पिछले 27 वर्षों से गंगा की अविरल धारा और उसके अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे मातृसदन के स्वामी शिवानंद जिन्हें गंगा पुत्र कहा जाता है, चर्चाओं में हैं। अपने भगीरथ प्रयासों से उन्होंने एक बार फिर गंगा को दुशासनरूपी खनन माफियाओं के चीर हरण से बचाने में सफलता हासिल कर ली है। मातृसदन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने हरिद्वार के 48 स्टोन क्रशरों को बंद कराने के आदेश कर दिए हैं। साथ ही इनकी बिजली और पानी की आपूर्ति भी काटने के निर्देश दिए हैं। इन पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों और एनजीटी के आदेशों का पालन नहीं करने के आरोप थे


पिछले ढाई दशक से गंगा की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे मातृ सदन के स्वामी शिवानंद को एक बार फिर कानूनी जंग में जीत मिली है। इस बार मातृसदन की याचिका पर हाईकोर्ट नैनीताल ने हरिद्वार के रायवाला से भोगपुर के बीच में स्थित 48 स्टोन क्रशरों को बंद करने के आदेश दिए हैं। इन पर गंगा का चीर हरण कर अवैध खनन करने के आरोप हैं। यह स्टोन क्रशर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसी) के आदेशों का खुला उल्लंघन कर रहे थे। साथ ही राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने भी इनके संचालन को नियम विरुद्ध माना था। इसके साथ ही हाईकोर्ट नैनीताल के जज न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने अगली सुनवाई 12 सिम्तबर के लिए तय की है।

न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि पूर्व के आदेशों की अवहेलना कर रहे इन स्टोन क्रशरों द्वारा संचालन करना कानून का साफ-साफ उल्लंघन है। न्यायालय ने हरिद्वार के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल बंद कर उनकी बिजली और पानी की आपूर्ति भी काटने के निर्देश दिए। खंडपीठ ने इसकी अनुपालन रिपोर्ट शीघ्र न्यायालय में प्रस्तुत करने को कहा है।

उल्लेखनीय है कि मातृ सदन गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन पर रोक लगाने और नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए निरंतर लड़ाई लड़ता रहा है। मातृसदन के स्वामी शिवानंद सहित मातृ सदन के अन्य लोग अब तक 68 बार गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए अनशन कर चुके हैं। मातृ सदन का आरोप है कि हरिद्वार में गंगा नदी में नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से अवैध खनन किया जा रहा है, जिससे गंगा नदी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। गंगा नदी में खनन करने वाले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन  को पलीता लगा रहे हैं। मातृ सदन की तरफ से कोर्ट से प्रार्थना की गई थी कि गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन पर रोक लगाई जाए ताकि गंगा नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके। खनन कुम्भ क्षेत्र में भी किया जा रहा है। मातृ सदन का ये भी कहना था कि केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) बोर्ड गठित किया है। जिसका मुख्य उद्देश्य गंगा को साफ करना व उसके अस्तित्व को बचाए रखना है। एनएमसीजी द्वारा राज्य सरकार को बार-बार आदेश दिए गए कि यहां खनन कार्य नहीं किया जाए। उसके बाद भी यहां खनन कार्य करवाया जा रहा है। 

मातृ सदन के एडवोकेट ब्रह्माचारी सुधानंद के अनुसार 6 दिसम्बर 2016 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसी) का एक आदेश आया था, जिसमें गंगा में रायवाला से भोगपुर के बीच खनन बंदी और स्टोन क्रशर प्लांट्स को पांच किलोमीटर दूर ले जाने की बात कही गई थी। इस आदेश के अनुपालन के लिए हाईकोर्ट ने 3 मई, 2017 को आॅर्डर पास किया था। उस आदेश के तहत 48 स्टोन क्रशर बंद हुए थे। इस बाबत एक रिपोर्ट जमा कर न्यायालय को इसकी जानकारी भी दी गई थी। लेकिन बाद में उन स्टोन क्रशर प्लांट्स को एडवोकेट जनरल बाबुलकर से उक्त आदेश की व्याख्या सरकार द्वारा मांगी गई। स्वामी शिवानंद के अनुसार एडवोकेट जनरल ने गोलमाल आख्या दी जिसको आधार बनाकर इन स्टोन क्रशरों को खोल दिया गया। इसके बाद 9
अक्टूबर 2018 को नेशनल मिशन फाॅर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि सीपीसी के आदेश के तहत स्टोन क्रशर प्लांट्स बंद कर दिए जाएं। लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस आदेश को भी ताक पर रख दिया गया जिसके बाद वर्ष 2022 में मातृ सदन ने याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता मातृ सदन के अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा पारित अनिवार्य आदेशों और इस न्यायालय द्वारा इन आदेशों का अक्षरशः पालन करने के निर्देशों के बावजूद, सरकार ने दिनांक 11 फरवरी 2021 के कार्यालय ज्ञापन और हरिद्वार के जिलाधिकारी के 1 नवम्बर 2021 के आदेश द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्रों में खनन की अनुमति दी है और उत्तराखण्ड वन विकास निगम के पक्ष में पर्यावरणीय मंजूरी जारी की गई है। हालांकि इस शर्त के साथ कि खनन केवल उस क्षेत्र तक सीमित रहेगा जो एनएमसीजी के 9 अक्टूबर 2018 के आदेश के अंतर्गत नहीं आता है। न्यायालय ने 16 मार्च 2022 को क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी थी।

न्यायालय ने 4 अप्रैल 2024 के आदेश के तहत दो न्यायालय आयुक्तों को नियुक्त किया। जिन्होंने 7 अप्रैल 2024 को साइट का दौरा करने के बाद, 30 अप्रैल 2024 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसमें बताया गया कि उत्तराखण्ड वन विकास निगम ने पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन किया है और अवैध खनन में भी लिप्त है। उन्होंने टायरों के ढेरों निशानों के साथ जमीन का एक ताजा सघन टुकड़ा, 7 मीटर तक खोदी गई जमीन में बनाए गए विशाल तालाब, नदी तल सामग्री से लदे बिना नम्बर प्लेट वाले ट्रैक्टर या ट्रेलर के उपयोग की भी सूचना दी, जो स्पष्ट रूप से हरिद्वार में बड़े पैमाने पर चल रहे अवैध खनन की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने एनएमसीजी की 29 मई 2024 की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसने विश्वसनीयता और वैज्ञानिक विचार की कमी के आधार पर खनन के पक्ष में अन्य सभी रिपोर्टों को खारिज कर दिया।

12 जून 2025 को मातृ सदन की तरफ से कहा गया कि पूर्व में न्यायालय  और सीपीसी ने हरिद्वार में चल रहे 48 स्टोन क्रशरों के संचालन पर पाबंदी लगा दी थी, जो बंद भी हो गए थे। इसके बाद राज्य सरकार ने इस सम्बंध में विधिक राय ली। विधिक राय ने भी उस आदेश को सही ठहराया कि 48 स्टोन क्रशर बंद हो। इसके बाद भी ये वर्तमान में संचालित क्यों है?

इस मामले में आर्मी के लीगल सेल के कैप्टन भी कोर्ट के आदेश पर पेश हुए। कोर्ट ने उनसे पूछा कि आर्मी की एक बटालियन जो पर्यावरण व जल स्रोतों को बचाने के लिए कार्य कर रही है क्या वह नदियों में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए भी कार्य कर सकती है? आर्मी के लीगल सेल ने कोर्ट को बताया कि आर्मी की एक बटालियन पर्यावरण व जल स्रोतों को बचाने के लिए कार्य कर रही है, लेकिन वह नदियों में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए पुलिसिंग का काम नहीं कर सकती।

कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को सभी पक्षों को सुनने के बाद साफ-साफ कहा कि स्टोन क्रशर प्लांट्स अवैध तरीके से चल रहे हैं और उन्हें तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए। इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कहा कि पूर्व के आदेशों की अवहेलना कर इन स्टोन क्रशरों का संचालन कानून का उल्लंघन है।

बहरहाल, हाईकोर्ट ने हरिद्वार के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को यह आदेश दिया है कि वे इन सभी 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल बंद कराएं। साथ ही उनकी बिजली और पानी की आपूर्ति भी तत्काल प्रभाव से रोकें और सात दिन के अंदर इसकी अनुपालन रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि हरिद्वार में 121 से अधिक स्टोन क्रशर हैं। फिलहाल 48 पर फैसला आया है। वह इसलिए कि 48 स्टोन क्रेशर के केस पहले से चल रहे थे। अगली सुनवाई में कोर्ट बाकि के स्टोन क्रेशरों पर फैसला सुना सकता है। इसलिए कोर्ट ने फाइनल सुनवाई की तारीख 12 सितम्बर तय की है।

गंगा की वकालत कर रहे ब्रह्माचारी सुधानंद

23 फरवरी 2025 का दिन हरिद्वार स्थित मातृ सदन आश्रम के इतिहास में बड़ी उपलब्धि वाला साबित हुआ है। इस दिन गंगा संरक्षण और पर्यावरण के लिए बलिदान देने के लिए चर्चित रहे मातृ सदन आश्रम का एक ब्रह्माचारी वकील बना। यह है ब्रह्माचारी सुधानंद। जिन्होंने उत्तराखण्ड बार काउसिंल में अधिवक्ता के तौर पर औपचारित पंजीकरण करा कर गंगा के अस्तित्व को बचाने की कानूनी लड़ाई शुरू की है। सुधानंद बहुत तेज-तर्रार हैं और हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। यही नहीं उन्हें कानून का अच्छा ज्ञान है और वो बहुत ही सधे हुए तरीके से मुद्दों को उठाते भी रहे हैं। हरिद्वार में 48 स्टोन क्रेशरों को बंद कराने में उनकी तथ्यात्मक दलीलों का विशेष योगदान रहा है। गंगा में रिवर ड्रेजिंग के नाम पर खनन की अनुमति देने के मामले में मातृ सदन के ब्रह्माचारी सुधानंद पिछले दिनों अफसरों से भिड़ गए थे। तब उनके तर्कों और कानूनी जानकारी का अफसरों के पास भी कोई जवाब नहीं था। बाद में मातृ सदन कोर्ट पहुंचा और वहां मातृ सदन की जीत हुई। जिसके बाद बैरागी कैंप से रिवर ड्रेजिंग पर रोक लगा दी गई। इससे पहले मातृ सदन के ब्रह्माचारी दयानंद सरस्वती कोर्ट में अपने केस की पैरवी करते रहे हैं। लेकिन अब आश्रम के मामलों से सम्बंधित कानूनी जिम्मेदारी ब्रह्माचारी सुधानंद निर्वहन कर रहे हैं।


बात अपनी-अपनी

मातृ सदन हमेशा से ही गंगा की अविरल धारा को बचाने के लिए संघर्षरत रहा है। आपको स्वामी निगमानंद की शहादत याद होगी ही। देवभूमि का दुर्भाग्य है कि यहां की हर सरकार ने मां गंगा में अवैध खनन को बढ़ावा दिया। सबसे दुखद है प्रदेश की मीडिया की ऐसे संवेदनशील मुद्दों में खामोशी। कोई बोले या न बोले मातृ सदन मां गंगा की रक्षा का अपना दायित्व निभाता रहेगा।

स्वामी शिवानंद, संस्थापक मातृ सदन

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