संसद को देश की शीर्ष पंचायत का दर्जा हासिल है। एक वर्ष में तीन बार संसद के सत्र आहूत किए जाते हैं और सामान्यतः संसद 120 -140 दिन काम करती है। बीते कुछ वर्षों से लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है और संसद के सत्र हंगामे की भेंट चढ़ बर्बाद होने लगे हैं। 1950-60 के दशक में जो संसद 140 दिन काम करती थी वह हाल के दशकों में मात्र 60-70 दिन काम के लिए बैठती है और अधिकाशतः ये दिन भी हगांमा और धरना-प्रदर्शन के भेंट चढ़ जाते हैं। वर्तमान शीतकालीन सत्र में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है जिसके चलते अब संसद की गरिमा प्रश्नचिन्हों के घेरे में आ चुकी है
देश में इन दिनों संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। इस सत्र के पहले दो हफ्तों में विपक्ष ने कई मुद्दों को लेकर सरकार का विरोध किया। अडानी और संभल विवाद जैसे मुद्दों पर विपक्ष ने कड़ी नारेबाजी की और सरकार को घेरा। इस विरोध के कारण संसद में कई बार हंगामा हुआ और कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। विपक्षी तेवरों को साधने की नियत से भाजपा ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और अमेरिकी व्यवसायी जॉर्ज सोरोस के बीच गठजोड़ का मुद्दा उठा डाला। जॉर्ज सोरोस के मुद्दे ने राज्यसभा में इतना जोर पकड़ा कि तिलमिलाए विपक्ष ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव संबंधी नोटिस दे डाला है। बताया जा रहा है कि विपक्षी दलों ने नोटिस देने के लिए अगस्त में ही जरूरी संख्या में सांसदों के हस्ताक्षर ले लिए थे लेकिन वे आगे नहीं बढ़े क्योंकि उन्होंने धनखड़ को एक और मौका देने का फैसला किया था। विपक्ष का आरोप है कि सभापति का आचरण अस्वीकार्य है। वह भाजपा के प्रति ज्यादा वफादार दिखने का प्रयास कर रहे हैं।
कांग्रेस इस मुद्दे की अगुवाई कर रही है। जबकि तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अलावा कई अन्य विपक्षी पार्टियां इस कदम का समर्थन कर रही हैं। सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी गठबंधन एकजुट हो गया है। कांग्रेस ने यह प्रस्ताव राज्यसभा के महासचिव को सौंप दिया है। जिसका समर्थन ममता बनर्जी की टीएमसी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने किया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जब विपक्ष के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है तो उसके प्रस्ताव का औचित्य क्या है।
गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो उसके जरिए उनके पद से हटाया जा सकता है। राज्यसभा के सभापति को पद से हटाने के लिए यह जरूरी है कि उस प्रस्ताव पर कम-से-कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर हों, जिसके बाद उस प्रस्ताव को सचिवालय भेजना होता है। इसके लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना भी अनिवार्य है। फिर राज्यसभा में मौजूद सदस्यों के बहुमत आधार पर प्रस्ताव पारित होता है। इस प्रस्ताव को लोकसभा में भेजा जाता है क्योंकि राज्यसभा के सभापति देश के उप-राष्ट्रपति भी होते हैं इसीलिए लोकसभा से भी इस प्रस्ताव का पास होना जरूरी है। रहा सवाल विपक्ष के इस कदम का तो उसका इसमें असफल होना तय है क्योंकि सिर्फ एनडीए के पास राज्यसभा में 115 से ज्यादा सांसद हैं। लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 543 है और बहुमत 272 पर है। एनडीए के 293 और इंडिया गठबंधन के 236 सदस्य हैं। ऐसे में विपक्ष अन्य 14 सदस्यों को साधे तो भी प्रस्ताव पारित होना मुश्किल होगा।
असल में 25 नवम्बर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन 20 दिसंबर को है। दोनों सदनों में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अलग-अलग मुद्दों पर भारी हंगामा जारी है। जिसके कारण उच्च सदन की कार्यवाही बार – बार बाधित हो रही है। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सदस्यों ने कांग्रेस तथा उसके नेताओं पर विदेशी संगठनों जॉर्ज सोरोस जैसे लोगों के माध्यम से देश की सरकार और अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया और इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की है। कहा जा रहा है कि जगदीप धनखड़ ने जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर जिस तरह का रुख अपनाया, उससे कांग्रेस नाराज हो गई और सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक ले आई है। सत्ता पक्ष की तरफ से जॉर्ज सोरोस का मुद्दा उठाने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने भी अडानी समूह से जुड़ा मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कांग्रेस के कई सदस्यों ने सभापति जगदीप धनखड़ पर राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। संसद के बाहर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा मैंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी इतना पक्षपाती सभापति नहीं देखा है। जिस नियम के तहत मुद्दों को रिजेक्ट कर दिया गया उस पर हमें बोलने से रोकते हैं, लेकिन सत्ता पक्ष के सांसदों को बोलने दे रहे हैं। मेरा यह आरोप है कि आज उन्होंने घोर पक्षपाती ढंग से सदन का संचालन किया है। सब जानते हैं कि मोदी सरकार ऐसा प्रयास सिर्फ अडानी को बचाने और मुद्दों को भटकाने के लिए कर रही है।
