टी-20 क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता के बीच अब दुनियाभर में टी-10 क्रिकेट को मिल रहे जबरदस्त रिस्पॉन्स को देखते हुए भारत में भी इस फॉर्मेट के मुकाबले शुरू होने की तैयारी जोरों पर है। यहां तक कि इसके लिए पूरा खाका तैयार कर लिया गया है और यह लीग अगले साल सितंबर-अक्टूबर में खेली जा सकती है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन छोटे-छोटे फॉर्मेटों से एकदिवसीय और टेस्ट क्रिकेट का भविष्य खतरे में पड़ सकता है?
हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टी-20 क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता के बीच अब दुनियाभर में टी-10 क्रिकेट मुकाबलों को मिल रहे जबरदस्त रिस्पांस को देखते हुए भारत में भी इस फार्मेट के मुकाबले शुरू होने की तैयारी जोरों पर है। कहा जा रहा है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड क्रिकेट के इस सबसे छोटे और नए फार्मेट की एक लीग शुरू करने पर विचार कर रहा है। यहां तक कि इसके लिए पूरा खाका तैयार कर लिया गया है। अगर सब कुछ ठीक रहता है तो यह लीग अगले साल सितंबर-अक्टूबर में खेली जा सकती है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन छोटे-छोटे फार्मेटों से सबसे बड़े टेस्ट और एकदिवसीय फार्मेटों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है? खेल विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह खिलाड़ी वनडे क्रिकेट को छोड़कर टी-20 का रुख कर रहे हैं उससे एकदिवसीय क्रिकेट के भविष्य पर खतरे के बादल तो मंडराने लगे ही हैं साथ टेस्ट के प्रति दर्शकों की उदासीनता से क्रिकेट के इस सबसे लंबे प्रारूप का अस्तित्व भी अंत की ओर बढ़ रहा है।
टी-20 की लोकप्रियता का आलम यह है कि इस समय 14 फ्रेंचाइजी लीग खेली जा रही हैं। साल के लगभग हर महीने में कहीं न कहीं फ्रेंचाइजी लीग हो रही होती है। कई स्टार खिलाड़ी इंटरनेशनल क्रिकेट को छोड़कर टी-20 का रुख कर रहे हैं। वे समय से पहले रिटायरमेंट ले रहे हैं। साउथ अफ्रीका के फॉफ डुप्लेसिस इसकी बड़ी मिसाल हैं। वे लीग क्रिकेट में कप्तानी करते हैं, लेकिन साउथ अफ्रीका के लिए नहीं खेलते। इंग्लैंड के मोइन अली ने लीग क्रिकेट की खातिर ज्यादा समय निकालने के लिए टेस्ट क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया। देखा जाए तो ये दोनों फैक्टर वाजिब साबित होते हैं और इसके आधार पर कहा जा सकता है कि वनडे और टेस्ट दोनों तरह की क्रिकेट खतरे में है। इस चिंता को कई दिग्गज खिलाड़ियों ने भी समय-समय पर जाहिर किया है।
वर्तमान में पाकिस्तान के खिलाफ खेली जा रही तीन मैचों की टेस्ट सीरीज ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज ओपनर डेविड वार्नर के करियर की आखिरी टेस्ट सीरीज है। इस सीरीज के बाद वह अपने टेस्ट करियर पर विराम लगाने की घोषणा कर चुके हैं। उनके संन्यास लेने के बाद कंगारू टीम के लिए यह भूमिका कौन निभाएगा इस पर चर्चा जोरों पर है। इस बीच मिचेल मार्श ने इस स्थान पर बल्लेबाजी करने से इनकार कर दिया है। ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज मिशेल मार्श ने कहा कि डेविड वार्नर के संन्यास लेने के बाद उनका टेस्ट क्रिकेट में पारी का आगाज करने का इरादा नहीं है। मार्श सीमित ओवरों की क्रिकेट में अमूमन शीर्ष क्रम में बल्लेबाजी करते हैं लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि लंबी अवधि के प्रारूप में वह छठे नंबर पर ही बल्लेबाजी करना चाहते हैं।
