नैनीताल में 12 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म की घटना समाज के उस असली चेहरे को दिखाती है जिसमें उस्मान जैसे लोग हैं जिनके लिए विलासिता के आगे उम्र कोई मायने नहीं रखती। पोती की उम्र की लड़की पर गंदी नियत से समाज का वो घिनौना चेहरा है जिससे हर कोई अपनी बेटी को बचाना चाहता है। उत्तराखण्ड में देखने में आया है कि पिछले कुछ वर्षों में दुष्कर्म के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। कुछ मामले पुलिस के पास पहुंचे, कुछ लोक-लाज के डर से पुलिस तक जाने से परहेज करते रहे। नैनीताल शहर का मामला आरोपी के मुस्लिम होने से सुर्ख़ियों में आ गया लेकिन क्या ये तथाकथित हिंदूवादी संगठन उन दुष्कर्म पीडि़तों तक उनकी व्यथा सुनने या न्याय दिलाने पहुंचे जहां दुष्कर्म के आरोपी हिंदू समुदाय से थे? इसका जवाब ना में है। कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, बागेश्वर जिलों में ऐसी कई दुष्कर्म की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन ऐसे आक्रोश या प्रदर्शन कहीं देखने को नहीं मिले। नैनीताल जैसा शहर कभी साम्प्रदायिकता का शिकार नहीं रहा। इसने निर्मल पाण्डे जैसे कलाकार दिए हैं तो जहूर आलम जैसे जाने-माने रंगमंच के कलाकार भी दिए हैं जो पहाड़ की संस्कृति में रच-बस गए हैं। सैय्यद अली जैसे हॉकी खिलाड़ी भी नैनीताल की संस्कृति की देन हैं। अमिताभ बच्चन और नसीरुद्दीन शाह नैनीताल के प्रतिष्ठित कॉलेजों से शिक्षा पाए हैं। 1984 में सिख विरोधी दंगों की टीस आज भी नैनीताल वासियों को सालती है। भावावेश में आकर उस वक्त सिखों को निशाना तो बनाया गया लेकिन उसका अफसोस आज भी नैनीताल मनाता है। हिंदू-मुस्लिम तनाव की बात तो आज तक उठी ही नहीं शायद नैनीताल के इतिहास में ये पहला वाक्या है जब नैनीताल ने अपनी सुंदरता के इतर साम्प्रदायिक तनाव के चलते सुर्खियां पाई हों।
”औरत का जिस्म कोई धार्मिक युद्ध भूमि नहीं है, जहां तुम अपनी कुंठित राजनीति के झंडे गाड़ो”
-संगीता जोशी की फेसबुक वॉल से
शिक्षाविद देहरादून निवासी संगीता जोशी की फेसबुक में उक्त पंक्तियां नैनीताल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की सही व्याख्या करती हैं जहां विरोध के केंद्र में बालिका के साथ किया गया दुष्कर्म नहीं निशाने पर समुदाय विशेष है। इन अराजक प्रदर्शनों के बीच बच्ची के लिए न्याय की आवाज की जगह ‘नहीं बिकेगी बिरयानी, सिर्फ चलेगा हिंदुस्तानी’ जैसे नारों ने ले ली जिनके निशाने पर एक सम्प्रदाय विशेष था क्योंकि दुष्कर्म का आरोपी उसी समुदाय से था। बालिका के साथ न्याय की बात और आरोपी को कड़ी सजा की मांग तो दब गई लेकिन सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ आक्रोश की खबरें सुर्खियां बन गईं। अगर दुष्कर्म करने वाला हिंदू समाज से होता तो ये तथाकथित हिंदूवादी संगठनों का आक्रोश शायद ही सामने आता। उनमें न ही नारी सम्मान की भावना नजर आती है और न ही कथित आक्रोश की वो ज्वाला जो मुस्लिम शब्द सुनते ही भड़क उठते हैं। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में घटी दुष्कर्म की घटनाओं जिनमें हिंदू आरोपी थे इन संगठन के लोगों ने खामोशी अख्तियार कर ली थी। इससे समझ आता है कि ये संगठन नारी सम्मान के लिए उतना गम्भीर नहीं है जितना इनकी दिलचस्पी आरोपी के सम्प्रदाय में है क्योंकि ये उनकी नफरती सोच के अनुकूल है। महिला सम्मान इनकी प्राथमिकताओं में रहा ही नहीं वरना लालकुआं दुग्ध संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा प्रकरण में इस संगठन के लोगों ने चुप्पी नहीं साधी होती। अगर उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर पुलिस को फटकारा नहीं होता तो स्थिति और बिगड़ने में देर नहीं लगती। अराजक तत्व नैनीताल को इसी दिशा में ले जाने पर आमादा थे, क्योंकि मुस्लिम नफरत की सुर्खियां नैनीताल उन्हें दिला सकता था। पिछले वर्षों बनभूलपुरा में हुई उपद्रव की घटना से पुलिस ने शायद सबक नहीं सीखा। इस घटना ने पुलिस की साख पर सवाल खड़े किए हैं कि क्या खाकी वर्दी ‘ड्यूटी’ के लिए है या फिर ‘डील’ के लिए।
दुष्कर्म के खिलाफ प्रदर्शन
उत्तराखण्ड के नैनीताल में 12 वर्षीय एक मासूम के साथ दुष्कर्म की घटना ने नैनीताल सहित उत्तराखण्ड के कई इलाकों को आक्रोशित कर दिया है। 72 वषीर्य उस्मान द्वारा किए गए इस दुष्कर्म के चलते नैनीताल शहर की जो फिजा खराब हुई उसने वहां के पर्यटन को चौपट होने की कगार पर ला दिया है। दरअसल, नैनीताल के एक ठेकेदार उस्मान द्वारा 12 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म किया। बताया जाता है कि उक्त घटना 12 अप्रैल की है लेकिन ठेकेदार के रसूख और सामाजिक बदनामी के भय चलते पीड़िता ने इसे लम्बे समय तक छुपाए रखा। जब अपनी मां और बुआ के साथ वो हल्द्वानी महिला चिकित्सालय पहुंची तो काउंसलिंग के समय महिला डॉक्टर के सामने उसने इसका खुलासा किया। 25 अप्रैल के दिन काउंसलिंग के बाद महिला चिकित्सक डॉ. मोनिका ने उन्हें पुलिस के पास जाने और चिकित्सकीय परीक्षण के लिए कहा लेकिन पीड़िता की मां ने अपनी असहमति जताई। लेकिन जब 30 अप्रैल को इस घटना की जानकारी लोगों तक पहुंची तब 30 अप्रैल को इसका चिकित्सकीय परीक्षण बी.डी. पाण्डे अस्पताल नैनीताल में हुआ। उसके बाद का मंजर सबने देखा जिसमें अराजक तत्व व उपद्रवी मुस्लिम लोगों को पीटते और उनके प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाते नजर आते हैं।
उस्मान
नैनीताल में 12 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म की घटना समाज के उस असली चेहरे को दिखाती है जिसमें उस्मान जैसे लोग हैं जिनके लिए विलासिता के आगे उम्र कोई मायने नहीं रखती। पोती की उम्र की लड़की पर गंदी नियत से समाज का वो घिनौना चेहरा है जिससे हर कोई अपनी बेटी को बचाना चाहता है। उत्तराखण्ड में देखने में आया है कि पिछले कुछ वर्षों में दुष्कर्म के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। कुछ मामले पुलिस के पास पहुंचे, कुछ लोक-लाज के डर से पुलिस तक जाने से परहेज करते रहे। नैनीताल शहर का मामला आरोपी के मुस्लिम होने से सुर्ख़ियों में आ गया लेकिन क्या ये तथाकथित हिंदूवादी संगठन उन दुष्कर्म पीड़िता तक उनकी व्यथा सुनने या न्याय दिलाने पहुंचे जहां दुष्कर्म के आरोपी हिंदू समुदाय से थे? इसका जवाब ना में है। कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, बागेश्वर जिलों में ऐसी कई दुष्कर्म की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन ऐसे आक्रोश या प्रदर्शन कहीं देखने को नहीं मिले। रानीखेत में एक युवती से दुष्कर्म का मामला सामने आया जिसमें आरोपी प्रशांत मेहता था। सल्ट विधानसभा के देघाट में 8 वषीर्य बालिका के साथ दुष्कर्म करने वाला स्थानीय युवक हिंदू ही था। सल्ट में ही 14 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाला भाजपा का एक पदाधिकारी भगवंत सिंह बोरा थाा। भिकियासैंण में 14 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म करने वाला सनातनी ही था। लमगड़ा