प्रदेश में जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। यह भी माना जा रहा है कि विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद कई मंत्रियों की छुट्टी तय है जिसको लेकर सरकार के कई मंत्रियों में बेचैनी बनी हुई है। अगर मंत्रिमंडल में फेरबदल होता है तो ऐसे कई मंत्री हैं जिनके विभागों में बड़े-बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं और इनमें से कई घोटालों पर जांच भी चल रही है। ऐसे मंत्रियों में पहला नंबर धन सिंह रावत का है जिनके अधीन सहकारिता विभाग में हुए कथित भर्ती घोटाला की जांच भी हो चुकी है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग में हुई नर्सिंग अधिकारियों की भर्ती में भारी अनियमितता और बाहरी लोगों के फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी पाने का मामला सामने है। प्रदेश की बदहाल होती स्वास्थ्य सेवाओं से भी सरकार की फजीहत होती रही है। गणेश जोशी के मंत्रालयों का हाल भी बेहाल है। उनके अधीनस्थ विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलों की तो सीबीआई जांच तक चल रही है। उद्यान विभाग में करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामले सामने आ चुके हैं। कृषि विभाग में भी फर्जीवाड़े के मामले चर्चाओं में रहे हैं। मंत्री गणेश जोशी के पास सैनिक कल्याण मंत्रालय भी है जिसके अधीन देहरादून में सैन्यधाम का निर्माण किया जा रहा है। केंद्र सरकार के फंड से करोड़ों रुपए के सैन्यधाम का निर्माण हो रहा है लेकिन इसके निर्माण में अनियमितता और बजट को बढ़ाने के आरोप भी लग रहे हैं
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा के नेताओं में दिल्ली दौड़ का जो रोग लगा था वह आज भी खत्म नहीं हुआ। वर्तमान में एक बार फिर से सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ मंत्री और नेता दिल्ली दरबार में हाजिरी भर यह संदेश देने में जुट गए हैं कि राज्य में कभी भी नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। गौरतलब है कि भाजपा की राज्य में जब-जब सरकार बनी तब-तब इसके नेताओं में दिल्ली दौड़ यानी शीर्ष नेतृत्व के देहरी में माथा टेकने और इसे मीडिया में प्रचारित करने का चलन रहा है। राज्य की पहली अंतरिम सरकार के मुखिया नित्यानंद स्वामी के खिलाफ भाजपा के असंतुष्ट नेताओं द्वारा जिस तरह से दिल्ली की दौड़ लगाई गई थी उसी का परिणाम रहा था कि नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री पद से चलता कर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया था।
दिल्ली दौड़ के इस रोग का भाजपा नेताओं में इतना बड़ा असर हुआ कि इसके बाद हर मुख्यमंत्री के कार्यकाल में पार्टी नेताओं के दिल्ली की दौड़ लगातार होती रही। हैरत की बात यह हेै कि इस दौड़ के बाद जिस तरह से प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाते रहे उससे यह माना जाने लगा है कि अगर मुख्यमंत्री को पद से हटाना हेै तो इसके लिए शीर्ष नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाओ और मुख्यमंत्री को पद से हटाओ।
स्वामी सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के बाद भाजपा के कई मुख्यमंत्री इसकी जद में आ चुुके हैं। बीसी खण्डूड़ी, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’’ और त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस दिल्ली दौड़ और उसके बाद मचे घमासान चलते अपने पहले कार्यकाल से ही जूझते रहे हैं जो कि उनके दूसरे कार्यकाल में कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। आज यह हालात हो चुके हैं कि अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री को शासकीय कारणों से भी प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से भेंट करने के लिए दिल्ली जाना पड़े तो मीडिया में एक बड़ा नैरेटिव खड़ा होने लगता है कि प्रदेश में कुछ बड़ा होने वाला है और राज्य में नेतृत्व परिवर्तन होने वाला है। दिलचस्प बात यह हेै कि इस नैरेटिव को भाजपा नेताओं द्वारा खत्म करने या उसकी हकीकत को सामने लाने का प्रयास नहीं किया जाता है। सूत्रों की माने तो भाजपा भीतर कई ऐसे नेता हैं जो सोशल मीडिया के साथ-साथ मुख्यधारा की मीडिया में भी इस तरह की आशंकाओं को बढ़ावा देने का काम करते रहे हैं जिससे कुछ समय तक प्रदेश में राजनीतिक गहमागहमी में तेजी आने लगती है।
