पिथौरागढ़ नगर निगम चौतरफा समस्याओं की चपेट में है। पहली बड़ी समस्या है कूड़ा प्रबंधन की। नगर के विस्तार के साथ जैविक-अजैविक कचरा बढ़ता जा रहा है। ई-कचरा, मेडिकल कचरे का प्रबंधन भी एक बड़ी समस्या है। कचरा प्रबंधन का कोई ठोस उपाय अभी तक नहीं बन पाया है। पिथौरागढ़ नगर निगम में वार्डों की संख्या अब 40 हो चुकी है। पूरे नगर की आबादी करीब 1 लाख के करीब है। प्रतिदिन 3 टन कूड़ा नगर से निकलता है। लेकिन कूड़े के निस्तारण के लिए नगर से 10 किमी दूर नैनीपातल में पांच दशक पूर्व 36 नाली भूमि पर कूड़ा फेंकना निगम की मजबूरी बना हुआ है। सूखे और गीले कूड़े को एकत्रित करने की कोई ठोस व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है। दूसरी समस्या नगर के सीवेज नेटवर्क की है। अभी तक पूरे नगर में सीवेज नेटवर्क अपना आकार नहीं ले पाया है। सीवेज नेटवर्क के लिए बजट एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा नगर निगम के पास लीगेसी वेस्ट यानी पुराना परित्यक्त कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालय भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। महिला शौचालयों की कमी बनी हुई है। अब नई मेयर ने पिंक शौचालयों का वायदा किया है। इस चलते जनता की उम्मीदें जगी हैं तो वहीं नई मेयर की तरफ से किए गए वादे भी बहुतेरे हैं। ऐसे में मेयर को नगर निगम की जनता की उम्मीदों को पूरा करने के साथ ही निगम को आत्मनिर्भर बनाने की चुनौती से भी पार पाना होगा
कल्पना देवलाल पिथौरागढ़ नगर निगम की पहली महिला मेयर बनने का इतिहास तो रच चुकी हैं लेकिन जनता से किए गए वादों को धरातल पर उतारने की चुनौती भी उनके लिए कम नहीं होगी। अब सवाल यह है कि पिथौरागढ़ भले ही नगर निगम बन गया हो लेकिन यह अभी भी पूरी तरह से केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से दी जाने वाले वित्तीय सहायताओं और सांसद व विधायक निधि जैसी सहायता पर निर्भर है। इस नगर निगम की आमदनी डेढ़ करोड़ रुपया है तो खर्चा 24 करोड़ रुपए का है। ऐसे में घाटे में चल रहे व पूरी तरह से सरकारी सहायता पर निर्भर इस निकाय में वादों को पूरा करना इतना आसान काम भी नहीं होगा। सबसे बड़ी चुनौती निकाय को आत्मनिर्भर बनाने की होगी क्योंकि सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि जो निकाय आत्मनिर्भरता की तरफ बढेंगे, उन्हें ही आर्थिक तौर पर मदद दी जाएगी। नई नगरीय सरकार के पास जनता को बेहतर सुविधाओं को प्रदान करने के साथ ही निकाय की आय के रास्ते खोजने की बड़ी चुनौती है। पिंक टॉयलेट, डॉग शेल्टर होम, हर वार्ड में पुस्तकालय के साथ ही एक दर्जन से अधिक वादों को पूरा करना नई मेयर के लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी जिसने हर निकाय में अपना संकल्प पत्र जारी किया था, उसके अनुसार पिथौरागढ़ नगर निगम क्षेत्र में इको टूरिज्म, चंडाक को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करना, झरनों के तलहटी में लघु जलाशयों का निर्माण करना, रई में आकर्षक सरोवर व पार्किंग सुविधाओं का निर्माण करना, नगर निगम को कुमाऊंनी वाल पेंटिंग व कलाकृतियांे से सजाना, प्रत्येक वार्ड में ई-लाइब्रेरी व जन मिलन केंद्र का निर्माण करना आदि संकल्प लिए गए हैं। एक सवाल यह भी उठ खड़ा हुआ है कि अगर यही सारे कार्य करने थे तो पहले भी नगर निकाय के साथ ही राज्य व केन्द्र में भाजपा की ही सरकार थी तब नगर को सजाने-संवारने का कार्य क्यों नहीं किया गया? खैर अगले पांच साल तक जनता नए नगरीय निकाय से उम्मीद तो कर ही सकती है कि वह शहर को संजाने, संवारने व विकसित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