में एक युवती के साथ दुष्कर्म व दन्या में दुष्कर्म करने वाला किसी अन्य समुदाय से नहीं हिंदू ही था। हल्द्वानी में 10वीं की छात्रा से दुष्कर्म करने वाले मुस्लिम समुदाय से नहीं थे। मुखानी खाना क्षेत्र में 15 वषीर्य बालिका के साथ दुष्कर्म करने के आरोप आशीष और हिमांशु नाम के युवकों पर लगे थे। लालकुआं दुग्ध संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा पर दुष्कर्म का आरोप लगाया उसे जेल में भी रहना पड़ा था। भाजपा का पदाधिकारी रहा मुकेश बोरा भाजपा के कई बड़े नेताओं का करीबी भी रहा था। उस वक्त भाजपा के कई बड़े नेताओं का पुलिस पर मुकेश बोरा को गिरफ्तार न करने का दबाव था। आज भी यह व्यक्ति दुग्ध संघ का अध्यक्ष बना हुआ है और भाजपा के एक मंत्री का खास सिपहसालार भी बताया जाता है। अप्रैल माह में देहरादून पुलिस ने नाबालिग लड़की और उसकी सहेली का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया था। विकासनगर के सहसपुर में दो बहनों के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया। चकराता के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक पर एक युवती ने दुष्कर्म का आरोप लगाया था। रुद्रप्रयाग में नाबालिग बच्ची के साथ छेड़छाड़ का प्रयास किया, उसे बचाने के लिए गए उसके भाई के आरोपियों ने कान काट दिए। इसी प्रकार चम्पावत में भाजपा के ही एक पदाधिकारी पर एक युवती ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे। उपरोक्त घटनाओं में मुस्लिम होंगे तो हिंदू भी जरूर रहे होंगे। लेकिन ‘इसका बलात्कार अच्छा, उसका बलात्कार बुरा’ जैसे नैरेटिव से आप पीड़िताओं की आवाज नहीं अपनी स्वार्थ सिद्धि की राजनीति कर रहे होते हैं। अगर एक बलात्कारी मुस्लिम अच्छा नहीं तो एक हिंदू बलात्कारी की करतूत को कैसे जायज ठहराया जा सकता है? ये अमृतकाल का वो दौर भी नहीं है जिसमें आप कहें कि हिंदू बलात्कारी के यौन अंग से अमृत बरसता है, सो वो जायज है। दुष्कर्मों में हिंदू का नाम आने से इन हिंदूवादी संगठनों की चुप्पी से ये लगता है कि हिंदुओं द्वारा किया गया बलात्कार इन्हें स्वीकार है। महिला अस्मिता को आप जाति, धर्म के चश्मे से नहीं देख सकते। महिला अपने आप में समाज का अहम हिस्सा है। हिंदुस्तान की आधी आबादी के सम्मान को हिंदू-मुस्लिम के नजरिए से देखना संकुचित दृष्टिकोण को दिखाता है। जिस प्रकार मुस्लिम नफरत का खेल इस वक्त खेला जा रहा है उससे साम्प्रदायिकता का जो उभार सामने आ रहा है उसने दुष्कर्म जैसे कृत्यों तक को इस आग में ले लिया है जिसमें दुष्कर्मों को भी साम्प्रदायिक नजरिए से देखने वाला एक नया समाज पैदा हो रहा है जो इन हिंदूवादियों के कृत्यों पर सवाल उठाने वालों को बलात्कार की धमकी दे रहा है। दुष्कर्म की आड़ में अपना एजेंडा लागू करने वाले लोगों का विरोध कर रहे बुद्धिजीवियों पर छद्म-धर्मनिरपेक्ष, वामपंथी, सनातन विरोधी जैसे तंज कस उनके विरोध को दरकिनार करने का काम ट्रोल आर्मी द्वारा किया जा रहा है।
दुष्कर्म की आड़ में अपनी रोटी सेकते हिंदुत्व के कथित पहरेदार
दुष्कर्म की आड़ में पूरे मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़ा करने वालों का विरोध कर रही नैनीताल की शैला नेगी को बलात्कार की धमकी और उसे पाकिस्तान भेजने की बात कहना ये उस मानसिकता की निशानी है जो हिंदुस्तानी समाज में गहरी पैठ जमा रही है। जब आपकी बात से इत्तेफाक न रखने वाले को आप बलात्कार की धमकी दे रहे हैं। फिर उस्मान की मानसिकता और इनकी मानसिकता में फर्क क्या है?
प्रशासन और मित्र पुलिस के हालत देखिए, दोनों साम्प्रदायिक एजेंडे पर काम करते नजर आ रहे हैं एडीएम, एसडीएम, सिटी मजिस्ट्रेट और नगर आयुक्त शहर के खास इलाकों में ज्यादा अपने कायाज़्लयों में कम नजर आ रहे हैं। मित्र पुलिस पिछले वर्ष बनभूलपुरा उपद्रवों में उपद्रवियों के निशाने पर थी इस बार नैनीताल के एक दारोगा अपने सहकर्मियों के सामने ही उपद्रवियों के निशाने का शिकार हो गए क्योंकि वो एक समुदाय विशेष के थे। तेज-तर्रार कहे जाने वाले नैनीताल पुलिस के कप्तान प्रहलाद मीणा के सामने पुलिस का इकबाल कमजोर होना उनके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। पुलिस भी अगर साम्प्रदायिकता का चश्मा पहन ले तो संकट समाज के लिए है ही स्वयं पुलिस के लिए भी कम नहीं है। सिस्टम आंखें बंद कर ले और उपद्रवी कैमरे के आगे निर्भीक हो तो सवाल उठना ही है। उपद्रवी को पता है इस वक्त सवाल पूछने वाले अपनी जुबान बंद करके बैठे हैं और उसके पीछे एक अराजक तबका है जो उसे बचाने को तैयार बैठा है जिसमें नेता भी शामिल हैं
नैनीताल जैसा शहर कभी साम्प्रदायिकता का शिकार नहीं रहा। इसने निर्मल पाण्डे जैसे कलाकार दिए हैं तो जहूर आलम जैसे जाने-माने रंगमंच के कलाकार भी दिए हैं जो पहाड़ की संस्कृति में रच-बस गए हैं। सैय्यद अली जैसे हॉकी खिलाड़ी भी नैनीताल की संस्कृति की देन है। अमिताभ बच्चन और नसीरुद्दीन शाह नैनीताल के प्रतिष्ठित कॉलेजों से शिक्षा पाए हैं। 1984 में सिख विरोधी दंगों की टीस आज भी नैनीताल वासियों को सालती है। भावावेश में आकर उस वक्त सिखों को निशाना तो बनाया गया लेकिन उसका अफसोस आज भी नैनीताल मनाता है। हिंदू-मुस्लिम तनाव की बात तो आज तक उठी ही नहीं शायद नैनीताल के इतिहास में ये पहला वाक्या है जब नैनीताल ने अपनी सुंदरता के इतर साम्प्रदायिक तनाव के चलते सुर्खियां पाई हों।
प्रशासन और मित्र पुलिस की हालत देखिए, दोनों साम्प्रदायिक एजेंडे पर काम करते नजर आ रहे हैं एडीएम, एसडीएम, सिटी मजिस्ट्रेट और नगर आयुक्त शहर के खास इलाकों में ज्यादा अपने कार्यालयों में कम नजर आ रहे हैं। मित्र पुलिस पिछले वर्ष बनभूलपुरा उपद्रवों में उपद्रवियों के निशाने पर थी इस बार नैनीताल के एक दारोगा अपने सहकर्मियों के सामने ही उपद्रवियों के निशाने का शिकार हो गए क्योंकि वो एक समुदाय विशेष के थे। तेज-तर्रार कहे जाने वाले नैनीताल पुलिस के कप्तान प्रहलाद मीणा के सामने पुलिस का इकबाल कमजोर होना उनके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। पुलिस भी अगर साम्प्रदायिकता का चश्मा पहन ले तो संकट समाज के लिए है ही स्वयं पुलिस के लिए भी कम नहीं है। सिस्टम आंखें बंद कर ले और उपद्रवी कैमरे के आगे निर्भीक हों तो सवाल उठना ही है। उपद्रवी को पता है इस वक्त सवाल पूछने वाले अपनी जुबान बंद करके बैठे हैं और उसके पीछे एक अराजक तबका है जो उसे बचाने को तैयार बैठा है जिसमें नेता भी शामिल हैं।
नैनीताल की इस घटना ने नैनीताल के व्यापार को चोट पहुंचाई है और आगे भी इसके खतरे कम नहीं हैं। जिस प्रकार धर्म के नाम पर नए-नए लोग प्रदर्शन के लिए नैनीताल पहुंच रहे हैं उससे पर्यटक नैनीताल से दूर होगा। जब आप अपने मूल चरित्र से भटक कर अपनी डोर दूसरे के हाथों में सौंप देते हैं तो आपने कठपुतली ही हो जाना है। यही नैनीताल के लोगों के हित में है कि पीड़ित बच्ची के लिए इंसाफ की लड़ाई ईमानदारी से लड़ी जानी चाहिए। धर्म के चश्मे से अगर इंसाफ की उम्मीद करेंगे तो पीड़िता के न्याय की लड़ाई तो पावव में चली ही जाएगी। साथ ही आने वाले वषों में धर्म के नाम पर यहां मंच सजते रहेंगे और नैनीताल की फिजाओं पर जहर कुछ यूं घोलते रहेंगे :
लगा के आग शहर को ये बादशाह ने कहा, उठा है आज दिल में तमाशे का शौक़ बहुत, झुका के सर सभी शाह परस्त बोले हुजूर का शौक सलामत रहे, शहर है और बहुत।
ये कैसा नारी सम्मान है
मैं इस विषय में आपसे क्या कहूं? मैं इस घटना से बहुत व्यथित हूं। पीड़िता के साथ जो कुछ हुआ बहुत गलत हुआ। उसके बाद जो कुछ हो रहा है वो भी अच्छा नहीं हो रहा है। पूरा नैनीताल अपराधी सा ठहरा दिया दिया गया है। बच्ची के साथ जो अमानवीय कृत्य हुआ बहुत गलत हुआ। मेरे पास शब्द नहीं है इसकी निंदा करने के लिए। इतने सयाने बुजुर्ग ने एक बार भी नहीं सोचा ऐसा कृत्य करते हुए। इस बच्ची की उम्र के तो उसके नाती-पोते रहे होंगे। ये घटना शमज़्नाक है और कोई युवक भी ऐसा कृत्य करता तो उसे भी जायज थोड़े ही ठहराया जा सकता है। मैं मानती हूं कि निश्चित तौर पर इस घटना ने सभी को आक्रोशित किया है लेकिन इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने वालों को सोचना चाहिए कि हमारा फोकस उस पीड़ित बच्ची के लिए होना चाहिए कि उसे कैसे न्याय दिला सकते हैं, उसे इलाज की जरूरत है तो उसे कैसे सुविधाएं दिला सकते हैं। पीड़ित बच्ची को सिफ़् प्रशासन के भरोसे तो छोड़ा नहीं जा सकता। उसके प्रति हमारे कुछ सामाजिक दायित्व भी तो हैं। बच्ची के लिए न्याय की आड़ में नैनीताल की शांति भंग कर वातावरण में जहर घोलने का प्रयास किया जा रहा है। आप अपने प्रदर्शन मां-बहन की गाली देते हुए शहर में घूम रहे हैं। ये गालियां कौन सुन रहा है? शहर की मां-बेटियां न। पीड़िता को न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं, एक ओर और आपकी जुबान में गालियां हैं ये कैसा नारी सम्मान है। यहां तो हमेशा भाईचारा रहा है, सभी समुदायों में आपसी रिश्तों में बात होती है। अब ये धमकी की भाषा बोलने लगे हैं। हमारे नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी को किसी पोखरिया का फोन आया कि हमारी 25-30 गाडिय़ां आ रही हैं उनका इंतजाम हो जाना चाहिए। हम टोल टैक्स नहीं देंगे। अगर नहीं हुआ तो हम नगर पालिका की जनाजा निकाल देंगे। ये कैसी भाषा है? आप शालीनता से भी अपनी बात कह सकते थे। हम व्यवस्था जरूर करते। मैंने एसएसपी साहब को ये बात बताई वो भी हमारी सुरक्षा के लिए चिंतित थे। मैं स्वयं पीड़िता के लिए कुछ करना चाहती हूं। अगर ये लोग तैयार हो तो दोनों बहनों को एस.ओ.एस. भीमताल में डाल दें वहां बच्चों के लिए अच्छी व्यवस्था है। फिलहाल हमारी प्राथमिकता पीड़ित बच्ची और नैनीताल का वातावरण सुधारने की है। लोगों से भी मैं अपील करती करती हूं कि नैनीताल के सद्भाव को कायम रखें।
डॉ. सरस्वती खेतवाल, अध्यक्ष, नगर पालिका, नैनीताल
बात अपनी-अपनी
हमारा नैनीताल तो शांत वादियों का शहर है यहां इतनी बड़ी मज़ाक घटना हो गई। इस घटना का विरोध करने यहां जो संगठन आए हैं। मैं उनकी मांग का पूर्ण समर्थन करते हुए दुष्कर्मी को फांसी की सजा की मांग करती हूं। एक फितूर जो दिमाग में बैठ रहा है। अभी हाल ही में कई घटनाएं सामने आईं जिसमें नाम बदलकर हमारी बेटियों को बहला-फुसला रहे हैं तो अब शंका सी होने लगी है। इसे साम्प्रदायिक नजरिए से देखना पड़ रहा। क्या कल्पना कर सकते हैं कि 70 साल से बड़ी उम्र का उस्मान 12 साल की बच्ची के साथ ऐसा करेगा। नैनीताल तो सद्भाव का शहर रहा है। ईद-दीवाली सभी समुदाय मिलकर मनाते थे लेकिन जिस प्रकार का वातावरण अब बन गया है तो अब इस विषय में सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
सरिता आर्य, विधायक, नैनीताल
राज्य, जिसकी पहचान कभी उसकी शांति, संस्कृति और सरल जीवनशैली से होती थी भाजपा सरकार में शांत पहाड़ों में भी अब बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। नैनीताल में हुआ वीभत्स कृत्य, अंकिता भंडारी हत्याकांड, लालकुआं में मासूम बच्ची का बलात्कार, किच्छा में चार साल की नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या, उत्तरकाशी में नाबालिग से सामूहिक बलात्कार, बागेश्वर व थराली में नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास, देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टि बाधित संस्थान में छात्राओं से छेड़छाड़ की घटना, हेमा नेगी, पिंकी हत्याकांड, चम्पावत में नाबालिग से बलात्कार, मंगलौर में सामूहिक दुष्कर्म, श्रीनगर में युवती से बलात्कार का प्रयास, द्वाराहाट में नाबालिग दलित युवती से बलात्कार, देहरादून में महिला को बंधक बनाकर दुष्कर्म, बहादराबाद में 13 साल की मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार के उपरांत हत्या जैसे अनगिनत कृत्य मानवता को शर्मशार करने वाली तथा देवभूमि की अस्मित को कलंकित करने वाली घटनाएं हैं। अंकिता भंडारी केस में एक सख्त उदाहरण पेश किया जा सकता था। राज्य में रोजाना आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। भयमुक्त सरकार के अपने वायदे पर अमल करने में राज्य की भाजपा सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। लगातार घट रही इन घटनाओं से गिरती कानून व्यवस्था उजागर होने के साथ-साथ प्रदेश की अस्मिता पर भी भारी चोट पहुंची है। जनता में भय का वातावरण व्याप्त है तथा आमजन विशेषकर महिलाएं अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही हैं।