उत्तराखण्ड में जिसकी भी सरकार रही है वो राजनीतिक दल उपचुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब रहा है। इस हिसाब से देखा जाए तो मंगलौर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा मजबूत है लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। अभी तक के रुझानों से भाजपा यहां मुकाबले से बाहर नजर आ रही है। इस सीट पर अब तक हुए पांच विधानसभा चुनाव में चार बार बसपा और एक बार कांग्रेस को जीत मिली है। भाजपा ने यहां से पैराशूट प्रत्याशी हरियाणा के बाहुबली और धनबली नेता करतार सिंह भड़ाना को टिकट देकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। हाजी और काजी का गढ़ कहे जाने वाले मंगलौर विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार हेलीकॉप्टर के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा कभी यहां से अपना खाता नहीं खोल पाई। इस बार उपचुनाव में सत्ताधारी दल की जीत के मिथक को बनाए रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। फिलहाल कांग्रेस के निजामुद्दीन काजी मजबूत उम्मीदवार के रूप में उभर रहे हैं जबकि बसपा यहां सहानुभूति मतों के बल पर अपने प्रत्याशी उबेदुर रहमान उर्फ मोंटी की जीत के दावे कर रही है। देखने वाली बात यह होगी कि मंगलौर विधानसभा सीट से जीत का सेहरा किसके सिर पर सजता है। क्या मंगलौर विधानसभा की जनता एक बार फिर इतिहास दोहराएगी या फिर भाजपा इस बार कुछ करिश्मा दिखा पाएगी?
हरिद्वार के कद्दावर नेता के रूप में माने जाने वाले हाजी सरवत करीम अंसारी के देहांत के बाद खाली हुई मंगलौर विधानसभा सीट की सियासत पर नजर डालंे तो यहां पर हमेशा दो ही परिवारों का दबदबा रहा है। उत्तराखण्ड गठन के बाद हुए पांच विधानसभा चुनावों में यहां कांग्रेस से काजी निजामुद्दीन तो बसपा से हाजी सरवत करीम अंसारी के बीच ही कड़ा मुकाबला होता रहा है। हर बार के चुनावों में तीसरे नंबर पर रही भाजपा इस बार इस उपचुनाव में पैराशूट प्रत्याशी के बल पर पूरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुकी है। हरियाणा के पूर्व राज्य मंत्री करतार सिंह भड़ाना को इस बार भाजपा ने स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए टिकट देकर चुनौतीपूर्ण निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि 30 अक्टूबर 2023 को मंगलौर के विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी का देहांत हो गया था। उसके बाद हाजी सरवत करीम अंसारी के पुत्र उबेदुररहमान उर्फ मोंटी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में जुट गए। बसपा ने अंसारी के पुत्र उबेदुररहमान उर्फ मोंटी को अपना प्रत्याशी बना दिया है। फिलहाल की स्थिति को देखें तो मोंटी को सहानुभूति जरूर मिल रही है, लेकिन वह बसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस से पूर्व विधायक रहे काजी निजामुद्दीन इस सीट पर कांग्रेस के नेताओं को साथ लेकर चल रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार करतार सिंह भड़ाना के सामने मुश्किल यह है कि उनकी बिरादरी के गुर्जर नेता ही उनको बाहरी उम्मीदवार घोषित करने के प्रचार में ही जुटे हैं। मंगलौर में कुल मतदाताओं की संख्या 1 लाख 19 हजार 930 है। जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता है। मुस्लिम 48 हजार है। इसके बाद 25 हजार दलित है। जाट 16000 है तो गुर्जर 12000 है। यहां सैनी मतदाता 2000 है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बढ़त उत्तराखण्ड के गठन के बाद मंगलौर विधानसभा से 2002 से 2007 और 2007 से 2012 तक काजी निजामुद्दीन बसपा से विधायक रहे। उसके बाद काजी ने बसपा को छोड़ कांग्रेस की सदस्यता ली और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद हाजी सरवत करीम अंसारी 2012 में बसपा से विधायक चुने गए। 