तेरह जनवरी को ताइवान में हुए आम चुनाव के नतीजे चीन के लिए सुखद नहीं रहे हैं। इस चुनाव पर विश्व भर की नजरें गड़ी थी। ऐसा माना जा रहा था कि इस बार इस स्वशासित द्वीप पर चीन के प्रति हमदर्दी रखने वाले ,को सत्ता मिल सकती है। चीन को यह भी उम्मीद थी कि 2019 में गठित एक नए राजनीतिक दल ताइवान पीपुल्स पार्टी का प्रदर्शन भी ठीक-ठाक रहेगा और बीते दो चुनाव जीतने वाली चीन विरोधी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता से बाहर हो जाएगी। ऐसा लेकिन हुआ नहीं। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता लाई चिंग-ते राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। 2020 से ताइवान के उपराष्ट्रपति रहे लाई चिंग-ते पैन-ग्रीन गठबंधन के नेता हैं। यह गठबंधन ताइवान को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है और चीन के साथ एकीकरण का घोर विरोधी है। गौरतलब है कि दक्षिण पूर्व चीन के समुद्री तट से 161 किलोमीटर दूर स्थित ताइवान 1949 तक चीनी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था।

1949 में चीन में हुए गृह युद्ध के बाद वहां कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया था। इस गृह युद्ध से पहले चीन की सत्ता पर राष्ट्रवादी पार्टी कोमिंतांग की सत्ता थी। इस गृह युद्ध जिसे चीन की लाल क्रांति कह पुकारा जाता है, में हुई हार के बाद कोमिंतांग के नेताओं ने चीन छोड़ ताइवान द्वीप समूह में शरण ले ली थी। कोमिंतांग ने तभी से ताइवान को चीन से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था। चीन इसे नहीं स्वीकारता है और ताइवान को चीन का अभिन्न अंग मानता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग लगातार कहते रहे हैं कि ताइवान को चीन के साथ एकीकृत कराया जाना तय है। दूसरी तरफ पश्चिमी देश चीन के इस मंसूबे को रोकने की नीयत से ताइवान को सैन्य ताकत बनाने का काम करते रहे हैं। सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का ताइवान पर कब्जा पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन को ताकतवर बनाने और इस इलाके में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को सीधे चीनी सेना के निशाने में लाने का काम करेगा। यही कारण है कि अमेरिका एवं उसके सहयोगी देश ताइवान में मौजूद चीन विरोधी राजनीतिक दलों को समर्थन देते आए हैं।
चीन विरोधी हैं नए राष्ट्रपति
ताइवान में बीते आठ वर्षों से डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की नेता साई इंग-वेन राष्ट्रपति हैं। वे ताइवान की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला हैं। ताइवानी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति केवल दो टर्म के लिए ही चुना जा सकता है। 2016 में राष्ट्रपति बनी साई इंग-वेन 2020 में दोबारा चुनाव जीती थीं। संवैधानिक बाध्यता के चलते वे तीसरा चुनाव नहीं लड़ी और उन्होंने अपनी पार्टी की तरफ से उपराष्ट्रपति लाई चिंग-ते को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया। पेशे से डॉक्टर रहे लाई भी घोर चीन विरोधी नेता हैं। उनकी जीत के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब ताइवान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को ज्यादा मजबूती देने की दिशा में आगे बढ़ेगा। चीन की नजरों में लाई वर्तमान राष्ट्रपति साई इंग-वेन से कहीं ज्यादा अलगाववादी और अमेरिकी समर्थक हैं।
बड़ी सैन्य ताकत बन उभर रहा है ताइवान
चीन के लिए ताइवान द्वारा लगातार अपनी सैन्य ताकत का विस्तार करना एक बड़ी समस्या बन चुका है। हालांकि चीन के पास विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना है और ताइवान हर दृष्टि से चीन की सैन्य क्षमता के आगे कमजोर है लेकिन अमेरिका द्वारा उसे भारी तादात में हथियार और सैनिक विमान उपलब्ध कराए जा रहे हैं जो चीन के लिए चिंता का बड़ा मुद्दा बन चुका है। गत् वर्ष जुलाई में ही अमेरिका ने ताइवान को सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए लगभग 35 करोड़ अमेरिकी डॉलर दिए जाने की घोषणा कर चीन की खासी नाराजगी मोल ली थी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन लगातार कहते आए हैं कि यदि चीन ताइवान पर कब्जा करने की नीयत से सैन्य हमला करता है तो अमेरिका ताइवान की मदद करने से पीछे नहीं हटेगा।
बड़ी आर्थिक शक्ति है ताइवान
लगभग दो करोड़ की जनसंख्या वाला ताइवान विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत वाला देश 20वीं शताब्दी के मध्य में उभरा था। उसकी इस आर्थिक तरक्की को ‘ताइवान मिरेकल’ (ताइवान का जादू) कह पुकारा जाता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दृष्टि से यह छोटा सा देश विश्व की 21वीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति वाला देश है। इसकी सबसे बड़ी शक्ति टेक्नोलॉजी का क्षेत्र है। सेमी कंडक्टर उद्योग में ताइवान की कंपनियों की वैश्विक हिस्सेदारी लगभग आधी है। यहां की एक कंपनी ‘ताइवान सेमी कंडक्टर माइक्रो इलेक्ट्रानिक कॉरपोरेशन’ विश्व की सबसे बड़ी सेमी कंडक्टर बनाने वाली कंपनी है जो इंटेल और सैमसंग से कई गुना बड़ी है। अमेरिका द्वारा ताइवान पर चीन के कब्जे को हर कीमत पर रोकने की मंशा के पीछे ताइवानी टेक्नोलॉजी भी एक बड़ा कारण है। पश्चिमी देशों को भय है कि यदि चीन ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो विश्व के एक अति महत्वपूर्ण उद्योग पर उसका एकतरफा राज हो जाएगा।