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अबकी बार फिर हसीना सरकार?

भारत के दो पड़ोसी देशों-पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी इस वर्ष आम चुनाव होने जा रहे हैं। बांग्लादेश में सात जनवरी को मतदान होना है। वहां का विपक्ष इन चुनावों के बहिष्कार की घोषणा कर चुका है। उसका आरोप है कि शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते निष्पक्ष चुनाव होने की संभावना नहीं है। पश्चिमी देश भी उनकी कार्यशैली से नाराज हैं लेकिन बीते पंद्रह बरसों से सत्ता में काबिज हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश एक सम्पन्न राष्ट्र बन उभरा है जिसके चलते आम जनता का एक बड़ा तबका एक बार फिर से शेख की ताजपोशी चाह रहा है। ऐसे में तमाम विरोधों के बावजूद उनका एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनना तय प्रतीत हो रहा है

साल  2024 में दुनिया के कई मुल्कों में आम चुनाव होने हैं लेकिन भारत में सबसे ज्यादा चर्चा एक ओर जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी को लेकर हो रही है वहीं दूसरी तरफ पकिस्तान और बांग्लादेश की चर्चा भी जोरों पर है। सवाल उठ रहे हैं कि पाकिस्तान में इमरान जेल से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंच पाएंगे या पाकिस्तान लौटे नवाज गद्दी संभालेंगे? बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार बनेगी या खालिदा जिया की पार्टी हुकूमत को बदल देगी? ऐसे सवाल सिर्फ भारत में नहीं पूछे जा रहे, बल्कि पड़ोसी देशों की जनता की जुबान पर ये ही सवाल है कि अबकी बार किसकी सरकार?

इनमें सबसे पहले जिस देश में आम चुनाव होने वाला है वो बांग्लादेश है। यहां सात जनवरी को आम चुनाव के लिए मतदान होना है लेकिन इसके परिणाम से पहले ही सत्तारूढ़ आवामी लीग पार्टी की जीत तय मानी जा रही है। क्योंकि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) चुनाव का बहिष्कार कर रही है और वहीं उसके कई नेता जेल में हैं। इसलिए माना जा रहा है कि सत्तारूढ़ आवामी लीग लगातार चौथी बार संसदीय चुनाव जीतने जा रही है। सबसे बड़े विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि उनका प्रधानमंत्री शेख हसीना में भरोसा नहीं है कि वो स्वतंत्र और निष्पक्ष

चुनाव कराएंगी। उनकी मांग है कि वो पद छोड़ दें और एक तटस्थ
अंतरिम सरकार की निगरानी में चुनाव की अनुमति दें। इस मांग को हसीना खारिज कर चुकी हैं और इस कारण बैलेट पेपर पर सिर्फ आवामी लीग, उनके सहयोगी या स्वतंत्र उम्मीदवार ही नजर आएंगे। खास बात यह कि भारत के लिए यह चुनाव बहुत मायने रखता है इसलिए भारतीयों की दिलचस्पी लाजमी है।

बीएनपी ने क्यों किया चुनाव का बहिष्कार?

बांग्लादेश में विपक्ष को दरकिनार करते हुए चुनाव होने जा रहे हैं। विपक्ष ने हसीना सरकार पर अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने का आरोप लगाया है। विपक्ष की मांग थी कि सत्तारूढ़ अवामी लीग प्रमुख हसीना आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का पद छोड़ दें और एक तटस्थ अंतरिम सरकार की निगरानी में चुनाव कराए जाएं। प्रधानमंत्री हसीना ने इन सभी मांगों को खारिज कर दिया, जिससे बाद बीएनपी ने चुनाव में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।

बीएनपी ने क्या आरोप लगाए हैं?

बीएनपी के दिग्गज नेता अब्दुल मोईन खान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र मर गया है। हम जनवरी में जो देखने जा रहे हैं, वो फर्जी चुनाव हैं। प्रधानमंत्री हसीना पिछले कुछ सालों में तेजी से निरंकुश हुई हैं। हसीना सरकार ने 20 हजार से अधिक हमारे कार्यकर्ताओं को फर्जी आरोपों में गिरफ्तार किया है, जबकि लाखों की संख्या में पार्टी के कार्यकार्ताओं पर केस दायर किए गए हैं।

चुनाव बहिष्कार पर सरकार का पक्ष?

विपक्ष के चुनाव बहिष्कार को लेकर सरकार के कानून मंत्री अनीसुल हक ने कहा, चुनाव लोगों की वोटिंग में भागीदारी से निर्धारित होते हैं। इस बार चुनाव में बीएनपी को छोड़कर बाकी कई राजनीतिक दल हिस्सा ले रहे हैं। मैंने बीएनपी कार्यकर्ताओं को हिरासत में रखने के आरोपों की जांच की और ये अधूरी जानकारी है। 2001 और 2004 के चुनावों के दौरान हुई हिंसक घटनाओं के मामलों में पार्टी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां हुई हैं।

कितने सही हैं विपक्ष के आरोप?

हाल ही में ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में विपक्षी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए इसे हसीना सरकार की दमनकारी नीति बताया गया था। आंकड़े बताते हैं कि हसीना सरकार के कार्यकाल में राजनीति से प्रेरित गिरफ्तारियां, हत्याएं और शोषण बढ़ा है। कई विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में जबरन जेलों में बंद किया गया है। आलोचकों का तर्क है कि चुनाव से पहले बीएनपी को कमजोर करने के लिए सरकार ने जानबूझकर ऐसा किया है।

भारत के साथ कैसे हैं बांग्लादेश के रिश्ते?

पश्चिमी देशों की आलोचना के बाद भी बांग्लादेश में चुनाव हो रहे हैं। यह उसकी बढ़ती आर्थिक ताकत को दिखाता है। चीन के बाद बांग्लादेश दुनिया का सबसे बड़ा कपड़ों का निर्यातक है। भारत भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बांग्लादेश के साथ खड़ा नजर आता है और दोनों देशों के बीच 2 हजार करोड़ डॉलर से ज्यादा का सालाना व्यापार होता है। हसीना सरकार में बांग्लादेश- भारत के रिश्ते मजबूत हुए हैं और भारत को चीन-पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश की जरूरत है।

जानकारों का कहना है कि भारत बांग्लादेश के रास्ते अपने सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में सड़क और नदी परिवहन चाहता है। साथ ही भारत ‘चिकेंस नेक’ को लेकर चिंतित है। ये एक 20 किलोमीटर का कॉरिडोर है जो नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के बीच से निकलता है और उत्तर-पूर्वी राज्यों को बाकी भारत से जोड़ता है। वर्ष 2009 में सत्ता में लौटने के बाद हसीन ने भारत का पक्ष लेते हुए उन जातीय उग्रवादी समूहों के खिलाफ काम किया जो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय थे और सीमा पार से ऑपरेट करते थे। साथ ही ये भी चिंताएं हैं कि अगर ढाका पर और दबाव डाला गया तो वो चीन की ओर भी जा सकता है।
बीजिंग पहले से ही बांग्लादेश में अपनी पहुंच बनाने के लिए बेकरार है क्योंकि वो भारत से भी मुकाबला करना चाहता है।

गौरतलब है कि करीब 75 साल की शेख हसीना साल 2009 से लगातार सत्ता में है। वह 2024 में भी रिकॉर्ड पांचवीं बार पीएम पद की दावेदार हैं। आम चुनाव में वह जीतीं तो किसी देश की लगातार पांच बार चुनी हुई प्रधानमंत्री रहने वाली दुनिया में अकेली महिला नेता हो जाएंगी। बांग्लादेश की संसद को जातियों संसद या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है। 200 एकड़ में फैली जातियों संसद की नई इमारत 15 फरवरी 1982 को बनकर तैयार हुई थी। बांग्लादेश की संसद में कुल 350 सीटें हैं। इनमें से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। संसद में 300 सदस्य वोटिंग के जरिए चुने जाते हैं और महिलाओं के लिए रिजर्व 50 सीटें वोट शेयर के आधार पर बांटी जाती हैं। संसद में  महिलाओं के लिए सीट रिजर्व करने के मामले में दुनिया में बांग्लादेश ही एकमात्र मुस्लिम-बहुल देश है।

शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश की एक अलग तस्वीर सामने आई है। मुस्लिम बहुल राष्ट्र जो कभी दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल था, उसने हसीना के कार्यकाल में ऐतिहासिक आर्थिक प्रगति हासिल की है। इस क्षेत्र में ये सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था से भी आगे निकल रही है। इसकी प्रति व्यक्ति आय बीते दशक में तीन गुनी हो गई है और वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि बीते 20 सालों में 2.5 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से निकले हैं। देश के अपने फंड्स, लोन्स और विकास मदद से हसीना की सरकार ने बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की हैं जिसमें उनकी सरकार की सबसे बड़ी फ्लैगशिप योजना 2.9 अरब डॉलर की पद्मा ब्रिज एक है। यह योजना गंगा के किनारे बन रही है। माना जा रहा है कि यह पुल उसकी जीडीपी में 1.23 फीसदी की बढ़ोतरी लाएगा।

