दायित्वों के बंटवारे से साफ है कि प्रदेश में उन्हीं नेताओं को सरकार में एडजस्ट किया गया जो मुख्यमंत्री के चहेते हैं। ऐसे में पार्टी के लिए समर्पित नेता सोचने को विवश हैं कि क्या उन्हें भी गणेश परिक्रमा करने की नीति अपनानी पड़ेगी? हाशिये पर पड़े पुराने अनुभवी नेताओं की तो कोई पूछ नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्रियों के करीबियों को दायित्वों के बंटवारे में निराशा मिली है। यहां तक कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट भी संगठन के सक्रिय नेताओं को दायित्व दिलाने में एक बार फिर फ्लॉप साबित हुए

प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के हालात कुछ-कुछ कांग्रेस जैसे ही दिखाई देने लगे हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के समय सरकार और संगठन के बीच जो खाई देखने को मिलती रही है, ठीक वैसा ही मौजूदा भाजपा की त्रिवेंद्र रावत सरकार और प्रदेश भाजपा संगठन के बीच भी देखा जा रहा है। सरकार का पौने दो साल का कार्यकाल बीत जाने के बावजूद जिस तरह से महज 14 लोगों को दायित्व बांटे गए हैं, इसे संगठन और सरकार के बीच संतुलन साधने के बजाय संगठन पर सरकार के वर्चस्व बनाए रखने के तौर पर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट को संगठन के सक्रिय नेताओं को दायित्व दिलाने के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा।

अपने जन्म दिन पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भाजपा के 14 नेताओं को दायित्वों का बंटवारा कर दिया। लेकिन इसके लिए नेताओं को पौने दो साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। हालांकि प्रदेश भाजपा संगठन खास तौर पर प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट द्वारा कई बार दायित्वों के बंटवारे के लिए दबाव भी बनाया गया। यही नहीं भाजपा के कई बड़े नेताओं ने भी दायित्व बंटवारे में हो रही देरी पर सरकार और संगठन को घेरने में कोई कमी नहीं की। बावजूद इसके मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने सभी मांगों को दरकिनार ही किया। अब जब दायित्व बांटे गए तो यह भी साफ हो गया कि दायित्व बंटवारे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की पंसद के नेताओं को ही सरकार में एडजेस्ट किया गया है।

दायित्वधारियों की सूची को देखने से साफ पता चलता है कि मुख्यमंत्री ने उन्हीं नेताओं को दायित्व दिए जिनके संबंध उनके साथ सहज रहे हैं। इसके अलावा जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को भी मुख्यमंत्री द्वारा बखूबी साधा गया है। लेकिन इनमें से भाजपा की त्रिमूर्ति रही खण्डूड़ी, कोश्यारी, निशंक के नजदीकी नेताओं को दायित्वों से दूर ही रखा गया है। सूत्रों की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट द्वारा दी गई सूची में से भी किसी नेता को दायित्व नहीं दिया गया।


ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने पहली बार प्रदेश संगठन खास तौर पर अजय भट्ट की मांग को अनदेखा किया है, बल्कि पूर्व में भी मुख्यमंत्री ने अपनी टीम में कई ऐसे चेहरों को शामिल किया जो कि शायद ही भाजपा से कभी जुड़े थे। जिसमें औद्योगिक सलाहकार कुंवर सिंह पंवार और स्वास्थ्य सलाहकार नवीन बलूनी को सरकार में एडजेस्ट किया गया। इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि ये मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के नजदीकी और खास मित्र रहे हैं। इसके अलावा पूर्व कांग्रेस सरकार में राज्यमंत्री के दायित्व पर रही ऊषा नेगी को बाल संरक्षण आयोग के उपाध्यक्ष पद पर तैनात करके मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने साफ कर दिया कि सरकार में वही एडजेस्ट होगा जिसे वे चाहेंगे। माना जाता है कि प्रदेश भाजपा संगठन में इसको लेकर खासा बवाल भी मचा और भाजपा नेताओं ने गैर भाजपा पृष्ठभूमि के नेताओं को सरकार में एडजेस्ट करने पर विरोध भी किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने उन सभी विरोधों को दरकिनार करते हुए अपनी टीम में चाहे वह शासन स्तर की रही हो या राजनीतिक स्तर की न तो भाजपा नेताओं की मानी और न ही प्रदेश भाजपा संगठन को तवज्जो दी। तकरीबन चालीस ओएसडी, मीडिया समन्वयक और निजी सचिव के अलावा कई लोगों को मुख्यमंत्री की टीम में शामिल किया गया। हालांकि ये सभी पद मुख्यमंत्री कार्यालय टीम के हैं, लेकिन इन पदों के लिए भी भाजपा के कई नेताओं ने अपने अपने चहेतों को मुख्यमंत्री कार्यालय में एडजेस्ट करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी परंतु किसी को भी भाव नहीं दिया गया।

