अंतरराष्ट्रीय पेय कंपनी कोकाकोला और एमटीवी -इंडिया के टेलीविजन कार्यक्रम ‘कोक स्टूडियो’ की इन दिनों चौतरफा धूम है। यह टीवी कार्यक्रम परंपरागत संगीत को हिप हॉप, रॉक और पॉप संगीत में ढाल नए रूप में प्रस्तुत करता है। इस कार्यक्रम का पहला सीजन 2011 में हुआ था। 2015 में यह कार्यक्रम चौथे सीजन पर रूक गया। 2023 में कोकाकोला ने एक बार फिर से इसे कोक स्टूडियो इंडिया के बैनर तले शुरू किया। प्रसिद्ध गीतकार स्वानंद किरकिरे और कौसर मुनीर वर्तमान में इस कार्यक्रम को देख रहे हैं। उनके द्वारा ही उत्तराखण्ड की लोक गायिका कमला देवी को मुंबई स्थित कोक स्टूडियो में उत्तराखण्डी लोक गीत राजुला मालूशाही रिकॉर्ड करने के लिए चुना गया। इस माह रीलीज हुए गीत ने धूम मचा दी है और कुछ ही दिनों में 80 लाख से अधिक लोगों ने सुन लिया है। कोक स्टूडियो द्वारा ‘सोनचढ़ी’ के नाम से रिलीज किए गए गीत बाद कमला देवी एक स्टार बन चुकी हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ के ‘रोविंग एसोसिएट एडिटर’ आकाश नागर ने उनसे रानीखेत में लंबी बातचीत की
बागेश्वर के छोटे से गांव से निकल कर मुंबई तक के अपने सफर पर प्रकाश डालें?
मुझे बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। झोड़ा चाचरी और घरों में जो जागर लगती थी उसको गाना मुझे अच्छा लगता था। मेरे पिता जी जागर और झोड़ा गाने के बहुत शौकीन थे। जब वे कहीं भी गाने जाते तो मैं उनके साथ जाया करती थी। जब में 10-12 साल की थी तभी मैंने अपने पूर्वजों के झोड़ा चाचरी जागर लगाना सीखा था। मैं हुडकिया बोल उनके पीछे-पीछे गाती थी। हुडका बजाना भी मैंने अपने पिताजी से ही सीखा था। पिताजी के ही मार्ग दर्शन में मैंने हुडका बजाकर राजुला मालूशाही गाने की प्रैक्टिस की थी।
हमारे यहां रात को बारात जाती थी तो रात भर झोड़ा, चाचरी चलता था। यही मुझे कुछ बड़ा गाने को प्रेरित करता रहा। लेकिन इसी दौरान घर चलाने की भी चिंता लगी रहती थी। पति मजदूर थे उनकी कमाई से घर नहीं चलता था। इस लिए मैंने भवाली (नैनीताल) में एक ढ़ाबा खोला था। एक दिन वहां पर मैं खाना बनाते-बनाते एक चाचरी गीत गा रही थी जिसके बोल थे ‘धरमा मोठ काफला, काफला तू पाकलै कब’ तभी वहां भिकियासैंण के शिरोमणि पंत, जो मेरे भाई भी हैं, गुरु भी हैं, वहां पहुंचे। आज मैं जो भी हूं जैसी भी हूं उनकी वजह से हूं। उन्होंने मेरा गाना सुना उन्होंने ही मुझे मंच दिखाया। सबसे पहली प्रस्तुति मेरी देहरादून में हुई। इससे पहले शरदोत्सव नैनीताल में भी प्रस्तुति दी। उसके बाद देश में 200 बड़े शहरों में मेरे द्वारा गाने गाए गए। मैं महिंद्रा फाइनेंस के शो ‘भारत की खोज’ की विजेता भी बनी। दरअसल, गाने तो मैं बहुत दिनों से गाती थी लेकिन मुझे कोई भी बंदा ऐसा नहीं मिला जो मंच प्रदान करा सके। ऐसे में मेरे लिए शिरोमणि पंत जी भगवान के रूप में मिले। नैनीताल महोत्सव में गाए पहले गाने के बोल हैं ‘पार डाना बुरुशि फुलीरे मि जो कुछि मेरी हिरु ऐई रे’।
कोक स्टूडियो में आजकल राजुला मालूशाही का गाना सुपरहिट हो चुका है। यह गाना न केवल हर किसी की जुबान पर है बल्कि देश के बहुत से लोग उत्तराखण्ड की इस प्राचीन प्रेम कथा से भी परिचित हुए हैं। इसकी शुरुआत कैसे हुई?
दिग्विजय परियार नैनीताल के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मुझे कोक स्टूडियो मुंबई तक पहुंचाया। उन्हीं के प्रयासों से मैं वहां तक पहुंची हूं। हल्द्वानी में हमारी रिकॉर्डिंग हुई। उसके बाद हमारी शूटिंग मुंबई में हुई। मैं परियार जी की विशेष आभारी हूं वो मुझे कोक स्टूडियो नहीं ले जाते तो मैं आज भी भवाली में अपने ढाबे पर रोटियां बेलती रहती।
पहाड़ के एक दुर्गम क्षेत्र की महिला को जब यह पता चला कि उसके लिए मुंबई से गाना गाने का ऑफर आया तो वह पल कैसा रहा?
