- 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में जन्में पंडित दीन दयाल उपाध्याय राजनीति समेत साहित्य में भी रुचि रखते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 103वीं जयंती पर बुधवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें नमन किया। साथ ही एम वेंकैय नायडू ने ट्वीट किया कि आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती के अवसर पर आधुनिक भारत के मूर्धन्य विचारक की पावन स्मृति को प्रणाम करता हूँ। उन्होंने कहा कि उपाध्याय जी भारत की सामाजिक सच्चाइयों से भलीभांति परिचित थे, उनके एकात्म मानवतावाद ने सदियों से समाज की कुरीतियों पर खड़े दुर्बल वर्गों को सामाजिक आर्थिक विकास की मूलधारा में शामिल करने के लिए अंत्योदय जैसे विशेष प्रयास करने का आग्रह किया था | मोदी ने ट्वीट किया कि कमजोर तबके की सेवा करने का उनके जीवन का संदेश दूर-दूर तक गूंजता है।
प्रधानमंत्री ने जन संघ नेता के संबंध में उनके भाषण का एक छोटा सा वीडियो भी शेयर किया। इस मौके पर देशभर में कई तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है। पंडित जी ने अपने विचारों से एक पूरी पीढ़ी को सींचा है, राजनीति की एक नई परिभाषा अंकित की और अपने चिंतन ,मनन से कृषि ,अर्थशास्त्र ,धर्म ,विदेश नीति ,संस्कृति एवं राष्ट्रवाद जैसे कई मुद्दों पर नये भारत का पद अंकित किया।
कई पार्टियों के नेताओं को प्रिय है पं दीनदयाल पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने एक ‘जन संघ’ की स्थापना की थी। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बारे में खूब बातें होनी शुरू हो गई थी। बीजेपी ने पहले जहां भी राज्यों में सरकार बनाई वहां पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम से संस्थानों के नाम रखे गए और फिर कई योजनाओं के नाम भी पंडित दीनदयाल के नाम पर ही रखे गए। केंद्र में पूर्व की ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ की सरकार रही हो या फिर वर्तमान की ‘नरेंद्र मोदी’ की सरकार, इन सरकारों ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम से योजनाओं की घोषणा का सिलसिला आज भी जारी है। जैसा की हम जानते है ‘मुगलसराय’ जंक्शन का नाम बदलकर ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ रख दिया गया। इसी तरह दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना ,कई मंचों से पार्टी के वरिष्ठ नेता मानवीय पहलुओं को और पार्टी सिद्धांतों को जनता तक पहुंचाने के लिए पंडित दीनदयाल द्वारा कही बातों का सहारा लेते हैं।
‘आरएसएस’ की नींव को भी मजबूत किया था,पंडित दीनदयाल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय पहले से ही सामाजिक सेवा के लिए समर्पित रहते थे। साल 1937 में कानपुर में ‘आरएसएस’ के साथ जुड़ गए,यही डॉ हेडगवार से उनकी मुलाकात हुई, जिसके बाद अपने आप को संगठन के लिए समर्पित कर दिया। वर्ष 1942 में पं दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज से शिक्षा ले चूके थे। उसके बाद ना तो उन्होंने नौकरी करने का प्रयास किया और न ही विवाह। बल्कि चालीस दिन के लिए ‘आरएसएस’ प्रसिक्षण के लिए नागपुर चले गए, और उन्होंने ‘आरएसएस’ की नींव को मजबूत किया।
पं दीनदयाल उपाध्याय ने ‘आरएसएस’ के माध्यम से देश सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। 1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया,और राष्ट्रवाद के लिए अलग जगाने के लिए आंदोलन शुरू किया। इस घटनाक्रम के दौरान दीनदयाल उपाध्याय ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय संस्कृति,विचार और दर्शन के बीच से ही उपजा एकात्म मानववाद जिस समय पूरा विश्व पूंजीवाद और साम्यवाद की अच्छाई और बुराई की बहस में बुरी तरह उलझा हुआ था। उसी वक्त पं दीनदयाल उपाध्याय ने इन दोनों विचारधाराओं को नकारते हुए एकात्म मानववाद की धारणा रखी। दरअसल एकात्म मानववाद भारतीय संस्कृति, विचार और दर्शन के बीच से ही उमजा है। दीनदयाल उपाध्याय ने कभी भी इस बात का दावा नहीं किया,की उन्होंने कभी भी जनता के सामने नई बात नहीं रखी। ये बार-बार कहते रहे कि एकात्म मानववाद के जरिये वे भारत की सनात्म संस्कृति की ही बात कर रहे हैं। उनका मानना था की समाज का आधार संघर्ष नहीं संयोग है। आजादी की तत्कालीन परिस्थितिओं को ध्यान में रखते हुए मानव कल्याण के लिए दिन दयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद की अवधारणा को समाज के सामने रखा।
पत्रकारिता की शुरुआत ‘राष्ट्रधर्म’ से पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित दीनदयाल की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने उस दौर में पत्रकारिता को अपनाया जब पत्रकारिता मिशन हुआ करती थी। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता को बेहद मुश्किल माना जाता था। लेकिन दीनदयाल उपाध्याय के मन में कोई दुविधा नहीं थी। वो जानते थे कि देश को आजाद करने और नये भारत का निर्माण कराने के लिए अपने विचारों को लेखन के माध्यम से जनता के बीच ले जाना होगा। बतौर पत्रकार वो सबकी नजरों में जब आए जब लखनऊ से 1947 में ‘राष्ट्रधर्म’ का प्रकाशन शुरू हुआ। इसी तरह राजनीति हो,साहित्य हो,अर्थव्यवस्था हो या मानव कल्याण की बात हो दीनदयाल उपाध्याय ने हर विषय पर अपने विचार रखे।