पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-99
जयप्रकाश: नहीं, नशाबंदी और जगजीवनराम ने जनता सरकार बनवाई। मैंने और कृपलानी ने मिलकर तो धांधली से मोरारजी को प्रधानमंत्री बनाया।
कमीशन: आप क्या जनता पार्टी के काम से खुश रहे?
जयप्रकाश: क्या खुश रहा? मुझे ‘भारतरत्न’ मिलने का वक्त आया, तो उन्होंने यह खिताब ही खत्म कर दिया।
सरकारी वकील: क्या आप जनता पार्टी के सदस्य थे?
जयप्रकाश: नहीं, महात्मा गांधी भी कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे।
कमीशन: तो आप महात्मा गांधी की तरह पार्टी को गाइड करते थे?
जयप्रकाश: हां, मगर ‘मिसगाइड’ करता था।
कमीशन: क्या जनता सरकार ने जनता का कुछ भला किया?
जयप्रकाश: जनता का भला करने को वह सरकार बनी ही नहीं थी। अगर भला करती, तो अपने उद्देश्य से गिर जाती।
कमीशन: तो सरकार क्या करती थी?
जयप्रकाश: सरकार जनता को समझा रही थी कि बिना सरकार से देश कैसे चलता है।
कमीशन: क्या आप जनता सरकार के गिरने से दुखी होंगे?
जयप्रकाश: नहीं, सुखी होऊंगा। कहीं भी सरकार गिरे, मैं खुश होता हूं।’
इस व्यंग्य श्रृंखला की तीसरी कड़ी ‘तीसरी आजादी का जांच कमीशन-3’ में काल्पनिक जांच आयोग मोरारजी देसाई को पूछताछ के लिए बुलाता है। इस पूछताछ के सहारे परसाई मोरारजी सरकार की कार्यशैली पर करारा प्रहार करते हुए मोरारजी के मुंह से वह कहलवाते हैं जो ढाई बरस के दौरान जनता सरकार का सच था-
मोरारजी भाई प्रसन्न थे, और आरोपों के जवाब देने नहीं, जांच कमीशन का उद्घाटन करने आए हों। उन्होंने शपथ ली और झट न्यायाधीश की तरफ पंजा बढ़ाकर कहा-आपकी उम्र मुझसे बहुत कम है। जरा पंजा लड़ाकर देखिए।
कमीशन: आपको यहां पंजा लड़ाने नहीं बुलाया गया।
मोरारजी: पर मुझे तो कमीशन के सामने यह सिद्ध करना ही है कि नियमित जीवन, सात्विक जीवन और संयम से स्वास्थ्य कैसा अच्छा रहता है। मैंने 30 वर्ष की उम्र में ब्रह्माचर्य व्रत ले लिया था। मैं सुबह चार बजे उठता हूं और रात नौ बजे सौ जाता हूं। मैं फल और दूध का सेवन करता हूं। मैं रोज जीवन-जल पीता हूं। मैंने मदिरापन कभी नहीं किया। मैंने मूत्र पान का प्रचार किया और मदिरा का निषेध।
सरकारी वकील: इसका नतीजा यह हुआ कि लोग मूत्र में शराब मिलाकर पीने लगे।
कमीशन: वैसे तो मूत्र में भी ‘अल्कोहल’ होता है। तभी
आपको आदत लग गई थी।
कमीशन: देखिए मोरारजी भाई, आप फालतू बातें मत कीजिए। जो पूछा जाए, उसी का जवाब दीजिए। बताइए, दूसरी
आजादी कैसे आई?
मोरारजी: सब ईश्वर की लीला है। सबहिं नचावत राम गोसाईं।
कमीशन: वे कारण और परिस्थितियां बताए, जिनसे दूसरी आजादी आई।
मोरारजी: हम लेाग जेल में बंद थे। मैं जेल में नहीं, रेस्ट हाउस में था। अच्छा खाता था, आराम करता था, गीता पढ़ता था और ‘बोर’ होता था। जब हम सब लोग बाहर आए तो सलाह की। हमारे सामने दो रास्ते थे-या तो इकट्ठा होकर राज करें या अलग-अलग जेल में रहें। जेल से हम ऊब चुके थे। इसलिए हमने पहला रास्ता चुना और जनता पार्टी बना ली। फिर हमने जनता को बतलाया कि इमरजेंसी में उस पर कितना अत्याचार हुए।
सरकारी वकील: क्या जनता को पता नहीं था कि उस पर क्या
अत्याचार हुए?