शीतकालीन सत्र में अब तक क्या- क्या हुआ
सत्र के पहले दिन राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच बहस हुई। धनखड़ ने खड़गे से कहा कि हमारे संविधान को 75 साल पूरे हो रहे हैं। उम्मीद है आप इसकी मर्यादा रखेंगे। इस पर खड़गे ने जवाब दिया कि इन 75 सालों में मेरा योगदान भी 54 साल का है तो आप मुझे मत सिखाइए। वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में कभी अडानी, सम्भल, देशद्रोही तो कभी जार्ज सोरोस के मुद्दे पर हंगामा के चलते दोनों सदनों को स्थगित करना पड़ा है। एक तरह से कहा जाए तो शीतकालीन सत्र में अब तक काम कम हंगामा ज्यादा देखने को मिला है। एक ओर जहां विपक्ष सरकार को सम्भल और अडानी मुद्दे पर घेर रहा है तो सत्ता पक्ष जार्ज सोरोस और सिंघवी की सीट पर मिली नोटों की गड्डी के मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है।
राहुल ने लिया सांसदों का इंटरव्यू
शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के बाहर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी रिपोर्टर के रोल में दिखे। विपक्ष के दो सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी का मुखौटा लगाया और राहुल से बातचीत की। राहुल ने मोदी- अडानी के संबंध, अमित शाह की भूमिका और संसद न चलने पर सवाल किए।
सिंघवी की सीट से मिली नोटों की गड्डी
राज्यसभा में कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट से 500 रुपए के नोटों की गड्डी मिली थी। जिसे लेकर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। भाजपा ने जांच की मांग की। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि ‘सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सुरक्षा अधिकारियों ने हमें जानकारी दी कि सीट नंबर 222 से कैश मिला है। यह सीट तेलंगाना से सांसद अभिषेक मनु सिंघवी को अलॉट की गई है। इस मामले में नियमों के मुताबिक जांच होनी चाहिए और हो भी रही है।’ धनखड़ के बयान पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, मैं अनुरोध करता हूं कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती और घटना की प्रामाणिकता स्थापित नहीं होती, तब तक किसी सदस्य का नाम नहीं लिया जाना चाहिए। ऐसा चिल्लर काम करके ही देश को बदनाम किया जा रहा है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब देश की संसद में नोटों की गड्डी मिली है। इससे पहले वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह सरकार (यूपीए-1) की सरकार के समय जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर लेफ्ट ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था तो यूपीए ने 22 जुलाई को विश्वास प्रस्ताव पेश किया। इसी दिन बीजेपी के तीन सांसद अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगौरा लोकसभा में एक- एक करोड़ रुपए के नोटों की गड्डियां लेकर पहुंचे थे और सांसदों ने सदन में नोट दिखाए थे। तीनों सांसदों ने आरोप लगाया था कि सपा के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने उन्हें विश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट देने के लिए रुपए की पेशकश की थी। तब अमर सिंह और पटेल ने इन आरोपों को नकार दिया था।
लोकसभा के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष रहे लालकृष्ण आडवाणी ने दावा किया था कि सांसदों को 3-3 करोड़ रुपए का लालच दिया था। पहले एक करोड़ दिया गया था और बाकी की रकम बाद में देने का आश्वासन दिया गया था। ये पहला मौका था जब सदन में इस तरह से खुलेआम नोटों की गड्डियां उड़ाई गई थीं। इस घटना पर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने बकायदा केस दर्ज भी किया था।
गौरतलब है कि 25 नवंबर से शुरू हुआ संसद का शीतकालीन सत्र काम से ज्यादा व्यवधान के लिए सुर्खियों में रहा है। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच गतिरोध जारी है। आलम यह है कि किसी दिन 10 मिनट तो किसी दिन 15 मिनट सदन चल पा है। सिर्फ दो तीन मुद्दे हैं जो महाराष्ट्र चुनाव में उठाए गए थे। वही सदन में उठाए जा रहे हैं। लोग सकारात्मक बहस देखना और सुनना चाहते हैं। इसमें जितना विपक्ष जिम्मेदार है उतना ही सत्तापक्ष भी िजम्मेदार है। सदन में ऐसी बातें हो रही हैं, जिनका देश के लोगों से कोई सरोकार नहीं है।
मानसून सत्र में भी 87 सांसदों ने किए थे हस्ताक्षर
बीते अगस्त में मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सपा सांसद जया बच्चन ने सभापति जगदीप धनखड़ की टोन पर आपत्ति जताई थी। धनखड़ ने सपा सांसद को जया अमिताभ बच्चन कहकर संबोधित किया था। इस पर जया ने कहा था मैं कलाकार हूं। बॉडी लैंग्वेज समझती हूं। एक्सप्रेशन समझती हूं। मुझे माफ कीजिए, लेकिन आपके बोलने का टोन स्वीकार नहीं है। जया की इस बात से धनखड़ नाराज हो गए। उन्होंने कहा था आप मेरी टोन पर सवाल उठा रही हैं। इसे बर्दाश्त नहीं करूंगा। आप सेलिब्रिटी हों या कोई और, आपको डेकोरम बनाना होगा। आप सीनियर मेंबर होकर चेयर को नीचा दिखा रही हैं। इसके बाद विपक्षी दलों ने धनखड़ को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने की तैयारी की थी। तब 87 सदस्यों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे । बहस के बाद धनखड़ ने राज्यसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी थी और मामला ठंडे बस्ते में चले गया था।