2017 में कांग्रेस से काजी निजामुद्दीन फिर विधायक रहे। 2022 में हाजी सरवत करीम अंसारी बसपा से ही पुन विधायक बने। इस तरह पांच बार के चुनाव में चार बार बसपा तो एक बार कांग्रेस उम्मीदवार यहां से विजयी रहे। फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर दौड़ाए तो उस से कांग्रेस का मनोबल सातवें आसमान पर है। जबकि बसपा के होश ठिकाने लगे हुए हैं। हालांकि भाजपा की राह मुश्किल नजर आ रही है। मंगलौर विधानसभा सीट पर 2024 के चुनावी नतीजे में कांग्रेस को 44,101 मत हासिल हुए हैं तो वहीं भाजपा को 21,100 मत प्राप्त हुए। जबकि बसपा के खाते में 5,507 वोट ही आए हैं। इस तरह उत्तराखण्ड के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की यह 23000 की बढ़त अपने आप में किसी भी विधानसभा में सबसे बड़ी बढ़त है। अगर 2024 के लोकसभा परिणामों का आकलन करे तो यहां मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच हो सकता है।
वाकपटुता में माहिर हैं काजी
कांग्रेस के पूर्व सचिव और राजस्थान के सह प्रभारी रहे काजी निजामुद्दीन अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे मुस्लिम के साथ ही हिंदू मतदाताओं में भी खासी पैठ बनाए हुए हैं। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव हाजी सरबत करीम अंसारी से मात्र 598 मतों से हारा था। काजी ने अंसारी के विधायक रहते उनके खास रहे मारकूब कुरैशी के साथ ही डॉ. शमशाद को अपने पाले में लाने में उपलब्धि हासिल की थी। डॉ. शमशाद के भाई दिलशाद अहमद मंगलौर के नगर पालिका चेयरमैन हैं और स्थानीय राजनीति में खासा असर रखते हैं।
उबेदुररहमान का दलितों पर दारोमदार
बसपा प्रत्यासी उबेदुररहमान उर्फ मोंटी को मजबूत चुनाव लड़ाने में दलित मतदाता बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सहानुभूति वोटों के अलावा उबेदुररहमान उर्फ मोंटी को उन दलित मतदाताओं को अपने पाले में रखना चुनौतीपूर्ण होगा जिनके बलबूते उनके दिवंगत पिता हाजी सरबत करीम अंसारी चुनाव जीते थे। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इस विधानसभा की सीमा उत्तर प्रदेश से मिलते रहने के चलते ही यहां अधिकतर बसपा का वोट बैंक दलित उसे एकमुश्त मिलता रहा है। जिसके बलबूते बसपा के उम्मीदवार यहां से चार बार चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इस बार दलितों का जनादेश परिवर्तित हो चला है। इसे पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों से देखा जा सकता है। जिसमंे बसपा के उमीदवार जमील अहमद की हरिद्वार लोकसाभा सीट पर जमानत जब्त हो गई है। यूपी में दलितों का जहां बसपा से मोहभंग हो चुका है और उनका अधिकतर मत समाजवादी पार्टी को गया है तो वहीं उत्तराखण्ड में स्थिति भिन्न है। यहां का दलित मतदाता का झुकाव भाजपा की तरफ रहा है। हरिद्वार लोकसभा चुनाव परिणाम भी ऐसा ही आया है जिसमंे दलितों का ज्यादातर वोट भाजपा के त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिला है। ऐसे में बसपा उम्मीदवार उबेदुररहमान उर्फ मोंटी के लिए दलित मतों का ध्रुवीकरण करना दुष्कर साबित हो सकता है।
दल बदलू भड़ाना
