गुर्दा फेल होना या खराब होना संक्रामक रोग न होने के बावजूद विश्वभर में तेज़ी से फैल रहा है। इसके रोगियों की संख्या, पूरे विश्व में लगभग 850 करोड़ से ज़्यादा है। 10 में से एक व्यक्ति गुर्दे की बीमारी की चपेट में है। अनुमानित है कि सन् 2040 तक बीमारी के चलते होने वाले रोगों में ये 5वें स्थान पर पहुँच जाएगा।
विकसित देशों में इस रोग के उपचार के लिए डालिसिस और ट्रांसप्लांट पर ख़र्च होने वाला वार्षिक व्यय लगभग 2-3% उस देश के वार्षिक स्वास्थ बजट का हिस्सा होता है।सभी रोगियों को अविकसित और गरीब देशों में इसका इलाज मिल पाना कल्पना के परे है।
पर जैसे लिवर सिरोसिस, कैंसर या हृदय सम्बन्धी रोगों का पता अधिकांशतः पहले से पता नहीं चल पाता वहींं गुर्दे की बीमारी का पता करना आसान है। और बहुत ही सस्ती खून पिशाब की जांच से और कुछ रोगियों में अल्ट्रासाउंड से इसका निदान बहुत सरलता से किया जा सकता है।
गुर्दा रोग मुख्यत: तीन कारणों से होता है- पहला उच्च रक्तचाप (BP), दूसरा मधुमेह यानी रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होना और तीसरा दर्द निवारक दवा का निरन्तर उपयोग करते रहने से गुर्दे खराब हो जाते हैं।
गुर्दा रोग से बचने के उपाए
गुर्दा रोग की प्राथमिक रोकथाम, जो कि सबसे ज़रूरी और आसान है, के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति नमक औसत में खाए, तेल घी, चीनी, शराब के अत्यधिक सेवन से बचे। नियमित योग या किसी भी तरह का व्यायाम करें। रक्तचाप या ब्लड प्रेशर की निरन्तर जांच करवाएं। क्योंकि बढ़ा हुआ रक्तचाप गुर्दे को हर घड़ी क्षति पहुँचाता रहता है और गुर्दे की इकाई, जिसको नेफ्रॉन कहते हैं, को ध्वस्त करता रहता है।
शनै शनै गुर्दा सिकुड़ने लगता है और उसकी कार्य क्षमता कम हो जाती है।इसलिए अगर रक्तचाप बढ़ा हो तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। चिकित्सक प्राथमिक जांच से ये बताएगा कि रक्तचाप किसी गम्भीर कारण से बढ़ा हुआ है। और दवा आवश्यक है या फिर केवल जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है।
इसी तरह मधुमेह रोग में रक्त में शक्कर की मात्रा अत्यधिक होने से गुर्दे को क्षति पहुँचने लगती है और मूत्र में एल्ब्यूमिन या प्रोटीन का रिसाव होने लगता है जिसके कारण शरीर में सूजन आने लगती है। इसलिए मुधमेह विशेषज्ञ से सलाह अतिशीघ्र लें और जीवनशैली में सुधार करें।
जो लोग जोड़ों या शरीर के दर्द से परेशान रहते हैं और निरन्तर बिना चिकित्सकीय परामर्श के दर्द निवारक गोली का सेवन करते हैं, उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा किशोरावस्था में भी हो सकता है। इसलिए दर्द निवारक गोली या ग़ैर-चिकित्सकीय परामर्श के लंबे समय तक कोई दवा खाना उचित नहीं है।
बहुत छोटी बातों का ध्यान रखकर गुर्दे की बीमारी से भारत में बहुत से रोगियों को बचाया जा सकता है। कभी-कभी रक्तचाप की माप और वर्ष में केवल एक बार मूत्र और रक्त की जांच करवाने से भी गुर्दा फेल होने से बचाया जा सकता है।मूत्र में एल्ब्यूमिन, रक्त में शक्कर और क्रिएटिनिन की जांच मात्र 100 रूपये में कही भी हो सकती है।
ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि सभी सरकारी अस्पतालों में प्रति माह एक बार जांच शिविर का आयोजन करे जिसमें किसी भी व्यक्ति के रक्तचाप की माप हो। और प्रमुख रोगों के लिए रक्त और मूत्र की जांच 50-100 रूपये में हो। गुर्दे की बीमारी का महंगा इलाज कर पाना वर्तमान में बहुत से लोगों के लिए सम्भव नहीं है पर इस रोग की पहचान और इसकी रोक थाम करके बहुत लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
-डॉ मोहन सिंह (लेखक गुर्दा रोग विशेषज्ञ हैं और ये उनके अपने निजी विचार हैं।)