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वर्तमान दौर में शहीद अब्दुल हमीद का स्मरण जरूरी

आज कंपनी क्र्वाटर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद का जन्म दिन है। अब्दुल हमीद भारतीय सेना के वो वीर योद्धा थे, जिन्होंने अपने साहस और वीरता का परिचय देते हुए 1965 के भारत-पाक युद्ध में कई पाकिस्तानी पेटन टैंको को ध्वस्त कर भारतीय सेना को गौरवान्वित किया था।
एक जुलाई 1933 के दिन बालिदानियों की धरती उत्तर प्रवेश के गाजीपुर में उस शहीद का जन्म हुआ जिसने सर्वोच्च बलिदान देकर देश की रक्षा की और देश को राष्ट्रीय एकता का मार्ग दिखाया। अब्दुल हमीद पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत ही साधारण परिवार से थे, परन्तु उनकी वीरता असधारण थी। कहा जाता है कि जब 1905 युद्ध शुरू होने के आसार बन रहे थे तो वे अपने घर गए थे। जैसे ही उन्हें युद्ध का आदेश मिला वह उसी समय ड्यूटी पर लौट आए।
उन्होंने अपने अदम्य साहस से पाकिस्तानी सेना के 4 पैंटन टैंक उड़ा दिए थे। उसके बाद भी वह वीरता से आगे बढ़ते गए तभी वह एक पाकिस्तानी टंैक की नजर में आ गए और दोनों ने एक-दूसरे पर फायर किया, अंत में उन्होंने उस टैक को भी समाप्त कर दिया। इसी दौरान हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए। इस लड़ाई में भारत की ओर से केवल 140 सेचुरियन और शर्मन टैंक थे, जबकि पाकिस्तान के 300 पेंटन और चेफीज टैंक ने भाग लिया था। पेंटन टैंक पाक सेना को अमेरिका से मिले थे जो भारतीय टैंको के मुकाबले में कहीं जदा शक्तिशाली थे। अपने साहस कापरिचय देते ुए वह लाल मातृभूमि की गोद में गहरी नींद में सो गया अब्दुल हमीद को 1965 की भारत-पाक लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में टैंको को ध्वस्त करने के लिए परमवीर चक्र मिला था। महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित कंपनी क्र्वाटर मास्टर हवलदार शहीद अब्दुल हमीद के जन्म दिवस पर हम सब उन्हें नमन करते है।
आज के समय में जहां सांप्रदायिकता का रंग पूरे देश पर चढ़ चुका है। जहां आज हर एक व्यक्ति उसके धर्म से पहचाना जाता है वहां शायद अब्दुल हमीद की वीरता कहीं खो सी गई है।
देश में जहां धर्म के नाम पर कुछ तथाकथित लोग जहर फैलाने का काम कर रहे हैं वहीं अब्दुल हमीद जैसे कई सेना के जाबांज सिपाही एकता और सहास का परिचय देते नहीं थकते। एकता का उदाहरण पेश करने वाले अब्दुल हमीद अपनी जीत का जश्न तो न बना सकें लेकिन उन लोगों को वह एकता का पाठ अवश्य पढ़ा गए। जो धर्म के नाम पर देश में हिंसा और समाज में कअुता का भाव उत्पन्न करने का प्रयास करते रहते है। जहां धर्म के नाम पर एक-दूसरो का खून तक बहा दिया जाता है। उस समय में अब्दुल हमीद का बलिदान कहीं खोता सा प्रतीत होता है। वर्तमान में तो देश के प्रति बलिदान में भी धर्म खोज लिया जाता है और प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू कर दिया जाता है। लेकिन वह आज भी जीवित है उन युद्ध की ट्राफियों में जो भारत के आर्मी कैंटोमेंट एरिया में हैं, उन गन्ने के खेतों में जहां उन्होंने घुसपैठियों को खदेड़ा था। गांव के उस पार्क में जहां उनका स्मारक है और एक बहुत ही प्यारी बेटी के गर्वीले संस्मरणों में। उनके इस अदम्य साहस और देश के प्रति प्रेम को देश हमेशा याद रखेगा।

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