पाकिस्तान अपनी सोच की जकड़बंदी से आजाद नहीं हो पा रहा है। इमरान खान के हुक्मरान बनते यह जकड़न और ज्यादा सख्त हुई है जिसके सबूत मिलने भी लगे हैं। इसे ईसाई महिला आसिया बीवी के जरिए समझा जा सकता है।
वाकया यह है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई महिला आसिया बीवी को ईशनिंदा के एक मामले में बरी कर दिया। बेशक सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि वहां पैगम्बर या कुरान का अपमान करने की सजा मौत या उम्र कैद है। लेकिन इस जुर्म का गलत और झूठा इल्जाम अक्सर लगाया जाता है। अदालत ने मिशाल खान और अयूब मसीह केस का हवाला देते हुए कहा कि पिछले 28 सालों में 62 अभियुक्तों को अदालत का फैसला आने से पहले ही कत्ल कर दिया गया।
आसिया बीवी के बरी किए जाने के विरोध में पाकिस्तान के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। जनता अदालत के फैसले को स्वीकार नहीं कर पा रही है। जनाब आसिया को सजा के काबिल मानती है।
दरअसल, हाल के सालों में अन्य अल्पसंख्यकों की तरह ही पाकिस्तान में ईसाइयों पर भी हमले बढ़े हैं। ईसाइयों के रिहायशी इलाकों और धर्मस्थलों पर हुए अधिकतर हमलों की वजह देश को विवादास्पद ईशानिंदा कानून ही है। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक इसकी मूल में भी राजनीति है। कभी पाकिस्तान के शहरों में पहले अल्पसंख्यकों की तादाद 18 फीसदी तक थी। अब ये घटकर 4 फीसदी रह गई है। वहां अधिकतर ईसाई दलित हिंदू हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासनकाल में ईसाई धर्म अपनाया था।
पाकिस्तान में ईसाई समुदाय बहुल्य गरीब है। अमीर ईसाई देश छोड़ रहे हैं। हाल में ईसाइयों पर हमलों में तेजी आई है। दिसंबर 2017 में क्वेटा के एक चर्च पर हुए हमले में नौ लोग मारे गए थे। उसके पहले मार्च 2016 में लाहौर में 70 ईसाई एक हमले में मारे गए थे।