वर्ष 2002 में गुजरात में हुए कौमी दंगों के दौरान 21 वर्षीय गर्भवती महिला बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दुर्दांत अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। अगस्त, 2022 में गुजरात सरकार ने तमाम नियम-कानून को धता बताते हुए इन सभी को रिहा कर दिया था। गत् सप्ताह उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार के इस फैसले की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए इन सभी आरोपियों को तत्काल आत्मसमर्पण करने का ऐतिहासिक फैसला सुना बिलकिस बानो के दर्द को कम करने का काम किया है
गत सप्ताह देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद बिलकिस बानो केस एक फिर सुर्खियों में है। न्यायालय ने इस मामले में गुजरात सरकार का वह फैसला पलट दिया जिसमें बिलकिस बानो का बलात्कार और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में समयपूर्व सभी आरोपियों को 15 अगस्त 2022 को जेल में अच्छे आचरण का हवाला देकर रिहा कर दिया गया था। वो भी तब जब मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इस फैसले को मुंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।
उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी, इसलिए रिहाई पर फैसला देने का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार का है तो सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार ने कैसे कर दिया? न्यायालय ने कड़े शब्दों में सभी आरोपियों को दो हफ्तों के भीतर दोबारा आत्मसमर्पण करने का आदेश देते हुए कहा कि यदि इस बारे में अगर कोई फैसला करना ही है तो वह महाराष्ट्र सरकार करे।
उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से एक ओर जहां बिलकिस बानों की बड़ी जीत और लोगों में न्याय के प्रति एक नई उम्मीद जगी है वहीं दूसरी तरफ सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या अब महाराष्ट्र सरकार दोषियों की सजा माफ कर देगी? आरोपियों के पास सजा से बचने के क्या विकल्प हैं?
कानूनविदों का कहना है कि फिलहाल दोषियों के पास दो ही विकल्प हैं। पहला, वे न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। वो भी उन्हें एक महीने के भीतर ही करना होगा और जरूरी नहीं कि न्यायालय उनकी पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करे। ये न्यायालय के विवेक पर है। दूसरा विकल्प वे महाराष्ट्र सरकार के पास रिहाई के लिए आवेदन करें। हालांकि इसके लिए उन्हें जेल वापस जाना होगा। ऐसे में उनके जल्द रिहाई के आसार नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि इन दोषियों को अब 2008 के महाराष्ट्र छूट नियमों के तहत छूट पाने के लिए आवेदन करने का पात्र बनने से पहले 13 साल और जेल की सजा काटनी पड़ेगी।
न्यायविदों के अनुसार मामला दो राज्यों के बीच का था इसलिए इसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भी अपील या फाइल तो जानी ही चाहिए थी, लेकिन क्या हुआ, कैसे हुआ, यह कोई नहीं जानता। वास्तविकता में, अपराध का स्थान और कारावास का स्थान ज्यादा महत्व नहीं रखता। कम से कम उस स्थान पर पदस्थ राज्य सरकार को भी वह कोई अधिकार तो नहीं ही मिलता। असल हकदार वह सरकार है जिसके राज्य में अपराधियों के खिलाफ केस चल रहा है या सुनवाई चल रही है और सजा का आदेश हुआ है। इसी सिद्धांत के तहत गुजरात सरकार को इनकी रिहाई का अधिकार नहीं था। महाराष्ट्र सरकार को ही इस बारे में कोई फैसला लेना था जो कि नहीं लिया गया।
गौरतलब है कि यह मामला 2002 का है जब गुजरात में दंगे हुए थे। दंगों के दौरान राज्य के दाहोद जिले की लिमखेडा तहसील के रंधिकपुर गांव में दंगाइयों की भीड़ बिलकिस बानो के घर में घुस गई थी। बिलकिस तब जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ खेत में छिप गई थी। दंगाई वहां भी पहुंच गए और बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। बिलकिस की मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ भी दुष्कर्म हुआ। परिवार के 17 में से सात सदस्यों की हत्या भी की गई। बिलकिस बानो उस समय 21 वर्ष की थीं और वह पांच महीने की गर्भवती थीं। परिवार के मारे गए सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। बलात्कार के 11 दोषियों को गिरफ्तार करने में दो साल का समय लगा था। 2004 में दोषियों को गिरफ्तार किया गया और 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मुंबई उच्च न्यायालय ने भी इन सभी की सजा को बरकरार रखते हुए पहले मुंबई की ऑर्थर रोड जेल भेज दिया था। बाद में नासिक जेल भेजा गया। करीब नौ साल बाद इन सभी को गुजरात की गोधरा सब जेल भेज दिया गया था। जहां से 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने सरकार की माफी नीति और अच्छे आचरण का हवाला देकर इन्हें रिहा कर दिया।
इस फैसले को उच्च्तम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिस पर अब यानी पिछले हफ्ते आठ जनवरी को उच्चतम न्यायालय का फैसला आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार के दोषियों को सजा में छूट देने वाले गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो को बड़ी राहत दी है।
न्यायालय ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने जब 13 मई, 2022 को गुजरात सरकार को दोषियों को माफ करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। वह दरअसल, अदालत के साथ धोखाधड़ी करके और भौतिक तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया फैसला था। न्यायालय का कहना है कि दोषियों ने साफ हाथों से अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था। यहां तक कि उच्च न्यायालय ने दोषियों के खिलाफ जो टिप्पणियां की थी, वह भी छिपाई गई थी। इनके खिलाफ पूरी सुनवाई महाराष्ट्र में हुई लेकिन अच्छा आचरण बताकर गुजरात सरकार ने इन्हें रिहा कर दिया। जबकि यह अधिकार अगर किसी को था भी तो वह महाराष्ट्र सरकार को था। उच्चतम न्यायालय ने साफ कहा है कि गुजरात सरकार ने इस मामले में सत्ता का दुरुपयोग किया है। सरकार को फटकार लगाते हुए न्यायालय ने कहा कि इस तरह आजादी के अमृत
महोत्सव के तहत कोई भी सरकार किसी गंभीर अपराध के दोषी को रिहा नहीं कर सकती है।
बिलकिस बानो को कैसे मिला न्याय?
बिलकिस बानो और उनके समर्थकों ने न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। आरोप है कि जघन्य अपराध होने के बावजूद गुजरात पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया, शुरुआत में एफआईआर लिखने से मना कर दिया गया। जैसे-तैसे एफआईआर लिखी गई तो जांच ठीक से नहीं की गई, मेडिकल जांच कई दिनों बाद की गई। यहां तक कि सबूतों से भी छेड़छाड़ की गई। हालांकि बाद में अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन पुलिसवालों को तीन साल की सजा भी मिली। लेकिन करीब एक साल बाद गुजरात पुलिस ने केस की फाइल बंद कर दी। इसके बाद बिलकिस बानो मदद के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंची। आयोग की मदद से उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई। न्यायालय ने गुजरात पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया और सीबीआई को शुरुआत से पूरे मामले की जांच करने का आदेश दिया।
सीबीआई ने नए सिरे से मामले की जांच करते हुए बिलकिस बानो के मारे गए परिवार के सदस्यों के शवों को कब्र से निकाला था। सीबीआई जांच में पाया गया कि मृतकों की पहचान छिपाने के लिए शवों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे। जांच में पुलिस की लापरवाही सामने आई और पोस्टमार्टम भी ठीक ढंग न किए जाने का आरोप लगा। 2004 में सीबीआई ने 18 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की और आरोपियों को गिरफ्तार किया तो बिलकिस बानो और उनके परिवार को परेशान किया जाने लगा। यहां तक कि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगी थी। इस कारण दो साल के भीतर उन्हें करीब 20 बार अपना रहने का ठिकाना बदलना पड़ा। बिलकिस बानो ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर केस किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने की गुहार लगाई तो अगस्त 2004 में मामला मुंबई विशेष सीबीआई अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया।
सीबीआई अदालत में सुनवाई के दौरान बिलकिस बानो ने खुद एक-एक आरोपी की पहचान की। उन्होंने बताया कि इनमें ज्यादातर लोग उनके जान-पहचान वाले ही हैं। आखिरकार 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने गर्भवती महिला से रेप और हत्या के आरोप में सभी 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। सात लोगों को सबूत न होने की वजह से छोड़ दिया गया। इनमें पांच पुलिसवाले और दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन पर आरोपियों को बचाने और सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था। जबकि एक दोषी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। मगर ये लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई। दोषियों ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी। दिसंबर 2016 में मुंबई उच्च न्यायालय ने 11 अपराधियों को कोई रियायत नहीं दी और सजा को बरकरार रखा। बाद में 2019 में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार को आदेश दिया था कि बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए मुआवजा, घर और नौकरी दी जाए।
गुजरात सरकार ने दोषियों को क्यों किया रिहा?
सभी आरोपी साल 2022 में 15 साल से अधिक की सजा काट चुके थे। इनमें से एक ने गुजरात उच्च न्यायालय में सजा में माफी के लिए याचिका दायर की। न्यायालय ने तब कहा था कि इस मामले में माफी का अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास है क्योंकि केस वहीं चला और सजा भी वहीं से हुई है। इसके बाद सजायाफ्ता ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को इस मामले में विचार करने का आदेश दिया था। इसके बाद सरकार ने आईएएस अधिकारी सुजल कुमार मायात्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। जिसके बाद सभी दोषियों को रिहा करने का फैसला किया गया और 15 अगस्त 2022 को सभी दोषियों को रिहा कर दिया गया।
‘‘आज मेरे लिए सही मायनों में नया साल है। मैं राहत के आंसू रो रही हूं। डेढ़ साल में मैं पहली बार मुस्कुरा रही हूं। ऐसा लगता है कि जैसे मेरेे सीने पर रखा पहाड़ जैसा कोई पत्थर उठ गया हो और मैं एक बार फिर सांस ले सकती हूं। ये होता है न्याय।’’
-बिलकिस बानो, गुजरात (2002) दंगे की पीड़िता