वित् मंत्री प्रकाश पंत ने बीते माह वित्तीय प्रबंधन पर एक रोडमैप राज्य के सामने रखा। बकौल वित्त मंत्री, ‘आय में बढ़ोतरी, खर्चों में कटौती और मितव्ययिता पर  हमारा खास फोकस है। वित्तीय सुधारों के नतीजे धीरे-धीरे सामने आएंगे।’ अभी एक माह ही गुजरा है। सरकार ने लेकिन अपने ही रोडमैप को भुला दिया है। खर्चों में कटौती और मितव्ययिता को खूंटी में लटका दिया गया है। करदाता के पैसों को दोनों हाथों से लुटाया जा रहा है। सिर्फ धन का ही नहीं बल्कि मनमर्जी तरीके से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। चैदह अक्टूबर से पंद्रहवां वित्त आयोग उत्तराखण्ड दौरे पर है। आयोग के सामने सरकार ने प्रदेश की बदहाल आर्थिक हालात का प्रजेंटेशन दिया ताकि 15वें वित्त में प्रदेश को केंद्र से ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिल सके। यह सच्चाई भी है। एक दशक में ही इस छोटे से हिमालयी प्रदेश पर हजारों करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है। इस कर्ज के कारण प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए का ब्याज देना पड़ता है। कर्ज खत्म करना नहीं बल्कि वित्तीय घाटा कम करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए हर सरकार खर्च कम करने की बात करती है, पर अमल कोई नहीं कर पाता।

बढ़ता जा रहा है कर्ज का मर्ज
उत्तराखण्ड सरकार को अपने खर्चों की पूर्ति के लिए ऋण लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। राज्य गठन के समय राज्य के हिस्से में 4430.04 करोड़ कर्ज आया था। राज्य के जन्म के साथ मिला यह कर्ज वित्तीय वर्ष 2016-17 मं  40793.70 करोड़ होने का अनुमान बजट आंकड़ा  मं लगाया गया था। इससे पहले वित्तीय वर्ष 2015-16 में 34762.32 करोड़ और वित्तीय वर्ष 2014-15 में यह कर्ज 30579.38 करोड़ था। 31 मार्च, 2017 तक कर्ज की धनराशि बढ़कर 41644 करोड़ हो गई थी। यह कर्ज 31 मार्च, 2018 तक बढ़कर 47759 करोड़ हो रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में अब 6000 करोड़ से ज्यादा कर्ज लिया जा चुका है। ऋणग्रस्तता की स्थिति में सरकार को अल्पबचत राशि के भुगतान से कुछ राहत मिलने जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 31 मार्च, 2018 तक राज्य पर ऋणग्रस्तता की कुल धनराशि 41251.11 करोड़ रह जाएगी। वित्तीय वर्ष 2018-19 में कर्ज की यह राशि 47580.42 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। दरअसल, राज्य की माली हालत खराब है। गैर विकास मदों में खर्च जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसकी पूर्ति करने में मुश्किलें पेश आ रही हैं। हालत ये हैं कि खर्च चलाने के लिए सरकार को
गाहे-बगाहे कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। राज्य सरकार के कार्मिकों को सातवें वेतनमान का बकाया एरियर का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार द्वारा फिर कर्ज लिया गया है। आर्थिक संसाधन बढ़ाने के लिए सरकार के पास फुलप्रूफ एजेंडा नहीं है।

वर्तमान सरकार का भी यही हाल है। कुछ माह पूर्व सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए प्रदेश सरकार को कर्ज लेना पड़ा था। आज वही सरकार 15वें वित्त आयोग के दौरे पर सरकारी धन लुटा रही है। 14 अक्टूबर को आयोग के एक सदस्य डाॅ अशोक लोहरी देहरादून पहुंचे। इनके अलावा आयोग के चेयरमैन एनके सिंह, अन्य सदस्य और अधिकारी 15 अक्टूबर को देहरादून आए। 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन, 5 सदस्य और 11 अधिकारियों को मिलाकर कुल 17 लोगों का यह आधिकारिक दौरा था। मगर आयोग के साथ  कुल 23 लोगों की टीम आई। आयोग के साथ आए छह अन्य लोग चेयरमैन और सदस्यों के परिजन थे, जो आधिकारिक दौरे का हिस्सा तो बिल्कुल नहीं थे। ये लोग उत्तराखण्ड घूमने आए। लेकिन अपने खर्चे पर नहीं, सरकारी खर्चे पर। इन छह लोगों में आयोग के सदस्य शक्तिकांत दास, अरविंद मेहता, डाॅ रमेश चंद अपनी पत्नी के साथ आए। आयोग के चेयरमैन साहब इन सदस्यों से एक कदम और आगे बढ़ते हुए, अपने पूरे परिवार को साथ लेकर आए। जिनमें उनकी पत्नी और बेटी शामिल थीं। परिवार के अलावा चेयरमैन अपने निजी डाॅक्टर को भी साथ लेकर आए। शायद उन्हें उत्तराखण्ड के डाॅक्टरों पर भरोसा नहीं था। यह तो आयोग के साथ आए लोगों की जानकारी है। अब बात उत्तराखण्ड सरकार द्वारा इन लोगों पर लुटाए गए सरकारी धन के बारे में। प्रदेश सरकार ने इन सभी लोगों पर दोनों हाथों से धन लुटाने में कोई कसर नहीं बाकी नहीं रखी। दिल्ली से जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर उतरते ही सभी लोग प्रदेश के राज्य अतिथि हो गए। सभी लोगों के स्वागत में एयर पोर्ट पर लाइजन आॅफिसर्स और उनका लगेज उठाने के लिए प्रोटोकाॅल आॅफिसर्स तैनात किया गया। चेयरमैन और आयोग के पांच सदस्यों को छोड़ दें तो सभी अधिकारियों और परिजनों के स्वागत के लिए अलग-अलग लाइजन आॅफिसर्स तैनात किए गए। लाइजन आॅफिसर्स परिजनों के साथ भी जब तक प्रदेश में रहे तब तक उनके साथ ही रहे। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि परिजनों के स्वागत से लेकर पूरे दौरे में उनके परछाई की तरह साथ रहने वाले सभी लाइजन आॅफिसर्स आईएएस अधिकारी थे। सदस्यों की पत्नी, बेटी और डाॅक्टर के साथ भी आईएएस तैनात रहे। चेयरमैन एनके सिंह की बेटी माधवी सिंह के लिए सीनियर आईएएस अधिकारी और टिहरी की जिलाधिकारी सोनिका को तैनात किया गया। चेयरमैन के निजी डाॅक्टर डाॅ दिलीप मखीजा
के साथ फाइनेंस आॅफिसर बीएस जंतवाल को तैनात किया गया था।

वित्त आयोग पर विवाद
पंद्रहवें वित्त आयोग के गठन के तुरंत बाद ही इस पर विवाद भी शुरू हो गया था। विवाद टर्म्स आॅफ रफे रसें (संदर्भ की शर्तों) को लके र था। पहले वित्त मंत्री ने विवाद को बेबुनियाद बताया। उनके बाद खुद प्रधानमंत्री कार्यालय को भी ट्वीट कर इस पर स्पष्टीकरण देना पड़ा था। उस ट्वीट में कहा गया था कि वित्त आयोग के टर्म्स आॅफ रेफेरेंस में कोई गड़बड़ी नहीं है और न ही इसके जरिए किसी राज्य विशेष अथवा क्षेत्र को केंद्रीय राजस्व आवंटन में कोई नुकसान होगा। प्रधानमंत्री ने यहां तक दावा किया कि नए वित्त आयोग से कहा गया है कि उन राज्यों को राजस्व में वरीयता दी जाए, जिन्होंने बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने में सफलता पाई है। गौरतलब है कि चैदहवें वित्त आयोग के टर्म्स आॅफ रेफेरेंस में जनसंख्या के आंकड़ों को
इस्तेमाल करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया था। इसके बावजूद राज्यों की जरूरतों का सटीक आकलन करने के लिए 14वें आयोग ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया और उसकी तुलना 1971 की जनगणना के आंकड़ों से की। ऐसे में जो नतीजा मिला उसके आधार पर 14वें आयोग ने 2011 की जनसंख्या को 10 फीसदी का वेटेज देते हुए राज्यों को केंद्रीय राजस्व का 42 फीसदी धन आवंटित करने का काम किया। यह पूर्व में राज्यों को आवंटित सबसे अधिक राजस्व था। अब 15वें वित्त आयोग के टर्म्स आॅफ रेफेरेंस में केंद्र सरकार ने नया निर्देश दिया है कि राज्यों को राजस्व का आवंटन करने के लिए ऐसे राज्यों का भी संज्ञान लिया जाए जिन्होंने जनसंख्या पर लगाम लगाने में अच्छी पहल की है। सरकार ने ऐसे राज्यों को इस काम के लिए अधिक आवंटन का निर्देश दिया है जिससे बाकी राज्यों को भी जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा राज्यों में बांटती है, ताकि जिन
राज्यों के पास न्यूनतम जीवन स्तर बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, वह केन्द्रीय राजस्व से यह काम कर सकं। लिहाजा केन्द्र सरकार के राजस्व का यह बंटवारा करने के लिए केंद्र सरकार हर 5वें वर्ष वित्त आयोग का गठन करती है। वित्त आयोग इस बंटवारे के लिए राज्यों की जरूरत का आकलन करता है और सटीक आकलन के लिए वह कई कसौटियों का इस्तेमाल करता है। इनमें राज्य की जनसंख्या और राज्य की कमाई दो अहम कसौटियां हैं। जहां जनसंख्या से राज्य
की जरूरत निर्धारित की जाती है, वहीं राज्य की जीडीपी से राज्य में गरीबी का आकलन किया जाता है। इन दोनों कसौटियों के आधार पर ज्यादा गरीबी और अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को ज्यादा से ज्यादा संसाधन देने की कोशिश की जाती है जिससे वह राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं को अपने नागरिको तक पहुंचा सके |

