पड़ताल
फिर से विभागीय षड्यंत्र के शिकार संजीव चतुर्वेदी
उत्तराखण्ड प्रदेश का वन महकमा अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही विवादों में रहा है। राज्य गठन के बाद वन भूमि पर अवैध कब्जों को राजनीतिक और विभागीय अधिकारियों द्वारा संरक्षण दिया जाता रहा जिसके चलते वन विभाग घोटालों का विभाग बनकर रह गया है। संरक्षित प्रजाति के वृक्षों के अवैध कटान से लेकर भ्रष्टाचार और घोटाले इस विभाग का हिस्सा बन चुके हैं। हालात इतने विकट हैं कि विश्व ख्याति प्राप्त वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने जब अपने अंतर्गत कार्यरत भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जांचें शुरू की तो आरोपित और जांच में दोषी पाए जाने वाले अधिकारी चतुर्वेदी पर फर्जी आरोप लगाकर उनकी छवि को दागदार करने का षड्यंत्र तक रचने लगे हैं
वन विभाग में वर्षों से चले आ रहे घोटाले और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले संजीव चतुर्वेदी भारत के दूसरे नौकरशाह हैं जिनको रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया है। वर्ष 2015 में उनको यह पुरस्कार उनके दायित्व के निर्वहन में प्रतिबद्धता, साहस और शासकीय सेवा में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए दिया गया। पूर्व में आईपीएस किरण बेदी को यह पुरस्कार मिल चुका है। अभी तक केवल दो अखिल भारतीय सेवारत अधिकारियों को ही रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी 2007 में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था लेकिन तब तक वह केंद्रीय आयकर विभाग से इस्तीफा दे चुके थे।
21 दिसंबर 1974 को जन्मे संजीव चतुर्वेदी ने वर्ष 1995 में मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान प्रयागराज से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। 2002 में भारतीय वन सेवा में उनका चयन हुआ और हरियाणा कैडर मिला। पहली पोस्टिंग हरियाणा के कुरूक्षेत्र में मिली। चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला अपनी पहली ही पोस्टिंग में पकड़ तहलका मचा दिया था।
2007 में उन्होंने झज्जर के हर्बल पार्क में हुए बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया। इस मामले में हरियाणा सरकार के कई मंत्री और विधायकों के अलावा अधिकारियों की संलिप्ता को उजागर किया गया था। 2009 में हिसार में वन विभाग में बड़े पैमाने पर चल रहे घोटालों को उन्होंने पकड़ा। इस घोटाले के सामने आने के बाद हरियाणा सरकार का समूचा तंत्र संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ हो गया। लगातार एक के बाद एक विभागीय घोटाले और भ्रष्टाचार के उजागर करने के चलते चतुर्वेदी पर भारी दबाव भी बनाया गया और उनको अनेक प्रकार से परेशान किया जाने लगा। इसी के तहत 2009 में संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ एक जूनियर कर्मचारी के उत्पीड़न का आरोप तब लगाया गया था। साफ तौर पर यह मामला चतुर्वेदी की भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति चलते लगाया गया था क्योंकि जल्द ही वे इस आरोप से मुक्त हो गए थे। आखिरकार 2010 में संजीव चतुर्वेदी ने केंद्र सरकार को केंद्र मंे प्रतिनियुक्ति का आवेदन किया। 2012 में संजीव चतुर्वेदी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद पर तैनाती मिली।
संजीव चतुर्वेदी एम्स दिल्ली में मुख्य सतर्कता अट्टिाकारी बने तो उन्होंने एम्स में एक के बाद एक बड़े-बड़े घोटाले और अनियमितताओं के मामले उजागर कर डाले। एम्स, नई दिल्ली में संजीव चतुर्वेदी द्वारा करीब 200 से भी ज्यादा मामलों को उजागर किया गया जिसमें 78 मामलांे में आरोपियों को सजा भी हुई और 87 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई। करीब 20 मामले सीबीआई को सौंपे गए। इनमें बड़े पैमाने पर नकली दवाइयों की सप्लाई का मामला भी शामिल है।
