उत्तराखण्ड की राजनीति में हाल ही में हुए घटनाक्रम ने सत्ता में बैठे नेताओं की संवेदनहीनता और जनता से कटते जा रहे रवैये को उजागर किया है। वित्त मंत्री रहते हुए प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा विधानसभा में पहाड़ी समाज के प्रति अपशब्दों का प्रयोग न केवल अमर्यादित था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सत्ता के मद में चूर नेता अपने दायित्वों को कितनी लापरवाही से निभा रहे हैं। इस प्रकरण में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने लगातार प्रेमचंद अग्रवाल का बचाव किया, यहां तक कि आंदोलनकारियों को ‘सड़क छाप नेता’ कहकर अपमानित भी किया। लेकिन अब जब उनके और प्रेमचंद अग्रवाल के व्यावसायिक सम्बंधों का मुद्दा सामने आया तो जनता ने महेंद्र भट्ट को भी हटाए जाने की मांग शुरू कर दी है। इससे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा नेतृत्व के सामने नया संकट खड़ा हो गया है। यह स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड की जनता अब जवाबदेही चाहती है और सत्ता के अहंकार में लिए गए फैसलों को बदार्श्त करने के मूड में नहीं है। यदि भाजपा समय रहते इन मुद्दों को गम्भीरता से नहीं लेती है तो इसका खामियाजा भविष्य के चुनावों में भुगतना पड़ सकता है
बजट सत्र के दौरान पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को अपशब्द कहकर चर्चाओं में आए कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को आखिरकार अपने पद से त्यागपत्र देने को मजबूर होना पड़ा। मुख्यमंत्री आवास पहुंच कर अग्रवाल ने पुष्कर सिंह धामी को अपना त्यागपत्र सौंपा और मुख्यमंत्री द्वारा उसे राज्यपाल को भेज दिया गया। राज्यपाल ने त्यागपत्र स्वीकार कर लिया है। त्यागपत्र सौंपने से पूर्व जिस तरह से अग्रवाल अपने सरकारी आवास में मीडिया के सामने रुंधे गले से त्यागपत्र देने की घोषणा की उससे साफ हो गया कि अग्रवाल को भी उम्मीद नहीं थी कि उनको इस तरह मंत्री पद से हटना पड़ेगा। लेकिन उनका लगातार उग्र होता स्वभाव और मंत्री पद पर होने के बावजूद एक के बाद एक विवादों की छाया से वे उबर नहीं पाए और मंत्री पद से हटना पड़ा।
प्रेमचंद अग्रवाल की इस तरह से मंत्री पद से विदाई की पटकथा बजट सत्र के दौरान 21 फरवरी के दिन ही दिख दी गई थी जब उनके द्वारा सदन में पहाड़ी क्षेत्र के लोगों की बाबत असंसदीय और अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया था। इसके बाद अग्रवाल विवादों में आ गए और पहाड़ में अग्रवाल के खिलाफ भारी आक्रोश पैदा हो गया। तमाम सोशल मीडिया में भाजपा और प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ नाराजगी देखी गई। हालांकि प्रेमचंद अग्रवाल ने इस मामले में खेद जताया और माफी भी मांगी लेकिन उनके खिलाफ नाराजगी कम होने की बजाय बढ़ती ही चली गई।
भाजपा ने भी इस मामले की गम्भीरता को भांपते हुए प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने अग्रवाल को पार्टी मुख्यालय में तलब करते हुए उनको संयमित भाषा का प्रयोग करने की नसीहत दे मामले को शांत करने का प्रयास किया लेकिन जनाक्रोश बढ़ता गया। उनकी इस बयानबाजी का सबसे ज्यादा असर तब हुआ जब गैरसैंण में अग्रवाल को मंत्रिमंडल से हटाए जाने को लेकर भारी आंदोलन किया गया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट से यहां पर भारी चूक हो गई। उन्होंने इस आंदोलन को लेकर आंदोलनकारियों को सड़क छाप कह डाला जिससे विवाद ज्यादा गहरा गया।
प्रेमचंद अग्रवाल के त्यागपत्र के बाद प्रदेश की राजनीति में मची हलचल खत्म होगी यह कहा नहीं जा सकता। भाजपा भीतर जिस तरह से अग्रवाल के समर्थन में कई नेताओं और मंत्रियों तक ने अपने-अपने बयान देकर मामले को सुलझाने की बजाय उलझाने का काम किया है वह साफ दिखाता है कि पार्टी भीतर कुछ न कुछ ऐसा चल रहा है जिसे अग्रवाल के विवाद ने हवा दी है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रेमचंद अग्रवाल के मंत्री पद से हटने के बाद विवाद और भी तेजी से बढ़ेंगे। इसका एक कारण यह है कि अग्रवाल पर आय से अधिक सम्पत्तियों की खरीद और मारपीट के कई आरोप लग चुके हैं जिनमें कई मामलों पर मुकदमे भी दर्ज हो चुके हैं। अपने पुत्र और पत्नी के नाम कई भूखंड खरीदने के आरोप को लेकर कांग्रेस पार्टी पहले ही अग्रवाल पर मुखर रही है।
