उत्तराखण्ड में नौकरशाह भ्रष्ट तरीके से ऊंचे पद पाकर मौज करते हैं। लेकिन राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार सब कुछ जानते हुए भी ऐसे अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं करना चाहती
जी रो टॉलरेंस का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार को इस बात का कोई मलाल नहीं कि प्रदेश में कोई अधिकारी भ्रष्ट तरीके से जिम्मेदार पद पर बैठ जाए या भ्रष्टाचार का दोषी रहा हो। सच तो यह है कि समाचार माध्यमों के जरिये खबरें प्रकाशित होने पर भी सरकार इस बारे में कोई ध्यान नहीं देना चाहती। राज्य में बीसीके मिश्रा एक ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें बिना विज्ञप्ति के ही उस जिम्मेदार पद पर नियुक्त कर दिया गया जिसका सृजन ही नहीं किया गया था। इसकी रूपरेखा उच्चाधिकारियों ने तैयार की। जुलाई 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के समक्ष अनुमोदन के लिए भेजी गई फाईल में जहां दो से तीन आवेदकों के नाम होने चाहिए थे वहां महज एक ही व्यक्ति का नाम भेजा गया। बीसीके मिश्रा पर मेहरबानी का आलम यह है कि एक बार नियुक्ति पा लेने के बाद जब कांग्रेस सरकार ने उन्हें पदमुक्त किया तो वह कुछ दिनों बाद ही फिर से उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजीवीएनएल) में सेवाएं देने लगे। इस दौरान वह डेढ़-पौने दो साल तक कहां रहे और किस पद पर रहे इसका ब्यौरा तक पेश नहीं किया गया। खुद बीसीके मिश्रा ने अपने आवेदन फार्म में यह तथ्य छुपाए। यूजीवीएनएल में हुई इस अनियमितता पर सरकार की चुप्पी सवालों और संदेहों के घेरे में है।

गौरतलब है कि ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने 7 अक्टूबर 2018 के वर्ष 10 अंक-17 में बीसीके मिश्रा से संबंधित ‘भ्रष्ट अधिकारियों की प्लांटिंग’ नामक समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें स्पष्ट किया गया कि किस तरह बीसीके मिश्रा को उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड में प्लांट किया गया। यहां तक कि उनकी नियुक्ति के मामले में योग्यता और अनुभव को नजरअंदाज कर दिया गया। नियुक्ति होते ही वह अपनी भूमिका में आ गए और नियम विरुद्ध काम करने लगे। जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार का सच यह है कि करोड़ों के मीटर घोटाले में बीसीके मिश्रा का नाम आ जाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। ध्यान रहे कि एक मामले में मिश्रा के खिलाफ विजिलेंस जांच भी बिठाई गई। यह जांच रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।
17 फरवरी 2015 : समाचार पत्रों में उत्तराखण्ड राज्य के तीन निगमों के महत्वपूर्ण पदों के लिए विज्ञापन निकले। यूपीसीएल में निदेशक (वित्त) एवं निदेशक (परियोजना), पिटकुल में निदेशक (वित्त) एवं निदेशक मानव संसाधन तथा यूजेवीएनएल में निदेशक वित्त, निदेशक मानव संसाधन और निदेशक ऑपरेशन के पदों को भरने के लिए विज्ञापन प्रकाशित किए गए।
20 फरवरी 2015 : निदेशक ऑपरेशन यूजीवीएनएल के लिए साक्षात्कार आयोजित किए गए। जिसमें आठ अभ्यार्थियों ने साक्षात्कार में भाग लिया। जिनमें से एक बीसीके मिश्रा भी थे।
साक्षात्कार के लिए बनी कमेटी : सलेक्शन कमेटी में तत्कालीन मुख्य सचिव एन रविशंकर की अध्यक्षता में तत्कालीन ऊर्जा सचिव उमाकांत पंवार, इन्दु कुमार पांडे, राकेश शर्मा, एस रामास्वामी एवं जगमोहन लाल उपस्थित थे।
20 जुलाई 2015 : सलेक्शन कमेटी ने बीसीके मिश्रा का ही नाम तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के अनुमोदन के लिए भेजा जबकि नियम है कि हमेशा कम से कम दो नाम अनुमोदन के लिए भेजे जाते हैं। यूपीसीएल एवं पिटकुल के अन्य निदेशकों के चयन के लिए तीन नाम तत्कालीन मुख्यमंत्री के अनुमोदन के लिए भेजे गए। लेकिन यूजेवीएनएल ने निदेशक ऑपरेशन के चयन के लिए केवल एक नाम बीसीके मिश्रा का ही अनुमोदन के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री के समक्ष भेजा गया।
20 जुलाई 2015 : तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यूजेवीएनएल के निदेशक ऑपरेशन के पद पर अनुमोदन की फाइल यह कहकर रोक दी कि इसमें सिर्फ एक ही नाम है। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन सात पदों की फाइलों पर एक नाम की संस्तुति कर दी जिनमें दो या उससे अधिक नाम दर्ज थे।