2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी सरकार वजूद में आई। केंद्र सरकार की देशभर में एम्स के विस्तार के लिए 3 हजार 7 सौ 50 करोड़ की योजना शुरू की गई। इस योजना पर संजीव चतुर्वेदी ने धांधली और कुछ खास लोगांे को फायदा पहुंचाने के प्रयास के खिलाफ कई गंभीर सवाल खड़े किए। इसके बाद संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ फिर से सरकारी तंत्र खड़ा हो गया। यहां तक कि तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने और खास लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप भी लगे। सम्पूर्ण विपक्ष ने इस मामले में मोदी सरकार और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
केंद्र्र सरकार और संजीव चतुर्वेदी के बीच विवाद बहुत बढ़े तो आखिरकार उनको एम्स से हटा दिया गया। तब उनके स्थानांतरण को लेकर केंद्र्र सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगे थे क्योंकि तब तक विपक्ष और आम जनता में संजीव चतुर्वेदी की छवि ईमानदार और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक योद्धा के तौर पर बन चुकी थी। एम्स कर्मचारी संघ ने इस ट्रांसफर का तब खुलकर विरोध किया था। दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा में कांग्रेस की हुड्डा सरकार के भ्रष्टाचार के मामलांे को उजागर करने पर जिस तरह से संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ कांग्रेस सरकार और उसका तंत्र एक हो गया था ठीक उसी तरह से एम्स से संजीव चतुर्वेदी की विदाई के लिए भाजपा सरकार और उसका तंत्र सक्रिय रहा।
आखिरकार केंद्र्र सरकार द्वारा संजीव चतुर्वेदी का कैडर बदल उन्हें उत्तराखण्ड भेज दिया गया। राज्य सरकार ने चतुर्वेदी को हल्द्वानी में मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान वृत के पद पर तैनात किया। संजीव चतुर्वेदी भारत के ऐसे नौकरशाह हैं जिन्हें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उच्च्तम न्यायालय और उच्च न्यायालय के साथ- साथ अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। हरियाणा कैडर में काम करते हुए राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2008 से लेकर 2014 के बीच उनके पक्ष में चार बार ‘असाधारण आदेश’ पारित किए गए जो कि देश के किसी नौकरशाह के लिए नहीं हुए हैं। यह आदेश तत्कालीन हुड्डा सरकार द्वारा केंद्र को उनकी बर्खास्तगी की संस्तुति को रद्द करने की बाबत थे।
भ्रष्ट अधिकारियों के निशाने पर चतुर्वेदी
उत्तराखण्ड में तैनात होने के बाद और अपने पूर्व के कटु अनुभवों के बावजूद संजीव चतुवेर्दी ने उत्तराखड में अपनी कार्यशैली की छाप छोड़ने में कोई कमी नहीं की। भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर उनके कदम रूके नहीं और अपनी तैनाती से लेकर मौजूदा समय तक वे अनेक भ्रष्टाचार, घपलांे तथा अनियमितताओं के मामले उजागर कर चुके हैं। जिसमें कइयों के खिलाफ कार्यवाही भी हुई है। साढ़े चार वर्ष के कालखंड में चतुर्वेदी द्वारा 13 लघु श्रेणी और 5 दीर्घ श्रेणी के दंडात्मक आदेश विभिन्न भ्रष्टाचार के मामलांे में जारी किए गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इन मामलों में महज दो प्रकरणों में विभागीय और न्यायिक अपील दायर हुई है, शेष मामलों में कोई अपील भी दर्ज नहीं की गई।
संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के साथ ही कई वन क्षेत्राधिकारियों और वन आरक्षियों, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों द्वारा प्रदेश के वन मंत्री सुबोध उनियाल एवं प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) को भेजा गया एक शिकायती पत्र इन दिनों चर्चाओं में है। इस पत्र में संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए शिकायत की गई है, उनके द्वारा कर्मचारियों के साथ मारपीट और अपशब्द कहने के भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। साथ ही इस पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री को भी भेजी गई है।
