प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि और भाजपा की आक्रामक राजनीतिक शैली से हलकान विपक्षी दलों के नेता एक महागठबंधन बनाने की बातें तो बहुत कर रहे हैं लेकिन धरातल पर इन दलों के मध्य एकता के बजाय अविश्वास की खाई दिनोंदिन गहराती नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा को करारी शिकस्त देने वाली तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनना चाहती हैं। लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता ने इस दिशा में अपने प्रयास तेज भी कर दिए हैं। वे दिल्ली आकर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिली। महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार से उनका संपर्क लगातार बना हुआ है। तृणमूल की ताकत को वामपंथी दल भी मरे मन से ही सही अब स्वीकारने लगे हैं। इस सबके बावजूद मौका मिलते ही तृणमूल इन विपक्षी दलों के भीतर सेंधमारी करने से बाज नहीं आ रही है। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी सुष्मिता देव को उसने मौका मिलते ही अपने पाले में कर लिया। गोवा के पूर्व सीएम और वरिष्ठ कांग्रेस नेता लइजिन्हो फालेयरो ने भी पार्टी से इस्तीफा देने के साथ ही तृणमूल ज्वाइन कर ली। खबर जोरों पर है कि कांग्रेस के जी-23 असंतुष्ट समूह के कई नेता ममता के संपर्क में हैं। ममता की इस नीति को कांग्रेस पानी पी-पीकर कोस रही है। विपक्षी एकता के खिलाफ बता रही है। दूसरी तरफ स्वयं कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के नेताओं को तोड़ने में जुटी है। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार को उसने अपने साथ लेने में देर नहीं लगाई। चर्चा गर्म है कि बिहार के लोकप्रिय नेता पप्पू यादव भी जल्द कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं। यदि ऐसा हुआ तो राजद संग कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ सकते हैं। आम आदमी पार्टी जिन राज्यों में अपनी पैठ बढ़ा रही है, वहां उसके टारगेट में असंतुष्ट कांग्रेसी नेता हैं जिन्हें वह अपने यहां आने का खुला निमंत्रण देती घूम रही है। कुल मिलाकर विपक्षी गठबंधन की ट्रेन पटरी पर दौड़ने से पहले ही डिरेल होने लगी है।
डिरेल होते विपक्षी एकता के प्रयास
