आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारी में जोर-शोर से जुटे हैं। कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। इसलिए पीएम मोदी और भाजपा अबकी बार 400 पार और यूपी की 80 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में जिस तरह समाजवादी पार्टी के नेताओं की ‘अंतरात्मा की आवाज जागी है, वह प्रदेश की सियासत में बड़ा अलार्म है। सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि चुनाव से पहले हुए राज्यसभा के चुनावों ने आगे की तस्वीर साफ कर दी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में अभी और ‘अंतरात्मा की आवाज’ जागने वाली है। फिलहाल समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जिस तरीके से ‘अंतरात्मा की आवाज’ पर भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया, उससे उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा गई है।

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा ने जब अपने आठवें प्रत्याशी को सियासी मैदान में उतारा था, तभी इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि यहां की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है। जब मतदान हुआ तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में उबाल आ गया है। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री जैसे पदों पर रहे विधायक भाजपा के पाले में खड़े हो गए। नतीजतन सियासी परिणाम बदले ही नहीं, बल्कि आगे की सियासत के मायने भी बदलने लगे हैं। आशंका जताई जा रही है कि उत्तर प्रदेश में अभी और बड़ी सियासी हलचल मचने जा रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि जो अभी हाल ही में ‘अंतरात्मा की आवाज’ सुनाई दे रही थी वो तो सिर्फ ट्रेलर है पिक्चर अभी बाकी है।

जानकारों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के पाले में जाने के लिए अभी कई अन्य दलों के बड़े नेता संपर्क में हैं। पूर्वांचल के तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा बड़े नेताओं और कुछ विधायकों की बीजेपी के प्रमुख नेताओं और प्रदेश नेतृत्व से मुलाकातें भी चुकी हैं। चर्चा इस बात की हो रही है कि पूर्वांचल में आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया समेत आसपास के अन्य जिलों के कुछ प्रमुख नेता जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता इस बात को स्वीकार करते हैं कि चुनाव से पहले कई बड़े नेता उनकी पार्टी का दामन थामने वाले हैं। सूत्रों की मानें तो इसमें कुछ नेता तो ऐसे हैं जो अपनी चुनिंदा सीटों पर लंबे समय से न सिर्फ चुनाव जीतते आए हैं, बल्कि आसपास की सीटों पर उनका अच्छा खासा असर भी रहता आया है। इनमें से कुछ नेता समाजवादी पार्टी और कुछ बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़े रहे हैं। इसमें पश्चिम से लेकर बुंदेलखंड और मध्य उत्तर प्रदेश के भी कई बड़े नेता भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं।

ऐसे में उत्तर प्रदेश की सियासत में होने वाली उठापटक का असर लोकसभा चुनाव में सीधे तौर पर पड़ेगा या नहीं ये तो चुनाव परिणामों के साथ ही पता चलेगा लेकिन यह तय है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों को जीतने के फॉर्मूले पर जो सियासी बिसात बिछाई है, वह अन्य राजनीतिक दलों में हलचल पैदा कर रही है। गौरतलब है कि इस अंतरात्मा के जगने या फिर उसकी आवाज की कहानी कोई नई नहीं है। यह इतनी पुरानी है कि अंतरात्मा की आवाज ने कांग्रेस को राष्ट्रपति चुनाव तक हरवा दिया था और फिर पूरी कांग्रेस ही दो हिस्सों में टूट गई थी।

अंतरात्मा की आवाज सुनकर ही नीतीश कुमार ने 2017 में महागठबंधन तोड़ने का फैसला लिया था। इसके बाद तो महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे से लेकर अजित पवार तक की अंतरात्मा जगी और फिर उद्धव ठाकरे-शरद पवार किनारे लग गए। जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला है। यहां विधायकों की अंतरात्मा जगी और इसकी वजह से सपा मुखिया अखिलेश यादव के करीबी आलोक रंजन और कांग्रेस के कद्दावर वकील अभिषेक मनु सिंघवी राज्यसभा नहीं पहुंच पाए।

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