इस पत्र में संजीव चतुर्वेदी पर आरोप लगाया गया है कि उनके द्वारा अनुसंधान वृत में ऑफिस और फील्ड कर्मचारियों पर अनुशासन के नाम पर कार्यवाही करके उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। सबसे बड़ा गम्भीर आरोप यह लगाया गया है कि अनुसंधान से इतर कार्य करवाए जा रहे हैं और बाहरी राज्यों के पौधों को मंगवाया जा रहा है जो कि प्रदेश की जलवायु के अनुकूल नहीं हैं और इन पौधो की क्षति होने पर कर्मचारियों का उत्पीड़न करके उनसे वसूली की जा रही है। साथ ही कर्मचारियों के साथ अपशब्दों का प्रयोग संजीव चतुर्वेदी द्वारा किया जाता है। यह भी आरोप लगाया गया है कि विभागीय बैठक में वन क्षेत्राधिकारी गोपाल दत्त जोशी को कुर्सी से उठाकर उनके साथ गली-गलौच करने और उन पर हाथ उठाने का प्रयास किया गया है। यहां तक कि खुली बैठक में प्रधनमंत्री, मुख्यमंत्री और वन मंत्री के खिलाफ अपशब्दों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कम बजट देकर अधिक कार्य करवाना फिर कार्य की जांच और कर्मचारियों से उसकी वसूली करवाने जैसे गम्भीर आरोप लगाए गए हैं।
दरअसल, जो पत्र संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा वन मंत्री को दिया गया है उस पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं। उक्त पत्र में न तो किसी अधिकारी के हस्ताक्षर हैं और न ही उसमें कोई तारीख दर्ज की गई है। यही नहीं वह पत्र किसी विभागीय संगठन या संस्था के लेटर पैड पर नहीं लिखा गया है।
विनोद चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वन क्षेत्राधिकारी संघ की मुहर के नाम से एक पत्र जिसमें वन विभाग के 12 रेंजरों के नाम और 10 लोगों के हस्ताक्षर किए हुए हैं, भी चर्चाओं में है। विनोद चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वन क्षेत्राधिकारी संघ की मुहर के नाम से एक अन्य पत्र भी वन मंत्री को सम्बोधित करके लिखा गया है जिसमें 24 अधिकारियों और कर्मचारियों के नाम और उनके टेलीफोन नम्बरों का भी उल्लेख किया गया है। इस पत्र में भी किसी के हस्ताक्षर और तारीख का उल्लेख नहीं किया गया है।
गौर करने वाली बात यह है कि इन पत्रों में ज्यादातर नाम ऐसे हैं जिनके खिलाफ चतुर्वेदी द्वारा की गई जांच में दोषी पाए जाने पर विभागीय कार्यवाही हो चुकी है और कइयों का निलम्बन किया गया है। 16 कर्मचारियों पर निलम्बित और वसूली की कार्यवाही की गई है। दो अधिकारियों को आरोप पत्र दिया गया है जिसके चलते एक वन क्षेत्राधिकारी की पदोन्नति बाधित हुई है।
इस प्रकरण में एक बात तो साफ तौर पर उभर कर आ रही है कि जिन लोगों के खिलाफ संजीव चतुर्वेदी द्वारा धांधली और भ्रष्टाचार, अनियमितता के मामलों में जांच के बाद विभागीय कार्यवाही की गई है उनके ही नाम से पत्र लिखे गए हैं जिसके चलते यह शिकायती पत्र संदिग्ध प्रतीत होते हैं। साथ ही कई ऐसे भी नामों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने यह माना है कि उनके द्वारा ऐसा कोई पत्र न तो लिखा गया है और न ही उनके संज्ञान में यह मामला है।
‘दि संडे पोस्ट’ ने कई अधिकारियों और कर्मचारियों से इस मामले में बात करने का प्रयास किया लेकिन उनके टेलीफोन नम्बर बंद आ रहे हैं। जिस अधिकारी के साथ संजीव चतुर्वेदी द्वारा उत्पीड़न और गाली-गलौच के साथ-साथ हाथ उठाने का प्रयास करना बताया जा रहा है वही अधिकारी इस मामले का ख्ंाडन कर रहा हेै तो मामला बेहद गम्भीर नजर आ रहा है। इससे यह साफ हैे कि वन विभाग के कर्मचारियों जिन पर वसूली और निलम्बन की कार्यवाही की गई है उनके द्वारा चतुर्वेदी पर मिथ्या आरोप लगाए जा रहे हैं।