अब नए नवेले दायित्वधारियों की सूची को देखें तो पूरी तरह से साफ हो गया कि मुख्यमंत्री द्वारा एक साथ कई राजनीतिक समीकरणों को साधने का काम किया गया है। सूत्रों के अनुसार भाजपा में चल रही गुटबाजी के कारण आने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री ने अपनी टीम में चुनिंदा लोगों को ही जगह दी है। ज्ञान सिंह नेगी, नरेश बंसल, डॉ आरके जैन, मोहन थपलियाल, डॉ विनोद आर्य, केदार दत्त जोशी, शमशेर सिंह सत्याल, गजराज सिंह बिष्ट, घनानंद, महावीर सिंह रांगड़, शमीम आलम, विजया बड़थ्वाल, दीप्ति रावत एवं राजेश कुमार को दायित्व दिए गए हैं। माना जाता है कि इन सभी नेताओं के संबंध मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के साथ बेहतर रहे हैं। साथ ही इनमें से कई ऐसे नेता हैं जो कि भाजपा संगठन से जुड़े रहे हैं।

भाजपा सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में कुछ और भी दायित्व बांटे जा सकते हैं। इसके चलते भाजपा संगठन पर बहुत बड़ा दबाब बना हुआ है। लेकिन इसमें एक बात यह भी छनकर आ रही है कि कई ऐसे नेता भी हैं जो दायित्व बंटवारे की लिस्ट में अपना नाम प्रदेश संगठन के बजाय सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचाने में ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि दायित्वों के बंटवारे में प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के बजाय अंततः मुख्यमंत्री की ही चलेगी। वे देख रहे हैं कि जिन 14 लोगों को दायित्व मिले वे मुख्यमंत्री के पसंदीदा हैं।

वैसे चर्चाएं यह भी हैं कि जनवरी माह के अंत तक सरकार में दो मंत्रियों के पदों को भी भरा जा सकता है और इसके लिए भाजपा संगठन पूरी तरह से तैयार भी हो चुका है। जिस तरह से कांग्रेस मूल के भाजपा मंत्रियों की तादात सरकार में ज्यादा है उससे अब मूल भाजपा के विधायकों को ही मंत्री पद पर तेनाती मिलना तय माना जा रहा है। प्रदेश भाजपा में एक बार फिर से मंत्रियों के चयन में घमासान मचना तय है।

भाजपा नेताओं में इस बात को लेकर भय बना हुआ है कि जिस तरह से दायित्वों के बांटवारे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की चली है, कहीं दो मंत्रियों के मामले में भी ऐसा ही न हो जाए। इसके चलते प्रदेश भाजपा संगठन भी मूल भाजपा नेताओं और खास तौर पर जो नेता कभी भाजपा की एक धुरी के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं उनको लेकर चिंतित है। मौजूदा समय में ये सभी एक तरह से हाशिए पर धकेले जा चुके हैं। इन नेताओं को मंत्री पद ओैर दायित्व दिए जाने के प्रयास संगठन स्तर से भी नहीं किए गए हैं।
आज भाजपा में पूर्व अध्यक्ष पूरण चंद शर्मा, बच्ची सिंह रावत, बलराज पासी, मनोहरकांत ध्यानी, मोहन सिंह रावत गांववासी, सुशीला बलूनी, कøष्ण चंद पुनेठा, प्रकाश सुमन ध्यानी, सुरेश जोशी जेसे नेता वर्तमान राजनीति के परिदृश्य से एक तरह से गायब हो चुके हैं या भाजपा के मौजूदा हालात में गायब कर दिए गए हैं। हालांकि इनमें से कई नेता अब वृद्ध भी हो चले हैं और अपने लंबे अनुभव के बावजूद इन नेताओं को नई भाजपा में स्थान नहीं मिल पा रहा है।