आयोग के सदस्य शक्तिकांत दास की पत्नी लोपामुद्रा दास जब तक देहरादून में रही तब तक चमोली की एसडीएम नेहा मीणा और नैनीताल में पिथौरागढ़ की सीडीओ वंदना उनके साथ रहीं। चेयरमैन की पत्नी प्रेम कुमारी के लिए देहरादून में टिहरी की डीएम सोनिका को और नैनीताल में बागेश्वर की डीएम रंजना को तैनात किया गया। इसी तरह अन्य परिजनों और अधिकारियों के साये के पीछे पीछे चार दिनों तक दो दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारी घूमते रहे। ऐसे प्रदेश में दो दर्जन से अधिक अधिकारियांे को अतिथि सत्कार में चार दिन तक तैनात किया गया, जहां आपदा या आपात स्थिति कभी भी आ जाती है। सभी अधिकारी अपनी ड्यूटी, अपने विभाग, अपने जिला को छोड़कर इनके आतिथ्य सरकार में लगे रहे। यह तो प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का उदाहरण मात्र है। अब बात सरकारी धन के दुरुपयोग की। शुरुआत सबसे छोटी चीज से। भाजपा की जो प्रदेश सरकार कर्ज लेकर आतिथ्य पर करोड़ों लुटा रही है, उस पार्टी के आलाकमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में बुके से अतिथियों के स्वागत की परंपरा तक पर रोक लगा दी है। प्रधानमंत्री से मिलने आने वाले लोगों को भी स्पष्ट निर्देश हैं कि वे बुके नहीं, बल्कि एक फूल से ही उनका स्वागत करें। इस निर्देश के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार उत्तराखण्ड आए हैं। एयरपोर्ट पर या अन्य कार्यक्रमों में इन्हीं मुख्यमंत्री और मंत्रियों को उनका स्वागत एक फूल से करते कई बार सबने देखा होगा। लेकिन प्रधानमंत्री के निर्देश का सिर्फ उनके सामने ही पालन किया जाता है। उनके पीछे नहीं। यहां भी यही हुआ है। एयरपोर्ट पर आयोग के सदस्य, अधिकारियों और उनके परिजनों के स्वागत के लिए गुड क्वालिटी का बुके ले जाने का स्पष्ट निर्देश शासन से दिया गया था। बुके के अलावा हरेक सदस्य, अधिकारियों और उनके परिजनों के लिए अलग- अलग गाड़ी की व्यवस्था करने का भी निर्देश था। शासन के निर्देश का अधिकारियों के लिए पालन भी किया। सभी परिजनों, अधिकारियों को अलग गाड़ी की व्यवस्था जब तक वे प्रदेश में रहे तब तक की गई। देहरादून हो या नैनीताल राज्य के सभी शहरों में बहुत सुंदर और आरामदायक सरकारी गेस्ट हाउस मौजूद हैं। देहरादून में बीजापुर गेस्ट हाउस किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं है फिर भी इन सभी लोगों को सरकार ने फाइव स्टार रिसोर्ट में ठहराया। देहरादून में ‘अंतरा’ और ‘फोर प्वाइंट’ रिसोर्ट में रहने की व्यवस्था की गई। इनके लिए अंतरा में कुल 13 सुईट्स तो फोर पाॅइंट में 6 सुईट्स बुक किए गए थे। नैनीताल में ‘मनु महारानी’ रिसोर्ट में ठहराया गया। मनु महारानी में कुल 18 सुईट्स में अधिकारी रुके। नैनीताल में आयोग के चेयरमैन एनके सिंह और सदस्य अपने परिवार के साथ राजभवन में रुके। उनके अलावा आयोग के अधिकारी और ड्यूटी पर तैनात प्रदेश के अधिकारी फाइव स्टार रिसोर्ट में रुके। फाइव स्टार रिसोर्ट में रुकने के अलावा प्रदेश सरकार ने आयोग के सदस्यों और उनके परिजनों को गंगोत्री धाम में जलाभिषेक कराने की भी व्यवस्था की। वह भी हैलीकाॅप्टर से। 17 अक्टूबर को चेयरमैन सपरिवार, आयोग के चार सदस्य भी अपने परिवारों के साथ गंगोत्री धाम गए। ये सभी चार हैलीकाॅप्टर से देहरादून से हर्षिल गए। चार हैलीकाॅप्टर में से तीन डबल इंजन तो एक सिंगल इंजन का हैलीकाॅप्टर था। हर्षिल में सभी लोगों के लिए गाड़ी की व्यवस्था की गई। जिससे वे लोग गंगोत्री गए और वहां पूजा की। पूजा करने के बाद सभी हर्षिल वापस आए। हर्षिल से आयोग के सदस्य और चेयरमैन अपने परिवार के साथ हैलीकाॅप्टर से ही नैनीताल गए। आयोग और प्रदेश के अधिकारी देहरादून से दो चार्टर्ड प्लेन में नैनीताल गए। वहीं इनके स्वागत के लिए लाइजन अधिकारी ट्रैन से नैनीताल ले जाए गए। नैनीताल में आयोग ने सिर्फ टूरिज्म इंडस्ट्री के रिप्रजेंटेटिव से मीटिंग की और फिर सभी नैनीताल घूम कर अगले दिन हैलीकाॅप्टर और चार्टर्ड प्लेन से वापस दिल्ली गए। नैनीताल में आयोग की मीटिंग भी फाइव स्टार रिसोर्ट में ही रखी गई। एक गरीब प्रदेश में धन के इस दुरुपयोग को सरकार रोकने के बजाय और बढ़ा रही है।

वित्त आयोग के चेयरमैन और  सदस्य सरकारी लोग नहीं हैं। इसलिए वे राज्य का दौरा अपने खर्च पर करते हैं। चेयरमैन से लेकर सभी सदस्य बहुत ही सीनियर लोग हैं। इन्हें सभी चीजों की जानकारी होती है। इसलिए ये लोग क्या करना हैं, क्या नहीं करना है, उसका खुद ख्याल रखते हैं। यदि कोई खर्च करता भी है तो भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि होटल का कमरा ट्वीन शेयरिंग होता है। चेयरमैन और सदस्य यदि अपनी पत्नी के साथ जाते भी हैं तो वे साथ ही रहते भी हैं। एक गाड़ी में एक बैठे या दो बैठ जाएं, इससे खर्च कहां बढ़ जाता है। भारत भूषण गर्ग, 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन के ओएसडी