अगर पत्र में उल्लेखित अधिकारियों और कर्मचारियों के नामों और उन पर विभागीय कार्यवाही के मामलों को देखें तो विनोद चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वन क्षेत्राधिकारी संघ द्वारा 20 फरवरी 2024 को भी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ शिकायत की गई थी। लेकिन इस मामले की जांच के दौरान विनोद चौहान द्वारा पुलिस अधीक्षक देहरादून को लिखित में दिया गया था कि उनके फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा सजीवं चतुर्वेदी के खिलाफ झूठे आरोप लगाए जाने पर विनोद चौहान के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी भी की है। यह मामला विनोद चौहान द्वारा अपने घुटनों में समस्या बताकर अपना दायित्व न निभाने का दबाव बनाया गया था जिसे संजीव चतुर्वेदी द्वारा माना नहीं गया। इस मामले में राजकीय चिकित्सालय हल्द्वानी के विशेष मेडिकल बोर्ड ने जांच करके विनोद चौहान को घुटने की कोई भी बीमारी न होने का प्रमाण दिया। इसके बाद विनोद चौहान को दोषी पाते हुए दंडात्मक कार्यवाही के आदेश जारी किए। हैरत की बात यह है कि आज तक विनोद चौहान पर दंडात्मक कार्यवाही नहीं हुई है।
इसी प्रकार धर्मानंद सुयाल द्वारा सरकारी आवास में रहने के बावजूद विभाग से आवास भत्ता लिया जाता रहा जिसको चतुर्वेदी द्वारा उजागर किया गया और सुयाल पर मुकदमा दर्ज करवाया गया। इस मामले में यह भी निकल कर आया है कि धर्मानंद सुयाल द्वारा अपने पर लगे आरोपों को स्वीकार किया गया था। ललित मोहन खाती पर वन अनुसंधान उत्तरकाशी रहते हुए सरकारी धनराशी के आहरण और उसके कम खर्च करने के विरुद्ध जांच में दोषी पाया गया जिस पर उन्हंे निलम्बित किया जा चुका है और विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही चल रही है।
पत्र में जिन गोपाल दत्त जोशी का नाम शामिल है जो कि अपने नाम का झूठा लिखे जाने की बात कर रहे हैं, उन पर भी विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर निलम्बन की कार्यवाही की गई है। दिलचस्प बात यह है कि पत्र में सबसे पहले लिखा गया नाम कुंदन सिंह का है जो कि प्रभागीय वन अधिकारी हैं, ने स्वयं गोपाल दत्त जोशी के वन अनुंसट्टाान रेंज के कार्यकाल में एक परियोजना में बरती गई अनियमितता की जांच की थी और उन्हें दोषी पाया गया था। संदीप रावत के विरुद्ध वित्तीय अनियमितता के चलते कार्यवाही की गई है तो मदन सिंह बिष्ट पर रोज गार्डन की स्थापना के निर्माण कार्य पूरे हुए बगैर ही भुगतान किए जाने के आरोपों की जांच में दोषी पाया गया है।
स्पष्ट है कि संजीव चतुर्वेदी ने वन विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच में चम्पावत डीएफओं के अलावा अन्य कई जांच की और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने की संस्तुति करके वन विभाग में चले आ रहे घपलों पर कार्यवाही का कदम उठाया जिससे वन विभाग में हडकंप मच गया है। पहली बार किसी भारतीय वन सेवा के बड़े अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की संस्तुति की गई है, इससे उनके खिलाफ वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों में बड़ी नाराजगी बढ़ गई थी। माना जा रहा हैे कि उनके खिलाफ इस तरह से शिकायत पत्र और आरोप उसी का एक हिस्सा भर है।
हाल ही में संजीव चतुर्वेदी द्वारा चम्पावत वन प्रभाग में पेड़ों की गणना का बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है। इस मामले में चम्पावत वन प्रभाग कार्ययोजना के तहत वृक्ष प्रजाति, वृक्षों की गणना की गई। 73 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले पश्चिमी क्रातेश्वर वन क्षेत्र में 20394 वृक्ष बताए गए थे लेकिन जांच में महज 6066 ही वृक्ष पाए गए। हैरत की बात यह है कि 2011 और 2012 के डाटा में भी यही संख्या दर्शाई गई थी। 12 वर्ष के बाद भी चम्पावत वन प्रभाग के पश्चिमी क्रातेश्वर क्षेत्र में 20394 पेड़ों का पाया जाना अपने आप में मामले को संदिग्ध होना माना जा सकता है। इसी को लेकर संजीव चतुर्वेदी को शक हुआ और इसकी जांच करवाई गई जिसमें मामला साफ हो गया कि विभागीय अधिकारी और कर्मचारी सही से गणना तक नहीं करते और पुराने डाटा को ही नए क्लेवर के साथ विभाग में प्रस्तुत कर देते हैं। जांच के बाद चतुर्वेदी द्वारा प्रभागीय वन अधिकारी चम्पावत को कार्ययोजना में शामिल कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए कहा गया हैं।