पहली बार हम बरेली से हवाई जहाज में बैठे। मेरे पति का यह पहला हवाई सफर था। वह हवाई जहाज में जब मेरे साथ सफर कर रहे थे तो बहुत खुश थे। उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। वह कह रहे थे कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुंबई जैसे शहर में गाना गाने वह हवाई जहाज में जाएंगे। मुंबई में हमारे लिए खाने-पीने का बहुत अच्छा इंतजाम था। बहुत बड़े शानदार होटल में हमें रूकवाया गया था। हम झोपड़ी में रहने वाले लोग ऊंची-ऊंची इमारत में रहे।
राजुला मालूशाही गाने का कोक स्टूडियो ने आपको कितना मेहनताना दिया?
85 हजार रुपया मिला था।
राजुला मालूशाही का जो पहाड़ी परंपरा वाला गीत संगीत था वह पॉप में फ्यूजन के जरिए गाया गया तो इस पर उत्तराखण्ड के कुछ लोगों को ऐतराज है। आपका क्या कहना है इस संबंध में?
मैं उत्तराखण्ड के अपने सभी लोगों को बताना चाहूंगी कि कोक स्टूडियो वालों ने जो किया वह अपने हिसाब से ठीक ही किया है। अब आगे कोई भी ऐसा गाना गाऊंगी तो पहले उत्तराखण्ड के अपने सहयोगियों से राय मशवरा करूंगी।
क्या उत्तराखण्ड की संस्कृति को दर्शाने वाले राजुला मालूशाही गीत में नेहा कक्कड़ को लाना जरूरी था। उनकी उपस्थिति से इस गीत पर क्या प्रभाव पड़ा है?
ये कोक स्टूडियो मैंनेजमेंट का निर्णय था। मैं इस पर कुछ नहीं कर सकती थी। जहां तक नेहा कक्कड़ की गाने में एंट्री हुई है तो उससे गाना और भी लोकप्रिय हुआ है। हालांकि मुझे इसका पता नहीं था कि मेरे गाने में नेहा कक्कड़ जी भी होंगी। हल्द्वानी में जब राजुला मालूशाही वाले गाने की रिकॉर्डिंग हुई तो तब मेरी और दिग्विजय परियार की ही हुई थी। लेकिन जब हम मुंबई कोक स्टूडियो में गए तो वहां हमें मंच पर नेहा कक्कड़ बहन मिली। उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मुंबई का मेरा बहुत अच्छा अनुभव रहा।
राजुला मालूशाही के अलावा आपके और भी ऐसे गाने हैं जो लोगों की जुबान पर हैं लेकिन वे चर्चाओं में क्यों नहीं है?
आपने सही कहा आजकल प्रचार-प्रसार का युग है जो दिखता है वही बिकता है। मेरे कई गाने ऐसे हैं जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। कई जागर और झोड़ा, चाचरी के अलावा शादी के मंगल गीत है जो लोगों खासकर पहाड़ के लोगों की जुबान पर हैं। जल्दी ही उन गीतों को भी नए रंग रूप में प्रस्तुत करने की योजना पर काम किया जा रहा है। नेहा कक्कड़ के अलावा प्रियंका महर के साथ भी मेरा राजुला मालूशाही का एक गाना ‘एक पाल की जंगला, पालू की छुरी रे’ रीलीज हो चुका है।
जहां जागर गाने पर कभी पुरुषों का ही मालिकाना हक होता था वहां अब आपके माट्टयम से कोक स्टूडियो से एक नया सूरज उगा है?
मैं जब अपने पिताजी के साथ हुडकिया बोल और जागर गाती थी तो लोग मेरा उपहास उड़ाते थे। उस दौर में क्योंकि इस विद्या का गायन केवल पुरुष किया करते थे। हमने जब इस विद्या में कदम रखा तो लोगों ने हमको हेय दृष्टि से देखा और खूब ताने दिए। मैंने लोगों के तानों को चुनौती के रूप में लिया आज मेरे एक -एक गाने को सुनने के लिए लोग उत्सुक हैं। मुझे इतनी जगह बुलाया जा रहा है कि मेरे पास सभी जगह जाकर गाने का समय तक नहीं है। हमारे पहाड़ में महिलाएं अगर ठान ले तो वह हर चुनौति से निपट सकती हैं। अगर मैं उस समय लोगों के तानों से डर कर घर बैठ जाती तो आज मुंबई जैसा मुकाम नहीं मिलता।
जो कमला देवी सजी-ट्टाजी मंच की चकाचौंध में आज दिख रही हैं उनकी माली हालत कैसी है? घर के क्या हालात हैं, क्या इस पर भी कोई सोचता है?
