उत्तर प्रदेश में जब से सपा और बसपा के बीच गठबंधन का एलान हुआ है प्रदेश भाजपा से लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तक में हड़कंप मचा हुआ है। फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों में मिली हार के बाद कैराना और नूरपुर के लिए हुए उपचुनावों में भाजपा नेतृत्व ने जीत हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। लेकिन विपक्षी एकता के सामने उनका हर प्रयास विफल साबित हो गया। विपक्षी खेमे में उपचुनावों की जीत के बाद ऊर्जा का भारी संचार हुआ जिसे कर्नाटक के राजनीतिक द्घटनाक्रम ने ताकत देने का काम किया। अब लेकिन मायावती के बदले सुर विपक्षी नेताओं को बेसुरे लगने लगे हैं। बहनजी ने मध्य प्रदेश में गठबंधन के बजाय सभी दो सौ तीस सीटों में चुनाव लड़ने की बात कही है। उन्होंने छत्तीसगढ़, राजस्थान और बिहार में भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी उतारने के संकेत दिए हैं। यहां तक कि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनावों में सपा के पक्ष में अपील करने के बाद कैराना लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में मायावती ने गठबंधन प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं दिया। राजनीतिक हलकों में इस बात को लेकर नाना प्रकार की चर्चाएं हैं। यह कहा जा रहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का भय मायावती को गठबंधन की राजनीति से दूर ले जा रहा है। विपक्षी एकता की धुरी बन रही ममता बनर्जी मायावती को साधने की नीयत से ही विपक्षी दलों की बैठक लखनऊ में बुलाने का प्रयस कर रही हैं।

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