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कही चुनावी सिगुफा तो साबित नही होगा सरकार का आत्मबोधन की मांग मानना ?

हरिद्वार में गंगा बचाने की लडाई लड रहे स्वामी आत्मबोधानंद ने आखिर 194 दिन बाद अपना अनशन तोड़ दिया। उन्होंने गंगा बचाओ को लेकर पिछले साल 24 अक्टूबर को अनशन शुरू किया था। उन्होने गत 5 मई को हरिद्वार की एसडीएम कुसुम चौहान और अधिकारियों की मौजूदगी में जूस पीकर अनशन तोड़ा। इस अवसर पर  आत्मबोधन ने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के निदेशक राजीव रंजन ने 25 अप्रैल को मुझसे मुलाकात की थी। उन्होंने इस मामले पर स्वीकृति पत्र देते हुए कहा था कि गंगा में खनन पर रोक लगाई जाएगी।’
राजीव रंजन की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वे एक सप्ताह के अंदर ही बांध परियोजना और खनन के खिलाफ उठाए गए कदमों का विवरण लिखित में देंगे। जिसके चलते आत्मबोधानंद ने उपवास खत्म करने का निर्णय 2 मई तक बढ़ा दिया था। जब निदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने आत्मबोधानंद को लिखित में आश्वासन दे दिया तो उन्होंने अपना अनशन समाप्त कर दिया। 26 वर्षीय स्वामी आत्मबोधानंद कंप्‍यूटर साइंस में ग्रेजुएट हैं और 21 साल की उम्र में संन्यास लेकर मातृसदन से जुड़ गए थे।
याद रहे कि बीते पांच साल में गंगा की सफाई को लेकर कई सारे वादें किए गए । लेकिन सरकार गंगा पर किए अपने वादों को पूरा नहीं कर पाई ।बल्कि उसकी स्थिति और खराब हो गई। इसको लेकर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने पिछले साल 112 दिनों तक अनशन किया था और जल त्यागने से पहले उनकी भी अचानक से एम्स ऋषिकेश में मौत हो गई थी ।चर्चा है कि देश में चल रहे आम चुनाव के बीच सरकार भी नहीं चाहेगी कि फिलहाल इस मुद्दे को उछाला जाए ।
चर्चा यह भी है कि  ये केवल और केवल राजनीतिक साजिश है। सरकार स्वामी आत्मबोधानंद के जल त्यागने की मियाद को जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहती है । ऐसा इसलिए क्योंकि देश के अहम हिस्सों जैसे दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में और प्रयागराज (इलाहाबाद) जहां इस बार कुंभ लगा था, में 12 मई को चुनाव हैं । चूंकि जल त्यागने से सरकार पर एक अलग तरह का दबाव बनता है । ऐसे में ये सरकार इस समय कोई जोखिम लेने से बचने के लिए अधिकारियो को आगे कर मामले को चुनावों तक टालने की रणनीति पर काम कर रही है ।
इसके मददेनजर ही शायद राष्ट्रीय गंगा मिशन के अधिकारी पिछले दिनो मातृसदन में जाकर स्वामी आत्मबोधानंद से मिल रहे थे , उनसे संपर्क में थे और मांग मानने की बात कहते रहे हैं । लोगो का कहना है कि बात यहां मांग मानने की नहीं उसे क्रियान्वित करने की है। मांग तो जीडी अग्रवाल के समय भी मान ली गई थी लेकिन उसे पूरा कहां किया गया ?
आपको बता दें कि गंगा को बचाने के लिए अनशन पर बैठे जीडी अग्रवाल की 112 दिनों के अनशन के बाद 11 अक्टूबर 2018 को मौत हो गई थी ।उनके संघर्षों को आगे ले जाने के लिए स्वामी आत्मबोधानंद ने उसके ठीक 13 दिनों बाद अनशन शुरू कर दिया था । उनकी मांग है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर मौजूद और प्रस्तावित सभी बांधों को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाएगा। गंगा के किनारों पर खनन और जंगल काटने पर प्रतिबंध लगाया जाए। साथ ही गंगा संरक्षण के लिए गंगा एक्ट को लागू किया जाएगा। गंगा की अविरलता-निर्मलता से जुड़ी मांगों को लेकर 9 पन्नों का पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय भी भेजा है। उन्हें उम्मीद थी कि शायद इस पत्र के बाद और पूर्व में प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मृत्यु को देखते हुए, सरकार बातचीत के लिए आगे आएगी । आत्मबोधन की बिगड़ती हालत को देखते हुए गत 25 अप्रैल को उनसे मिलने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के निदेशक राजीव रंजन मिश्रा और एग्जिक्यूटिव निदेशक अशोक कुमार मातृसदन पहुंचे थे. हरिद्वार के मातृसदन में हुई बातचीत में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के आदेशों का जल्द से जल्द अनुपालन कराने की बात कही गई और आश्वासन दिया कि वे एक सप्ताह के अंदर ही बांध परियोजना, जिसमें प्रस्तावित समस्त बांधों को निरस्त करने और निर्माणाधीन 4 बांधों को निरस्त करने की बात लिखित में देंगे। जिसके बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने जल त्यागने का निर्णय 2 मई तक बढ़ा दिया था ।मातृसदन से जुडे
स्वामी दयानंद की माने तो हरिद्वार में स्टोन क्रशर का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का आदेश 26 अप्रैल को ही आ गया था । लेकिन एक सप्ताह बीतने के बाद भी जिलाअधिकारी इसे रोकने में पूरी तरीके से विफल हैं। पहले भी सीपीसीबी और एनजीटी ने इसे रोकने के आर्डर दिए थे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
गंगा को लेकर आन्दोलन की अपनी  बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए आत्मबोधानंद बीते 23 जनवरी को प्रयागराज में लगे कुंभ मेले भी गए थे ।इसके बाद उनके समर्थन में वाटर मैन राजेंद्र सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता व आईआईटी बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर संदीप पांडे और मेधा पाटेकर के नेतृत्व में जंतर मंतर पर एक मार्च भी निकाला गया था ।
मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि 9 अक्टूबर 2018 को नेशनल मिशन फॉर क्लिन गंगा (एनएमसीजी) ने भोगपुर से बिशनपुर कुंडी तक खनन पर रोक लगा दी थी, लेकिन प्रशासन ने इस आदेश को दबाकर रखा। जिससे यह सिद्ध होता है कि स्वामी सानंद की हत्या की गई, जिसमें शासन प्रशासन और खनन माफिया शामिल हैं। यदि प्रशासन जागा होता और इस आदेश को स्वामी सानंद को दिखाया होता तो आज वे जिंदा होते।
स्वामी शिवानंद सरस्वती यह भी कहते है कि एनएमसीजी ने जिला अधिकारी को खनन बंद करने का आदेश दिया था। एनएमसीजी के आदेश के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आदेश प्रभावहीन हो गया था। जिलाधिकारी को एनएमसीजी के आदेश का सीधे तौर पर पालन करना था । लेकिन उन्होंने आदेश का अनुपालन करने के लिए अपने उच्च अधिकारियों से अनुमति मांगी। 21 दिसंबर को सुनवाई भी हुई, लेकिन प्रशासन की तरफ से उसमें कोई नहीं आया। उन्होंने धन – बल के आधार पर सीपीसीबी के आदेश को मॉडिफाई करने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के सचिव पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था । यहां यह भी बताना जरुरी हैं कि गंगा की अविरल धारा को लेकर आमरण अनशन करते समय मातृसदन के निगमानंद की 2011 में ही मौत हो चुकी है ।

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