अक्टूबर में हुए मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू को मिली जीत के बाद से ही मालदीव और भारत के रिश्तों में लगतार दरार आती दिख रही है। भारत के सैनिकों को मालदीव से हटाए जाने का फैसला सुनाने के बाद अब मालदीव ने साल 2019 में भारत के साथ हुए हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते को भी खत्म करने की बात कही है।
यह समझौता भारतीय नौसेना और मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के बीच जल विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग के लिए हुआ था। जिसके तहत भारतीय नौसेना को मालदीव के साथ नौसंचालन की सुरक्षा, आर्थिक विकास, सुरक्षा और रक्षा सहयोग, पर्यावरण संरक्षण, तटीय क्षेत्र प्रबंधन और वैज्ञानिक अनुसंधान के सुधार में मदद के लिए मालदीव में व्यापक हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने की अनुमति थी। दरअसल जून, 2019 में दोनों देशों बीच यह समझौता पांच वर्षों के लिए हुआ था। जो आने वाले वर्ष 2024 के जून माह में ये खत्म हो रहा है और इसे फिर से रिन्यू किया जाना है लेकिन अब मोइज्जू ने इस द्विपक्षीय समझौता को आगे बढ़ाने के बजाय खत्म करने का फैसला ले लिया है।
क्या कह रही मुइज्जू सरकार
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि भविष्य में हाइड्रोग्राफी कार्य सत् प्रतिशत मालदीव के अधिकार में किया जाएगा और केवल मालदीव के लोगों को ही इसकी जानकारी दी जाएगी। उन्होंने मुताबिक पिछली सरकार ने जिन ‘गुप्त समझौतों’ पर हस्ताक्षर किए हैं, उनकी समीक्षा का जाएगी। क्योंकि पिछली सरकार ने मालदीव की स्वतंत्रता और संप्रभुता को खतरे में डाल दिया था।
इसके अलावा राष्ट्रपति कार्यालय के ही एक अन्य अफसर मोहम्मद फिरोजुल अब्दुल खलील ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि हमारी सरकार ने भारत के साथ 7 जून 2024 को समाप्त होने जा रहे हाइड्रोग्राफी समझौते को रिन्यूअल न करने का फैसला किया है। इस समझौते की शर्तों के अनुसार अगर कोई पक्ष इस समझौते को खत्म करना चाहता है, तो उसे छह महीने पहले ही दूसरे पक्ष को सूचित करना होगा। अगर कोई भी पक्ष इससे बाहर आने की जानकारी नहीं देता है तो फिर दोनों देशों के बीच यह समझौता पहले की तरह अपने आप ही आने वाले 5 सालों के लिए और बढ़ जाता है। फिरोजुल ने कहा कि मालदीव समझौते पर आगे नहीं बढ़ना चाहता है। शर्तों के अनुसार मालदीव सरकार ने अपने फैसले से भारतीय उच्चायोग को पहले ही अवगत करा दिया है। इसलिए अब ये समझौता अगले साल जून में खत्म हो जाएगा।
यह पहली बार नहीं है की मालदीव ने भारत से रिश्ते तोड़ने के संकेत दिए हैं। इससे पहले भी मुइज्जू ने चुनाव जीतने के लिए भारतीय सेना को देश से निकालने का मुद्दा उठाया था और “इंडिया आउट” का नारा दिया था।
क्यों दरक रहे मालदीव – भारत के रिश्ते
मालदीव की सुरक्षा व्यवस्था को बनाये रखने के लिए वर्षों से भारत के सैनिक वहां रहते आये हैं। वहीं दूसरी ओर मालदीव को अब भारत द्वारा दी जाने वाली यह सुरक्षा सहन नहीं हो रही है। हालांकि कई पार्टियों द्वारा भारतीय सैनिकों को द्वीव से हटाए जाने की मांग पहले भी कई बार उठाई गई है। लेकिन हाल ही में हुए मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से इस बात में तेजी आ गई है।
मालदीव में पिछला राष्ट्रपति चुनाव साल 2018 में हुआ था जिसमें इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। जिसके बाद अब पांच साल बाद अक्टूबर 2023 में हुए चुनाव में सोलिह को हराकर प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव (पीपीएम) के मोहम्मद मुइजू ने राष्ट्रपति के चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की है, जो पूर्ण रूप से चीन का समर्थन करते हैं। जबकि इससे पहले मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को भारत का समर्थक माना जाता था जिससे भारत और मालदीव के बीच अच्छे सम्बन्ध बने हुए थे लेकिन अब उनकी हार से भारत और मालदीव के रिश्ते खराब हो सकते हैं। क्योंकि मोहम्मद मुइजू पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के समर्थक हैं और उनकी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। अब्दुल्ला यामीन को चीन का कट्टर समर्थक माना जाता है। मुइजु भी चीन समर्थक हैं और चुनाव से पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों के साथ एक बैठक में उन्होंने कहा भी था, कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो चीन और मालदीव के रिश्तों की नई शुरुआत होगी। चीन के समर्थक होने की वजह से ही राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइजु ने अब्दुल्ला यामीन को तुरंत जेल से रिहा कराकर घर में नजरबंद कर दिया है।
चीन का समर्थन करने वाले अब्दुल्ला यामीन ने साल 2013 में मालदीव के राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल की थी जिसके बाद उन्ही के शासन काल में मालदीव में चीन का दखल काफी बढ़ गया । जिसकी वजह से मालदीव चीन के भारी कर्ज के जाल में फंस गया था। अब्दुल्ला यामीन पिछले कई वर्षों से जेल में थे। उनपर आरोप था कि उन्होंने अपने कार्यकाल में पैसे लेकर वी आरा की जमीन पर रिजॉर्ट डेवलप करने की अनुमति दी थी। साथ ही उनपर अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर लेकर आरा की जमीन पूर्व संसद प्रतिनिधि यूसुफ नई को दिलाने का भी आरोप था। लेकिन अब मोहम्मद मुइजु का जीत हासिल करना यामीन के लिए एक अच्छी खबर के रूप में सामने आया है क्योंकि दोनों ही चीन का समर्थन करते हैं। हालांकि मालदीव में हुआ ये चुनाव अब भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है।