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पंजाब में शहरी नक्सल के नाम पर जारी है पुलिस का दमन चक्र

पंजाब में भी ‘शहरी नक्सल’ के नाम पर पुलिसया दमनचक्र शुरू हो रहा हैं और मानवाधिकार कार्यकर्तायों पर तमाम सरकारी हथकंडे निहायत गैरकानूनी ढंग से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। एकदम ताजा मिसाल बठिंडा की है, जहां स्थानीय पुलिस ने तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लगभग 30 घंटे अवैध हिरासत में रखकर, उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी। इन कार्यकर्ताओं को शहरी नक्सली करार देकर बाकायदा गिरफ्तार करने की कवायद थी कि विभिन्न संगठनों को भनक लगने के बाद हुए तीखे विरोध के आगे पुलिस को थोड़ा नरम होना पड़ा। पूरा प्रकरण मिसाल है कि किस तरह मानवाधिकारों के लिए, कानून के दायरे में रहकर संघर्ष कर रहे लोगों की आवाज पूरे देश में एक मानिंद कुचली जा रही है। इस बाबत भाजपा और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं! आइए, घटनाक्रम से इस प्रकरण के कुछ अहम पहलू समझते हैं। पंजाब के मालवा का सबसे प्रमुख शहर बठिंडा है। केंद्रीय मंत्री और अकाली सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल की पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल यहां से सांसद हैं। बादल घराने के बागी यानी शिरोमणि अकाली दल के प्रधान, सांसद सुखबीर सिंह बादल के कजिन और राज्य की वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल की भी यह राजनैतिक कर्मभूमि है। बठिंडा किसान आंदोलनों और वामपंथी इलाकाई सियासत के गढ़ के तौर पर भी जाना जाता है। 28 सितंबर को बठिंडा में मानवाधिकारों पर एक सेमिनार होना था। इस मशक्कत के लिए पश्चिम बंगाल की एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइटस के नेता राहुल चक्रवर्ती और बंगाल, भारत तथा पाकिस्तान पीपुल्स फोरम के डॉ सुरेश बाइन विशेष रुप से, बठिंडा—पंजाब आए आए थे। पुलिस ने उन्हें तथा दोनों को रेलवे स्टेशन से रिसीव करने वाले जम्हुरी अधिकार सभा पंजाब के पूर्व राज्य कमिटी सदस्य लाजपत राय को अवैध रूप से धर पकड़ा। जानकारी के मुताबिक जिला पुलिस ने 28 सितंबर को इन तीनों को कब विरासत में लिया जब, लाजपत राय अपनी बेटी के साथ राहुल चक्रवर्ती और डॉक्टर सुरेश बाइन रेलवे स्टेशन से अपने घर ले जा रहे थे। सादी वर्दी वाले हथियारबंद पुलिस कर्मियों ने कार् को जबरन रुकवा कर घेराबंदी की और उन्हें हिरासत में ले लिया। सभी को कैंट थाने ले जाया गया और बाद में लड़की को घर भेज कर उसे नजरबंद कर दिया गया। उधर जम्हुरी अधिकार सभा और अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया में पुलिस की इस कार गुजारी की जानकारी वायरल करते हुए अंदेशा जाहिर किया कि पुलिस पकड़े गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को शारीरिक प्रताड़ना दे सकती है अथवा फर्जी मुठभेड़ में मार भी सकती है। इस बीच जिला पुलिस ने लाजपत राय की बेटी शरणजीत कौर को उसी के घर में तीन पुलिसकर्मियों की सख्त निगरानी में लगभग 15 घंटे तक अवैध रूप से नजरबंद रखा। यह एक तरह की कैद ही थी। जिक्रेखास है कि लाजपत राय कैंसर के मरीज है जबकि उनकी बेटी अवसाद की रोगी है। पुलिस ने लाजपत राय के घर की बगैर किसी वारंट तलाशी ली, जहां से पुलिस को साहित्य की दो किताबें बतौर ‘संदिग्ध वस्तु’ मिलीं। पुलिस ने बंगाल से आई नेताओं के कपड़े और पेन ड्राइव अपने कब्जे में ले लिए। जम्हुरी अधिकार सभा के राज्य कमेटी सदस्य एडवोकेट ऐन के जीत, जिलाध्यक्ष प्रिंसिपल बग्गा सिंह, सचिन प्रितपाल सिंह, महिला नेता पुष्प लता, लोक मोर्चा के सुखविंदर सिंह, महिला मुक्ति मोर्चा की सुखविंदर कौर और डॉक्टर अजीत पाल सिंह ने इन पुलिसिया हथकंडों के खिलाफ फौरी पैरवी की। इन सब का कहना है कि सरकार और उसके तहत काम करने वाली पुलिस संविधान की सीमाओं से बाहर जाकर मानवाधिकार के हक में उठी आवाज़ों को दमन से दबाना चाहती है। इसीलिए ऐसी कारगुजारियां पंजाब और शेष देश में लगातार हो रही हैं। हक सच की बात करने वालों के साथ भाजपा और कांग्रेस की सरकार एक जैसा दमनकारी रवैया अपनाए हुए हैं। इस प्रकरण में इन पंक्तियों को लिखने तक ताजा स्थिति यह है कि एसडीएम ने तीनों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया है। इन पर शर्तनुमा बंदिश लगाई है कि यह तीनों 3 अक्टूबर तक बठिंडा से बाहर नहीं जाएंगे और व्यक्तिगत बांड भरेंगे। थाना कोतवाली में इनके खिलाफ धारा 107, 151 के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस की कांउटर इंटेलिजेंस मामले की ‘पड़ताल’ कर रही है। उधर, बठिंडा पुलिस के एक आला अधिकारी गुरजीत सिंह ने कहा कि सीआईडी रिपोर्ट के आधार पर तीनों कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया था। खेर, पंजाब में पुलिस की ऐसी कार्रवाईयां पहले भी हो चुकी हैं। पुलिस की ‘शहरी नक्सली’ बताकर बनाई गई फाइलों की धज्जियां अदालतों में उड़ती रही हैं। अकाली भाजपा गठबंधन सरकार के वक्त भी ऐसा होता रहा है और अब कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के वक्त भी हो रहा है। शहरी नक्सल होने के आरोप में कुछ लोग अभी भी सलाखों के पीछे हैं।

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