न्यायिक प्रताड़ना रोकने की मांग

पिछले साल अगस्त में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, वर्जिन ग्रुप के संस्थापक रिचर्ड ब्रैनसन और यूटू लीड सिंगर बोनो समेत 170 से अधिक दुनिया की प्रमुख हस्तियों ने नोबेल विजेताओं मोहम्मद यूनुस की ‘लगातार न्यायिक प्रताड़ना’ रोकने की मांग की थी लेकिन इस बीच आम चुनाव से ठीक एक हफ्ते पहले बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ ़ मोहम्मद यूनुस को साल 2024 के पहले ही दिन यानी एक जनवरी को एक अदालत ने श्रम कानून के उल्लंघन के आरोप में छह महीने जेल की सजा सुनाई है।

सात जनवरी को होने वाले आम चुनाव से पहले हुए इस घटनाक्रम को यूनुस के समर्थकों ने राजनीति से प्रेरित बताया है। श्रम अदालत की न्यायाधीश शेख मेरिना सुल्ताना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उनके खिलाफ श्रम कानून का उल्लंघन करने का आरोप सिद्ध हो चुका है। न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि यूनुस को एक व्यावसायिक कंपनी के तीन अन्य अधिकारियों के साथ ग्रामीण टेलीकॉम के अध्यक्ष के रूप में कानून का उल्लंघन करने के लिए छह महीने की साधारण कारावास की सजा काटनी होगी।

दूसरी तरफ विपक्ष की प्रमुख नेता खालिदा जिया इस समय भ्रष्टाचार के मामले में नजरबंद हैं और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं। वहीं जमीन पर बीएनपी के पास कोई करिश्माई नेता नहीं है। विपक्षी नेताओं और समर्थकों की लगातार गिरफ्तारी और सजा देने के बाद यह स्थिति और भी जटिल हो गई है। विपक्षी दलों का तर्क है कि चुनाव से पहले बीएनपी को कमजोर करने के लिए आवामी लीग ने जानबूझकर ऐसा किया है।

मानवाधिकार को लेकर चिंतित संयुक्त राष्ट्र
बांग्लादेश में लगातार बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति को लेकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां चिंतित हैं। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के कार्यालय एशिया-पैसिफिक के प्रमुख रॉरी मुंगोवेन का कहना है कि बांग्लादेश में वर्तमान परिदृश्य एक ही घटना के मामले में हजारों विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को घेरने जैसा दिखता है।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के दूतों के एक समूह ने बीते नवंबर में भी चेताया था कि न्यायिक सिस्टम को हथियार की तरह इस्तेमाल करके पत्रकारों, मानवाधिकार और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता कम हुई है और मूलभूत मानवाधिकार को नुकसान पहुंचा है। लेकिन बांग्लादेश के वर्तमान कानून मंत्री हक का कहना है कि सरकार का न्यायालय से कोई लेना देना नहीं है। देश में न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है।

मानवाधिकार समूहों को न केवल बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां और सजाएं चिंता में डाल रही हैं बल्कि साल 2009 से अब तक सुरक्षाबलों की हिरासत में हत्याओं और जबरन गायब कर देने के सैकड़ों मामले उनके पास हैं। इस तरह के दुर्व्यवहार के पीछे खुद के हाथ होने को सरकार पूरी तरह खारिज करती है साथ ही वो इन मामलों की जांच करना चाह रहे हैं। साल 2021 में कुख्यात पैरा-मिलिट्री फोर्स रैपिड एक्शन बटालियन और उसके सात वर्तमान-भूतपूर्व अफसरों पर पाबंदी लगाने के अमेरिका के फैसले के बाद हिरासत में हत्याओं की संख्या में गिरावट आई है। हालांकि अमेरिका के सीमित प्रतिबंधों के कारण बांग्लादेश में मानवाधिकार स्थिति ठीक नहीं हुई है। इसी वजह से कुछ राजनेता पश्चिमी देशों की ओर से और कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

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