उत्तराखण्ड की सबसे पुरानी नगर पालिका जिसकी स्थापना 1865 में अंग्रेजी शासनकाल में हुई वहां अभी निकाय चुनाव को लेकर उम्मीदवारों में कोई जोश-खरोश नहीं दिखाई दे रहा है। फिलहाल उत्तराखण्ड की साहित्यिक नगरी अल्मोड़ा के बाशिंदे असमंजस में हैं। वह अभी तक समझ नहीं पाए है कि यहां निकाय चुनाव किस आधार पर होंगे। यह नगर पालिका ही रहेगी या नगर निगम बनेगा? यहां चुनाव सामान्य होंगे या सीट आरक्षित रहेगी? अल्मोड़ा की नगर पालिका में कमल का फूल खिलाने का सपना भाजपा पिछले कई बरसों से देखती रही है। यहां सांसद से लेकर विधायक तक भाजपा के बने हैं लेकिन पालिका अध्यक्ष कभी उनकी पार्टी का नहीं बना है। यहां कभी कांग्रेस का कब्जा रहा तो कभी निर्दलीयों को मौका मिला। लेकिन इस बार भाजपा अल्मोड़ा पर अपना कब्जा जमाने के लिए पूरी रणनीति के साथ मैदान में है। इसके तहत ही अल्मोड़ा को नगर पालिका से बाहर निकालकर नगर निगम बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। लेकिन स्थानीय विधायक के साथ ही जनता ने इसका प्रतिकार कर दिया है। बहरहाल, विस्तारीकरण के विरोध में ग्रामीण सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर चुके हैं
प्रदेश में निकाय चुनाव की तैयारी जोरों पर है। दो विधानसभा उपचुनाव के बाद अब अगला नंबर निकाय चुनाव का है। हालांकि समय पर नगर पालिका एवं नगर निगम के चुनाव न होने से विपक्षी पार्टी कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया है। अल्मोड़ा में निकाय चुनाव से पहले नगर पालिका के सीमा विस्तार के मामले को कांग्रेस विधायक मनोज तिवारी ने लपक लिया है। अल्मोड़ा नगर पालिका परिषद क्षेत्र के आस-पास के कुल 25 गांवों को इस विस्तार नीति में लाने की बात चल रही है। ग्रामीणों का कहना है वह किसी भी कीमत पर पालिका में शामिल नहीं होंगे। कांग्रेस के विधायक मनोज तिवारी भी ग्रामीणों के पक्ष में खुलकर आ गए हैं। तिवारी ने ऐलान किया है कि वह ग्रामीणों के साथ खड़े हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र तानाशाही से नहीं चलता। जो लोग नगर निगम में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं उनको जबरन शामिल नहीं किया जा सकता। विधायक तिवारी ने कहा कि प्रदेश की सरकार राजनीतिक षड्यंत्र रच रही है जहां 6 महीने में चुनाव होने थे, वहां 8 महीने में भी नहीं हुए हैं। अब सरकार नगर निगम बनाने की बात कह रही है। जब तक ग्रामीण इस बात पर अपनी सहमति नहीं जताते तब तक कोई भी गांव नगर पालिका में शामिल नहीं करने दिया जाएगा। जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ होगा तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
अल्मोड़ा के निवर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी कहते हैं कि प्रदेश सरकार द्वारा 2018 में भी नगर पालिका क्षेत्र का विस्तारीकरण किया गया। जिन गांवों को पालिका में शामिल किया गया। उनके समुचित विकास के लिए अलग से धनराशि नहीं दी गई। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि वोट की राजनीति को देखते हुए यह विस्तारीकरण किया जा रहा है। गांवों को पालिका में शामिल करने से पहले ग्रामीणों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की राय लेनी चाहिए जो नहीं ली गई है। उधर नगर पालिका सीमा विस्तार की सुगबुगाहट के बीच नगर से लगे हुए ग्रामीण आंदोलन पर उतर चुके हैं।