वर्तमान में नगर निगम चौतरफा समस्याओं की चपेट में है। पहली बड़ी समस्या है कूड़ा प्रबंधन की। नगर के विस्तार के साथ जैविक- अजैविक कचरा बढ़ता जा रहा है। ई-कचरा, मेडिकल कचरे का प्रबंधन भी एक बड़ी समस्या है। कचरा प्रबंधन का कोई ठोस उपाय अभी तक नहीं बन पाया है। कचरा प्रबंधन के ढांचें के लिए भारी भरकम बजट की जरूरत होती है, जो निगम के पास नहीं है। कचरा जो गीला, सूखा, प्लास्टिक, कांच, सेनिटरी, डाइपर जैसे कचरा अलग-अलग श्रेणियों में एकत्र नहीं होता। गीले कचरे को इकट्ठा करने का कोई प्रबंधन नहीं है। ट्रेचिंग ग्राउंड के लिए नगर निगम अभी तक जमीन नहीं तलाश पाया है। जनपद के पांचों नगर निकायों का कूड़ा गांवों की सीमा में खुले तौर पर डाला जा रहा है। ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर आज तक सिर्फ बात होती रही है। पिछले पांच दशक से ट्रेचिंग ग्राउंड की 27 नाली जमीन पर 42 हजार टन कूड़ा डम्प पड़ा है। रिसाइकिलिंग प्लांट अभी तक जमीन में नहीं उतर पाया है। शहर का कूड़ा नैनीपातल गांव के ट्रेचिंग ग्राउंड में खुले तौर पर डाला जाता है जहां आज कूड़े का एक पहाड़ उग आया है। नगर मेें कूड़ा निस्तारण के लिए जो सेग्रीनेशन यूनिट लगी थी वह भी काम नहीं कर पा रही है। पिथौरागढ़ नगर निगम में वार्डों की संख्या अब 40 हो चुकी है। पूरे नगर की आबादी करीब 1 लाख के करीब है। प्रतिदिन 3 टन कूड़ा नगर से निकलता है। लेकिन कूड़े के निस्तारण के लिए नगर से 10 किमी दूर नैनीपातल में पांच दशक पूर्व 36 नाली भूमि पर कूड़ा फेंकना निगम की मजबूरी बना हुआ है। सूखे और गीले कूड़े को एकत्रित करने की कोई ठोस व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है।
दूसरी समस्या नगर के सीवेज नेटवर्क की है। अभी तक पूरे नगर में सीवेज नेटवर्क अपना आकार नहीं ले पाया है। सीवेज नेटवर्क के लिए बजट एक बड़ी चुनौती बनता रहा है। इसके अलावा नगर निगम के पास लीगेसी वेस्ट यानी पुराना परित्यक्त कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालय भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। महिला शौचालयों की कमी बनी हुई है, अब नई मेयर ने पिंक शौचालयों का वायदा किया है। पूरे नगरीय निकाय में एक दर्जन से भी अधिक नौले हैं। ये नौलें कभी शहर की प्यास बुझाया करते थे, अब ये सभी प्रदूषित हो चुके हैं। पिछली नगर पालिकाएं इन्हें प्रदूषित होने से नहीं बचा पाई थी। क्या अब नगर निगम की सरकार इस पर प्राथमिकता से काम कर पाएगी? अगर यह नौले पुनर्जीवित होते हैं तो गर्मियों में शहरवासियों को काफी राहत मिल सकती है। जल संस्थान इन पर वर्षों पूर्व ही इनके पानी का इस्तेमाल न करने की चेतावनी के बोर्ड लगा चुका है। पिछली नगर पालिकाओं में पैसों की बंदरबांट के लिए इनके पुनखनर्माण व सौंदर्यीकरण के नाम पर अच्छी-खासी धनराशि खर्च की गई। यहां सीमेंट व टाइल्स लगा दिए गए, लेकिन पानी को प्रदूषित होने से बचाने का असली काम नहीं हो पाया। नौले पहले से भी अधिक प्रदूषित हो चले हैं। क्षतिग्रस्त नौले-धारों के नाम पर सुधारीकरण पर पैसा तो खर्च हुआ लेकिन पूरे नगरीय निकाय में एक भी नौला ऐसा नहीं बन पाया जो लोगों की प्यास बुझा सके। अगर वार्डवाइज भी देखें तो लगभग हर वार्ड में ऐसे नौले हैं जिन्हें पुर्नजीवित किया जा सकता है। यही नहीं नगर के आस-पास बहने वाली छोटी नदियां यानी गधेरों जिनमें रईगाड़, ठुलीगाड़, पांडेगाव गधेरा शामिल हैं, पूरी तरह से कचरे से पटी रहती हैं।
