राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े और आपातकाल में जेल गए एक पत्रकार के नाम पर पौड़ी जनपद के एक इंटर कॉलेज के नामकरण का मुद्दा बड़े सवाल खड़े कर रहा है। भगवान शिव के नाम पर दशकों पहले जनता द्वारा निर्मित मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज का नाम बदलने की कवायद का स्थानीय जनता पुरजोर विरोध कर रही है। उसका कहना है कि हमारे आराध्य मुंडेश्वर महादेव के नाम पर स्थापित विद्यालय का नाम बदलना सर्वथा अनुचित है। शिक्षा अधिकारी इस बाबत कोई जानकारी न होने की बात कह रहे हैं
भारत में यह परंपरा बन चुकी है कि सत्ता में आसीन राजनीतिक दल अपने नेताओं के नाम पर सरकारी संस्थानों, सड़कों इत्यादि के नाम रख खुद का प्रचार किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि अपने नायकों का नाम करने के लिए नए संस्थान, स्कूल, भवन, इमारत, सड़क या पार्क तो नहीं बनाए जाते हैं लेकिन पूर्व में बने हुए अवस्थापनों पर अपने नायकों का नाम चस्पा कर दिया जाता है। उत्तराखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। इन दिनों पौड़ी जिले के कल्जीखाल विकास खंड के मुंडनेश्वर स्थित राजकीय इंटर कॉलेज मुंडनेश्वर का नाम संघ से जुड़े स्वर्गीय पत्रकार के नाम करने का ऐसा ही प्रयास किया जा रहा है। जो क्षेत्र की जनता को नहीं सुहा रहा है।
दरअसल, निदेशक माध्यमिक शिक्षा द्वारा मुख्य शिक्षा अधिकारी पौड़ी को दिनंाक 23 मार्च 2024 को एक पत्र भेजा गया। इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि दिनांक 20 नवंबर 2023 को माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड सरकार को सम्बोधित पत्र में कल्जीखाल विकास खंड स्थित राजकीय इंटर कॉलेज मुंडनेश्वर कल्जीखाल पौड़ी नाम स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल के नाम पर रखने का अनुरोध किया गया है।
इस पत्र में निदेशक माध्यमिक शिक्षा द्वारा 20 जुलाई 2013 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा जारी शासनादेश संख्या 496.गगपअ. 2ध्13ध्11;5द्ध2009 दिनांक 20 जुलाई 2013 का उल्लेख किया गया है जिसमें उत्तराखण्ड के प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रांें तथा सामाजिक, राजनीतिक, शिक्षा आदि मंे ख्याति प्राप्त व्यक्तियांे के नाम पर विद्यालयों के नाम परिवर्तित किए जाएंगे। इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति का संक्षिप्त जीवन वृतांत और उनके द्वारा किए गए विशिष्ट कार्यों का विवरण एवं वर्तमान शिक्षक-अभिभावक संघ का अनापत्ति प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था दी गई है।
इस शासनादेश में साफ तौर पर उल्लेख है कि विभिन्न क्षेत्रांे में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों के नाम पर सहमति होने के बाद ही नाम परिवर्तित किया जाएगा। स्व. नरेंद्र उनियाल का जीवन वृतांत में आपातकाल में जेल जाने, गढ़वाल विश्वविद्यालय स्थापना के आंदोलन में भाग लेने और धधकता पहाड़ तथा साप्ताहिक ‘जयंत’ समाचार पत्र का प्रकाशन और सम्पादन करने का उल्लेख किया गया है।
हैरत की बात यह है कि जिस मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज का नाम स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल के नाम पर रखने का प्रयास किया जा रहा है उनके समाजिक कार्यो का वृतांत में मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज के लिए किए गए कामों का कहीं उल्लेख नहीं है, न ही इस इंटर कॉलेज में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए समय-समय पर हुए आंदोलनों में उनकी भूमिका का उल्लेख किया गया है। जबकि इस कॉलेज के उच्चीकरण और इसकी समस्याओं के लिए क्षेत्र की जनता ने अनेक बार शासन -प्रशासन से गुहार लगाई है, आंदोलन किए हैं लेकिन स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता।
स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल के छोटे भाई और ‘जयंत’ समाचार पत्र के संपादक नागेंद्र उनियाल भी संघ पृष्ठ भूमि के बताए जाते हैं। उनके द्वारा नरेंद्र उनियाल मेमोरियल चैरिटेबिल ट्रस्ट संचालित किया जाता है। इसी के चलते उनके द्वारा अपने भाई स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल के नाम पर मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज का नाम परिवर्तित करने की मांग मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र द्वारा की गई जिस पर आचार संहिता के दौरान शिक्षा विभाग द्वारा अभिभावक संघ से सहमति लेने का आदेश जारी किया गया है। विद्यालय प्रशासन के सूत्रांे की मानें तो शिक्षक-अभिभावक संघ को किसी भी सूरत में सहमति देने का दबाव बनाया जा रहा है।
स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल का महज 28 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। छात्र जीवन और पत्रकारिता के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े होने के चलते उनके कार्यों पर सवाल तो नहीं उठाया जा सकता लेकिन अभिभावक संघ का कहना है कि जिन गणमान्य व्यक्तियों द्वारा स्वयं के संसाधनांे और निजी भूमि को दान देकर स्कूल का निर्माण हुआ, ऐसे किसी व्यक्ति के नाम पर ही इंटर कॉलेज का नाम होना चाहिए। इनमें क्षेत्र के सबसे विख्यात बाल चिकित्सक डॉक्टर स्वर्गीय अबदयाल सिंह असवाल का नाम है। साथ ही इस स्कूल में कई ऐसे व्यक्तियों ने शिक्षा ली है जो आज अपने-अपने कर्म क्षेत्रों में बड़ा नाम कमा चुके हैं। इनमें स्कूल के लिए धन और जमीन देने वाले मिरचौड़ा गांव के टीकाराम गौड़ के परिजन पराशर गौड़ का नाम शामिल है। पराशर गौड़ गढ़वाली भाषा की पहली फीचर फिल्म ‘जग्वाल’ के निर्माता-निर्देशक हैं और वर्तमान में वे कनाडा मंे रहते हैं आज भी पराशर गौड़ अपने गांव आते हैं तो इस विद्यालय के लिए अपना योगदान देने से पीछे नहीं रहते। साथ ही मिरचौड़ा गांव की 106 वर्ष की आयु की रामावती देवी जो कि डॉ अबदयाल सिंह के परिवार की है, का नाम इस क्षेत्र में सम्मान से लिया जाता है। रामावती देवी असवाल सम्भवतः प्रदेश में सबसे अधिक आयु की एकमात्र जीवित महिला है। स्थानीय निवासी मानते हैं कि पहले तो स्कूल का नाम बदला ही नहीं जाना चाहिए। यह भगवान शिव के धाम मुंडनेश्वर के नाम पर स्थानीय लोगों द्वारा स्कूल की स्थापना के समय से ही चला आ रहा है। लेकिन अगर क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्तियों के नाम को चिरस्थाई रखने का प्रसास है तो इसके लिए क्षेत्र के अनेक विश्ष्टि व्यक्तियों की एक लंबी सूची है। स्थानीय नागरिकों का मत है कि इंटर कॉलेज का प्राचीन भवन जो कि 1945 में बना है, वह आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खड़ा है। इस भवन का जीर्णोद्धार किया जा सकता है या विद्यालय में नए कक्ष आदि का निर्माण किसी विशिष्ट व्यक्ति के नाम पर किया जा सकता है। लेकिन स्कूल का नाम नहीं बदला जाना चाहिए।
शिक्षा विभाग के नाम परिवर्तन किए जाने की प्रक्रिया अपनाए जाने के आदेश के बाद स्थानीय जनता में भारी रोष है। इसके लिए शिक्षक- अभिभावक संघ की एक आम बैठक की गई और प्रस्ताव के खिलाफ सभी ने मत देकर साफ कर दिया कि मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज का किसी भी सूरत में नाम नहीं बदला जाएगा, अगर दबाव बनाकर नाम परिवर्तित किया जाएगा तो फिर से बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
जनआंदोलन और दान से बना हुआ मुंडनेश्वर विद्यालय सनातन धर्म के आदिदेव मुंडनेश्वर महादेव के नाम से स्थापित राजकीय इंटर कॉलेज मुंडनेश्वर का इतिहास अपने आप में बेहद
दिलचस्प है। स्वतंत्रता से पूर्व वर्ष 1945 में पौड़ी जिले के बारहस्यूं परगने की तीन पट्टी क्षेत्र असवालस्यूं, पटवालस्यूं और मनयारस्यूं पट्टी में विद्यालय जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। ब्रिटिशकाल में जहां स्कूलांे और अस्पताल जनता के लिए बनाए गए थे, वहीं इन पट्टियों के निवासी इस सुविधा से महरूम ही रहे। इसको देखते हुए इन तीनों पट्टियों के समाजसेवियों और गणमान्य व्यक्यिों द्वारा एक निजी विद्यालय की स्थापना का निर्णय लिया गया। इसके लिए ग्राम सूला के कुंवर सिंह, ग्राम गोकुल के हरी सिंह, ग्राम सकनैली के स्वर्ण दत्त उनियाल, ग्राम बग्वानू के मेजर इंद्र सिंह और ग्राम पसबोला के सुखदेव उनियाल और ग्राम मिरचौड़ा के थोकदार और विख्यात चिकित्सक डॉक्टर अबदयाल सिंह असवाल तथा मिरचौड़ा गंाव के ही टीकाराम गौड़ के प्रयासों के चलते इस विद्यालय का निर्माण किया गया। जहां इन सभी गणमान्य व्यक्तियों और स्थानीय लोगों द्वारा विद्यालय के निर्माण में दिल खोलकर धनराशि दान मंे दी गई तो वहीं स्थानीय निवासियों द्वारा अपनी जमीन स्कूल के लिए दान दी। आखिरकार विद्यालय की इमारत खड़ी हुई और इसका नाम मंुुडनेश्वर महादेव के नाम पर मुुंडनेश्वर विद्यालय रखा गया तथा इसके संचालन के लिए एक प्रबंध समिति का गठन किया गया जिसके पहले प्रबंधक स्वर्ण दत्त उनियाल बने।
कई वर्षों तक विद्यालय का संचालन प्रबंध समिति द्वारा होता रहा। 1965 को समिति के सभी सदस्यों और क्षेत्र की जनता के आपसी सहमति के बाद इस स्कूल को जिला बेसिक परिषद को सौंप दिया गया। उम्मीद थी कि सरकार के हाथों में आने के बाद विद्यालय का उच्चीकरण होगा और विद्यार्थियों को हाईस्कूल इंटर तक की शिक्षा के लिए मीलांे दूर पौड़ी या सतपुली नहीं जाना पड़ेगा। इसलिए आम सहमति से अपने बनाए स्कूल को सरकार के हाथो सौंप दिया गया।
सरकार के हाथों में सौंपे जाने के बाद इस स्कूल की स्थिति में कोई खास सुधार तो नहीं हुआ, बल्कि सरकारी कुप्रबंधन के बाद स्कूल की हालत बिगड़ते ही चले गए। इसके चलते क्षेत्र की जनता द्वारा विद्यादत्त शर्मा को प्रबंधक बनाकर फिर से स्कूल का संचालन अपने हाथों में ले लिया। समिति द्वारा सरकार जनप्रतिनिधियों से विद्यालय के उच्चीकरण की मांग की जाती रही लेकिन उनकी मांगों पर कोई ध्यान तक नहीं दिया गया। जबकि अनेक बार मौखिक और लिखित आश्वासन मिलते रहे लेकिन न तो उच्चीकरण किया गया और न ही इसका प्रांतीयकरण किया गया।
नवंबर 1982 में क्षेत्र की जनता ने संगठित होकर गढ़वाल जिले के मुख्यालय पौड़ी में आंदोलन आरंभ कर दिया। दस दिनों तक धरना और क्रमिक अनशन के बाद भी मांगांे पर कोई विचार न होने पर जनता में भारी रोष पैदा हो गया और विद्यालय प्रबंधक विद्यादत्त शर्मा, कपोत्री देवी तथा कमला कपटीयाल आमरण अनशन पर बैठ गए। इस भूख हड़ताल को जनता के साथ-साथ सभी क्षेत्रांे के लोगों का समर्थन मिलने लगा और आंदोलन तेजी से फैलने लगा। तत्कालीन समाचार पत्रांे में भी इस भूख हड़ताल की खबरंे छपने लगी तब 21 नवंबर 1982 तत्कालीन पर्वतीय विकास मंत्री बलदेव सिंह आर्य और आंदोलनकारियों के मध्य समझौता हुआ और स्कूल का उच्चीकरण और प्रांतीयकरण की मांगंे मान ली गई। 1983 के शैक्षणिक सत्र में विद्यालय को राजकीय उच्च्तर माध्यमिक विद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। वर्ष 2004 में उच्चीकरण कर के इंटर कॉलेज बना दिया गया।
इंटर कॉलेज बनाए जाने के बाद भी शिक्षा विभाग ने बड़ा खेला कर इस इंटर कॉलेज को सुगम क्षेत्र में रखते हुए शिक्षकांे के नए पदांे के नियुक्तियां पर रोक लगा दी। चूंकि सरकार द्वारा कोटीकरण में नियुक्तियां दुर्गम क्षेत्र के स्कूलांे में ही किए जाने का नियम लागू कर दिया गया था इस कारण से इंटर कॉलेज होने के बावजूद शिक्षकांे की कमी से पठन-पाठन का कार्य सुचारू नहीं हो पाया। इसको लेकर क्षेत्र की जनता ने एक बार फिर से आंदोलन आरंभ किया जिसके दबाव में आकर मुंडनेश्वर इंटर कॉलेज को दुर्गम क्षेत्र में डाला गया। जिसके चलते शिक्षकों की नियुक्तियां हो पाई।
एक तरह से मुंडनेशवर इंटर कॉलेज ऐसे विद्यालय के तौर पर सामने आता है जिसमें क्षेत्र की जनता द्वारा अपने बच्चों की शिक्षा के लिए सरकार की बजाय स्वयं विद्यालय बनाया गया और सरकार को इस उम्मीद पर सौंप दिया कि स्कूल का बेहतर संचालन होगा लेकिन इसके लिए दो-दो बार भूख हड़ताल और आंदोलन भी जनता को करने पड़े। आज जब इस विद्यालय का नाम परिवर्तन कर प्रदेश सरकार एक ऐसे व्यक्ति के नाम करने का प्रयास कर रही है जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ा रहा हो क्षेत्रीय जनता बेहद आक्रोशित है कि इस स्कूल के आंदोलनों और इसके सुधार के लिए जिस व्यक्ति की कहीं कोई भूमिका नहीं हो उसके नाम पर विद्यालय का नाम रखना गलत है।
बात अपनी-अपनी
43 साल पहले जब मैं प्रबंधक था तब भी यह मामला आया था। स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल एक पत्रकार थे और उनके निधन पर पत्रकारों ने शोकसभा की थी। उनके नाम पर इस विद्यालय का नाम रखने की मांग भी थी लेकिन तब भी यह मांग मानी नहीं गई। यह विद्यालय इस क्षेत्र के आराध्य देव मुंडनेश्वर महादेव के नाम पर जनता के संसाधनांे और दान से बनाया गया है। इसका नाम नहीं बदला जा सकता। हम मानते हैं कि स्वर्गीय नरेंद्र उनियाल एक पत्रकार थे और वे इस स्कूल में पढ़े थे लेकिन उनका कोई भी योगदान स्कूल के लिए कभी नहीं रहा और ना ही उनके भाई नागेंद्र्र उनियाल का कोई योगदान रहा है। कई ऐसे लोग हैं जिनका पूरा योगदान इस विद्यालय के लिए रहा है लेकिन उनके नाम पर भी विद्यालय का नाम नहीं बदला जा सकता।
विद्यादत्त शर्मा, पूर्व प्रबंधक, मुंडनेश्वर विद्यालय
यह स्कूल वर्षों पहले जनता द्वारा बनाया गया है। इस स्कूल की मालिक जनता ही है। हमें नाम परिवर्तित करने के प्रस्ताव पर सहमति देने की बात कही गई। हमने जनता से राय ली तो एक स्वर में सभी ने किसी भी सूरत में नाम बदले जाने का विरोध किया। किसी को अपने लोगों की याद रखनी है तो वह स्कूल में भवन बनाए या कोई निर्माण करवाए उसका नाम हम उस व्यक्ति के नाम पर कर सकते हैं। लेकिन केवल इसलिए कि किसी के भाई ने इस स्कूल में पढ़ाई की और उसके नाम पर स्कूल का नाम रख दिया जाएगा यह तो किसी भी हालत में मान्य नहीं होगा।
कुलदीप मंझेड़ा, ग्राम प्रधान, मुंडनेश्वर व अध्यक्ष शिक्षक अभिभावक संघ
हम इस विषय पर क्या कह सकते हैं। मैं इसी स्कूल में पढ़ा हूं, मेरे छोटे-छोटे बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ रहे हैं। हमारे बुजुर्ग और यहां के लोगों ने कहा है कि स्कूल का नाम नहीं बदला जाना चाहिए तो सभी की राय यही है। जेैसे हमारे लोग कहेंगे हम वैसे ही करेंगे।
कोतवाल सिंह नेगी, अध्यक्ष, विद्यालय प्रबंधन समिति
हम किसी के योगदान को कम नहीं कर रहे हैं लेकिन इस विद्यालय का निर्माण अंग्रेजी शासन में इस क्षेत्र के लोगों द्वारा अपनी जमीन और अपना धन देकर किया गया है। इसके लिए आंदोलन, भूख हड़ताल तक हुई है। मेैं स्वयं इस स्कूल में पांचवी तक की पढ़ाई कर चुका हूूं और मेरे पिता स्वर्गीय अबदयाल सिंह असवाल इस स्कूल के फाउंडर थे। लेकिन हमने भी कभी यह प्रयास नहीं किया कि स्कूल का नाम बदला जाए। भगवान शंकर के मुंडनेश्वर महादेव के नाम पर इस इंटर कॉलेज का नाम चला आ रहा है और वही रहेगा। जिसे अपने परिजनों का नाम चिरस्थाई रखना है वह स्कूल में कक्ष बना सकता है। अपना योगदान दे सकता है।
रतन सिंह असवाल, समाजसेवी और संचालक, पलायन एक चिंतन
मैं छुट्टी पर हूं और मुझे यह पता नहीं है कि इस मामले में क्या अपडेट हुआ है। आप उप शिक्षा अधिकारी से पूछ लीजिए।
दिनेश चंद्र गौड़, जिला शिक्षा अधिकारी पौड़ी
किसी भी स्कूल का नाम परिवर्तित किया जा सकता है। शहीद, स्वतंत्रा सेनानी या कोई विशिष्ट व्यक्ति जो उस क्षेत्र से सम्बंधित रहे हों, का नाम परिवर्तित किया जाता है। लेकिन इसके लिए अभिभावक संघ की सहमति जरूरी है। अगर सहमति नहीं होती है तो नाम परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस मामले में भी अभिभावक संघ ने अपनी सहमती नहीं दी है। हम उस असहमति के प्रस्ताव को जिला शिक्षा अधिकारी को भेज रहे हैं अब जो भी निर्णय होगा वहीं से होगा।
संजय कुमार, खण्ड शिक्षा अधिकारी, कल्जीखाल
क्या देश में किसी शहीद, स्वतंत्रा सेनानी के नाम के लिए किसी का प्रस्ताव होता है। अभी कोई असहमती नहीं हुई है जो बोल रहे हैं उनसे यह पूछे कि बैठक में कितने लोग होते हैं। इन लोगांे ने तो रायता फैलाने का काम किया है। सारे लोगों को इक्कठा करके विवाद पैदा कर रहे हैं। नरेंद्र उनियाल जी लोकतंत्र की लड़ाई के सिपाही रहे हैं। लोकतंत्र बचाने लिए वे जेल गए। मुुंडनेश्वर स्कूल हमारे ताऊ जी ने बनावाया था। उनके नेतृत्व में मुंडनेश्वर से कल्जीखाल तक सड़क का निर्माण हुआ था। जो यह कह रहे हैं कि कोई योगदान नहीं है उनसे यह तो पूछो कि स्कूल किसके परिवार ने बनवाया था।
नागेंद्र उनियाल, अध्यक्ष, स्व. नरेंद्र उनियाल मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट