Editorial

अब याचना नहीं रण होगा-1

मेरी बात
 

मुझे यह स्वीकारने में कतई हिचक नहीं कि मैं केंद्र की वर्तमान सरकार का कटु आलोचक हूं। 2014 के बाद बहुत कम ऐसा हुआ कि मेरी कलम मोदी सरकार की किसी नीति अथवा उसके द्वारा लिए गए किसी निर्णय के पक्ष में चली हो। नवंबर, 2016 में जब यकायक ही प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर दी थी तब तात्कालिक प्रतिक्रिया बतौर मैंने उनके कदम को सराहा था। आज उस सराहना को मैं अति उत्साह में लिखी गई प्रतिक्रिया मानता हूं जो आर्थिक मुद्दों की कम समझ होने चलते लिखी गई सराहना थी। नोटबंदी की विफलता हम सबके सामने है। इसलिए आज जब सरकार की विदेश नीति की सराहना करने की इच्छा हुई तो कई प्रकार की शंकाओं ने मुझे घेर रखा है। क्या नोटबंदी के निर्णय को सराहने समान ही तो यह सराहना भी भविष्य में गलत साबित नहीं हो जाएगी? क्या विदेश नीति की समग्र विवेचना करने का प्रयास एक बार फिर से मोदी सरकार के प्रति मेरी कलम को कटु तो नहीं बना देगा? ये आशंकाएं इसलिए क्योंकि विदेश नीति के तल पर भी कुछ मामलों में मोदी सरकार मेरी दृष्टि में विफल रही है। फिर तय किया कि समग्र मूल्यांकन के बताए अभी उन दो मुद्दों पर कुछ लिखूं जो भारतीय विदेश नीति के उस पहलू को सामने रखते हैं जिसका सबसे अधिक महत्व है। ये दो मुद्दे हैं कनाडा और चीन को लेकर वर्तमान सरकार की नीति।

पहले बात कनाडा संग चल रहे तनावपूर्ण रिश्तों और मोदी सरकार के रूख की। कनाडा और भारत के मध्य रिश्तों की अहमियत का एक बड़ा कारण अप्रवासी भारतीय हैं जो भारी संख्या में कनाडा जा बसे हैं। इन भारतीयों में सिख समुदाय की बहुतायत है। दोनों देशों के मध्य रिश्ते बिगाड़ने के पीछे खालिस्तान का मुद्दा हमेशा से एक बड़ा कारण रहा है। कनाडा भी भारत की तरह ब्रिटिश सत्ता के अधीन था। यही कारण है कि दोनों राष्ट्र वर्तमान में राष्ट्रमंडल के सदस्य हैं। विश्व की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह जी-20 का भी दोनों हिस्सा हैं। वर्तमान में दस लाख से ज्यादा भारतीय कनाडा में रहे रह हैं, वहां की नागरिकता भी ले चुके हैं। आठ लाख के करीब भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए कनाडा में अध्ययनरत हैं। भारत और कनाडा के मध्य अमेरिकी डॉलर 8.16 बिलियन का कारोबारी रिश्ता है। इसके बावजूद दोनों राष्ट्रों के मध्य वर्तमान समय में रिश्ते बेहद खराब हो चले हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण कनाडा में रह रहे सिखों का एक वर्ग है जो खालिस्तान की मांग को लेकर आज भी सक्रिय है और भारत में आतंकी गतिविधियों का संचालन कनाडा से कर रहे हैं। कनाडा का हमेशा से ही ऐसे आतंकियों को लेकर रूख भारत विरोधी रहा है। 1985 में, जब खालिस्तानी आतंक अपने चरम पर पहुंच चुका था। एयर इंडिया के एक विमान ‘कनिष्क’ को बम से उड़ा दिया गया था। घटना को कनाडा में सक्रिय बब्बर खालसा नामक के आतंकी संगठन ने अंजाम दिया था। इस दुर्घटना में 329 लोगों की मौत हो गई थी। यह विमान कनाडा के मोंटरियल से वाया लंदन भारत आ रहा था। कनाडा की पुलिस ने इस लोमहर्षक कांड के बाद भी भारत के साथ असहयोग का रवैया बनाए रखा था। खालिस्तानी आतंकियों को लेकर आज भी कनाडा का यही नजरिया बरकरार है और दोनों देशों के मध्य तल्ख हो चले रिश्तों का कारण भी है। मोदी सरकार संग कनाडा के रिश्तों में दरार आने के पीछे एक अन्य कारण 2020 में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे भारतीय किसानों को समर्थन देना भी है। भारत सरकार ने तब ट्रूडो के इस समर्थन को भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया था। तभी से हमारे द्विपक्षीय रिश्ते तनाव की जद में आने लगे थे। गत् सितंबर को कनाडा की संसद में प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत सरकार पर खुला आरोप लगाते हुए कहा था कि कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसियों का हाथ है। हरदीप निज्जर की 18 जून 2023 को कनाडा के शहर ब्रिटिश कोलम्बिया में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। खालिस्तान कमांडो फोर्स नामक आतंकी संगठन का नेता निज्जर लंबे समय से आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहा था। 2020 में भारत ने निज्जर को आतंकवादी घोषित कर दिया था। भारत सरकार के लगातार अनुरोध बाद भी कनाडा ने इस घोषित आतंकी के खिलाफ कार्यवाही करने से बचती रही। निज्जर की दिन दहाड़े हत्या से तिलमिलाए कनाडा ने इसका ठीकरा भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ पर फोड़ा। भारत ने तत्काल ही इस आरोप को खारिज करते हुए कनाडा में रह रहे भारतीय नागरिकों को चेतावनी जारी कर दी कि वे सतर्क रहें क्योंकि कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं। इसके बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगानी शुरू कर दी। हालात तेजी से बिगड़ने लगे। कनाडा ने भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ का सदस्य होने की बात कहते हुए एक भारतीय राजनायिक को देश छोड़ने का आदेश दिया जिसके जवाब में भारत ने भी कनाडा की खुफिया एजेंसी से जुड़े एक राजनायिक को देश निकाला दे दिया। सितंबर में भारत ने कनाडा के नागरिकों को भारत का वीजा देने पर रोक लगा डाली। अक्टूबर में हालात बद से बदतर हो गए। भारत ने 41 कनाडाई राजनायिकों को तत्काल भारत छोड़ने का आदेश दे डाला। कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के मध्य भी तनाव बढ़ने लगा है। सिख समुदाय का एक बड़ा वर्ग खुलकर भारत विरोधी प्रदर्शन कर रहा है जिसके जवाब में राष्ट्रवादी भारतीय भी अपना प्रतिरोध दर्ज करा रहे हैं।
यह भारत-कनाडा विवाद की पृष्ठभूमि है। अब समझने का प्रयास करते हैं मोदी सरकार की इस मुद्दे पर विदेश नीति पर। भारत हमेशा से ही कनाडा के पूंजी निवेशकों की पसंद रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर समेत कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कनाडाई कंपनियों ने भारी पूंजी निवेश किया है। कनाडा भारत में 18वां सबसे बड़ा पूंजी निवेशक देश है। बीते 23 वर्षों के दौरान उसने भारत में लगभग 3 खरब (3.3 बिलियन डालर) का पूंजीनिवेश किया है। दोनों देशों के मध्य 8 ़16 बिलियन डॉलर का सालाना कारोबार होता है। भारत बड़ी मात्रा में दवाईयां, लोहा और स्टील कनाडा को निर्यात करता है और कोयला, खाद्य तथा दालों का आयात करता है। लगभग 600 कनाडाई कंपनियां वर्तमान में भारत में मौजूद हैं और हजार से अधिक भारतीय बाजार में प्रवेश करना चाहती हैं। जाहिर है वैश्वीकरण के दौर में भारतीय की बाजार अंतरराष्ट्रीय पूंजी निवेशकों और कारोबारियों के लिए एक बड़ा आकर्षण है और पश्चिमी देश अपने हितों की रक्षा करने के लिए अब भारत संग मैत्रीपूर्ण रिश्ते बनाए रखने के लिए बाध्य हैं। मोदी सरकार इसे भली-भांति समझ रही है। यही वजह है कि उसने सही समय पर कनाडा को कड़ा संदेश भेजने का सोचा-समझा जोखिम उठाया है। बड़ी विदेशी ताकतें भारत से इतने कठोर रुख की शायद अपेक्षा नहीं कर रही थी। कनाडा ‘फाईव आइज’ (पांच आंखें) गठबंधन का हिस्सा है। फाइव आइज गठबंधन अमेरिका, ब्रिटश, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का रणनीतिक गठबंधन है जिसके अंतर्गत ये पांच देश खुफिया जानकारियों का एक-दूसरे के साथ आदान-प्रदान करते हैं। इन पांचों के आपसी संबंध बेहद प्रगाढ़ हैं और ये पांचों भारत के साथ अपने व्यापार को आगे बढ़ाना चाहते हैं। चीन की बढ़ती सामरिक और आर्थिक ताकत से त्रस्त इन विकसित देशों ने ‘क्वाड’ का गठन किया जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ भारत भी शामिल है। भारत तेजी से विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था बन उभरने लगा है इसलिए अब उसके हितों को नजरअंदाज कर पाना विकसित देशों के लिए संभव नहीं है। कनाडा भारतीय हितों को दरकिनार कर सिख अलगावादियों को संरक्षण देने का काम बीते कई दशकों से करता आया है। भारत सरकार लगातार कनाडा से सिख अलगाववादियों को चिन्हित करने और उनकी भारत विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने का आग्रह करती आ रही है लेकिन कनाडा का रुख कभी भी सकारात्मक नहीं रहा। मोदी सरकार ने इस आग्रह अथवा याचना की नीति में भारी बदलाव करते हुए अब ‘याचना नहीं रण होगा’ का मार्ग चुन कनाडा को सकते में डाल दिया है। भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि कनाडा यदि अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने, भारत के विशाल बाजार में अपने पैर पसारने की मंशा रखता है तो उसे भारतीय हितों की चिंता भी करनी होगी अन्यथा भारत किसी भी हद तक जाने को तैयार है­­­­­­। यह हमारी विदेश नीति में आया एक बड़ा बदलाव है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। ठीक इसी तर्ज पर भारत ने अपनी चीन संग नीति में बड़ा बदलाव किया है जिस पर चर्चा अगले अंक में।
क्रमशः 

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