- संजय चौहान
आइए आपको सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लॉक के वाण गांव के हीरा सिंह गढवाली से रू-ब-रू करवाते हैं। हिमालय के प्रति सदैव चिंतनशील और पर्यटन की जानकारी का अथाह भंडार लिए आज देश के कोने-कोने से हर कोई इस हीरे की सादगी, व्यवहार और अतिथि देवो भवः का कायल है। क्या कोई हिमालय के प्रति इतना प्यार भी करता है। उन्हें अपने से ज्यादा हिमालय की चिंता है। इस हीरे का असली नाम है हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’। सामाजिक सरोकारों से जुड़ा ये युवा न केवल पर्यटन की पहचान हैं अपितु हिमालय की बेहतरीन फोटोग्राफी और लोगों के मदद के लिए सदैव अग्रिम पंक्ति में रहने वाले हैं।

पौधा रोपण के लिए लोगों को प्रेरित करते हीरा
ट्रैक पूरा करने के बाद पर्यटक हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते
वाण गांव के ट्रैकिंग गाइड हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ विगत 15 बरसों से ट्रैकिंग का कार्य कर अपने 8 सदस्यीय परिवार की हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाते आ रहे हैं। 9 साल पहले पिताजी की असमय मृत्यु ने हीरा को अंदर तक हिला कर रख दिया था क्योंकि हीरा अपने पिताजी के बेहद करीब थे। परिवार की जिम्मेदारी नें हीरा को कभी टूटने नहीं दिया। धीरे-धीरे हीरा ने अपने आपको संभाला और एक बार फिर से ट्रैकिंग को रोजगार का जरिया बनाया। आज हीरा के पास मुंबई से लेकर राजस्थान, गुजरात, बैंगलौर, मध्य प्रदेश, बंगाल सहित दर्जनों प्रदेशों के ट्रेकर, ट्रैकिंग के लिए पहुंचते हैं और ट्रैक पूरा करने के बाद हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते। वाण गांव मे हीरा नाम एक दर्जन से अधिक लोगों के हैं। इसलिए हीरा ने अपना नाम हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ रखा है और सब लोग हीरा को इसी नाम से जानते और पहचानते हैं।
हिमालय जैसा हौंसला
बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले हीरा का बचपन बेहद कठिनाई में बीता। बस जैसे- तैसे आठवीं तक की पढ़ाई की। अब आगे पढ़ाई करने के लिए घर की आर्थिक