हमारा तो पहले भी संघर्ष था और आज भी संघर्ष ही है। घर निर्माण एक बड़ा मुद्दा है। घर टूटने को तैयार है। दीवारों में दरारें हैं। सरकार से घर बनवाने की फाइल प्रट्टानमंत्री आवास योजना में लगा रखी है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। प्रशंसा से न तो पेट भरता है, न ही घर चलता है। गुजर-बसर के लिए आर्थिक स्थिति का मजबूत होना जरूरी है।
वर्तमान दौर के फूहड़ गीत, डीजे के कानफोड संगीत और सोशल मीडिया पर रील्स पर लगने वाले अश्लील ठुमकों को आप किस रूप में देखती हैं?
इन गीतों का न कोई अर्थ होता है और न ही इनमें पहाड़ की कोई पीड़ा होती है। बस नाचना है, रील्स बनानी है और फॉलोवर बढ़ाने हैं। लेकिन अभी भी हमारे पहाड़ों में ऐसी कई छुपी हुई प्रतिभाएं हैं जो पहाड़ की प्राचीन संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं। आज भी उनके सुरो में पहाड़ों की समस्या है, पहाड़ों के पलायन का दर्द है और रीति-रिवाजां के खत्म होने की चिंता है। जरूरत है ऐसी प्रतिभाओं को सामने लाने की।
उत्तराखण्ड सरकार का आपको कोई सहयोग या सम्मान मिला है या नहीं?
नहीं मुझे कोई सहयोग और सम्मान नहीं मिला है। बस एक दिन अखबार में पढ़ने को मिला था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ट्टामी मेरे गाने से खुश हैं और उन्होंने अखबार में मुझे बट्टाई दी है। उनका मेरे पास एक फोन तक हौसला अफजाही के लिए नहीं आया है।
आपका कोई यूट्यूब चौनल चल रहा है?
मेरा एक यूट्यूब चौनल है ‘कमला देवी लोक गायिका’ लेकिन मेरे साथ वो लोग गलत कर रहे हैं जो मेरे गानों को अपने यूट्यूब चौनल पर चलाकर लाखों रुपए कमा रहे हैं। ऐसे बहुत से चौनल चल रहे हैं। मैं अपने पाठकों और श्रोताओं तथा दर्शकों से अपील करूंगी कि मेरे यूट्यूब चौनल को ही सब्सक्राइब करें और मुझे सहयोग तथा समर्थन देकर पहाड़ की संस्कृति को देश-दुनिया तक पहुंचाएं।
मैं जब अपने पिताजी के साथ हुडकियां बोल और जागर गाती थी तो लोग मेरा उपहास उड़ाते थे। उस दौर में क्योंकि इस विद्या का गायन केवल पुरुष किया करते थे। हमने जब इस विद्या में कदम रखा तो लोगों ने हमको हेय दृष्टि से देखा और खूब ताने दिए। मैंने लोगों के तानों को चुनौती के रूप में लिया आज मेरे एक-एक गाने को सुनने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं। मुझे इतनी जगह बुलाया जा रहा है कि मेरे पास सभी जगह जाकर गाने का समय तक नहीं है। हमारे पहाड़ में महिलाएं अगर ठान ले तो वह हर चुनौती से निपट सकती हैं। अगर में उस समय लोगों के तानों से डर कर घर बैठ जाती तो आज मुंबई जैसा मुकाम नहीं मिलता
आजकल प्रचार-प्रसार का युग है, जो दिखता है वही बिकता है। मेरे कई गाने ऐसे हैं जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। कई जागर और झोड़ा, चाचरी के अलावा शादी के मंगल गीत हैं जो लोगों खासकर पहाड़ के लोगों की जुबान पर हैं। जल्दी ही उन गीतों को भी नए रंग रूप में प्रस्तुत करने की योजना पर काम किया जा रहा है। नेहा कक्कड़ के अलावा प्रियंका महर के साथ भी मेरा राजुला मालूशाही गाना रीलीज हो चुका है ‘एक पाल की जंगला, पालू की छुरी रे’, ये गाना भी मेरा रीलीज हो चुका है
मुझे उत्तराखण्ड सरकार से कोई सहयोग या सम्मान नहीं मिला है, बस एक दिन अखबार में पढ़ने को मिला था कि सीएम पुष्कर सिंह ट्टामी मेरे गाने से खुश हैं और उन्होंने अखबार में मुझे बट्टाई दी है। उनका मेरे पास एक फोन तक हौसला अफजाही के लिए नहीं आया है। हमारा तो पहले भी संघर्ष था और आज भी संघर्ष ही है। घर निर्माण एक बड़ा मुद्दा है। घर टूटने को तैयार है। दीवारों में दरारें हैं। सरकार से घर बनवाने की फाइल प्रधानमंत्री आवास योजना में लगा रखी है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। प्रशंसा से न तो पेट भरता है, न ही घर चलता है। गुजर-बसर के लिए आर्थिक स्थिति का मजबूत होना जरूरी है