो रही है। दिल्ली के सत्ता गलियारों में आजकल चैतरफा चर्चा है कि यह भाजपा के वर्तमान शीर्ष आलाकमान मोदी-शाह तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच चल रही नूरा-कुश्ती का नतीजा है। हालांकि भाजपा के संविधान अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कम से कम आधे राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होना आवश्यक है। अब तक 36 में से केवल 12 राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी हो पाई है, जबकि शेष राज्यों में जिला और मंडल स्तर पर आम सहमति की कमी के कारण चुनाव प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ रही है। कई राज्यों में जिला और मंडल स्तर पर नेतृत्व को लेकर अंदरूनी मतभेद और गुटबाजी देखने को मिल रही है। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और अन्य राज्यों में स्थानीय नेताओं के बीच सहमति की कमी के कारण संगठनात्मक चुनावों में बाधा उत्पन्न हो रही है, जिससे राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में भी देरी हो रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार यह प्रक्रिया मार्च 2025 के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है। भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होने आवश्यक हैं। वर्तमान में यह प्रक्रिया जारी है और इसके पूर्ण होने के बाद ही नए अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

नए अध्यक्ष के चयन में पार्टी कई पहलुओं पर विचार कर रही है, जिसमें क्षेत्रीय संतुलन, जातिगत समीकरण, और संगठनात्मक कौशल शामिल हैं। दक्षिण भारत में पार्टी के विस्तार को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र से किसी नेता को अध्यक्ष बनाए जाने की सम्भावना पर भी चर्चा हो रही है। कर्नाटक से प्रहलाद जोशी, तेलंगाना से जी. किशन रेड्डी और ओबीसी मोर्चा प्रमुख के. लक्ष्मण जैसे नाम सम्भावित उम्मीदवारों में शामिल हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आरएसएस और भाजपा के बीच वैचारिक और संगठनात्मक सम्बंध हैं, जिससे संघ की सहमति और मार्गदर्शन नए अध्यक्ष के चयन में महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि अंतिम निर्णय प्रक्रिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भी प्रमुख भूमिका होती है, जो पार्टी की वर्तमान रणनीति-राजनीतिक आवश्यकताओं के आधार पर निर्णय लेते हैं। इस बार भी नए भाजपा अध्यक्ष के चयन में संघ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। संघ चाहता है कि भाजपा ऐसा मजबूत नेता चुने, जो संगठन की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ संघ और पार्टी के बीच समन्वय स्थापित कर सके। वहीं मोदी-शाह की अपेक्षा है कि नया अध्यक्ष पार्टी की चुनावी रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करे और आगामी चुनावी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो। इस प्रकार, नए अध्यक्ष का चयन संघ और भाजपा नेतृत्व के बीच आपसी सहमति और सामंजस्य से ही सम्भव होगा। नए अध्यक्ष के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां होंगी, जिनमें दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी का विस्तार, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में संगठनात्मक मजबूती और आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी शामिल है। इसके अलावा
जातिगत समीकरण, भाषा विवाद और परिसीमन जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना आवश्यक होगा।

पार्टी नेतृत्व का प्रयास है कि 15 मार्च 2025 से पहले नए अध्यक्ष की घोषणा की जाए, ताकि आगामी चुनावी चुनौतियों का सामना प्रभावी ढंग से किया जा सके। हालांकि संगठनात्मक चुनावों में हो रही देरी और अंदरूनी मतभेदों के कारण यह प्रक्रिया अपेक्षित समय से आगे बढ़ रही है। भाजपा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह जल्द से जल्द अपने नए अध्यक्ष का चयन करे, ताकि पार्टी आगामी राजनीतिक चुनौतियों के लिए तैयार हो सके।

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