लोकसभा चुनाव 2024 में अब करीब आठ महीने ही बचे हैं। ऐसे में अन्नाद्रमुक का एनडीए से बाहर निकलना और लोकसभा चुनाव के लिए नए मोर्चे के गठन की घोषणा करना निश्चित रूप से भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता में तीसरी बार वापसी की रणनीति बना रही है। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम का असर तमिलनाडु की राजनीति पर पड़ सकता है और द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन की छोटी पार्टियां ज्यादा सीटें पाने के लिए अन्नाद्रमुक के साथ सौदेबाजी कर सकती हैं। इससे कांग्रेस भी प्रभावित हो सकती है। यदि यह सब होता है तो इससे विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन पर भी असर पड़ सकता है जिसके फलस्वरूप तमिलनाडु में द्रमुक-कांग्रेस के बीच गठजोड़ भी प्रभावित हो सकता है। अगर तमिलनाडु की राजनीति में उथल-पुथल और भ्रम की स्थिति बनी रही तो जाहिर है कि इसका फायदा राज्य में सत्तारूढ़ दल यानी एमके स्टालिन की द्रमुक को मिलेगा। जयललिता के शासनकाल में अन्नाद्रमुक भाजपा का एक भरोसेमंद और विश्वसनीय सहयोगी रहा है, जिसने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का समर्थन किया। जयललिता ने अन्नाद्रमुक के चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल किया था। अन्नाद्रमुक समान विचारधारा वाली ऐसी पांचवीं पार्टी है, जो एनडीए से बाहर हुई है। निश्चित रूप से इसने एनडीए को प्रभावित किया है। अन्नाद्रमुक द्वारा भाजपा से रिश्ता खत्म करने के बारे में कई कारण बताए जा रहे हैं। इस कहानी में अभी कई मोड़ आएंगे और इस बात की पूरी संभावना है कि अगले एक महीने में तमिलनाडु की राजनीति में काफी बदलाव आएगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ में भी एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है।

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