भाजपा के एक बड़े वरिष्ठ नेता का मानना है कि नई भाजपा में पुराने और अनुभवी नेताओं के लिए धीरे-धीरे स्थान समाप्त होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण बड़े पदों में तैनात नेताओं की चरण वंदना का नया ट्रेंड होने के चलते पुराने नेता इस नए ट्रेंड में सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। जिसके चलते आज यह हालात बन रहे हैं। नए युवा शक्ति के नाम पर गैर अनुशासन और पद पाने की अति महत्वाकांक्षा के चलते सरकार और संगठन में मतभेद पैदा हो रहे हैं। शायद इसी के चलते सरकार गठन के पौने दो साल के बाद दायित्वों का बंटवारा हो पाया है, जबकि यह सरकार बनने के सौ दिनों के भीतर ही हो जाना चाहिए था।

एक और वरिष्ठ भाजपा नेता का भी यही मानना है कि सरकार और संगठन के बीच मतभेद और मनभेद का मुख्य कारण संगठन में सत्ता के प्रति अति मोह का पैदा होना है। पूर्व में भाजपा संगठन और मूल संगठन आरएसएस दोनों ही सत्ता से दूरी बना कर चलते रहे हैं। आज संघ और भाजपा संगठन किसी भी तरह से सरकार से अपनी नजदीकियों को बढ़ाने में लगा हुआ है। जिसके चलते मुख्यधारा का कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहा है। जिन दायित्वों में कार्यकर्ताओं का अधिकार माना जाता था उनमें आज पदाधिकारियों के लिए रेड कारपेट बिछाया जा रहा है। भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जिस तरह से भाजपा के समर्पित नेताओं को दायित्व दिए हैं उससे आशा बनी है कि आने वाले समय में इसी के तर्ज पर दायित्व दिए जाएंगे।

अजय भट्ट को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के कार्यकाल का एक वर्ष का विस्तार मिलने से प्रदेश भाजपा में अजय भट्ट की टीम खासी उत्साहित है और अब सरकार को संगठन की ताकत का अहसास करवाने के लिए तैयारी में जुट चुकी है। आने वाले समय में नए दायित्वों के बंटवारे के बाद ही पता चल पाएगा कि अजय भट्ट सरकार पर कितने हावी होते हैं या फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अपनी सरकार की ताकत संगठन पर दिखाने में कितना कामयाब होते हैं। जबकि भाजपा के कई नेता दायित्वों और मंत्री पद के लिए लाइन लगा कर खड़े हैं जिनमें महेंद्र प्रसाद भट्ट, पुष्कर सिंह धामी, बंशीधर भगत, राजीव शुक्ला, मुन्ना सिंह चौहान और पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विशन सिंह चुफाल का नाम मंत्री के तौर पर चर्चाओं में है।

इसके अलावा दायित्वां के लिए कुसुम कंडवाल, कैलाश पंत, ज्योति गैरोला, कर्नल सीमा नैटियाल, रामकøष्ण रावत, रिपुदमन सिंह, अतर सिंह असवाल, अतर िंसह तोमर, अनिल गोयल, उमेश अग्रवाल, बलराज पासी, टीकाराम मैखुरी जैसे नेताओं के नाम चर्चाओं में है। माना जा रहा है कि इनमें से कई नाम प्रदेश भाजपा संगठन के द्वारा सरकार को सुझाए गए हैं। सूत्रों की मानें तो इनमें से कई नाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खास लोगों के भी हैं। अब देखने वाली बात होगी कि इनमें से कितनों को दायित्वों से नवाजा जाएगा।

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