हरियाणा में पिछले दस साल से भाजपा की सरकार है। लेकिन इस बार एक ओर जहां भाजपा फिर सत्ता को बरकरार रखने का दावा कर रही है वहीं जमीन पर उसके खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी सहित तमाम मुद्दों और सर्वेक्षणों में पार्टी पिछड़ती दिख रही है। ऊपर से पार्टी के भीतर घमासान छिड़ा हुआ है। जिसने पार्टी की बेचैनी बढ़ाने का काम किया है। इसका अंदाजा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सावधानी बरतने और टिकटों पर सहमति बन जाने के बाद दोबारा विचार करने के फैसले से लगाया जा सकता है। असल में बीते दिनों जींद में हुए पार्टी के कार्यक्रम में अमित शाह शामिल नहीं हुए और कहा जा रहा है कि जननायक जनता पार्टी के नेताओं को थोक में पार्टी में शामिल करने के भी वे पक्ष में नहीं हैं। फिर भी दो दिन में भाजपा ने जजपा के छह नेताओं, विधायकों और पूर्व मंत्रियों को भाजपा में शामिल कराया है। इसमें सबसे हैरानी वाला मामला देवेंदर सिंह बबली का है। वे भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। जजपा से बगावत करने के बाद से वे इधर-उधर भाग रहे थे। पहले वे पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिले और कुछ अन्य नेताओं को खट्टर से मिलवाया। लेकिन बाद में उनको लगा कि भाजपा पिछड़ रही है तो वे कांग्रेस की ओर दौड़ने लगे। थोड़े दिन पहले ही वे टोहाना सीट से कांग्रेस से टिकट मांगने गए थे लेकिन कांग्रेस ने उनको भाव नहीं दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस ने उनको पीछे की कतार में बैठने की जगह दी। लेकिन भाजपा ने उनका भी पार्टी में स्वागत किया है। इससे भाजपा की बेचैनी समझ में आ रही है। हालांकि दूसरी तरफ भाजपा के पुराने नेता और टिकट मांग रहे दावेदार इससे खुश नहीं हैं। ऐसे में अगर बाहर से आए नेताओं को भाजपा टिकट देती है तो पार्टी में विवाद और भितरघात का डर भाजपा आलाकमान को सता रहा है।

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