Uttarakhand

मोदी के कंधे में बंदूक रख त्रिवेंद्र सरकार पर निशाना

देहरादून। 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के अश्व पर सवार होकर भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। लेकिन अब भाजपा के ही प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को लगता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर कोई काम नहीं करने वाली। विधायकों को अपने क्षेत्र में काम करना होगा, तभी जनता उन पर विश्वास जताएगी और जीत हासिल होगी।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बंशीधर भगत के इस बयान से प्रदेश की राजनीति में खासी गरमाहट पैदा हो गई है। विपक्षी कांग्रेस तो इसे पार्टी की मनोवैज्ञानिक हार मानकर भाजपा और मोदी सरकार पर तंज कस रही है। लेकिन इस बयान का सबसे बड़ा असर भाजपा संगठन और सरकार पर पड़ता दिखाई दे रहा है। हालांकि भाजपा अपने प्रदेश अध्यक्ष के बयान को लेकर बचाव की मुद्रा में आ गई है और उसका कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष का बयान ठीक से समझा नहीं गया है। उन्हांने विधायकों को जनता के काम करने की सलाह दी है।

बंशीधर भगत के बयान से एक साथ कई अर्थ निकल रहे हैं। यह भाजपा को भी अच्छी तरह से मालूम है। एक प्रदेश अध्यक्ष अपने विधायकों को अपने क्षेत्र की जनता के लिए काम और विकास के कार्यों पर नसीहत दे रहा हो, तो इससे साफ है कि वह सत्ताधारी विधायकों के साढ़े तीन वर्ष के कार्यकाल पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं।
अगर मोदी लहर की बात करें तो 2017 के बाद से लगातार प्रदेश में कई चुनाव हुए हैं जिनमें 2019 का लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो प्रदेश में निकाय चुनाव, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव यहां तक कि सहकारिता चुनाव हुए हैं जिनमें कहीं न कहीं भाजपा ने मोदी सरकार के ही कामकाज को सामने रखकर चुनाव लड़े हैं। निकाय चुनाव में नगर पालिका और नगर निगमों में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई तमाम योजनाओं और स्मार्ट सिटी को मुख्य मुद्दा बनाकर भाजपा छह नगर निगमों में जीत का परचम लहरा चुकी है। पंचायत चुनाव में भी केंद्र सरकार के किसानों की आय दोगुना करने, पंचायतों के खातां में सीधे फंड देने और ग्रामीण भारत के लिए योजनाओं के नाम पर भी भाजपा ने पंचायत चुनाव में बाजी मारी है। यहां तक कि राज्य में 2017 के बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने अपने उम्मीदवारां के पक्ष में राज्य सरकार के कामकाज से ज्यादा मोदी सरकार के ही कामकाज को सामने रखा औेर सभी उपचुनावों में जीत हासिल की है।

अब आखिर ऐसा क्या हो गया है कि भाजपा का अपने चुनावी युद्ध के सबसे बड़े योद्धा नरेंद्र मोदी पर ही विश्वास इस कदर डगमगाने लगा है कि प्रदेश अध्यक्ष को सार्वजनिक तौर पर अपने विधायकों को नसीहत देनी पड़ रही है कि वे अपने क्षेत्रां में जनता से जुड़े और काम करवाएं। तभी जनता उनको चुनाव जितवाएगी।

इस बयान के पीछे असल कारण क्या है, यह तो शायद ही कभी सामने आ पाएगा। लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो बंशीधर भगत ने भले ही मोदी लहर की बात की हो, लेकिन उनका इशारा कहीं और है। यह इशारा भाजपा संगठन और सरकार के बीच मतभेदों के घमासान को लेकर ही है।

उल्लेखनीय है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत 2017 में मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए। तीन माह समय बीतने के बाद से लगातार दो-चार महीनों में त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री पद से चलता होने की चर्चाएं और सुगबुगाहटें होती रही हैं। प्रदेश में आज तक किसी अन्य मुख्यमंत्री के बदले जाने की चर्चाएं इतनी नहीं हुई हैं, जितना त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में हुई हैं। हालांकि हमेशा की ही तरह यह चर्चाएं सिर्फ चर्चा ही रही और त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा सरकारों के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम करवा चुके हैं जो साढ़े तीन साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं।

