Country The Sunday Post Special

जयंती विशेष : हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

दुष्यंत ने जिस दौर में लिखना शुरू किया वह अज्ञेय और मुक्तिबोध का था। इन दोनों कवियों की कठिन कविताएं हर जगह छाई रहती थीं। मगर इसी दौर में दुष्यंत ने आम बोलचाल की भाषा में लिखना शुरू किया। उनकी आसानी लेखनी ने आवाम के दिलों में बहुत आसानी से जगह बना ली। दुष्यंत की गजलें और कविताएं अधिकतर लोगों के मुंह से सुनी जाती थीं। अपनी लेखनी पर दुष्यंत कहते थे, ‘मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ।’
दुष्यंत की एक खासियत रही है कि उन्होंने सरकारों के खिलाफ बहुत लिखा। यही वजह रही कि उनके और सत्ता के बीच कभी दोस्ती नहीं हो सकी। दुष्यंत की गजलें, कविताएं और शेर सत्ता के खिलाफ जरूर रहते थे, लेकिन ये शेर सीधा जनता से जुड़े रहते थे। इसका असर ये हुआ कि दुष्यंत का लिखा हुआ नुक्कड़ नाटकों में इस्तेमाल किया जाने लगा। उनकी लिखी पंक्तियां ‘हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए’ उस दौर से लगाकर आज तक इस्तेमाल की जाती हैं।
साहित्य के जगत में अपनी अलग  पहचान बनाने वाले इस गजलकार की आज (1 सितंबर) जयंती है।
देश के सबसे चहेते कवि दुष्यंत को जनता का बहुत प्यार मिला। उन्होंने अपने जीवन का अहम हिस्सा इलाहाबाद में बिताया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की। इसके कुछ दिन बाद आकाशवाणी, भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे। अपनी कविताओं से सभी के मन में बस जाने वाले दुष्यंत वास्तविक जीवन में बहुत सहज और मनमौजी व्यक्ति थे।
दुष्यंत का जन्‍म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। वो 1 सितंबर 1933 को जन्में थे। दुष्यंत बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने खुद को निखारा और एक बड़े कवि, शायर और गजलकार के रूप में पहचना बनाई। उस दौर के हर बड़े शायर और कवि ने दुष्यंत की प्रतिभा का लोहा माना था

Leave a Comment

Your email address will not be published.

You may also like

MERA DDDD DDD DD