बिहार में विधानसभा चुनाव हर बार की तरह खासे रोचक होते जा रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पिछले पंद्रह सालों के दौरान नीतीश के सुशासन बनाम लालू के जंगलराज पर वोट मांगे और डाले जाते थे। इस बार नीतीश के कुशासन बनाम लालू के पुत्र तेजस्वी के वायदों पर वोट मांगे जा रहे है। इतना ही नहीं नीतीश बाबू पहली बार डिफेंसिव स्पष्ट दिखाई पड़ रहे हैं। अपनी रैलियों में मुर्दाबाद के नारे सुन वे भारी विचलित होते, वोटरों से नाराज होते और प्रधानमंत्री मोदी के करिश्में की शरण में जाते दिख रहे हैं। नीतीश के साथ ही संकट के बादल उनके हनुमान कहलाए जाने वाले पूर्व नौकरशाह, जद(यू) के राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह पर भी मंडराने लगे है। केंद्र में नीतीश कुमार के रेल मंत्री काल में उनके निजी सचिव रहे उत्तर प्रदेश काॅडर के इस आईएएस अधिकारी इन दिनों मुंगेर जिले में तैनात अपनी आईपीएस अधिकारी पुत्री के चलते संकट में हैं। मुंगेर की एसपी रहते उनकी पुत्री लीपि सिंह के आदेश पर 26 अक्टूबर को दूर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन पर उमड़ी भीड़ पर पुलिस के लाठीचार्ज, एक व्यक्ति की मौत से पूरा बिहार नाराज हो उठा है। हालांकि चुनाव आयोग के निर्देश पर मुंगेर के डीएम और एसपी को हटा दिया गया है लेकिन जनता की नाराजगी बरकरार है। 28 अक्टूबर को चुनावी रैली में भाग लेने पहुंचे आरसीपी सिंह को बेगुसराय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आरसीपी सिंह पर आए संकट को लेकर कई जद(यू) नेता खासे प्रसन्न हैं। ऐसे नेताओं के साथ ही चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के चेले भी शामिल हैं। प्रशांत किशोर हालांकि अब जद(यू) का हिस्सा नहीं हैं, पार्टी में रहते उनके आरसीपी सिंह संग छत्तीस का आंकड़ा रहा था। उनके अलावा नीतीश कुमार के पुराने संगी-साथी भी आरसीपी सिंह की नीतीश संग निकटता पार्टी और सरकार में उनके दबदबे से खासे नाराज थे।
बैकफुट पर नीतीश के हनुमान