कार्ययोजना में घपलों का मामला अभी चम्पावत वन प्रभाग का ही सामने आया है। अगर सभी वन प्रभागों की जांच हो तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं। स्पष्ट है कि कार्ययोजना में घपले की पोल खुलने से वन विभाग के अधिकारी या कर्मचारियों में भय हो और वे संजीव चतुर्वेदी पर उत्पीड़न के आरोप लगा रहे हों।
बहरहाल इस मामले ने एक बार फिर से प्रदेश में बेहतर कार्य करने वाले ईमानदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय षड्यंत्र का खेल सामने रख दिया है। हालांकि अभी इन शिकायती पत्रों की सच्चाई की जांच होनी बेहद जरूरी है। जिस तरह पूर्व मंे संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उनकी छवि को दागदार करने का प्रयास होता रहा है जो कि उत्तराखण्ड में भी हो रहा है। इस प्रकार के 8 मामले उनके खिलाफ हो चुके हैं जिनमें वे पाक-साफ निकले हैं। जानकारों की मानें तो इस मामले में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। चतुर्वेदी के भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति से विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों में भय तो निश्चित बना हुआ है। कई मामलों में तो बड़े अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आ चुकी है।
एक समाचार पत्र के अनुसार विगत 18 वर्षों में उत्तराखण्ड के पांच जिलों में 547 वर्ग किमी वन भूमि पर वन कम होने का खुलासा किया गया है। साथ ही राज्य के सभी 13 जिलों में 104 वर्ग किमी वन भूमि पर अवैध निर्माण और कब्जे हो चुके हैं। यह खुलासा साफ करता हेै कि समूचा वन महकमा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति कितना संवेदनशील बना हुआ है। कुछ समय पूर्व ही उत्तरकाशी और चकराता क्षेत्र में हजारों संरक्षित प्रजाति के वृक्षों का अवैध कटान का मामला सामने आ चुका है।
बात अपनी-अपनी
जो यह शिकायती पत्र घूम रहा है उसमें न तो कोई तारीख पड़ी है और न ही किसी संगठन के पत्र में कोई तारीख पड़ी हुई है। लेकिन इस पत्र को खूब घुमाया जा रहा है। कई मामलों में मेरे द्वारा कार्यवाही की गई है जिसमें कई अधिकारी और कर्मचारियों के नाम आए हैं इसके चलते मेरी छवि को खराब करने का ही प्रयास किया जा रहा है। मैं तो कानून का आदमी हूं और कानून के तहत काम करता हूं। अभी कुछ दिन पहले मेरे द्वारा चम्पावत वन प्रभाग में वृक्षों की गणना में हुए, घपले पर मैंने डीएफओ चम्पावत का मामले में शामिल कर्मचारियों पर कार्यवाही के लिए लिखा है। मुझे लगता है यह सब उसी का मामला है।
संजीव चतुर्वेदी, मुख्य वन सरंक्षक, अनुसंधान वृत, हल्द्वानी उत्तराखण्ड
मुझे ऐसे किसी शिकायती पत्र की जानकारी नहीं है और न ही मुझे ज्ञात है कि किसी ने मेरा नाम और टेलीफोन नम्बर शिकायती पत्र में दिया है।
कुंदन सिंह, प्रभागीय वन अधिकारी
सर मुझे जान-बूझकर इस मामले में घसीटा जा रहा है। मेरे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई है और न ही मेरे साथ सीसीएफ साहब ने कोई गाली-गलौच की है। एक षड्यंत्र के तहत मेरा नाम और मेरा टेलीफोन नम्बर लिखा गया है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।
गोपाल दत्त जोशी, वन क्षेत्राधिकारी
मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता।
ललित मोहन खाती, उप वन क्षेत्राधिकारी