प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में इस बार उनके अतीत के अनुभवों की झलक भी दिखाई देती है। जहां पिछली सरकार के कई मंत्रियों को मोदी ने इस बार मौका नहीं दिया, वहीं कुछ ऐसे चेहरे भी सरकार में शामिल किए जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। हर क्षेत्र के अनुभवी लोगों को दायित्व सौंपकर मोदी ने संतुलित सरकार का संदेश दिया है। चार प्रमुख मंत्री सरकार के स्तंभ माने जा रहे हैं। इन बड़े मंत्रियिं की चुनौतियां भी बड़ी हैं
एक अच्छे प्रधानमंत्री की पहचान इस बात से होती है कि उसकी मंत्रिपरिषद कैसी है। देश की आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरु ने अपने मंत्रिमंडल में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इसलिए उद्योगमंत्री का दायित्व दिया था कि भारत में औद्योगिकरण की नींव पड़ सके। वैचारिक दृष्टि भिन्न होने के बावजूद पंडित जी ने विकास को प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत करते वक्त पिछले अनुभवों को देखते हुए कई लोगों को इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी, तो कई नये चेहरे भी उनके मंत्रिमंडल में हैं। पिछली बार के कुछ मंत्रियों को उन्होंने इस बार नई जिम्मेदारी भी दी है। मोदी की मंत्रिपरिषद कैसी है? इसके महत्वपूर्ण स्तंभ कौन से हैं? उनकी योग्यता और अनुभव क्या है, इस बारे में ‘दि संडे पोस्ट’ ने रिसर्च की तो सरकार में कुछ ऐसे चेहरे हैं, जो अपने-अपने राज्यों में राजकाज का अनुभव हासिल कर चुके हैं। मसलन गृह मंत्री अमित शाह गुजरात में गृह मंत्री रहे। इसी तरह राजनाथ उत्तर प्रदेश तो डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शासन-प्रशासन का अनुभव रखने वाले नौकरशाहों को भी उन्होंने मंत्रिमंडल में जगह दी। आपसी सामंजस्य बनाकर कैसे आगे बढ़ा जा सकता है, यह संदेश देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने एनडीए में शामिल सहयोगी पार्टियों को भी सरकार में तरजीह दी है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में हो रहा है। बहरहाल मंत्रिमंडल में चार प्रमुख सदस्य ऐसे हैं, जिन्हें लेकर हर जगह यही माना जा रहा है कि ये मोदी मंत्रिमंडल के चार स्तंभ हैं। जानिए कि कौन हैं ये चार स्तंभ :-
अमित शाह
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुउ़े रहे शाह 1983 में छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गए थे। 1997 में गुजरात के सरखेज विधनसभा सीट से उपचुनाव जीतकर उन्होंने खुद को एक स्थापित राजनेता बना दिया। 2003 से 2010 तक उन्हें गुजरात सरकार में गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। शाह को मोदी का बेहद करीबी और विश्वस्त माना जाता है। 2013 में शाह को उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रभारी बनाया गया। 16 मई 2014 के आम चुनाव में यूपी में बीजेपी को 71 सीटों पर विजय मिली। चुनाव से पहले शाह भाजपा के अध्यक्ष बने। 2019 में वे गांधीनगर से लड़े और भारी मतों से जीते। अब वे पहली बार केंद्र सरकार में कोई पद संभाल रहे हैं।  गृहमंत्री के रूप में अमित शाह के सामने 5 प्रमुख चुनौतियां हैं। जैसा कि क्या जम्मू-कश्मीर की स्थिति में सुधार होगा और वहां राष्ट्रपति शासन समाप्त हो जाएगा?
राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति इतनी नाजुक है कि चुनाव आयोग को वहां विधानसभा चुनाव स्थागित करना पड़ा।
आतंकवाद पर अंकुश
कश्मीर में आतकियों का पूरी तरह खात्मा कैसे हो? सरकारी सूत्रों पर आधारित एक विश्लेषण से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में 176 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
माओवादी हिंसा
भारत के नए गृहमंत्री की चुनौती जम्मू- कश्मीर राज्य तक सीमित नहीं है। मध्य भारत में माओवादी समूह लगातार सुरक्षा कर्मियों पर हमला करते रहे हैं। यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने अपनी हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया। छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा से बीजेपी विधयक भीमा मंडावी की चुनाव में माओवादियों ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। 3 मई को माओवादियों ने महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली में 15 सुरक्षामियों की हत्या और 26 वाहनों को आग लगा दी।
कानून व्यवस्था की मजबूतीं
गृहमंत्री के रुप में अमित शाह सभी केंद्रीय 
अर्धसैनिक बलों (सीएपीएफ) के प्रभारी होंगे। देश में कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
एनआरसी और नागरिकता विधेयक
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता विधेयक 2019 के लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दे रहे। अमित शाह ने कई मौकां पर उनके पक्ष में वकालत की है। एनआरसी का लक्ष्य असम में रहने वाले अवैध अप्रवासियों (बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों) का पता लगाना है, उन्हें हिरासत में लेना और उन्हें उनके मूल देश में वापस भेजने के तरीके खोजना है।  गृह मंत्री के रूप में यह सुनिश्चित करना अमित शाह की जिम्मेदारी होगी कि एनआरसी प्रक्रिया को सौहार्दपूर्ण तरीके से पूरा किया जाए।
नागरिकता विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उन धर्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जिन्हें धर्मिक उत्पीड़न के चलते अपने देश से भागना पड़ा।
 एनसीआरबी रिपोर्ट तैयार करना
केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास एक महत्वपूर्ण विंग है, जिसे राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी कहा जाता है। एनसीआरबी देश में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर महत्वपूर्ण वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। 1958 से एनसीआरबी ‘क्राइम इन इंडिया’ नामक एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर रहा था, जिसमें हत्या बलात्कार, दंगा, अपहरण, आगजनी, महिलाओं के खिलाफ अपराध, अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अत्याचार जैसे अपराधों पर विस्तृत राज्यवार आंकड़े होते थे। एनसीआरबी ने 2016 के बाद से यह रिपोर्ट जारी नहीं की है। लेकिन देखना होगा कि अमित शाह इस बारे में क्या करते हैं।
निर्मला सीतारमण
निर्मला सीतारमण भारत की वित्तमंत्री हैं। मोदी की पिछली सरकार में उन्हें रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी। इंदिरा गांधी के बाद रक्षा मंत्रालय संभालने वाली भारत की दूसरी महिला हैं। अपनी नई भूमिका में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 5 जुलाई 2019 को नरेंद्र मोदी सरकार का पहला बजट पेश करेंगी। ऐसे में विकास की मंदी और रोजगार संकट के बीच नए वित्त मंत्री की परीक्षा है। समझा जा रहा है कि वित्त मंत्रालय इस साल फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट के स्वरूप को बरकारार रखेगा। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को उपभोक्ता खर्च बढ़ाने के लिए बजट में थोड़ा बदलाव करना पड़ सकता है।
चुनौतियों में क्या करना होगा
प्रमुख ब्याज दरों में कमी : भारतीय उद्योग परिसंघ सीआईआई ने सिफारिश की है कि सरकार ने मांग को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में कटौती की। इंडिया इंक ने भी अर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए सरकार से निवेश बढ़ाने के लिए कहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी द्रवि मासिक नीति में प्रमुख उधार दर में कटौती की उम्मीद की है, जिससे मांग में वृद्धि हो सकती है। इस बीच सरकार के आरबीआई के साथ तरलता को बढ़ाने और विकास को बढ़ावा देने के लिए विचार-विमर्श करने की संभावना है।