मोरारजी: नहीं, इस देश के लेाग ऐसे ही हैं कि उन्हें बताना पड़ता है कि तुम पर क्या अत्याचार हुए। जब जनता मान गई कि उस पर अत्याचार हुए तो उसने हमें वोट दे दिए और हमारी सरकार बन गई।
कमीशन: क्या जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी बनवाई? दूसरी आजादी क्या वे लाए?
मोरारजी: कतई नहीं। जयप्रकाश को तो राजनीति ही नहीं आती। वे तो लोकनायक इसलिए बन गए और श्रेय इसलिए मिल गया कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनना था। इसके लिए उन्हें कुछ मुआवजा, हरजाना देना ही था। तो उन्हें ‘लोकनायक’ बना दिया। लो भाई, तुम्हें भी कुछ मिल गया। अगर मैं कह देता कि मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनाना, तो ये बदमाश मुझे ‘लोकनायक’ ही नहीं, ईश्वर बनाने को तैयार हो जाते। पर ईश्वर बनने में क्या रखा है? न चुड़ीदार पजामा-शेरवानी पहन सकते, न सलामी ले सकते।
सरकारी वकील: तो आप जयप्रकाश को लोकनायक नहीं मानते।
मोरारजी: हुश्ट।
सरकारी वकील: वे दूसरी आजादी लाए, यह भी नहीं मानते।
मोरारजी: हुश्ट।
कमीशन: आप हुश्ट-हुश्ट क्या करते हैं। ठीक से जवाब दीजिए।
मोरारजी: देश की कोई क्या सेवा कर सकता है? मैं क्या हिमालय को ऊंचा कर सकता हूं। समुद्र को धकेलकर आगे कर सकता हूं? गंगा को अमरकंटक से निकाल सकता हूं। देश-सेवा क्या होती है? देश जैसा और जहां था, वैसा और वहां है।
सरकारी वकील: पूछने का मतलब यह है कि आपने देशवासियों की क्या सेवा की?
मोरारजी: देशवासियों की मैंने यह सेवा की कि मैं प्रधानमंत्री रहा।
कमीशन: यदि प्रधानमंत्री रहना ही देशवासियों की ‘सेवा’ है तो यह ‘सेवा दूसरे लोग भी कर सकते थे।
मोरारजी: नहीं, समस्या यह थी कि देश को बहुत ज्यादा प्रधानमंत्री मिल रहे थे। जरूरत सिर्फ एक की थी। मैं प्रधानमंत्री न बनता तो कई प्रधानमंत्री बन जाते। वे एक-दूसरे पर हमला करते।
कमीशन: आप अपने प्रधानमंत्री बनने का श्रेय किसे देते हैं? जयप्रकाश को?
मोरारजी: नहीं, जगजीवनराम और चरण सिंह की लड़ाई के कारण ही मैं प्रधानमंत्री बना।
कमीशन: आप पर यह आरोप है कि आपका अपने मंत्रिमंडल पर कोई नियंत्रण नहीं था। कोई दबाव नहीं था। आप जिंदगी भर कड़े आदमी माने जाते थे। पर प्रधानमंत्री बनने पर आप ढीले हो गए।
मोरारजी: मैं क्या कड़ाई करता! क्या नियंत्रण रखता! क्या दबाव डालता! मैं तो खैराती प्रधानमंत्री था। बैगर्स आर नॉट चूजर्स। न मेरा गुट, न मेरे पास कोई संगठन, न मेरे कोई अनुयायी। मैं किस दम पर अकड़ता! मैं इशारा करता कि मंत्री बदलूंगा, तो वे कहते, प्रधानमंत्री बदलेंगे। मैं कहता कि उस मंत्री को ड्रॉप करूंगा तो वे कहते कि हम प्रधानमंत्री को ड्रॉप करेंगे।
कमीशन: तो आपने ऐसी हालत में काम कैसे चलाया?