ऑस्ट्रेलियाई टीम के दिग्गज सलामी बल्लेबाज डेविड वॉर्नर ने टेस्ट क्रिकेट के भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि मौजूदा समय में युवाओं में टी-20 क्रिकेट का क्रेज है और वे सबसे लंबे प्रारूप की जगह फटाफट क्रिकेट को प्राथमिकता दे रहे हैं। ‘मैं आने वाले समय में क्रिकेटरों को रेड- बॉल क्रिकेट और टेस्ट क्रिकेट खेलते हुए देखना पसंद करूंगा, क्योंकि यही वह विरासत है, जिसे आपको पीछे छोड़ना चाहिए। बहुत कम लोग हैं, जो ऐसा करने में सक्षम हैं और उनका लंबा करियर बिना टेस्ट क्रिकेट के बीत जाता है। इस समय सभी लीग क्रिकेट की ओर देखते हैं। खिलाड़ी सिर्फ लीग क्रिकेट के जरिए पैसा कमा रहे हैं और नाम कमा रहे हैं।’
ऑस्ट्रेलियाई टीम के दिग्गज ऑलराउंडर मार्कस स्टोइनिस का मानना है कि मौजूदा समय में क्रिकेट के व्यस्त कार्यक्रम की वजह से खिलाड़ियों के लिए तीनों प्रारूपों में खेलना मुश्किल होता जा रहा है। यह एक खिलाड़ी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद कठिन होने वाला है। उन खिलाड़ियों को सलाम, जो इस समय तीनों फार्मेट खेल रहे हैं। यह खेल के लिए एक प्रतिबद्धता है, लेकिन यह बहुत कठिन है और मैं समझता हूं कि यह बदल रहा है। गौरतलब है कि जब से टी-20 क्रिकेट की शुरुआत हुई है, तभी से इसका प्रभाव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर साफ पड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में खिलाड़ी अपने कार्यभार को लेकर भी ज्यादा चिंतित हो गए हैं। कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने सिर्फ एक या दो फार्मेट में खेलने का निर्णय लिया है लेकिन कई तीनों प्रारूपों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को लेकर खेल पंडितों का कहना है कि क्रिकेट के शास्त्रीय प्रारूप माने जाने वाले टेस्ट को अगर बचाना है तो इसके लिए सही प्लानिंग के साथ आगे बढ़ना होगा। अगर आप पर्याप्त संख्या में टेस्ट खेलें तो इसे कोई खतरा नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि टी-20 प्रारूप ने क्रिकेट के कैलेंडर को एक तरह से दबाव में ला दिया है, लेकिन टेस्ट को इसमें फिट बैठाने के लिए प्रशासकों को उपाय करने पड़ेंगे। सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना होगा कि हर टीम साल में पर्याप्त टेस्ट खेले।
चुनौतियों का सामना कर रहा टेस्ट क्रिकेट
खेल का सबसे पुराना और पारंपरिक प्रारूप टेस्ट क्रिकेट, हाल के वर्षों में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। दर्शकों की संख्या में गिरावट और टी-20, टी-10 क्रिकेट जैसे खेल के छोटे प्रारूपों का उदय, टेस्ट क्रिकेट के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में टेस्ट क्रिकेट को दर्शकों की संख्या में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। टेस्ट क्रिकेट के प्रति राय और भावनाएं हर कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर बदलती रहती हैं, जिसमें इसे ‘सर्वश्रेष्ठ प्रारूप’ कहे जाने से लेकर क्या टेस्ट क्रिकेट का अस्तित्व खतरे है तक शामिल है। टी-20 क्रिकेट जैसे खेल के छोटे प्रारूपों का उदय टेस्ट क्रिकेट का अंत है? कई प्रशंसक अब टी-20 क्रिकेट की तेज-तर्रार प्रकृति में अधिक रुचि रखते हैं, जो युवा दर्शकों के लिए अधिक आकर्षक है। इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) जैसी टी-20 की फ्रेंचाइजी आधारित लीगों ने खेल के छोटे प्रारूपों की लोकप्रियता में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है।
टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखने के उपाय