गौर करने वाली बात यह हेै कि वर्ष 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से प्रेमचंद अग्रवाल अपने बेरोजगार पुत्र पीयूष अग्रवाल को सरकारी विभाग में संविदा पर नौकरी दिए जाने को लेकर पत्र लिखा। बकौल अग्रवाल पीयूष अग्रवाल बेरोजगार शिक्षित युवक था लेकिन वही बेरोजगार युवक धड़ल्ले से अनेक भूखंड खरीदता रहा और रिसोर्ट में साझेदारी भी करता रहा। कांग्रेस का आरोप है कि यह सभी भूखंड मंत्री अग्रवाल ने अपने पुत्र के नाम खरीदे हैं।
यही नहीं अग्रवाल की धर्मपत्नी के नाम भी कई भूखंड खरीदे गए हैं जिनमें सबसे चर्चित है ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के विख्यात पर्यटन स्थल कौडिय़ाला में खरीदा गया भूखंड जिसमें भव्य और विशाल होटल का निर्माण किया जा रहा है। आरोप है कि होटल निर्माण के दौरान अनुमति से ज्यादा पेड़ों को कटा गया जिसमें संरक्षित प्रजाति के साल वृक्ष भी बताए जा रहे हैं।
प्रेमचंद अग्रवाल त्यागपत्र के बाद प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट पर भी कार्यवाही की मांग की जा रही है। प्रेमचंद अग्रवाल पर कार्यवाही को लेकर गैरसैंण में भारी आंदोलन किया गया जिस पर महेंद्र भट्ट ने आंदोलनकारियों को सड़क छाप तक कह दिया। इसके बाद भट्ट आंदोलनकारियों के निशाने पर आ गए। उनके पुत्र के निर्माणाधीन रिसोर्ट जिसमें पीयूष अग्रवाल की भी साझेदारी बताई जा रही है, को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
दरअसल, अभिषेक भट्ट पुत्र महेंद्र भट्ट ने ऋषिकेश के मंगा सिंह से पौड़ी जिले की यमकेश्वर तहसील के उदयपुर तल्ला ग्राम मराल में 1 हजार वगज़्मीटर भूमि खरीदी और अभिषेक भट्ट ने इसमें से आधी भूमि अर्श अग्रवाल पत्नी पीयूष अग्रवाल को बेच दी। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि अभिषेक भट्ट भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के पुत्र हैं और अर्श अग्रवाल मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र पीयूष अग्रवाल की पत्नी हैं।
इस रिसोर्ट के निर्माण में संरक्षित प्रजाति के पेड़ों को काटने का आरोप पहले ही लग चुका है साथ ही रेसोर्ट के लिए सरकारी भूमि को काट कर अवैध सड़क बनाए जाने का भी आरोप लग रहा है। यमकेश्वर तहसील के उदयपुर तल्ला क्षेत्र के पटवारी धन सिंह पुंडीर की 18 अक्टूबर 2024 की जांच रिपोर्ट में साफ अंकित किया गया है कि सरकारी भूमि पर अवैध तरीके से सड़क का निर्माण जेसीबी मशीन द्वारा किया गया है जिसकी कोई अनुमति और अभिलेख प्रस्तुत नहीं किए गए।

पटवारी की रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात भी सामने आई है कि 10 नाली भूमि पर रेसोर्ट का प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है। इसमें भू स्वामियों का भी विवरण दिया गया है जिसके अनुसार मंगा सिंह, पीयूष अग्रवाल और अभिषेक भट्ट का विवरण है। तहसील के लगान रिकॉर्ड अनुसार अभिषेक भट्ट 1 हजार वर्ग मीटर के स्वामी हैं और अर्श अग्रवाल 500 वर्ग मीटर के स्वामी। शेष भूमि के स्वामी मंगा सिंह हैं। यानी यह साफ हो गया है कि इस 10 नाली भूखंड के तीन साझेदार हैं। इस कारण अवैध सड़क निर्माण और संरक्षित प्रजाति के पेड़ काटने के आरोप पर कार्यवाही भी तीनों ही साझेदारों पर होना चाहिए थी। परंतु राजनीतिक रसूख और सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पुत्र और कैबिनेट मंत्री के पुत्र और पुत्रवधू पर कार्यवाही करने की हिम्मत यमकेश्वर तहसील प्रशासन नहीं दिखा पाया है, साथ ही पौड़ी जिला प्रशासन भी इस मामले में कार्यवाही करने से बच रहा है।
अब प्रेमचंद अग्रवाल के मंत्री पद से हटने के बाद उन पर लगे आरोपों में कार्यवाही होने की उम्मीद लग रही है। हालांकि यह अभी दूर की कौड़ी है कि राज्य सरकार करोड़ों के भूखंडों की खरीद-फरोख्त पर कोई जांच का आदेश करे। लेकिन इतना तो तय माना जा रहा है कि अब जिन-जिन मामलों में शिकायतें की गई हैं उन पर कोई न कोई कार्यवाही हो सकती है।