हालांकि कुछ समय बाद सब कुछ शांत हो जाता है लेकिन इसे भी बड़े तूफान से पहले की शांति बताकर माहौल को गरमाया जाता है। हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का नीति आयोग और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में शामिल होने दिल्ली जाने के बाद प्रदेश में यकायक भाजपा के कई बड़े नेताओं, यहां तक कि सरकार के कई मंत्रियों के साथ-साथ विधायकों के भी दिल्ली दौरे होने लगे। इनमें कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत, गणेश जोशी पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पाखरियाल ‘निशंक’ के अलावा कई विधायकों के दिल्ली के दौरे हुए। दिल्ली दौरे के बाद मची हलचल का सूत्रपात पूर्व सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाकात के बाद शुरू हुआ। हालांकि दोनों नेताओं की यह मुलाकात निशंक द्वारा लिखी गई ‘हिमालय में टैगोर’ और ‘गीतांजलि’ पुस्तक को भेेंट करने के लिए बताई जा रही है लेकिन इस मुलाकात के कई कयास लगाए गए। इसके बाद धामी सरकार में कई विभागों के मंत्री धन सिंह रावत का भी अचानक से दिल्ली दौरा सामने आया। उनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात की गई। इसके बाद धन सिंह रावत ने संसद भवन परिसर में पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र रावत, सांसद अनिल बलूनी से भी मुलाकात की। इन सभी मुलाकातों की फोटोग्राफ सोशल मीडिया में जमकर वायरल किए गए जिसके चलते सोशल मीडिया में कयासबाजियों का दौर शुरू हो गया।
धन सिंह रावत के बाद प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी का भी दिल्ली दौरा सामने आया। उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इस मुलाकात के भी फोटो मीडिया और सोशल मीडिया में सार्वजनिक किए गए। हालांकि सभी ने इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया। इन नेताओं के दिल्ली दौरे के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी दिल्ली दौरा सामने आया। वे प्रधानमंत्री के साथ नीति आयोग की बैठक में भाग लेने गए थे। उनके दिल्ली जाने से पहले भाजपा नेताओं के दिल्ली दौरे और फिर मुख्यमंत्री के दिल्ली जाने के बाद अचानक से प्रदेश में राजनीतिक हलचल देखी जाने लगी। तमाम तरह के कयास और अटकलें लगाई जाने लगीं। जिसमें मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल, मंत्रिमंडल का विस्तार किए जाने और नेतृत्व परिवर्तन होने की अटकलें शामिल हैं। तमाम सोशल मीडिया के मंचों में इस तरह की अटकलों को हवा दिए जाने से एक बार फिर राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होने की आशंका बलवती हो गई।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश में जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। यह भी माना जा रहा है कि विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद कई मंत्रियों की छुट्टी तय है जिसको लेकर सरकार के कई मंत्रियों में बेचैनी बनी हुई है। अगर मंत्रिमंडल में फेरबदल होता है तो ऐसे कई मंत्री हैं जिनके विभागों में बड़े-बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं और इनमें कई घोटालों पर जांच भी चल रही है। ऐसे मंत्रियों में पहला नम्बर इसमें मंत्री धन सिंह रावत का है। सहकारिता विभाग में हुई भर्ती घोटाला की जांच भी हो चुकी है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग में हुई नर्सिंग अधिकारियों की भर्ती में भारी अनियमितता और बाहरी लोगों के फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी पाने का मामला सामने है। प्रदेश की बदहाल होती स्वास्थ्य सेवाओं से भी सरकार की फजीहत होती रही है।
