निजी रेल तेजस को खुद किराया करने की छूट किसने दी है ? यह सवाल अब हर किसी के जेहन में उठ रहे है। दिल्ली से लखनऊ की महज 416 किलोमीटर की दुरी तय करने के लिए यात्रियों को भारी भरकम किराया चुकाने के लिए आखिर किस विभाग या मंत्रालय ने खुली छूट दे दी है ? विमान यात्रा की तरह ट्रैन में होस्टेस सेवा देने से ही क्या यात्रियों की जेब काटने का लाइसेंस मिल जाता है ? अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में चलाई जाने वाली 100 से भी अधिक निजी ट्रैनो में मनमर्जी का किराया वसूल करने की भेड़चाल शुरू हो जाएगी।

निजी रेलवे की व्यवस्था क्या अब विमानन सेक्टर की तरह हो गई है, जिसमें ट्रेन चलाने वाली निजी कंपनियां अपना किराया खुद तय करेंगी? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि पहली निजी ट्रेन तेजस का किराया इसे चलाने वाली कंपनी खुद ही तय कर रही है। दिल्ली से लखनऊ तक की छह घंटे तक की यात्रा के लिए इसका किराया ढाई हजार रुपए के करीब है। यह सही है कि कंपनी ने इसमें यात्रियों के लिए कई तरह की सुविधाएं दी हैं और विमानों की तरह होस्टेस भी रखे हैं। फिर भी जानकारों का मानना है कि यह रेलवे के नियमों का उल्लंघन है।

आमतौर पर रेल किराया सरकार तय करती है। जब तक रेलवे का अलग बजट पेश किया जाता था तब तक सबसे ज्यादा लोगों की दिलचस्पी इस बात में होती थी कि किराया बढ़ाया जा रहा है या नहीं। किराया नहीं बढ़ाया जाना बजट की सबसे बड़ी खबर होती थी। जाहिर है यह फैसला रेल मंत्रालय बजट के जरिए करता था और इस पर संसद की मुहर लगती थी। पर अब सरकार ने निजी ट्रेन चलाने का फैसला भी खुद ही कर लिया और किराया तय करने की जिम्मेदारी भी कंपनियों को खुद ही दे दी।

रेलवे के जानकार इस पर सवाल उठा रहे हैं कि कोई निजी कंपनी कैसे अपना किराया खुद तय कर सकती है। इस सवाल को जल्दी ही सुलझाना होगा क्योंकि सरकार जल्दी ही डेढ़ सौ ट्रेन और 50 रेलवे स्टेशन निजी हाथों में देने जा रही है। तभी कहा जा रहा है कि निजी कंपनियां अपने हिसाब से स्टेशनों पर सारी सेवाओं के दाम तय करेंगी और ट्रेनों को किराए तय करेंगी तो क्या इससे आम यात्रियों को परेशानी नहीं होगी? सरकार इन ट्रेनों को समय पर चलाने के लिए इन्हें तरजीह भी देगी तो उससे भी आम यात्रियों की परेशानी बढ़ सकती है।