2017 में प्रदेश की जनता ने ढेरों उम्मीद के साथ भाजपा को ऐतिहासिक जीत दी है, ताकि ढुलमुल सरकार की तुलना में भाजपा सरकार राज्य की बेहतरी के लिए काम करे। आज भी प्रदेश सरकार बांधों से विस्थापित परिवारों का पुनर्वास करने के लिए पैसों का रोना रोती है। हजारों गांव आपदा या भूस्खलन से खतरे की जद में हैं। उन गांवों का भी पुनर्वास होना है पर सरकार के पास उसके लिए धन नहीं है। लेकिन सरकारी आयोग पर पैसा लुटाने के लिए धन की कमी नहीं है। आयोग की टीम प्रदेश आने से पहले 1 अक्टूबर से 4 अक्टूबर तक बिहार में थी। वहां के दौरे पर आयोग को मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया भोज स्टेट गेस्ट हाउस में आयोजित किया गया था। उत्तराखण्ड किसी से कुछ सीखने की कोशिश भी नहीं कर रहा। अब बात आयोग के कामों की। आयोग ने 15 अक्टूबर को सचिवालय के वीरचंद्र सिंह गढ़वाली सभागार में देर शाम तक जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक की। आर्थिक मोर्चे पर कई दुश्वारियां झेल रहे उत्तराखण्ड के परस्पर विरोधी राजनीतिक दलों के स्वर समान पीड़ा बयान कर रहे थे। इस बैठक में राज्यों के लिए स्वीकत 1,94,821 करोड़ के राजस्व घाटे से उत्तराखण्ड को एक पाई तक न मिलने पर नाराजगी भी झलकी। जीएसटी में बेहतर वसूली के बावजूद राज्य को हो रही आर्थिक क्षति चर्चा के मुख्य केंद्र में रही। इसके अलावा आपदा, ग्रीन बाने स, पलायन, पुनर्वास, कमजोर आर्थिक स्थिति से आयोग के सदस्यों को अवगत कराया गया। पहले दिन नगरीय व पंचायत प्रतिनिधियों ने अपने मुद्दे बेबाकी से उठाए। प्रदेश कांग्रेस ने केंद्रीय वित्त आयोग से कहा कि विकास की बलि चढ़ाकर ग्लोशियरों, नदियों, वनों के संरक्षण कर रहे उत्तराखण्ड को इस बलिदान का मूल्य मिलना चाहिए। कांग्रेस ने ग्रीन बोनस के तौर पर विशेष वित्तीय सहायता की वकालत की। कांग्रेस के मुताबिक 14वें वित्त आयोग ने उत्तराखण्ड को राजकोषीय घाटे के एवज में वित्तीय अनुदान से वंचित करके प्रदेश के साथ अन्याय किया। जबकि 12वें और 13वें वित्त आयोग ने इस मद में प्रदेश को करीब 32 हजार करोड़ रुपए का वित्तीय लाभ दिया। कांग्रेस ने उत्तराखण्ड को केंद्र पोषित योजनाओं में विशेष अनुदान देने की मांग उठाई और चिंता जताई कि इसमें कमी आने से प्रदेश को 2500 करोड़ का नुकसान हुआ। पार्टी ने एनडीआरएफ और एसडीआरएफ में अनुदान की राशि को बढ़ाने की भी मांग की।

परंपरा है यह ‘
उत्तराखण्ड के वित्त मंत्री प्रकाश पंत से बातचीत

चार दिन के दौरे में 15वें वित्त आयोग से क्या आश्वासन मिला?
पंद्रहवें वित्त आयोग से सकारात्मक आश्वासन मिला है। हम लोग अपनी बात रखने के लिए पिछले तीन महीने से तैयारी कर
रहे थे। प्रदेश की भौगोलिक संरचना के बारे में भी तथ्यात्मक समस्याएं आयोग के सामने हमने रखी। उनसे स्थानीय निरीक्षण भी करवाया है। गंगोत्री की ओर ईको सेंसटिव जोन का निरीक्षण करवाया। उसके बाद पूरे प्रदेश का हवाई सर्वेक्षण करवाया। नैनीताल के समीप चांखरी और अलर्चोना गांव भी ले गए।
चैदहवें वित्त आयोग में प्रदेश को जो आर्थिक नुकसान हुआ था।
इस बार क्या उस तरह का नुकसान नहीं होने का वादा किया गया? चैदहवें वित्त आयोग के सामने जो आकलन किया गया था, वह भ्रामक हो गया। तत्कालीन सरकार ने उस वक्त जो टैक्स रेवन्यू और नाॅन टैक्स रेवन्यू कोट किये थे, वह सही नहीं निकले। होम टैक्स रेवन्यू में उस वक्त प्रदेश में 44 -25 प्रतिशत की ग्रोथ बताई गई थी। नाॅन टैक्स में 86 ़25 प्रतिशत की ग्रोथ बताई थी। इसके साथ हमारे खर्च का आकलन कम किया गया था। इसमें करीब 14 फीसदी की गिरावट बतायी थी। खर्चे कम और आय ज्यादा होने का आकलन पूर्णतः गलत निकला। उस कारण 14वें वित्त आयोग के दौरान हमारा 47278 करोड़ का आकलन कम किया गया। इस तरह यह पद्र ेश को नुकसान हुआ। रेवन्य  डेफिसेट ग्रांट इस वजह से प्रदेश का शून्य हो गया। इस बार तीन-चार दिन में हमन े आयोग को यही समझाने का सफलतापूर्वक पय्र ास किया। जिसमं  हमने ईको सर्विसेज को निर्धारित करने पर भी जोर दिया है। हमारी बातों पर आयोग की टीम ने सहमति व्यक्त की है।
आयोग ने कहा है कि राज्य को निराश नहीं करेंगे। हमने अभी के धन वितरण फाॅर्मूले को बदलने का आग्रह किया है, ताकि प्रदेश का हित हो।
एक तरफ आप खर्च कम करने का दावा करते हैं दूसरी तरफ आयोग के चेयरमैन और सदस्य अपने परिवार के साथ सरकारी दौरे पर आते हैं। राज्य सरकार उनके परिवार वालों के लिए भी फाइव स्टार रिजाॅर्ट से लेकर हैलीकाॅप्टर सेवा तक लगा देती है। क्या यह जरूरी थी?
हम लोग आयोग के लोगों को ही सुविधा देते हैं और सिर्फ उन्हें ही दी है। 15 सदस्यीय टीम थी।
चेयरमैन के साथ पत्नी, बेटी और निजी डाॅक्टर आए थे। उन सबको राज्य अतिथि की सुविधा सरकार ने दी?
नहीं, सरकार चेयरमैन और आयोग के सदस्यों को स्थलीय निरीक्षण कराने गंगोत्री ले गई थी। उसके बाद पूरे पर्वतीय क्षेत्रों का हवाई सर्वे कराया और स्थलीय दौरा भी कराया।
परिजनों और डाॅक्टर का दौरा कराया?
नहीं।
सभी परिजनों के लिए अलग-अलग आईएएस लाइजन आॅफिसर के रूप में तैनात कर दिए। क्या यह भी सही है?
परंपरा रही है कि चेयरमैन और सदस्यों की पत्नी को स्टेट गेस्ट का दर्जा देते हं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, इसलिए उनकी पत्नी का एलओ निर्धारित है।
बेटी के लिए भी आईएएस अधिकारी लाइजन आॅफिसर बनाया गया।
बेटी को नहीं दिया है।
हमारे पास प्रोग्राम की सूची है। उसमें टिहरी की डीएम सोनिया चेयरमैन की बेटी ही लाइजन आॅफिसर बनाई गई हैं?
नहीं। बेटी की नहीं दिया है। मेम्बर्स और अधिकारियों के साथ अधिकारी इसलिए दे दिए जाते हैं कि वे उन्हें प्रदेश की जानकारी दे सकें। यहां की समस्या के बारे में सही जानकारी दे सकें वे बताते हैं कि सिर्फ पावर प्लांट प्रजेंटेशन से काम नहीं चलेगा।

 

 

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