मोरारजी: सब ईश्वर ने चलाया। मैंने कह दिया-राम की चिड़ियां राम के खेत, खाओ री चिड़ियां भर-भर पेट। मेरे मंत्रिमंडल में मेरे सिवाय बाकी सब प्रधानमंत्री थे। सबको छूट चरण सिंह कारखानों में खेती करवा सकते थे, और जॉर्ज फर्नांडीज खेत में कारखाना खोल सकते थे। बहुगुणा समाजवाद ला सकते थे, और पटेल पूंजीवाद को मजबूत कर सकते थे। मैं सबको आशीर्वाद देता था।
कमीशन: इसका अर्थ हुआ कि आपकी पार्टी की कोई निश्चित नीति नहीं थी।
मोरारजी: एक ही नीति थी-सत्ता में बने रहना। सत्ता में नहीं रहते तो जेल में रहते। सब आत्मरक्षा कर रहे थे। फिर पार्टी हो तो नीति हो। हमारी पार्टी थोड़े ही थी। शंकर जी की बारात थी। सब भूत-प्रेत-राजनारायण-जैसे। काउे मुखहीन बिपुल मुख काहू-नाना वाहन नाना वेष। मैं था शंकर, बारात तो मेरी ही थी। इसलिए मैं चुपचाप जहर पीता जाता था। मैं नशाबंदी सम्मेलन का उद्घाटन करता और मेरा ही मंत्री अध्यक्ष की कुर्सी पर नशे में धुत बैठा रहता।
कमीशन: आपके शासन में कानून और व्यवस्था की हालत बहुत खराब थी। इस बारे में आपको क्या कहना है?
मोरारजी: मैं दोमुंही बात नहीं करता। मैं बार-बार लोगों से भयहीन होने की अपील करता था। मेरी अपील से कोई भला आदमी तो नहीं, पर अपराधी भयहीन हो गए। तो इसमें मैं क्या करता। आदमी भयहीन होगा तो वह बैठकर जमुहाई तो लेगा नहीं। वह कुछ करेगा। तो अपराधी अपराध करते थे। यह उनका नागरिक अधिकार है। मैं नागरिक अधिकारों के हनन का विरोधी हूं।
कमीशन: पर हरिजनों पर भी बहुत अत्याचार हुए थे।
मोरारजी: इसका हल्ला हुआ। बात यह है कि जगजीवनराम हरिजन हैं। वे प्रधानमंत्री नहीं बने तो हल्ला मच गया कि हरिजन पर अत्याचार हो गया। आम हरिजनों पर अत्याचार रोकना गृहमंत्री चरण सिंह का काम था। पर चरण सिंह अपने को खुद हरिजन समझने लगे और इंदिरा गांधी के अत्याचारों से अपनी रक्षा करते रहे। वह पट्ठा सिर्फ इंदिरा गांधी से लड़ता रहा।
कमीशन: महंगाई के बारे में क्या कहना है? सरकार ने कीमतें घटाने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए?
मोरारजी: सरकार का काम शासन करना है, दुकान करना नहीं। फिर कीमत खरीदार और बेचने वालों के बीच का मामला है। सरकार इसमें क्या करे? मैंने अपनी तरफ से व्यापारियों से अपीलें बराबर कीं। उनका हृदय-परिवर्तन करना चाहा। उनका हृदय बदला इसका मतलब है कि उनका हृदय पहले ही शुद्ध था।
सरकारी वकील: पर लोगों को तकलीफ तो बहुत हुई!
मोरारजी: सब ईश्वर की इच्छा है। देह धारण की है तो कष्ट तो होंगे ही-देह धरे को दंड है सब काहू को होय, ज्ञानी भोगे ज्ञान सों मूरख भुगतै रोय।
कमीशन: आप कहते थे कि आपके दिमाग में न कोई चिंता होती है न तनाव। ऐसा कैसे हो सकता है कि इतने बड़े देश का प्रधानमंत्री चिंता और तनाव से मुक्त हों?
मोरारजी: चिंता और तनाव उसे हो, जिसने देश की जिम्मेदारी ली हो। मैंने तो कोई जिम्मेदारी ली नहीं। सब ईश्वर पर छोड़ दी। हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस विधि हाथ। आदमी के लिए कुछ नहीं होता। लोग भूखे हैं, गरीब हैं, पीड़ित हैं, तो यह ईश्वर की इच्छा है। मैं बीच में पड़ने वाला कौन होता हूं। मुझे कभी-कभी थोड़ी-सी चिंता उस चरण सिंह के कारण होती थी। बस बाकी मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहा।’