गौरतलब है कि अल्मोड़ा नगर पालिका उत्तराखण्ड की सबसे पुरानी पालिकाओं में से एक है। इसके विस्तारीकरण को लेकर कई बार सवाल उठे और घोषणाएं हुईं लेकिन जन विरोध के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। इस बार भी पालिका में 25 गांवों को शामिल करने का निर्णय लिया है जिसका विरोध तेज हो गया है। अल्मोड़ा नगरपालिका की स्थापना 1864 में हुई और डेढ़ शताब्दी बीतने के बाद भी पालिका परिषद को नगर निगम नहीं बनाया जा सका है। जब भी पालिका विस्तार की बात आती है लोगों को विरोध के आगे सरकारें अपने पांव पीछे खींच लेती हैं।
अल्मोड़ा संसदीय सीट से सांसद और केंद्र में राज्य मंत्री अजय टम्टा खुद अल्मोड़ा के दुगालखोला ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। वह भी चाहते हैं कि उनका गांव नगर निगम में शामिल हो लेकिन वह अभी इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल पाए हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी लोगों से दोबारा विचार करने की बात करते हैं। इसके साथ ही अधिक बजट की दुहाई भी देते हैं। यहां यह बताना जरुरी है कि नगर पालिका हो या नगर निगम दोनों में क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से ही विकास कार्यों का बजट पास किया जाता है।
शहरीकरण के बढ़ते दौर में साहित्यिक नगरी अल्मोड़ा की बसासत के ग्राफ पर गत दशकों में दो से तीन गुना तक बढ़ गई है। कभी सीमित आबादी वाले प्राचीन नगर में आज हालात यह हैं कि पालिका सीमा के अंदर एक अदद भूमि तलाशना मुश्किल हो गया है। पालिका सीमा के भीतर और उससे सटे ग्रामीण क्षेत्र के मोहल्लों में बसासत काफी बढ़ गई है। इससे यहां सड़कें, रास्ते, जमीन सिकुड़ गई हैं। सन् 1868 में स्थापित पालिका का सीमा विस्तार वर्ष 2018 में हुआ लेकिन तीन गावों तक ही सिमट कर रह गया।
इस बार पालिका परिषद ने नगर से सटे करीब 25 गांवों को पालिका में मिलाने का खाका तैयार किया है और नगर निगम का प्रस्ताव तैयार कर दिया है। लेकिन सरकार पर विपक्ष का आरोप है कि उसने ऐसा जल्दबाजी में किया है जिसमंे परिसीमन में शामिल होने वाले ग्रामीणों की आपत्तियां और सुझाव नहीं मांगे। हालांकि भाजपा अल्मोड़ा में नगर निगम के विस्तार को सकारात्मक तरीके से देख रही है।
भाजपा कार्यकर्ता और ‘दि ग्रीनहिल्स ट्रस्ट’ की सचिव वसुधा पंत कहती हैं कि किसी भी चीज में परिवर्तन बहुत जरुरी है। परिवर्तन विकास का भी परिचायक होता है। अगर अल्मोड़ा में नगर निगम बनता है तो उम्मीद की जा रही है कि क्षेत्रफल व जनसंख्या में भी वृद्धि होगी और उसे मिलने वाली विकास की राशि में वृद्धि होगी। साथ ही वह नगर निगम का विरोध करने वालों को जवाब देते हुए कहती हैं कि यह वही लोग हैं जो कुछ दिनों पहले तक नगर निगम की पैरवी करते देखे जाते थे, लेकिन अब ऐसा क्या हो गया है कि उन्हें नगर निगम में शामिल होने में अपना घाटा दिखाई दे रहा है?