21 जुलाई 2015 : तत्कालीन ऊर्जा सचिव उमाकांत पंवार ने एक बार उन फाइल पर बीसीके मिश्रा के साथ ही मुकेश चंद करन नामक अभ्यार्थी का नाम डालकर भेज दी।
22 जुलाई 2015 : प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीसीके मिश्रा और मुकेश चंद करन नामक दोनों अभ्यार्थियों में से बीसीके मिश्रा के नाम पर अपनी मोहर लगा दी।
24 जुलाई 2015 : बीसीके मिश्रा के यूजेवीएनएल के निदेशक ऑपरेशन के पद पर नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया।
तथ्यों को छुपाया गया : बीसीके मिश्रा ने अपने निदेशक ऑपरेशन के आवेदन पत्र में गलत तथ्य पेश किए। बीसीके मिश्रा ने बताया कि वह 21 नवंबर 2007 से 20 फरवरी 2009 तक यूजीवीएनएल के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, 20 फरवरी 2009 से 4 जनवरी 2013 तक यूजेवीएनएल के निदेशक ऑपरेशन, 4 जनवरी 2013 से 23 जुलाई 2015 तक यूजीवीएनएल के एक्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर के पद पर नियुक्त रहे। यहां पर बीसीके मिश्रा ने यह तथ्य छुपाया है कि उन्हें दिनांक 4 जनवरी 2013 को निदेशक ऑपरेशन के पद से क्यों हटाया गया तथा 4 जनवरी 2013 को हटाने के बाद बीसीके मिश्रा को 18 सितंबर 2014 को पुनः एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर तत्कालीन ऊर्जा सचिव उमाकांत पंवार द्वारा पारित आदेश पर बहाल हुए। लेकिन अपने द्वारा भरे गए फार्म में उन्होंने दर्शाया है कि वह 4 जनवरी 2013 को ही पुनः एक्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर ऑपरेशन के पद पर काबिज हो गए थे जो कि सरासर गलत और झूठ तथ्य है। यूजीवीएनएल की 72वीं बोर्ड की बैठक का एजेंडा संख्या 72 ़37 से स्पष्ट है कि मिश्रा ने गलत तथ्य पेश किए हैं।
19 सितंबर 2014 : एजेंडा आईटम 72.34 के अनुसार मिश्रा ने इस दिन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर ज्वाईन किया। जबकि उस दिनांक को एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर का कोई पद रिक्त ही नहीं था। जिस एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर बीसीके मिश्रा को नियुक्त किया गया था उस पर संदीप सिंघल डायरेक्टर प्रोजेक्ट यूजेवीएनएल के धारणाधिकार के कारण संदीप सिंघल के लिए पद रिक्त रखा गया था। उस रिक्त पद पर बीसीके मिश्रा की ज्वाईनिंग नियम विरुद्ध है क्योंकि यह धारणाधिकार होने पर वह पद रिक्त रखा जाता है। उस पर ना ही किसी की भर्ती की जाती है और ना ही किसी का प्रमोशन किया जाता है। एक ही व्यक्ति बीसीके मिश्रा को फायदा पहुंचाने के लिए नियम विरुद्ध कार्य किए गए। जबकि मिश्रा अपने आवेदन फार्म में वह दर्शा रहे हैं कि 4 जनवरी 2013 को ही उन्होंने एक्टीक्यूटिव डायरेक्टर का चार्ज ले लिया था। स्पष्ट है कि 4 जनवरी 2013 से 18 सितंबर 2014 तक का उनका कार्यभार गैप (सर्विस ब्रेक) रहा। गौरतलब है कि आवेदन फार्म के साथ अपने पिछले पांच सालों की एसीआर (गोपनीय आख्या) भी देनी पड़ती है। यह गोपनीय आख्या सीनियर ऑफिसर लिखता है। इस तरह एसीआर के आधार पर बीसीके मिश्रा के डेढ़-पौने दो साल के गैप के बेसिक पर भी उनकी नियुक्ति रद्द हो जानी चाहिए थी। लेकिन उच्च अधिकारियों के पक्षपात पूर्व रवैये के चलते बीसीके मिश्रा का आवेदन फार्म रिजेक्ट न करके उन्हें डायरेक्टर ऑपरेशन के पद पर चयनित कर दिया गया। जिसके चलते दूसरे अभ्यार्थियों का हक मारा गया।
गौरतलब है कि यह वही बीसीके मिश्रा हैं जिन्हें वर्ष 2007 में बगैर एडवारटाइजिंग के पद विज्ञप्ति किए हुए ही नियक्ति दे दी गई थी। उस दौरान भाजपा की सरकार थी। जिसमें वह सांठ- गांठ करके डायरेक्टर ऑपरेशन के पद पर बने रहे। वर्ष 2012 में जब कांग्रेस सरकार आई तो उन्हें हटा दिया गया था। तब उन पर बिना पद विज्ञप्ति हुए नियुक्ति पाने के साथ ही मनेरी भाली परियोजना में सिल्ट निकालने के नाम पर घोटाला करने के भी आरोप लगे थे। उत्तरकाशी स्थित मनेरी भाली परियोजना में सिल्ट हटाने के नाम पर 7 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। जबकि इस परियोजना की यह सिल्ट निकालने का काम 30 से 40 लाख के बीच संपन्न हो सकता था।
मुझे इस मामले में ज्यादा जानकारी नहीं है। अगर कहीं कुछ अनियमिततापूर्ण हुआ है तो उसकी जांच कराई जाएगी।कैप्टन आलोक शेखर तिवारी, अपर सचिव ऊर्जा