तीसरी समस्या गौशालाओं की है। भाजपा की ट्रिपल इंजन सरकार में भी एक ढंग की गौशाला निगम क्षेत्र में नहीं बन पाई। यह गौशाला आज भी एक जर्जर टिनशेड में चल रही है। ग्रीष्मकाल हो या शीतकाल यहां रहने वाले निराश्रित जानवर बुरी हालात में रहते हैं। जलभराव, साफ-सफाई जैसी समस्याओं से उन्हें दो-चार होना पड़ता है। नगर निगम जिस चंडाक रोड पर गोशाला का निर्माण करवा रहा था वह भी विवाद की भेंट चढ़ गया। आवारा जानवरों का सड़कों पर घूमना आम है। चौथी समस्या पार्किंग की है। निगम क्षेत्र में पार्किंग की व्यवस्था को देखें तो जिस तरह से वाहनों की संख्या बढ़ी है उसके सापेक्ष पार्किंग नाममात्र के हैं। सड़कों के किनारे ही पार्किग की व्यवस्था की जा रही है। ऐसे में जाम की समस्या बनी रहती है। छोटी- मोटी दुर्घनाएं भी होती रहती हैं। पैदल चलने वालों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मुख्य सड़कों के किनारे वाहन खड़े रहने से सड़कें काफी संकरी हो जाती हैं। नगर में पार्किंग की समस्या नहीं सुलझ पाई है। पार्किंग निर्माण के लिए एक बड़ी धनराशि की जरूरत होती है, यह सरकारी वित्तीय व्यवस्था के बगैर सम्भव नहीं है। अब ऐसे में नगर को सुव्यवस्थित करना नगर निगम के समक्ष एक बड़ी चुनौती है।
पांचवी सबसे बड़ी समस्या आवारा श्वानों की है। यह निरंतर बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। पूरे नगर में इनकी संख्या करीबन तीन हजार है। आए दिन श्वानों के झुंड लोगों पर हमले करते रहते हैं। गली-मोहल्लों से बच्चों का निकलना मुश्किल होता जा रहा है। बच्चों का स्कूल जाना मुश्किल हो रहा है। लोग मॉर्निंग, इवनिंग वॉक में जाने से कतराते हैं। महिलाओं का मंदिरों में जाना मुश्किल हो रहा है। सुबह-शाम लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। नगर निगम का कहना है कि अवारा श्वानों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए एनीमल बर्थ कंट्रोल स्थापित किया गया है जिसमें श्वानों के बधियाकरण का कार्य किया जा रहा है। लेकिन सड़कों पर श्वानों का जो आतंक है, उससे नगरीय जनता को निजात दिलाना एक बड़ी जिम्मेदारी है। हालांकि नगर की नई मेयर शेल्टर हाउस बनाने की बात करती हैं।
छठी समस्या पार्कों की है। पूरे नगरीय क्षेत्र में आठ पार्क बने हैं, जिनमें से अधिकांश की हालत दयनीय है। इन पार्कों का वर्षों से सौंदर्यीकरण नहीं हो पाया है। न ही उपकरण लगाए गए हैं। भाटकोट पार्क बना तो है लेकिन अभी यह लोगों के लिए खुला नहीं है। इसके अलावा महापुरुषों के नाम पर बने ये पार्क इतनी दयनीय स्थिति में हैं कि लोग यहां जाना तो छोड़ दीजिए, झांकना भी पसंद नहीं करते हैं। बच्चे व बुजुर्गों के लिए सुविधाएं जुटाना निगम की प्राथमिकता में कभी रहा ही नहीं। सातवीं समस्या उन पर्यावरण मित्रों की है जो रात-दिन नगरों की सफाई व्यवस्था में जुटे रहते हैं, वह भी हाशिए में हैं। आज से छह दशक पूर्व इनके परिवारों के रहने के लिए दो नाली जमीन में आठ कमरों का निर्माण कराया गया था, उनमें आज इतनी छोटी जगह में 40 परिवार रहने के लिए विवश हैं। इनके आवास निर्माण की सुध निगम या पूर्व नगरपालिकाओं ने कभी नहीं ली। बाल्मीकि कॉलोनी में रहने वाले इन परिवारों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। निगम क्षेत्र में जिन पर्यावरण मित्रों के कंधों पर नगर की सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी है, उनकी समस्याओं से निगम प्रशासन ने हमेशा से दूरी बनाए रखी। कुल मिलाकर देखा जाए तो पिथौरागढ़ नगर निगम पूरी तरह बाहरी आर्थिक स्रोतों पर निर्भर है। अब नई नगरीय सरकार से जनता की उम्मीदें जगी हैं तो वहीं नई मेयर की तरफ से किए गए वादे भी बहुतेरे हैं। ऐसे में नई मेयर को नगर निगम की जनता की उममीदों को पूरा करने के साथ ही आत्मनिर्भर बनाने की चुनौती से भी पार पाना होगा।