स्थिति अच्छी नहीं थी। हीरा के पिताजी छोटा-मोटा कार्य कर बस किसी तरह से परिवार का गुजर बसर करते थे। हीरा आगे पढ़ना चाहते थे तो उन्होंनेे 8वीं की ग्रीष्मकालीन अवकाश में सैलानियों को घूमाना शुरू किया। जिससे होने वाली आमदनी से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई जारी रखी साथ ही अपने भाइयों और बहन की पढ़ाई में भी हाथ बटाया। 12वीं के बाद पिताजी को अच्छा रोजगार मिलने से बीए की पढ़ाई हीरा नें देहरादून से की।
हिमालय के प्रति प्यार खींच लाया वापस, हिमालय की कंदराओं में ढूंढा रोजगार देहरादून में हीरा का कभी भी मन नहीं लगता था। उन्हें तो बस अपना पहाड़ ही प्यारा लगता था। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद हीरा ने देहरादून में रोजगार ढूंढ़ने की जगह वापस अपने गांव जाने का फैसला किया। गांव आने के बाद रोजगार के साधन न होने से हीरा मायूस नहीं हुए। सबसे पहले उन्होंने चाय की दुकान खोली, फिर छोटा सा ढाबा और पर्यटकों को रहने की व्यवस्था का बोर्ड दुकान के बाहर लगाया। जिससे उनकी अच्छी खासी आमदनी होने लगी। फोटोग्राफी के शौक ने हीरा को इलाके का फोटोग्राफर बना दिया था। हीरा शादी- ब्याह से लेकर अन्य आयोजनों में फोटोग्राफी करने लगे। इस दौरान उन्होंने एक कम्प्यूटर खरीद लिया और कुछ छोटे-मोटे कार्य करने लगे। आज हीरा कॉमन सर्विस सेंटर भी चलाते हैं जिसमें गांव के लोगों के आवश्यक प्रमाण पत्र बनते हैं। यही नहीं हीरा बुरांश के फूलों से जूस निकालने का कार्य भी करते हैं।
मन में बसा हिमालय, आज हैं सफल ट्रैकिंग गाइड
हीरा का मन दुकान में ज्यादा नहीं लगा उन्होंनेे अपने छोटे भाई नरेंद्र को दुकान पर बैठाया और ट्रैकिंग में हाथ अजमाने की सोची। ट्रैकिंग के लिए सामान की आवश्यकता थी लेकिन आर्थिक तंगी आडे आ गई। थक हारकर बैंक से 35 हजार का कर्ज लिया और पांच टैंट, 10 सिलिपिंग बैग और अन्य सामान खरीदा। जिसके बाद शुरू हुआ हीरा का असली ट्रैकिंग अभियान। शुरुआत में दिक्कतों से सामना हुआ लेकिन जो ग्रुप एक बार आया उसने दूसरे ग्रुप की बुकिंग हीरा को दिला दी और हीरा का ट्रैकिंग गाइड का कार्य चल निकला। आज हीरा ट्रैकिंग से एक सीजन में अच्छा खासा मुनाफा कमा लेते हैं। साथ ही 30 से अधिक लोगों को रोजगार भी दिलाता है। हीरा ट्रेकिंग के जरिए सैलानीयों को बेदनी बुग्याल, औली बुग्याल, रूपकुंड, ब्रह्मताल, भैंकलताल, फूलों की घाटी, पिंडारी ग्लेशियर सहित कई पर्यटक स्थलों का भ्रमण कराता है जिसमें सैलानियों को स्थानीय परंपरागत भोजन खिलाता है साथ ही पहाड़ की लोक-संस्कृति से रूबरू करवाता है। हीरा पर्यटकों को पहाड़ के परंपरागत खेल, पत्थर-पिडो, बट्टी, लुकाछुपी खिलाते हैं जिसे पर्यटक बेहद पंसद करते हैं।
‘बिष्ट होम स्टे’ के जरिए स्वरोजगार की उम्मीदों को पंख

समाज के लोगों द्वारा सम्मानित हीरा
वाण गांव में हीरा सिंह बिष्ट का बिष्ट होम स्टे पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा है। रूपकुंड, आली बुग्याल, वेदनी बुग्याल, ब्रह्मताल, मोनाल टॉप ट्रैक जाने वाले टूरिस्ट इस होमस्टे में ठहर रहें हैं। पर्यटन विभाग के सहयोग से बना ये होमस्टे लोगो के लिए एक उदाहरण भी है। हीरा सिंह गढवाली का मानना है कि होमस्टे के जरिए लोगों की आर्थिकी स्थिति मजबूत होगी और घर में ही रोजगार भी मिलेगा। होम स्टे में ठहरने वाले पर्यटक भी पहाड की संस्कृति, खान पान को करीब से जान सकेंगे।
बकौल हीरा ‘मुझे बचपन से ही पहाड़, बुग्यालों से प्यार रहा है। पहाड़ों मे एक अजीब-सा आकर्षण है जो अपनी ओर खींच ले जाता है। मैंने देहरादून में पढ़ाई के दौरान निश्चय कर लिया था कि पहाड़ों में ही रोजगार के अवसर सृजन करूंगा। मुझे खुशी है कि मेरा फैसला सही था। पर्यटक हमारे अतिथि हैं। हमें कभी भी उनके साथ धोखा नहीं करना चाहिए। ना ही मजबूरी का फायदा उठाना चाहिए। अगर वे खुश होकर जाएंगे तो और लोगों को हमारे पास भेजेंगे। पैसा कमाना ही सबकुछ नहीं है। व्यवहार ही सबसे बड़ा परिचय होता है।’ वास्तव में यदि सच्चे मन, लगन और ईमानदारी से कोई कार्य किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। हिमालय में रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हीरा ने दिखा दिया कि इस भीड़ में वो क्यों सबसे अलग हैं और अपनी चमक बिखेरे हुए हैं। देश के कोने-कोने से आने वाले सैलानियों के लिए इस अनमोल हीरा का विकल्प नहीं है। तभी तो वे हर बार मां नंदा और लाटू देवता की थाती के अनमोल ‘हीरे’ के संग ट्रैकिंग का लुत्फ उठाते हैं। खुद पहाड़ों की खाक छानने वाले प्रख्यात फोटोग्राफर और पत्रकार स्व ़ कमल जोशी भी हीरा के मुरीद बन गए थे।