किसान आय को बढ़ावा देना
निर्मला सीतारामण ने किसानों की आय में वृद्धि के जरिए विकास की मंदी से निपटने का तरीका अपनाया है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में उभरने वाली अधिकांश ग्रामीण स्थितियों को आंशिक रूप से देश में घरेलू मांग में मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कई रिपोर्टों के अनुसार आर्थिक कøषि क्षेत्र को बदलने के लिए सरकार नई नीतियों की शुरुआत करेगी।
तरलता चुनौतियों का समाधन
निर्मला सीतारामण के भारतीय रिजर्व बैंक के साथ प्रणाली में अधिक तरलता प्रदान करने के लिए विचार-विमर्श करने की संभावना है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 40.000 करोड़ रुपए का निवेश करने  की योजना बना रही है। ताकि सभी क्षेत्रों को एक मंदी के रूप में लेते हुए बढ़ावा दिया जा सके। मांग में गिरावट के कारण 2018-2019 में भारतीय व्यापारियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है, जिससे विनिर्माण गतिविधियों में गिरावट आई है। चूंकि ऑटोमोबाइल की मांग में काफी गिरावट आई हैं, इसलिए सरकार इस क्षेत्र को राहत देने के लिए कुछ नीतियों को बदल सकती है।
एनपीए संकट का सामना
राजकोषीय घाटे को बनाए रखने के अलावा, भारत को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) संकट को हल करने के लिए सख्त नीतियों को सावधनीपूर्वक लागू करने की भी आवश्यकता है। सभी संभावनाओं में खराब कमाई से बैंकों को बड़ा कॉर्पोरेट जोखिम हो सकता है। इस साल मार्च में बैंकां की कुल सकल गैर निष्पादित परिसांत्ति 7 लाख करोड़ रुपए है और कंपनियों के तिमाही घाटे का सामना करना जारी रहता है, तो इसमें तेज उछाल देखने को मिल सकता है। बैंकिंग क्षेत्र में पिछले साल कमी ने वित्तीय संस्थानों को मानदंडों कसौटी पर कसने के लिए मजबूर किया, जिसने आर्थिक मंदी में योगदान दिया है। सरकार को एनपीए की गड़बड़ी को हल करने के संबध में एक नई नीति ढूंढनी होगी और साथ ही, विनिर्माण मांग में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए बैंकां को कंपनियों को ऋण प्रदान करने के लिए कहना चाहिए।
जीएसटी अनुपालन में सुधार
सरकार भी कराधान, विशेष रूप से माल और सेवा कर व्यवस्था के अनुपालन में सुधार करने की कोशिश करेगी। जबकि पिछले तीन महीनों में जीएसटी संग्रह में सुधार हुआ है, सरकार संग्रह को बढ़ाने और अपने 2019-20 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रक्रिया को और अधिक कारगर बनाने की कोशिश कर सकती है। उपभोक्ता सामान उद्योग के कई लोगों ने टीवी और रेफ्रिजरेटर के लिए जीएसटी दरों में कटौती की मांग की है क्योंकि ऐसे सामानों की मांग भी धीमी हो गई है। यह कोई रहस्य नहीं है कि उच्च विकास दर हासिल करने के दौरान राजकोषीय संतुलन बनाए रखना एक कठिन चुनौती है और अर्थव्यवस्था को उच्च विकास की ओर ले जाने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के सही मिश्रण की आवश्यकता होगी।
एस. जयशंकर
पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर मोदी सरकार में विदेश मंत्री हैं। संसद के किसी सदन में न होने के बावजूद किसी राजनायिक को अचानक इस तरह दायित्व दिया जाना एक दुर्लभ उदाहरण है। 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी जयशंकर ने बीजिंग के साथ कठिन वार्ता को संभालते हुए लद्दाख के देपसांग और डोकलाम में गतिरोध के बाद संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन और अमेरिका के एक विशेषज्ञ की मानें तो नए विदेश मंत्री के कदमों को उत्सुकता से देखा जाएगा कि वह पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये से निपटने में भारत के दृष्टिकोण में कोई बदलाव लाते हैं या नहीं।
प्रमुख चुनौतियां
विदेश मंत्री के रूप में जय शंकर के समक्ष कई चुनौतियां हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उपस्थिति