इस चुनाव ने यह दिखाया कि सत्ता के हाथों संविधान का चीरहरण कैसे होता है और संविधान की कसमें खाकर शीर्ष पदों पर बैठे नौकरशाह किस तरह संविधान को शर्मशार करते हैं। अगर ऐसा ही हुआ तो फिर भविष्य में कोई भी गरीब का बच्चा कभी राजनीति नहीं कर सकता क्योंकि अब जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो चुकी है। हम हारे नहीं हैं, बल्कि हमें हराया गया है, जल्द ही हम फिर वापस आएंगे। पिथौरागढ़ की जनता मेयर पद पर हमें चाहती है।
मयूख महर, विधायक, पिथौरागढ़
जनता से किया हर वादा पूरा किया जाएगा। नगर के विकास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाएगी। अच्छे पार्कों का निर्माण, महिलाओं के लिए पिंक शौचालय, पथ प्रकाश व्यवस्था को भी बेहतर किया जाएगा। स्वस्छ, सुंदर व विकसित नगर बनाना मेरी पहली प्राथमिकता है। नगर के विकास कार्यों को आगे बढ़ाया जाएगा। नगर की मूलभूत समस्याओं का समाधान किया जाएगा। सड़क, नाली, सफाई, स्ट्रीट लाइट के अलावा शिक्षा, पर्यटन, रोजगार के लिए काम किया जाएगा। इसे एक विकसित व आत्मनिर्भर निकाय बनाया जाएगा।
कल्पना देवलाल, मेयर, पिथौरागढ़ नगर निगम
‘कुछ तो गड़बड़ है’ का माहौल
जहां भाजपा की प्रत्याशी कल्पना देवलाल नगर की पहली महिला मेयर बनने से गदगद हैं तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार रही मोनिका महर अब भी अपनी हार मानने को तैयार नहीं हैं। उनका आरोप है कि जनता ने तो उन्हें जिताया लेकिन सत्ता व प्रशासन ने षड्यंत्र कर हरा दिया। जिलाधिकारी, एडीएम, सीडीओ की भूमिका को भी उन्होंने संदिग्ध माना है। चुनाव परिणाम के दिन मतगणना स्थल पर निर्दलीय प्रत्याशी समर्थकों ने इसे लेकर प्रदर्शन भी किया। उनका कहना था कि उनके साथ अन्याय किया गया है। वह दोबारा मतगणना की मांग करते रहे लेकिन इस पर प्रशासन खामोश बना रहा। चुनाव परिणाम के दिन जिस तरह का तनातनी का माहौल रहा उससे पूरे निगम क्षेत्र में सीआईडी सीरियल का यह डॉयलाग ‘कुछ तो गड़बड़ है’ की तर्ज पर लोगों की जुबान पर बना रहा। लोग अब भी इस मामले पर कानफूसी कर रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशी की हार से नाराजगी देखने को मिली। सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली। इसी को देखते हुए जिलाधिकारी को अपना पक्ष भी स्पष्ट करना पड़ा। जिलाधिकारी विनोद गिरी गोस्वामी का कहना है कि ‘यह सब अफवाह चल रही है, ऐसे में आम जनमानस को अफवाहों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।’ साथ ही उन्हें यह चेतावनी भी जारी करनी पड़ी कि ‘अगर निकाय चुनाव को लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया तो कार्रवाही अमल में लाई जाएगी। मतगणना वैधानिक व तथ्यों के साथ हुई है। पहले चरणों में आगे चल रही निर्दलीय प्रत्याशी को अंतिम चरणों की गिनती में लाभ नहीं मिला जिससे भाजपा प्रत्याशी अंतर पाटते हुए 17 वोटों से विजयी रही।’ वहीं भाजपा की तरफ से इसे जनता को गुमराह कर सामाजिक माहौल को खराब करने की साजिश कहा जा रहा है। पक्ष-विपक्ष के बीच के तर्कों के बीच यह मामला जनता के बीच चर्चा का विषय तो बना हुआ है ही, न्याय की देवी मानी जाने वाली कोटगाड़ी मंदिर तक भी पहुंच गया है। निर्दलीय प्रत्याशी ने कोटगाड़ी मंदिर में न्याय की गुहार लगाई है। वहीं मेयर पद पर निर्वाचित भाजपा कल्पना देवलाल ने भी कोटगाड़ी मंदिर पहुंच कर आर्शीवाद मांगा।
निर्दलीय प्रत्याशी इसे हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की बात भी कर चुके हैं। इसके अलावा निर्दलीय मेयर प्रत्याशी रही मोनिका महर के समर्थकों ने प्रशासन व सत्ता पक्ष पर साजिश का आरोप लगाते हुए शहर में मौन जलूस निकाला। इस जुलूस में भारी संख्या में लोग मौजूद थे जो निर्दलीय प्रत्याशी की पकड़ को दर्शा रहा था। जुलूस के दौरान जनता का आभार प्रकट करते हुए लोग जनता ने जिताया व सत्ता पक्ष व प्रशासन ने हराया का बैनर व तख्तियां लेकर चल रहे थे। वहीं दूसरी तरफ विधायक मयूख महर ने मेयर पद के लिए विजयी प्रत्याशी कल्पना देवलाल पर अपनी आय के स्रोत छिपाने का आरोप लगाते हुए मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र भेजा है। आरोप यह है कि कल्पना देवलाल ने आरओ को प्रस्तुत अपने नामांकन के शपथपत्र में नगरपालिका तिराहे पर स्थित पूर्व में नगर पालिका परिषद से लिए गए चार मंजिला भवन जिसमें होटल चलता है, उसका जिक्र नहीं किया है। इस भवन से होने वाली आय का शपथ पत्र में कोई जिक्र नहीं है जोकि आर्दश आचार संहिता का उल्लंघन है।
कमजोर रहा भगवा प्रदर्शन निकाय चुनावों में जनपद में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा। पांच में से तीन निकायों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। जनपद के पहले नगर निगम पिथौरागढ़ में भी भाजपा निर्दलीय प्रत्याशी से मात्र 17 वोटों से जीत पाई। निर्दलीय प्रत्याशी इसे भी अपनी जीत मान रही हैं। इस तरह जनपद में पांच निकायों में से भाजपा को डीडीहाट, धारचूला, बेरीनाग में हार का सामना करना पड़ा। गंगोलीहाट व पिथौरागढ़ में ही भाजपा जीत दर्ज कर सकी। धारचूला जहां से पार्टी कभी विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाई है। इस बार निकाय चुनावों में भी उसे अपनी सीट गंवानी पड़ी। इस तरह से धारचूला भाजपा की कमजोर नस बनती जा रही है। वहीं मुनस्यारी पहली बार नगर पंचायत बनी है। लेकिन नगर पंचायत बनाने का लाभ भी भाजपा नहीं उठा पाई। इस तरह मुनस्यारी का पहला नगर अध्यक्ष बनने का श्रेय निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गया। जबकि पिछले निकाय चुनावों में जनपद से भाजपा पिथौरागढ़, गंगोलीहाट, डीडीहाट, धारचूला में जीती थी।
डीडीहाट की जो सीट पिछली बार भाजपा के पास थी वहां पर उसे तीसरे नंबर पर रहना पड़ा। बेरीनाग में कांग्रेस लगातार दूसरी बार जीतने में सफल रही है। कमजोर प्रदर्शन से भाजपा कुछ सीख लेती है या नहीं, यह देखना होगा। लेकिन वहीं कांग्रेस भले ही तीन नगरीय निकायों में विजयी रही हो लेकिन इधर नगर निगम पिथौरागढ़ में उनके प्रत्याशी का जो हाल हुआ, उससे उसे भविष्य में सबक लेने की जरूरत होगी। कांग्रेस प्रत्याशी यहां से अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी। वहीं विधायक मयूख महर द्वारा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी ने भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी। वह मात्र 17 वोटों से हार गई। मयूख महर को कांग्रेस पार्टी छोड़ने का ऐलान करना पड़ा। पिथौरागढ़ मंे यह कांग्रेस के लिए एक झटका रहा है। जिस तरह से इस चुनाव में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा व विधायक मयूख महर के बीच तनातनी रही, जो अभी भी जारी है, इसे कांग्रेस के लिए शुभ नहीं माना जा सकता। लेकिन तीन सीटों बेरीनाग, डीडीहाट व धारचूला में विजय से उसे संजीवनी अवश्य मिली है।