गौर करने वाली बात यह है कि धन सिंह रावत 2017 से सरकार में बड़े- बड़े विभागों के मंत्री हैं। त्रिवेंद्र रावत सरकार में उनके पास स्वास्थ्य विभाग नहीं था लेकिन शिक्षा और सहकारिता जैसे विभाग थे। तीरथ सिंह रावत सरकार में उनके पास स्वास्थ्य और चिकित्सा स्वास्थ्य जैसे अहम विभाग भी आए थे। धामी सरकार में उनके पास स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, उच्च शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, विद्यालयी शिक्षा और सहकारिता जैसे बड़े और अहम विभाग हैं। इनमें से कई विभागों में घोटाले और अनियमितता के मामले सामने आ चुके हैं। माना जा रहा हेै कि कई मामलों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संज्ञान में भी लिया हुआ है और धन सिंह रावत पर कार्यवाही की तलवार लटकी हुई है। धन सिंह का मंत्री पद भी खतरे की जद में है। बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव में धन सिंह रावत चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष थे। पूरे चुनाव में उनकी भूमिका पर ही पार्टी के कई नेता सवाल खड़े कर रहे हैं। इसका भी असर देख जा रहा है।
दूसरे मंत्री गणेश जोशी के मन्त्रालयो का हाल भी बेहाल है। उनके अधीनस्थ विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलों की तो सीबीआई जांच तक चल रही है। उद्यान विभाग में करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामले तो सामने आ चुके हैं। कृषि विभाग में भी फर्जीवाड़े के मामले चर्चाओं में रहे हैं। मंत्री गणेश जोशी के पास सैनिक कल्याण मंत्रालय भी है जिसके अधीन देहरादून में सैन्यधाम का निर्माण किया जा रहा है। केंद्र सरकार के फंड से करोड़ों रुपए के सैन्यधाम का निर्माण हो रहा है लेकिन इसके निर्माण में अनियमितता और बजट को बढ़ाने के आरोप भी लग रहे हैं। अधिवक्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी द्वारा इस मामले में घोटाले होने की शिकायत प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को की गई है जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने भी इस मामले पर राज्य सरकार पर सैन्य प्रदेश होने के बावजूद घोटाला करने के आरोप लगाए गए हैं।
इन दो मंत्रियों की कार्यशैली और भ्रष्टाचार के आरोपों में कितना दम है यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा लेकिन भाजपा में जिस तरह से नेताओं की दिल्ली दौड़ अचानक से बढ़ी है उसका राजनीतिक संदेश भी जाता हुआ दिख रहा है। कुछ दिन पूर्व देहरादून में भाजपा की विस्तार कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के कई नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे उससे लगता नहीं कि भाजपा में अब सब कुछ ठीक हो गया है। जानकारों की मानें तो जब तक प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं होगा तब तक इसी तरह से भाजपा भीतर राजनीतिक गहमागहमी और कयासों का दौर चलता रहेगा। साथ ही दिल्ली की दौड़ भी कभी रूकने वाली नहीं है।
भाजपा में कई ऐसे बड़े नेता है जो अपने आपको पार्टी और सरकार में एडजस्ट करने की उम्मीद रखे हुए हैं। इनमें सबसे बड़े दो नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत हैं जिनका लोकसभा चुनाव में टिकट काट दिया गया था। इन दोनों ही नेताओं को उम्मीद है कि सत्ता आने के बाद पार्टी उनको किसी न किसी पद पर एडजेस्ट करेगी लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। राज्यपालों की जो लिस्ट समाने आई है उनके भी प्रदेश के किसी नेता का जिक्र नहीं होने से भी इन नेताओं में बेचैनी बनी हुई है। भाजपा हो या कांग्रेस सभी दलों में अपने पद और अपने आपको एडजेस्ट करने के लिए दिल्ली की दौड़ सामान्य राजनीति ही है। इसमें कई नेता ऐसे होते हैं जो अपने पद को बचाए रखने के लिए दौड़ लगाते हैं और अपने बड़े नेताओं से समर्थन हासिल करते हैं जिससे भविष्य में उनको कोई पेरशानी नहीं होगी। कई ऐसे भी हैं जो पद पाने के लिए या सरकार में एडजेस्ट होने के लिए भी बड़े नेताओं का समर्थन लेने के लिए दिल्ली की दौड़ लगाते हैं। इस दौड़ चलते मीडिया या सोशल मीडिया में कयासबाजी होने लगती है।
मनमोहन भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार