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वन कानून की अनदेखी से खत्म होती लाखों हेक्टेयर भूमि

प्राचीन काल में वृक्षों को ईश्वर मान कर उनकी पूजा की जाती थी। वृक्ष जीवन का एक महत्वपूर्ण साधन है लेकिन बढ़ते औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण अब तक बड़े- बड़े वनों को काफी मात्रा में साफ़ कर दिया गया। वनों की इस बढ़ती कटाई को रोकने के लिए वर्ष 1980 में ‘वन संरक्षण अधिनियम‘ लागू किया। जिसके बावजूद यह अधिनियम लागू होने से लेकर अब तक देशभर में लगभग 10 लाख 26 हजार हेक्टेयर जंगल खत्म हो चुके हैं।

पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2008 से 2023 तक 3 लाख 5 हजार 756 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्सन हुआ है। वहीं पिछले पांच वर्षों में देश के 33 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की लगभग 90 हजार हेक्टेयर वन भूमि गैर वनीय कार्य सड़क और खनन के लिए ले ली गई है। जिसमें से खनन के लिए लगभग 18 हजार 790 हेक्टेयर वन भूमि और सड़क के लिए 19 हजार 497 हेक्टेयर का डायवर्जन हुआ है।

डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह वैन भूमि दिल्ली के भौगोलिक क्षेत्रफल से करीब 7 गुना अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार अधिनियम के लागू होने कुछ वर्षों बाद ही साल 1990 में सबसे ज्यादा 1 लाख 27 हजार से अधिक वन भूमि गैर वनीय उपयोग के लिए डायवर्ट किया गया। इसके बाद साल 2000 में भी काफी हद तक वन भूमि का यह डायवर्जन हुआ। जबकि बीते साल 2023 में लगभग 1 लाख 16 हजार से अधिक वन भूमि को गैर वन्य कार्यों के लिए प्रयोग किया गया।

 

वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव

 

वनों के लगातार ख़त्म होने का प्रभाव सबसे अधिक वन्य जीवों पर पड रहा है। वर्ल्डवाइड फंड द्वारा जारी की गयी की रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरण में मानवों द्वारा किये जा रहे खिलवाड़ के कारण वर्ष 1970 से अब तक दुनियाभर के वन्य जीवों की लगभग दो-तिहाई आबादी खत्म हो चुकी है। जिसके प्रमुख कारणों में से एक जलवायु परिवर्तन, दूसरा जंगलों का तेजी से विनास और तीसरा प्रदूषण है। जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन में कंजर्वेशन एंड पॉलिसी के डायरेक्टर एंड्र्यू टेरी के कहे अनुसार यह स्थिति बहुत खतरनाक है। क्योंकि वनों के साथ हम अपनी दुनिया को भी खाली करते जा रहे हैं।

 

 

क्या है वन संरक्षण अधिनियम ?

 

वर्ष 1980 में लागू किया गया वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत वनों के विनाश को रोकने के लिए कई नियम बनाये गए हैं। जिसके आधार पर भूमि का प्रयोग गैर वानिकी कार्यों के लिए करना प्रतिबंधित है। वन भूमि पर कार्य करने के लिए किसी भी राज्य सरकार को केंद्र से अनुमति लेनी होती है।

 

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