जय शंकर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रभाव और कद का ध्यान रखना होगा। जी-20, दक्षेस और ब्रिक्स जैसे प्रमुख मंचां पर अहसास करना होगा कि भारत एक मजबूत राष्ट्र है। उनके नेतृत्व में मंत्रालय का एक बड़ा ध्यान अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और यूरोपीय संघ के साथ-साथ पड़ोस के देशों के साथ व्यापार और रक्षा संबंधों को और अधिक बढ़ाने पर है। 2019 में जयशंकर को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदमंत्री से सम्मानित किया गया था। वे चीन और अमेरिका में भारत के राजदूत भी रहे हैं।
चीन की टेढ़ी चाल
पड़ोसी मुल्क चीन भारत के खिलाफ टेढ़ी चाल चलता रहा है। ऐसे में चीन के साथ भारत के संबंधां को और मजबूत करना उनके लिए बड़ी चुनौती है। जो 2017 के मध्य में डोकलाम गतिरोध से बुरी तरह प्रभावित था। अफ्रीकी महाद्वीप में भी भारत के रिश्ते गहरे होने की संभावना है। जहां चीन तेजी से प्रभाव और उपस्थिति का विस्तार कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की लंबे समय से प्रतीक्षित सदस्यता प्राप्त करना नई सरकार के हितों का एक अन्य क्षेत्र होने की उम्मीद है। खाड़ी की समस्या भारत खाड़ी क्षेत्र के साथ-साथ हाइड्रो कार्बन समृद्ध मध्य एशिया के साथ भी संबंध बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। जयशंकर इस पर निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं। इस बीच अअमेरिका और ईरान के बीच गहराते रिश्ते खाड़ी में तनाव का कारण बने हैं। ऐसे में भारत को सोचना होगा कि वह किस पक्ष में रहे।
राजनाथ सिंह 
राजनाथ सिंह भारत के एक प्रमुख राजनेता हैं। इस वक्त वे देश के रक्षामंत्री हैं। वे गृहमंत्री और भारतीय जनता प्रार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं।  इससे पहले वे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में वर्षों तक सक्रिय रहे। राजनाथ सिंह 17वीं लोकसभा में भाजपा के उपनेता हैं। मुख्य चुनौतियां भारत के नए रक्षा मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह के सम्मुख कई अहम चुनौतियां हैं। सबसे महत्वपूर्ण चुनौती सेना, नौसेना और वायु सेना के लंबे समय से निलंबित आधुनिकीकरण को गति देने के अलावा उनकी लड़ाकू तत्परता में समग्रता सुनिश्चित करना है।
सीमा पर शांति
एक और चुनौती यह होगी कि किसी भी संभावित चीनी शत्रुता से निपटने के लिए आवश्यक सैन्य अवसंचना विकासित करते हुए चीन के साथ सीमा पर शांति सुनिश्चित की जाए। उम्मीद है कि बालाकोट के ठीक तीन महीने बाद मंत्रालय का कार्यभार संभालने वाले राजनाथ सिंह सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए गर्मजोशी से आगे बढ़ने की नीति पर कायम रहेंगे।
जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ
जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान से आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकना एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा।
लड़ाकू क्षमताओं की मजबूती
रक्षा मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह क्षेत्रीय सुरक्षा मैट्रिक्स और भू-राजनीतिक गतिशीलता को बदलने के कारण सेना, नौसेना और वायु सेना की लड़ाकू क्षमताओं को मजबूत करने की चुनौती का सामना करेंगे। सेना हाइब्रिड युद्ध से निपटने के लिए उन्हें बराबर करने के लिए दबाव डाल रही है। सिंह को इस महत्वपूर्ण मांग में शामिल होना होगा।
रणनीतिक साझेदारी
सरकार घरेलू रक्षा उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रही है और राजनाथ सिंह के महत्वाकांक्षी ‘रणनीतिक साझेदारी’ मॉडल को लागू करने सहित कई बड़ी सुधार पहलों को आगे बढ़ाना होगा। नए मॉडल के तहत, चुनिंदा भारतीय निजी फर्मों को विदेशी रक्षा बड़ी कंपनियों के साथ साझेदारी में भारत में पनडुब्बियों और लड़ाकू जेट जैसे सैन्य प्लेटपफार्मों का निर्माण करने के लिए उतारा जाएगा।
रक्षा संगठनों का आधुनिकीकरण
राजनाथ सिंह को रक्षा अनुसंधान संगठनों और विभिन्न अन्य रक्षा सार्वजानिक उपक्रमों के आधुनिकीकरण की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है ताकि वे बलों की आवश्यकता के अनुरूप अत्याधुनिक सैन्य हार्डवेयर का उत्पादन कर सकें। उनसे उम्मीद की जाती है कि अधिग्रहण प्रक्रिया के सरलीकरण पर ध्यान दिया जाए क्योंकि अधिकांश सैन्य भूमि आधुनिकीकरण कार्यक्रम में प्रशासनिक बाधाआें के कारण देरी हो रही है।

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