करतार सिंह भड़ाना के दल बदलने का पुराना इतिहास है। वह कभी भाजपा तो कभी रालोद तो कभी बसपा और इनेलो के पाले में जाकर चुनाव लड़ने में माहिर रहे हैं। करतार सिंह फरीदाबाद से तीन बार सांसद रहे अवतार सिंह भड़ाना के भाई हैं। फरीदाबाद के अनंगपुर गांव के गुर्जर परिवार से आते हैं। गुर्जरों में अच्छी पकड़ के चलते हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में दोनों भाइयों की खास राजनीतिक सक्रियता रहती है। जब हरियाणा में सफलता मिलती नहीं दिखती तो दोनों भाई पश्चिम उत्तर प्रदेश का रुख करने से नहीं चूकते। मिसाल के तौर पर करतार सिंह भड़ाना हरियाणा के समालखा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे। 1996 में हरियाणा विकास पार्टी से पहली बार जीते और फिर दल बदलकर इनेलो से 2000 में लगातार विधायक बने। इस दौरान वह चौटाला की सरकार में सहकारिता मंत्री रहे। फिर इनेलो छोड़कर भाजपा के टिकट पर दौसा से लोकसभा चुनाव लड़े। इसके बाद करतार सिंह ने बसपा, सपा से होते हुए चौधरी अजित सिंह की पार्टी रालोद का दामन थाम लिया। रालोद के टिकट पर वह 2012 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खतौली सीट से जीतकर तीसरी बार विधायक बने। हालांकि रालोद के टिकट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए।
भड़ाना को बताया प्रवासी पक्षी
मंगलौर विधानसभा के एक स्थानीय नेता का कहना है कि करतार सिंह भडाना एक प्रवासी पक्षी की तरह है। वे आज उत्तराखण्ड तो कल पश्चिमी उत्तर प्रदेश और परसो हरियाणा की किसी विधानसभा से चुनाव लड़ रहे होते हैं। वे अफसोस जाहिर करते हुए कहते हैं कि बीजेपी को कोई ऐसा स्थानीय नेता नहीं मिला जो चुनाव लड़ सकता था। यह उस पार्टी पर सवालिया निशान है जो कहती है कि सबसे पहले टिकट का दावेदार उनका जमीनी कार्यकर्ता है। साथ ही वह यह भी कहते हैं कि दिल्ली से सेटिंग-गेटिंग कर टिकट पा लेना जीत की गारंटी नहीं होती है। ये वो ही नेता हैं जिन पर खतौली के विधायक रहते गुमशुदा विधायक के पोस्टर चस्पा हुए थे। करतार सिंह भड़ाना के मंगलौर विधानसभा के भौगोलिक इतिहास की बाबत वे कहते हैं कि जिस व्यक्ति को ये नहीं पता कि टिकौली किधर है, लिब्बाहेड़ी के रास्ते कच्चे हैं या पक्के और गोपालपुर के किसानों की क्या समस्या है वह क्या खाक चुनाव जीतेंगे? क्या इन गावों के लोग अपनी समस्याओं का समाधान करने हरियाणा जाएंगे? ऐसे नेताओं को सिर्फ धनबल की राजनीति करनी आती है, इनका जमीनी राजनीति से कोई नाता नहीं है। साथ ही इनका दावा है कि करतार सिंह भड़ाना को पिछली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े दिनेश पवार से भी दो हजार वोट कम मिलेंगे।
तीसरे नंबर पर रहे हैं गुर्जर और जाट
मंगलौर विधानसभा का राजनीतिक गणित सदैव हाजी और काजी को ही सर्वोच्च अंक देता रहा है। यहां की राजनीति में तीसरे नंबर पर गुर्जर और जाट ही रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनावों की स्थिति पर गौर करें तो 2022 में यहां से भाजपा के टिकट पर दिनेश पवार चुनाव लड़े थे। पवार गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। उन्हें 17000 वोट मिले थे। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से ऋषिपाल बालियान चुनाव लड़े थे। बालियान जाट बिरादरी से आते हैं, उन्हें 16000 मत प्राप्त हुए थे। अब तक के मंगलौर विधानसभा में काजी और हाजी के अलावा अन्य उम्मीदवार को अगर सबसे ज्यादा वोट प्राप्त हुए तो वह गौरव चौधरी है। पूर्व विधायक यशवीर चौधरी के पुत्र गौरव चौधरी 2012 में रालोद के टिकट पर चुनाव लड़कर 19823 वोट ले गए थे। झबरेड़ा नगर पंचायत के चेयरमैन और कांग्रेस के पूर्व दर्जा राज्य मंत्री गौरव चौधरी फिलहाल कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं।