Uttarakhand

ईजा-बैणी महोत्सव के मायने

उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में ईजा मां को और बैणी बहन को बोला जाता है। 30 नवंबर को हल्द्वानी में ईजा-बैणी महोत्सव का आयोजन कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश की आधी आबादी को साधने की कवायद की है। राज्य की आर्थिकी में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है, साथ ही राजनीतिक तौर पर भी वे सजग रहती हैं। सीएम धामी ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला शक्ति को इस महोत्सव के जरिए अपने पाले में लाने की भरपूर कोशिश की है। धामी के इस कदम को प्रदेश में लघु उद्योग को बढ़ावा देने और महिलाओं को प्रोत्साहित करने में अहम माना जा रहा है

‘उत्तराखण्ड में विकास के लिए तैयार किए गए रोड मैप में महिलाओं की सहभागिता के बिना अपेक्षित लक्ष्य पाना असंभव है। राज्य के विकास में महिलाओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।’ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा हल्द्वानी में आयोजित ईजा-बैणी महोत्सव में व्यक्त किए ये उद्गार राज्य की राजनीति में महिलाओं की निर्णायक भूमिका को परिलक्षित करते हैं। ईजा-बैणी महोत्सव के जरिए आधी आबादी को साधने की कवायद के साथ पुष्कर सिंह धामी और भारतीय जनता पार्टी ने आने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारियों का आगाज कर दिया। इस महोत्सव के कई संदेश स्पष्ट थे कि पुष्कर सिंह धामी का कद आज उत्तराखण्ड खासकर भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में काफी बढ़ गया है, साथ ही सरकार के साथ कदमताल करते हुए भाजपा संगठन के लिए लोकसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करना पहला लक्ष्य है। उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग घटना में सभी मजदूरों को सकुशल निकाल लिए जाने के बाद मुख्यमंत्री धामी के लिए जश्न मनाने का उससे बेहतरीन अवसर नहीं हो सकता था।

महिला उद्यमियों की क्षमता और उनके हुनर के सम्मान में आयोजित ईजा-बैणी महोत्सव में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी ने इस महोत्सव के जरिए अपनी ताकत का एहसास कराया। इसी के साथ महिलाओं को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर भी प्रदान किया गया। मुख्यमंत्री ने इस महोत्सव के जरिए राज्य की आधी आबादी को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस कार्यक्रम में महिलाओं को बड़ी संख्या में जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं था। शायद इसलिए ही नैनीताल की जिलाधिकारी अपने मातहतों से कहनी सुनी गई कि ‘चाहे घर-घर जाओं, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को लेकर आओ’। स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को जुटाने के लिए 600 बस और 200 छोटी गाड़ियों को सरकार ने अधिग्रहित किया था। 25000 की भीड़ का लक्ष्य पूरी करने के लिए स्कूल बसों को लगाया गया था। नैनीताल जनपद के हल्द्वानी तथा रामनगर के स्कूलों में छुट्टी करा दी गई। इस अवसर पर उत्तराखण्ड के 13 जिलों के 26 उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। साथ ही मुख्यमंत्री धामी ने 213 करोड़ की 259 योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास भी किया। चुनावी मोड़ में दिख रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस अवसर पर पूरे रौ में दिखे। रोड शो के जरिए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे मुख्यमंत्री धामी ने दिखाया कि इस वक्त भाजपा की राजनीति में उनके कद का नेता शायद ही कोई है। हालांकि ईजा-बैणी महोत्सव सरकार का आयोजन था लेकिन भारतीय जनता पार्टी के संगठन ने इसे सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस कार्यक्रम का आयोजन भले ही हल्द्वानी में हुआ हो लेकिन जिस प्रकार मुख्यमंत्री ने यहां से प्रदेश भर की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया उससे भाजपा के मिशन-2024 का संदेश इस महोत्सव के जरिए पूरे राज्य में पहुंचाने की कोशिश की गई।

