ओलम्पिक खेलों की तर्ज पर ही भारत में भी राष्ट्रीय खेलों का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। इस वर्ष इन खेलों की मेजबानी का मौका उत्तराखण्ड को मिला है। 6 साल की कड़ी मशक्कत के बाद मिले इस मौके को उत्तराखण्ड की प्रतिभाओं के लिए स्वर्णिम अवसर माना जा रहा है। इतिहास बताता है कि जब-जब किसी राज्य को राष्ट्रीय खेलों का मेजबान बनाया गया तब-तब वह अपना मुकाम हासिल कर पाया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी सूबे की खेल प्रतिभाओं को राष्ट्रीय क्षितिज पर देखने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की खेल मंत्री रेखा आर्य पर आरोप लग रहे हैं कि वे खेलों में ‘खेल’ कर रही हैं और मैच फिक्सिंग के जरिए उत्तराखण्ड की छवि पर बट्टा लगा रही हैं
अट्ठाइस फरवरी को 38 वें नेशनल गेम्स का शुभारम्भ करते हुए प्रधानमंत्री रेंद्र मोदी ने उत्तराखण्ड की महत्ता को समझाया। पहली बार नेशनल गेम्स की मेजबानी कर रहे उत्तराखण्ड के लिए 28 जनवरी से लेकर 13 फरवरी तक का समय बहुत बड़ा अवसर है जब देश की प्रतिभाओं के साथ ही स्थानीय खिलाड़ियों का रुतबा सामने आएगा। ओलंपिक खेलों की तर्ज पर ही भारत में भी राष्ट्रीय खेलों का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। इस वर्ष इन राष्ट्रीय खेलों का आगाज़ 28 जनवरी 2025 से उत्तराखण्ड में किया गया। इस दिन देहरादून के राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका आगाज किया। जबकि समापन देश के गृहमंत्री अमित शाह 14 फरवरी को करेंगे।
राष्ट्रीय खेलों का आयोजन 10 शहरों में किया जा रहा है। इनमें सीमांत पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक शामिल है। इन खेलों की 45 स्पर्धाओं में 3 हजार 674 पदक दांव पर रहेंगे। इनमें 1120 स्वर्ण, 1120 रजत और 1434 कांस्य पदक शामिल हैं। सबसे अधिक 198 पदक एथलेटिक्स की विभिन्न स्पर्द्धाओं में होंगे। वैसे राष्ट्रीय खेलों की ट्रायथलान और बीच हैंडबाल स्पर्धा सहित कई खेलों के मुकाबले शुरू हो चुके हैं।
उत्तराखण्ड इन खेलों में लगभग 750 प्रतिभागियों का दल उतार रहा है। मेजबान राज्य होने के नाते उत्तराखण्ड को सभी खेलों में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। ऐसे में उत्तराखण्ड इन खेलों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहा है।
राष्ट्रीय खेलों में पदक तालिका में उत्तराखण्ड के परफॉर्मेंस को लेकर सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य गठन के बाद साल 2002 में उत्तराखण्ड राष्ट्रीय खेलों की पदक सूची में 13वें स्थान पर था। पिछले साल गोवा नेशनल गेम्स में उत्तराखण्ड 25वें स्थान पर पहुंच चुका है।
देखा जाए तो जिस भी राज्य में राष्ट्रीय खेल हुए हैं, उसके लिए मेजबान टीम के रूप में हर खेल में भाग लेने का मौका होता है। जिसके चलते भी मेजबान प्रदेशों ने अपनी मेडल टेबल में सुधार किया है। हाल के वर्षों की बात करें तो राष्ट्रीय खेलों के मेजबान राज्य लगातार ओवर ऑल पदक तालिका में टॉप 5 में शामिल रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 1987 में इस आयोजन की मेजबानी करते समय केरल चैम्पियन बना था। इसी तरह वर्ष 1997 के राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी कर्नाटक ने की थी और सबसे ज्यादा पदक जीते थे। मणिपुर वर्ष 1997 के राष्ट्रीय खेलों में 9वें स्थान पर रहा। लेकिन दो साल बाद जब मणिपुर ने इस आयोजन की मेजबानी की तो यह राज्य ओवर ऑल चैम्पियन बन गया। इसके अलावा वर्ष 2001 में मेजबान पंजाब चैम्पियन बना। आंध्र प्रदेश ने 2001 में केवल 11 स्वर्ण पदक जीते थे जबकि साल 2002 में इसकी मेजबानी करते समय यह प्रदेश चैम्पियन बन गया। इस तरह से आंध्र प्रदेश ने कुल 94 स्वर्ण पदक जीते थे। असम की बात करें तो वह केवल एक स्वर्ण पदक के साथ 2001 में 21वें स्थान पर था, लेकिन वर्ष 2007 में उसने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की तो 38 स्वर्ण पदक जीतकर दूसरा उप विजेता बन गया।
इसी तरह झारखंड भी वर्ष 2007 के राष्ट्रीय खेलों में 15वें स्थान पर था, लेकिन 2011 में जब उसने मेजबानी की तो वे 5वें स्थान पर पहुंच गया था। वर्ष 2015 में मेजबान केरल ने पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल कर सबको चौंकाया था। इन रुझानों और आंकड़ों का एक बड़ा कारण ये भी है कि मेजबान राज्य को प्रतिभाग करने का अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा मौका मिलता है। यानी मेजबान राज्य की टीम के लिए नेशनल गेम्स द्वारा सभी विधाओं में प्रतिभाग करने के लिए दरवाजे खुले रहते हैं। ऐसे में एक बेहतरीन मौका इस बार उत्तराखण्ड के पास है। जिसे वह कितना अपने पक्ष में कर पाते हैं यह तो आने वाली 14 फरवरी को ही पता चलेगा।
पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड में 38वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन का लाभ यहां के युवा खिलाड़ियों को कितना मिलेगा? इस सवाल के जवाब में राष्ट्रीय खिलाड़ी प्रियंका चौधरी कहती हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने युवाओं को खास संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि युवा खेल से जुड़े रहें। पिछले कुछ समय में आपने देखा होगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री धामी ने जिस तरह से आउट ऑफ टर्न नियुक्तियां की हैं और साथ में चार प्रतिशत आरक्षण खेल कोटा में हो गया है, इससे काफी लोगों को इसका लाभ मिला है। विगत में कई खिलाड़ियों को विभागों में नियुक्तियां मिली हैं। उनका सिर्फ खिलाड़ियों को यही संदेश है कि विशेष रूप से खेलों पर ध्यान दें और मेडल लाने की कोशिश करें। जिस के सुखद परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
प्रदेश में 38वें राष्ट्रीय खेलों के लिए 250 करोड़ रुपए का प्रस्तावित बजट किया गया था। जिसे बाद में बढ़ाकर करीब 350 करोड़ रुपए कर दिया गया है। ताकि, राष्ट्रीय खेलों की भव्यता में कोई कमी नहीं रह जाए। जिसका आकलन खेल विभाग की अवस्थापना विकास को लेकर की गई तैयारी को देखकर लगाया जा सकता है। हालांकि खेल और खिलाड़ियों के परफॉर्मेंस में कितना सुधार होगा ये भी एक बड़ा सवाल है?
सुरेश भाई कहते हैं कि राष्ट्रीय खेलों में शुभंकर के चयन में भी उत्तराखण्ड की हरित पहल के दर्शन हो रहे हैं। हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले राज्य पक्षी मोनाल को शुभम्कर बनाकर उत्तराखण्ड ने यह अच्छी पहल की है। इसके अलावा खेलों में जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए पदक ई-वेस्ट से तैयार कराए गए हैं। पदक जीतने वाले विजेताओं के नाम से खेल वन की स्थापना उत्तराखण्ड कर रहा है। इसके लिए 2.77 हेक्टेयर जमीन को इन दिनों तैयार किया जा रहा है,जहां पर 1600 रुद्राक्ष के पौधे रोपे जाएंगे। खेलों से जुडे़ आमंत्रण पत्र वेस्ट मटेरियल से तैयार कराए गए,जबकि खेल स्थलों पर एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए ई-रिक्शा उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि प्रदूषण न होने पाए। आयोजन स्थल पर कई जगहों पर स्पोर्ट्स वेस्ट मटेरियल से प्रतीक तैयार किए गए हैं। इनमें भागता हुआ खिलाड़ी और मोनाल पक्षी प्रमुख हैं। यही नहीं बल्कि ई-वेस्ट से बनाए गए भारी भरकम टाइगर भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। हालांकि इस दौरान कई स्थानों से अनियमितताओं की खबरें भी आ रही हैं।
अल्मोड़ा की ही बात करें तो यहां के निवासी राजू रावत बताते हैं कि खिलाड़ियों को दी जाने वाली सुविधाएं असमान हैं। जहां कुछ खिलाड़ियों को अत्यधिक आरामदायक और आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जा रही थीं, वहीं अन्य खिलाड़ियों को न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। अल्मोड़ा के ऐतिहासिक दशहरे महोत्सव के लिए इस मैदान का उपयोग किया जाता था, जहां मैदान में लगी घास को बचाने के लिए पहले कड़ी मेहनत की जा रही थी। लेकिन राष्ट्रीय खेलों के नाम पर वही घास अब रौंदी जा चुकी है। यह घास जो पहले ऐतिहासिक महोत्सव के दौरान संरक्षित की जा रही थी, उसे खेलों की आड़ में नष्ट किया जा रहा है। यह असंवेदनशीलता और पर्यावरण के प्रति लापरवाही को दर्शाता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन खेलों में उत्तराखण्ड को एक्वाटिक्स में बड़ा झटका लगा है। मेजबान होने के बावजूद उत्तराखण्ड की टीमें डाइविंग और वाटर पोलो के खेल में भाग नहीं ले पाई। राज्य निर्माण के बाद से उत्तराखण्ड में इन दो खेलों के खिलाड़ी तैयार ही नहीं हो सके हैं। बताया जा रहा है कि इसके लिए न तो खेल विभाग सुविधाएं ही जुटा सका है और न ही कोचों का इंतजाम कर सका है। 38वें राष्ट्रीय खेल का मेजबान होने के कारण उत्तराखण्ड को सभी खेलों में वाइल्ड कार्ड एंट्री मिली है। इसके बावजूद भी कुछ खेलों में प्रदेश की टीमें तैयार नहीं हो पा रही हैं। गौरतलब है कि हल्द्वानी में एफटीआई में पुराने तरणताल में डाइविंग पूल था, जिसमें कभी डाइविंग का खेल ही शुरू नहीं हो सका। खेल विभाग हमेशा सिर्फ स्वीमिंग कोच तक ही सीमित रहा। जबकि देहरादून के आइस स्केटिंक रिंग के अंदर बने स्वीमिंग पूल में भी डाइविंग की सुविधा थी, लेकिन यह कभी खुल ही नहीं पाया। 2015 में 38वें राष्ट्रीय खेल आवंटित होने के बावजूद विभाग ने खेलों के कोच नियुक्त करने की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। वहीं फेडरेशन भी सिर्फ स्वीमिंग प्रतियोगिता तक सीमित रही। उत्तराखण्ड स्वीमिंग एसोसिएशन की महासचिव सीमा महरोत्रा ने भी माना कि प्रदेश में डाइविंग और वाटर पोलो के खिलाड़ी नहीं हैं, इस कारण टीम तैयार नहीं हो सकी है।
फिक्सिंग प्रकरण-गरिमा ने रेखा को खड़ा किया कठघरे में उत्तराखण्ड में चल रहे 38वें नेशनल गेम्स में फिक्सिंग का बड़ा मामला सामने आया है। जिसपर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने निशाना साधा है। उत्तराखण्ड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने इस मामले में सरकार पर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खेलों में भ्रष्टाचार और फिक्सिंग खिलाड़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। गौरतलब है कि ताइक्वांडो में मेडल बेचे जाने का बड़ा खुलासा हुआ है। जिसमें गोल्ड मेडल 3 लाख, सिल्वर मेडल 2 लाख और ब्रॉन्ज मेडल 1 लाख में बेचा जा रहा था। इस मामले में इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने सख्त कार्रवाई करते हुए ताइक्वांडो के डायरेक्टर ऑफ कंपटीशन प्रवीण कुमार को पद से हटा दिया है तथा उनकी जगह दिनेश कुमार को नियुक्त किया।
इस पर कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने सवाल उठाया कि क्या उत्तराखण्ड की खेल मंत्री रेखा आर्य अभी भी डिनायल मोड में रहेंगी? उन्होंने आरोप लगाया कि खेल मंत्री ने पहले भी खिलाड़ियों की अव्यवस्थाओं को नकारा था, लेकिन अब इतने बड़े घोटाले पर भी क्या वह यही कहेंगी कि राष्ट्रीय खेलों की व्यवस्था चाक-चौबंद है और कोई भ्रष्टाचार नहीं हो रहा? उधर भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा ने इस घोटाले पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि राष्ट्रीय खेलों में किसी भी तरह की धांधली बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि हम खिलाड़ियों के लिए निष्पक्षता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह बेहद चौंकाने वाला और दुखद है कि राष्ट्रीय खेलों के मेडल्स की सौदेबाजी पहले ही हो चुकी थी। जो भी इसमें दोषी होगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
38वें राष्ट्रीय खेल के आयोजन हेतु बनाए गए सभी नए इंफ्रास्ट्रक्चर में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्षा जल संचयन (रेनवाटर हार्वेस्टिंग) की विशेष व्यवस्था की है। यह कदम जल संरक्षण को बढ़ावा देने और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। राष्ट्रीय खेल के आयोजन स्थल पर बनाए गए स्टेडियम, प्रशिक्षण केंद्र और अन्य सुविधाओं में आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर वर्षा जल संचयन की प्रणाली स्थापित की गई है। इससे न केवल भूजल स्तर में सुधार होगा, बल्कि पानी की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा।
सुरेश भाई, पर्यावरणविद्
चौधरी कहती हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जो योजना बनाई है उसके मुताबिक राज्य के खिलाड़ियों को ओलम्पिक या राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतने पर न केवल पुरस्कार राशि मिलेगी, बल्कि उन्हें सीधे आउट ऑफ टर्न राजपत्रित अधिकारी की नौकरी भी दी जाएगी। खेल नीति 2021 के तहत ऐसे खिलाड़ियों को उत्तराखण्ड में राजपत्रित और अराजपत्रित पदों पर नियुक्ति का विशेष लाभ मिलेगा। ग्रेड-एक के तहत पदक विजेताओं को पुलिस उप अधीक्षक, सहायक वन संरक्षक या संभागीय परिवहन अधिकारी के पदों पर नियुक्त किया जाएगा। इस समय ओलम्पिक में राज्य के लक्ष्य सेन बैडमिंटन और परमजीत सिंह, अंकिता ध्यानी व सूरज पंवार एथलेटिक्स में भाग ले रहे हैं। उम्मीद है राज्य के लिए ये सभी पदक जीतकर लाएंगे।
प्रियंका चौधरी, राष्ट्रीय बॉक्सर