सूत्र बताते हैं कि नगर निगम बनाकर भाजपा अल्मोड़ा में अपना सियासी सपना पूरा करना चाहती है।
अब से पूर्व यहां कांग्रेस के उम्मीदवारों के जीतने की वजह ये रही है कि नगर पालिका का यह क्षेत्र ब्राहमण बाहुल्य है। जिसके चलते ही यहां कांग्रेस के ब्राह्माण नेता अध्यक्ष पद पर जीतते रहे हैं। नगर निगम का परिसीमन करके भाजपा इस जातिगत संरचना को तोड़ने की तैयारी में है। क्यांेकि शहर का अधिकतर इलाका कांग्रेस को ही पसंद करता है। लेकिन भाजपा जिन 25 गावों को अल्मोड़ा के नगर पालिका के विस्तार में शामिल कर नगर निगम बनाना चाहती है वे ठाकुर बाहुल्य है। यही नहीं बल्कि ये सभी ठाकुर बाहुल्य गांव भाजपा का वोट बैंक भी है। ऐसे में अगर वे 25 गांव नगर निगम का हिस्सा हो जायेंगे तो निश्चित है कि भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ेगा और उनकी ही पार्टी का कंडीडेट जीत जाएगा। भाजपा इसी रणनीति को लेकर आगे बढ़ रही है।
विस्तारीकरण के विरोध में गूंजे ग्रामीणों के स्वर

अल्मोड़ा के 25 गांवों को नगर पालिका में शामिल करने के विरोध में ग्रामीणों ने गत 5 अगस्त को धरना-प्रदर्शन किया। इस दौरान खत्याड़ी, माल, सरकार की आली सहित नगर के आसपास के 25 गांवों के ग्रामीणों ने चौघानपाटा में जमा होकर जोरदार नारेबाजी की। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में अल्मोड़ा में कुछ गांवों को नगर पालिका में शामिल किया गया था। लेकिन नगर पालिका में शामिल इन गांवों में कोई विशेष बजट या सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार ने फैसला नहीं बदला तो आंदोलन तेज किया जाएगा। अगर गांवों को पालिका में शामिल किया जाता है तो चारागाह, जंगल, पानी के स्रोत पालिका के होंगे। जिससे लोग मूल सुविधा से वंचित होंगे और ग्रामीणों के हक प्रभावित होंगे। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार की इस कोशिश का हर हाल में विरोध किया जाएगा। सरकार ने फैसला नहीं बदला तो आंदोलन तेज किया जाएगा।
ग्राम सभाओं में 80 प्रतिशत बेरोजगारी है। ग्रामीण मजदूरी पर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। जो नगरपालिका के कर का वहन करने में सक्षम नहीं हैं। इसके अलावा गांवों में अधिकतर परिवार बीपीएल, अन्तोदय व मनरेगा जॉब कार्ड धारक हैं। जिनका जीवन यापन पशुपालन कृषि व मजदूरी पर निर्भर है। जिससे ग्रामीणों के सामने आर्थिक संकट समेत अन्य दिक्कतें खड़ी होंगी। मनरेगा व पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत गांवों में विकास किए जा रहे हैं, जिससे गरीब जनता को लाभान्वित किया जा रहा है। गांवों के नगर पालिका में शामिल होने से मनरेगा जैसी रोजगार परक योजना से ग्रामीणों को वंचित रहना पड़ेगा।
सभी प्रभावित ग्राम प्रधानों ने सीएम से परिसीमन पर रोक लगाने की मांग की है और कहा कि अगर फैसले पर रोक नहीं लगाई जाती है तो स्थानीय जनप्रतिनिधि और ग्रामीण धरना-प्रदर्शन के साथ ही उग्र आंदोलन को बाध्य होंगे। जिसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। पूर्व प्रधान हरीश कनवाल ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल कर भारी भरकम टैक्स वसूलने की जो साजिश रची जा रही है इसे किसी भी सूरत में कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी मुश्किल से जिला पंचायत कार्य कर रही है, गांव के विकास और सुदृृढ़ीकरण के लिए पंचायतों द्वारा कार्य किया जा रहे हैं। ऐसे में नगर निगम में ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल कर टैक्स के नाम पर भारी भरकम शुल्क लगाने की कवायद बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।