उत्तराखण्ड में सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों में महिलाओं की भूमिका अग्रणी रही है। भले ही राजनीतिक दलों ने राजनीतिक क्षेत्र में उनको हाशिए में डालने की कोशिश की है लेकिन लोकतंत्र को मजबूत करने में वो हमेशा आगे रही हैं। राज्य का महत्वपूर्ण आंदोलन ‘चिपको’ के जरिए महिलाओं ने अपनी ताकत का एहसास कराया है। राजनीतिक दलों के लिए भले ही वो वोट बैंक से ज्यादा न हों लेकिन उत्तराखण्ड में महिलाओं ने अपने दम पर कई ऐसे मुकाम हासिल किए हैं जिनके दम पर वो जीवन के हर क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। खासकर पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं ने कठिन जीवन के बावजूद सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं। 57 साल की कमला नेगी 18 साल से रामगढ़ मुक्तेश्वर मार्ग पर टायर पंचर बनाने का काम करती है। बेतालघाट की पूजा रावत बेतालघाट जैसे इलाके में डिजिटल कार्यों के माध्यम से घर-घर जाकर आधार कार्ड, बैंकिंग सेवा लोगों तक पहुंचा रही है। ऐपण गर्ल के नाम से मशहूर मीनाक्षी खाती संस्कृति की वाहक बनी हुई है। कृति गुंसाईं, श्रद्धा कांडपाल, हेमा परगाईं, नीला मटियानी, मनोरमा देवी, कोमल अधिकारी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सम्मानित किया। देखा जाए तो उत्तराखण्ड खासकर पर्वतीय जिलों में महिलाएं राजनीतिक रूप से काफी जागरूक हैं। उत्तराखण्ड में महिलाएं आर्थिकी ही नहीं लोकतंत्र की भी रीढ़ है। स्थानीय स्तर पर जानवरों को पालने, दुग्ध उत्पादक सहित अन्य रोजगार के साधनों में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है जिससे उन्होंने अपनी और प्रदेश की आर्थिकी को मजबूत किया है। जिस प्रकार महिलाएं मतदान में उत्साह के साथ भाग लेती हैं उससे कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाता। 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है। उत्तराखण्ड के नौ पर्ववतीय जिलों की बात करें तो आधी आबादी वोट तो पुरुषों से ज्यादा करती है लेकिन उसका विधानसभा में प्रतिनिधित्व 20 प्रतिशत से भी कम है। प्रत्याशियों की जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिलाएं राजनीति में प्रतिनिधित्व के मामले पर हाशिए में डाल दी जाती हैं।

उत्तराखण्ड में आंकड़ों पर गौर करें तो 2015 के लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं ने पुरुषों से अधिक भागीदारी की थी। जहां 54 ़37 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था वहीं पुरुषों का मत 58 ़87 प्रतिशत ही था। 2017 के विधानसभा चुनावों में 65 ़56 प्रतिशत मतदान हुआ था जिसमें 68 ़72 प्रतिशत महिलाओं और 61 ़11 पुरुषों ने मतदान किया था। 2022 के विधानसभा चुनावों में 65 ़37 प्रतिशत मतदान हुआ था जिसमें महिलाओं की भागीदारी 67 ़20 और पुरुषों की 62 ़60 प्रतिशत थी। खास बात यह है कि महिलाओं का मत प्रतिशत उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में हमेशा अधिक रहा है। सोशल डवलेपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन का आंकड़ा बताता है कि मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कवायदों के बीच उत्तराखण्ड में पुरुषों का मतदान प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा कम ही रहा है। खासकर पहाड़ी जिलों की 34 विधानसभा सीटों पर 2017 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 65 प्रतिशत जबकि पुरुषों का 52 प्रतिशत के आस-पास रहा। पर्वतीय जिलों की 34 सीटों पर औसतन 28 हजार महिलाओं और 23 हजार पुरुषों ने अपने मतदाधिकार का इस्तेमाल किया। पर्वतीय जिलों में महिलाओं की मतदान में अधिक भागीदारी के बावजूद उनको राजनीतिक दलों ने कम प्रतिनिधित्व दिया है। समय के साथ महिलाओं को राजनीतिक दलों ने भले ही प्रतिनिधित्व न दिया हो लेकिन सरकारों ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई नई योजनाएं बनाई जरूर हैं चाहे वह भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की। महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है और लोकतंत्र में खासकर चुनावों में मतदान के लिए उनकी बढ़ती भागेदारी ने राजनीतिक दलों को चौंकन्ना किया हैं।