अंतरिम मुख्यमंत्री नित्यानद स्वामी डेढ़ साल, भगत सिंह कोश्यारी छह माह, बीसी खण्डूड़ी दो वर्ष, दोबारा छह माह, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ढाई वर्ष ही मुख्यमंत्री रहे। लेकिन त्रिवेंद्र रावत राज्य के पहले ऐसे में मुख्यमंत्री बन चुके हैं जो लगातार साढ़े तीन वर्ष तक मुख्यमंत्री के पद पर हैं। हालांकि कांग्रेस सरकार में भी ऐसा देखने को मिल चुका है। नारयाण दत्त तिवारी के बाद कोई मुख्यमंत्री लगातार पांच वर्ष मुख्यमंत्री नहीं रहा है। विजय बहुगुणा एक वर्ष 10 महीने में ही चलता कर दिए गए थे। हरीश रावत अपने कार्यकाल में राष्ट्रपति शासन तक देख चुके हैं इसलिए उनका भी कार्यकाल लगातार तीन वर्ष तक नहीं रहा।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत 2022 में मोदी लहर न होने की बात भले ही सामने कह रहे हों, लेकिन इसका असली अर्थ प्रदेश सरकार को लेकर ही माना जा रहा है। जिस तरह से संघ सरकार को कई बार नसीहत दे चुका है और भाजपा के कई विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान दे चुके हैं उससे तो लगता है कि भाजपा संगठन भी 2022 के चुनाव में 2017 जैसा परिणाम आने पर आशंकित है।

सरकार के तामाम दावां और समाचारों में विज्ञापनों के सहारे प्रदेश में विकास के कामों को गिना प्रचार कर रही है उसकी हकीकत भाजपा के नेताओं को मालूम है।
सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में बेरोजगारों को रोजगार देने पर सरकार पूरी तरह से नाकाम दिखाई दी है। हालांकि सरकार ने हजारों सरकारी नोकरियों में भर्ती होने की जमकर घोषणाएं की हैं, लेकिन यह घोषणाएं अभी तक समाचार पत्रां और विज्ञापनों से आगे नहीं बढ़ पाई हैं। तीन वर्ष से सरकार प्रदेश में 40 हजार कारोड़ के निवेश की बात कर रही है, लेकिन हकीकत में अभी निवेश धरातल पर नहीं उतर पाया है।

प्रदेश में किसानों की आय दोगुना करने के दावे और जैविक खेती, यहां तक कि चकबंदी किए जाने के दावे भी इन साढ़े तीन सालों में धरातल पर नहीं उतरे हैं। केंद्र सरकार की योजनाओं के सहारे प्रदेश की योजनाएं चल रही हैं। कोरोना काल में जिस तरह से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची है उससे हालात और भी खराब हो चुके हैं। पर्यटन और परिवहन व्यवसाय पूरी तरह से चौपट हो चुका है, जबकि इनसे लाखों लोग परोक्ष रूप से रोजगार पा रहे थे। प्रवासियां के लिए सरकार की योजनाओं की घोषणाएं की गई हैं, लेकिन अभी इन पर अमल तक नहीं हो पाया है, जबकि कोरोना का अनलॉक-4 आरंभ हो चुका है।

स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ चुकी हैं। प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में तमाम दावों के बावजूद स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी हैं। पहाड़ी जिलों में हालात बद से बदतर हो चले हैं, लेकिन सरकार साढ़े तीन साल की उपलबिधयों में इसका बखान करती रही है।

सूत्रां की मानें तो भाजपा के कई विधायक और नेता यह मान रहे हैं कि सरकार के प्रति जनता में नारजगी है, लेकिन पार्टी अनुशासन के चलते वे अपनी बात को स्पष्ट तौर पर नहीं रख पा रहे हैं। मुख्यमंत्री की कार्यशैली से भी कई विधायक और मंत्री नाराज बताए जा रहे हैं। इससे भी भाजपा में 2022 के चुनाव को लेकर बड़ी बेचैनी बनी हुई है।

आम आदमी पार्टी के विधानसभा चुनाव में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा से भी भाजपा के मौजूदा विधायकों औेर प्रदेश संगठन में बेचैनी इस कदर हो चुकी है कि पार्टी अभी से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी है। हो सकता है कि यह इसका ही असर हो कि बंशीधर भगत को मोदी लहर के बजाय विधायकों को अपने क्षेत्रों में जनता से जुड़ने और काम करने की नसीहत देने को मजबूर होना पड़ा हो। कम से कम मौजूदा हालात को देखने से तो यही लगता है। प्रदेश भाजपा को अब मोदी लहर और सरकार के कामकाज पर ही भरोसा नहीं है कि वह इनके भरोसे 2022 का चुनाव जीत सके।

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