आईसीसी और दुनियाभर के क्रिकेट बोर्ड टेस्ट क्रिकेट के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय कर रहे हैं। ऐसा ही एक उपाय विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप की शुरूआत है। विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप शीर्ष नौ टेस्ट खेलने वाले देशों के बीच एक प्रतियोगिता है, जिसका फाइनल हर दो साल में आयोजित किया जाता है। विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप को टेस्ट क्रिकेट को अधिक संदर्भ देने और प्रशंसकों के लिए इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।
एक अन्य उपाय खेल की पहुंच का विस्तार है। आईसीसी संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसे नए बाजारों में टेस्ट क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। आईसीसी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से टेस्ट क्रिकेट को प्रशंसकों के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए भी काम कर रहा है। संघर्षरत टेस्ट देश भी क्रिकेट के लंबे प्रारूप को सुरक्षित रखने के लिए अधिक फंडिंग और समर्थन की मांग कर रहे हैं। उपायों के साथ, टेस्ट क्रिकेट फलता-फूलता रह सकता है और खेल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रह सकता है।
कम हो रही है वनडे क्रिकेट में दिलचस्पी
एक समय था जब क्रिकेट में वनडे फार्मेट को खेल प्रेमी खूब पसंद करते थे लेकिन टी- 20 के आने से उसमें भारी गिरावट देखने को मिली है, वहीं टेस्ट क्रिकेट लगातार अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहा है। क्योंकि कई देश पांच दिवसीय क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। जिम्बाब्वे जैसे गरीब और छोटे देशों में क्रिकेट को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है। जिम्बाबे बोर्ड के पास पैसा नहीं है। यही कारण है कि उसने 2017 में फैसला किया था कि वह अधिक से अधिक मैच अपने देश से बाहर खेलेंगे। एक आंकड़े के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद फैंस वनडे क्रिकेट को कम पसंद कर रहे हैं। टी-20 क्रिकेट तीन से चार घंटे में समाप्त हो जाता है जिसके लिए ब्राडकास्टर को भी आसानी होती है जबकि एक वनडे मैच 8 से 9 घंटे के बीच खत्म होता है। ऐसे में वनडे सीरीज के लिए ब्राडकास्टर की दिलचस्पी भी कम हो गई है। यही कारण है कि कुछ महीने पहले मेलबर्न क्रिकेट क्लब (एमसीसी) ने वनडे में बायलेटरल सीरीज को बंद करने की सलाह दी थी।
इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल के चेयरमैन ग्रेग बार्कले ने चेताया था कि घरेलू टी-20 लीगों की बढ़ती संख्या से द्विपक्षीय सीरीज छोटी होती जा रही हैं और अगले दशक में इससे टेस्ट मैचों की संख्या में कटौती हो सकती है। उन्होंने कहा था कि इसके दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम होंगे। खेलने के अनुभव के नजरिए से भी और उन देशों के राजस्व पर भी जिन्हें ज्यादा खेलने के मौके नहीं मिलते खासकर भारत, ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड जैसी टीमों के खिलाफ। अगले 10-15 साल में टेस्ट क्रिकेट खेल का अभिन्न हिस्सा तो रहेगा लेकिन मैचों की संख्या कम हो सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
क्या है टी-20 को तरजीह देने की वजह
इसके पीछे सबसे बड़ा फैक्टर पैसा है। वनडे मैच से ज्यादा कमाई तब हो पाती है जब मुकाबला रविवार या छुट्टियों पर हो, क्योंकि खेल पूरे दिन चलता है। स्कूल कॉलेज या ऑफिस में मौजूद खेल प्रेमियों को ग्राउंड पर या टीवी के सामने लाना मुश्किल होता है। टी-20 में यह बाध्यता नहीं है। टी-20 मुकाबले स्कूल, कॉलेज, ऑफिस के बाद शुरू कर उसी समय खत्म किए जा सकते हैं जिस समय वनडे खत्म होते हैं। इसलिए दुनियाभर में ब्राडकास्टर्स एक टी-20 मैच के लिए क्रिकेट बोर्ड को उतनी ही रकम देते हैं जितनी एक वनडे और एक टेस्ट मैच के लिए देते हैं। ऐसे में टी-20 की वजह वनडे कम हो रहे हैं।