हल्द्वानी में आयोजित ईजा-बैणी महोत्सव का आयोजन महिलाओं की उस ताकत के एहसास का आयोजन था जिस ताकत की जरूरत राजनीतिक दलों को अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए है। महिला सम्मान की कवायद के साथ सरकार और भाजपा अपने राजनीतिक मकसद को साधने की कोशिश करते दिखी। जिलाधिकारी बंदना सिंह की टीम की तारीफ स्वयं मुख्यमंत्री कर गए। प्रशासनिक व राजनीतिक दृष्टि से इस कार्यक्रम की सफलता से भले ही आयोजनकर्ता गदगद रहे लेकिन इसके विरोध के स्वर भी उठे, खासकर कांग्रेस के अंदर से। हल्द्वानी विधायक ने महोत्सव का बहिष्कार करते हुए कहा कि अंकिता भंडारी हत्याकांड के दोषियों को न्याय न मिलना और महिलाओं का राज्य में सुरक्षित न होने के चलते ईजा-बैणी महोत्सव महज चुनावी शगल है, वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दीपक बलूटिया ने इसे महज चुनावी कवायद करार दिया है।

 

‘कुछ वर्षों पहले ऐपण उत्तराखण्ड के सिर्फ ‘कुमाऊं क्षेत्र’ की ही एक कला मानी जाती थी, जिसे कुछ विशेष और शुभ अवसरों पर वहां के प्रत्येक घर और देहरी को सजाने में इसका उपयोग किया जाता था, परंतु खुशी की बात है कि आज ऐपण को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाने हेतु माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी की पहल पर देहरादून की अधिकांश प्रमुख दीवारों पर वॉल पेंटिंग के साथ-साथ ऐपण पेंटिंग की जा रही है, जो कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के देहरादून आगमन से पूर्व किए गए जा रहे कार्यों में से एक है। साथ ही देहरादून के प्रमुख बाजारों के सभी दुकान और प्रतिष्ठानों के बोर्ड ऐपण के ही स्टाइल में लिखे और सरकार द्वारा निःशुल्क रूप से दुकानदारों को लगवाए जा रहे हैं जिससे पूरे बाजार में एक रूप महसूस हो। कोविड पूर्व ऐपण के बोर्ड और नेमप्लेट सबसे पहले पिथौरागढ़ के विकास भवन में तत्कालीन सीडीओ वंदना सिंह जी द्वारा लगवाए गए थे, जिन्हें मेरे द्वारा बनाए गया था। आज जब इस आईडिया को पूरे राज्य खास कर देहरादून में उपयोग किया जा रहा तो एक धन्यवाद उक्त सभी का बनता है। हाल ही में नैनीताल की जिला अधिकारी जी ने एमबीपीजी के ग्राउंड में महिलाओं की प्रतिभा एवं महिला सशक्तिकरण के लिए ईजा बैणी महोत्सव का आयोजन किया था। ऐसी महिलाएं जो अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रही हैं उन सभी महिलाओं ने कार्यक्रम में स्टॉल लगाकर प्रतिभाग किया। माननीय मुख्यमंत्री धामी जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे एवं मुख्यमंत्री जी द्वारा महिलाओं को सम्मानित भी किया गया। मुझे भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त हुआ था लेकिन दुर्भाग्यवश मेरा स्वास्थ्य खराब होने के कारण मैं इस कार्यक्रम में प्रतिभाग नहीं कर पाई। पर मुझे बहुत खुशी है कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा महिलाओं के उत्साहवर्धन के लिए हर जगह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। मैं धन्यवाद देना चाहूंगी उत्तराखण्ड सरकार एवं माननीय मुख्यमंत्री धामी जी का जिन्होंने महिलाओं को ये अवसर दिया।
नीशु पुनेठा, ऐपण कलाकार, पिथौरागढ़

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