कांग्रेस नेता राहुल गांधी जातीय जनगणना को एक बड़ा मुद्दा बना पाने में सफल रहे हैं। उनकी रणनीति इसके जरिए दलित और ओबीसी मतदाताओं को साधने की है जिसमें वे आम चुनाव के दौरान सफल होते दिखे भी हैं। महाराष्ट्र में मराठों और दलितों ने भाजपा के खिलाफ एकजुट हो मतदान किया जिसका नतीजा रहा की एनडीए गठबंधन महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 31 पर पराजित हो गया। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सीटें 62 में से घटकर मात्र 37 रह गईं। अब दलित, ओबीसी और आदिवासियों को साधने के लिए और राहुल की जातीय जनगणना की काट के लिए भाजपा ने इन जातियों को भी हिंदुत्व के बैनर तले लाने की कवायद जोर-शोर से शुरू कर दी है। पहली बार संघ के दबाव में आकर हिंदुओं के 13 मठों में से सबसे बड़े मठ जूना अखाड़ा ने दलित और आदिवासी समाज के संतों को मान्यता देने का निर्णय ले डाला है। खबर गर्म है कि जूना अखाड़ा इन समाजों के 71 संतांे को महामंडलेश्वर की उपाधि देने जा रहा है ताकि इन्हें भी ‘हिंदू एकता’ का पाठ पढ़ाया जा सके। भाजपा और संघ के तरकश से निकले इस ब्रह्माास्त्र का कितना असर होगा और कांग्रेस इसकी काट कैसे करेगी यह देखा जाना बाकी है।
संघ के ब्रह्यास्त्र से बेचैन कांग्रेस
