संजय चौहान
अपने हुनर और सोच से लोककला को रोजगार से जोड़ना हो या फिर घर की देहरी से देश के फलक तक अपनी पारंपरिक लोककला को पहचान दिलाना हो, इसे कुमाऊं के छोई (रामनगर) की चेली ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती से सीखा जा सकता है। विगत पांच सालों से मीनाक्षी लोककला ऐपण को नई पहचान दिलाने और इसे रोजगार से जोड़ने की कयावद में लगी हुई हैं। मीनाक्षी की पहल से आज ऐपण कला देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी पहचान बना पाने में सफल हुई है। ऐपण से महिलाओं को अपने ही घर में रोजगार मिल रहा जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं और आर्थिक रूप से समृद्ध भी हो रही हैं
उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में नैनीताल जनपद के रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी अभी महज 25 साल की हैं। मीनाक्षी ने ऐपण कला की बारकिंया अपनी दादी और मां से सीखी। मीनाक्षी कहती हैं कि जब भी घर में मेरी दादी और मां ऐपण बनाती थी तो मैं बड़े ध्यान से देखती थी। मुझे बचपन से ही ऐपण कला आकर्षित करती थी और आज मैं भी ऐपण बनाने लगी हूं। ऐपण गर्ल ने अपने पूरे घर के कोने-कोने को ऐपण की खूबसूरती से सजाया है। जहां भी नजर पडे़ आपको बेहतरीन चित्रकारी का नमूना दिखाई देगा। ये घर नहीं बल्कि चित्रकला का कोई म्यूजियम नजर आता है। लोगों का कहना है कि कुमाऊं की इस समृद्धशाली कला को महिलाओं ने ही जीवित रखा है। इस अनमोल धरोहर को सजाने, संवारने, सहेजने की जिम्मेदारी महिलाएं बरसों से बखूबी निभाती आ रही हैं। महिलाएं इस चित्रकला के माध्यम से अपने मन के भाव, अपनी शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति ईश्वर और अपने घर के प्रति करती हैं। इससे न सिर्फ घर सुंदर दिखता है बल्कि पवित्र भी हो जाता है। मन व माहौल एक नए उत्साह और उमंग से भर जाता है।
ऐपण का इतिहास
कुमाऊं में किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर अपने -अपने घरों को सजाने की परंपरा है। ऐपण कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है जो अपनी अलग पहचान बना चुकी है। परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं जैसे गेरू (एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ में पाई जाती है) और चावल के आटे में पानी मिलाकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बिस्वार कहते हैं) से बनाई जाती है। इसमें महिलाएं विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों, दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं जिन्हें ऐपण कहते हैं। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है। ऐपण बनाने वक्त महिलाएं चांद, सूरज, स्वस्तिक, गणेश जी, फूल,पत्ते, बेल बूटे, लक्ष्मी पैर, चोखाने, चौपड़, शंख, दिये, घंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं। जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती है उसके बाद उसमें बिस्वार से डिजाइन बनाए जाते हैं। दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर एपण से सज जाते हैं। घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है। दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अंदर की ओर बनाए जाते है। दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनाई जाती है जो धन का प्रतीक माना जाता है। पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार को धनधान्य से पूर्ण करती है। इनके साथ लहरों, फूल मालाओं, सितारों, बेल-बूटों व स्वास्तिक चिÐ की आकृतियां बनाई जाती हैं। अलग-अलग प्रकार के ऐपण बनाते समय अनेक मंत्रों का भी उच्चारण करने की परंपरा है। ऐपण बनाते समय कई त्योहारों पर मांगिलक गीतों का गायन भी किया जाता रहा है। गोवर्धन पूजा पर ‘गोवर्धन पट्टा तथा कृष्ण जन्माष्टमी पर ‘जन्माष्टमी पट्टे बनाए जाते हैं। नवरात्र में ‘नवदुर्गा चौकी तथा कलश स्थापना के लिए नौ देवियों एवं देवताओं की सुंदर आकृतियों युक्त ‘दुर्गा चौकी बनाई जाती है। सोमवार को शिव व्रत के लिए ‘शिव-शक्ति चौकी बनाने की परंपरा है। सावन में पार्थिव पूजन के लिए ‘शिवपीठ चौकी तथा व्रत में पूजा-स्थल पर रखने के लिए कपड़े पर ‘शिवार्चन चौकी बनाई जाती है। ऐपण में लोगों की कलात्मक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी दिखाई देती है।
अन्य प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है ऐपण
रंगो और कूची की इस कला को उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में ऐपण नाम से जाना जाता है। वहीं केरल में कोल्लम, बंगाल त्रिपुरा व आसाम में अल्पना, उत्तर प्रदेश में साची और चौक पुरना, बिहार में अरिपन, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, महाराष्ट्र में रंगोली और राजस्थान में इस कला को मॉडला के नाम से जाना जाता है। सभी कलाओं में रंगो से चित्रकारी की जाती है।
दिल्ली के राजपथ से लेकर कांस के रेड कार्पेट तक ऐपण डिजाइन की धूम
26 जनवरी 2023 को गणतंत्र दिवस की परेड में पूरा देश उत्तराखण्ड की लोककला ऐपण से रू-ब-रू हुआ था। कर्तव्यपथ पर जब उत्तराखण्ड की झांकी निकली तो ऐपण की चौकियों व बेलों के चटक रंग ने पूरे देश को अपनी ओर आकर्षित किया गए। झांकी में ऐपण के डिजाइन ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती से लिये गये थे। झांकी के आगे और पीछे उत्तराखण्ड का नाम भी ऐपण कला से लिखा गया था। मानसखंड थीम पर आधारित उत्तराखण्ड की झांकी ने देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। जबकि मई महीने में सात समंदर पार अभिनेता अभिलाष थपलियाल ने उत्तराखण्ड की पारंपरिक पोशाक में कांस फिल्म महोत्सव में प्रतिभाग किया था। अभिलाष ने ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती के मीनाकृतिरू द ऐपण प्रोजेक्ट द्वारा डिजाइन और निर्मित एक ऐपण मोटिफ शॉल लपेटा था और कांस के रेड कारपेट पर उत्तराखण्ड की लोक कला ऐपण को वैश्विक पहचान दिलाई।
ऐपण के ये उत्पाद बनाती है मीनाक्षी
मीनाक्षी अपने मीनाकृति द ऐपण प्रोजेक्ट के जरिए ऐपण से बने कोस्टर, टी सैट, ऐपण कला से सजे अल दैनिक जीवन की चीजें, की चौन, नेम प्लेट, ऐपण राखी, कैलेंडर, डायरी, काफी मग, करवा चौथ की थाली, दीपावली की थाली, ऐपणकला में रंगे दीपक, लक्ष्मी पूजा थाल व वस्त्र, लक्ष्मी चौकी, अर्घ्यपात्र, लोटे, ऐपण सेल्फी प्वाइंट, ऐपण वॉल पेंटिंग आदि तैयार करती है।
राष्टपति ने सराहा ऐपण गर्ल को
उत्तराखण्ड दौरे पर आई राष्टपति द्रौपदी मुर्मू को एक कार्यक्रम में ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती ने ऐपण से बनी नेम प्लेट भेंट की थी और ऐपण के बारे में विस्तार से बताया था। जिसके बाद महामहिम ने लोककला के संरक्षण और संवर्धन को लेकर किए जा रहे मीनाक्षी खाती के प्रयासों को सराहा था। इसके अलावा मीनाक्षी खाती को आईआईटी कानपुर, आईआईएम काशीपुर, ऑफिसर अकादमी नैनीताल, हरिद्वार, टडस, रूम टू रीड इंडिया सहित विभिन्न संस्थानों में ऐपण पर प्रशिक्षण और व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। वहीं विभिन्न मंचों पर अनगिनत पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं।

उत्तराखण्ड सरकार भी ऐपण को दे रही है बढ़ावा
ऐपण के जरिए रोजगार सृजन की संभावनाओं को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार भी ऐपण को बढ़ावा दे रही है। एक जिला दो उत्पाद के तहत नैनीताल जनपद का चयन ऐपण के लिए भी किया गया है। जिससे ऐपण के कलाकारो को फायदा मिले। उत्तराखण्ड सरकार ने रामनगर और ऋषिकेश मे आयोजित जी-20 सम्मेलन में भी ऐपण की वाल पेंटिंग्स और उत्पाद को प्रमोट किया था। यही नहीं उत्तराखण्ड आने वाले अतिथियों और दिल्ली में भी ऐपण के बनाए उत्पाद भेंट किए जाते हैं। कुल मिलाकर सरकार का भी प्रयास है कि अपनी लोककला को भी बढ़ावा मिले। ऐपण कला को जीआई टैग भी मिला है।
मीनाक्षी की ऐपण राखी
ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती वोकल फॉर लोकल मॉडल को चरितार्थ करते हुए पिछले पांच सालों से रक्षाबंधन के लिए ऐपण राखियां बना रही हैं। जिसमें ऐपण कला को खूबसूरती से उकेरा है। लोगों को ये राखियां बेहद पसंद आती हैं। ऑनलाइन के जरिए भी लोग अपनी डिमांड भेजते हैं। ऐपण गर्ल, दादी, ददा, बैणी, भुला, भैजी बौज्यू, ब्रो सहित विभिन्न नामों की ऐपण राखी तैयार करती हैं। ये दिखने में भी काफी आकर्षक लगती हैं साथ ही हमारी लोकसंस्कृति को संजोने का कार्य भी कर रही हैं। यही नहीं पर्यावरण दृष्टि से भी ये राखियां बहुत ज्यादा सुरक्षित हैं क्योंकि इनमें कहीं पर भी प्लास्टिक या अन्य चीजों का उपयोग नहीं किया गया है। लोगों को ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती की बनाई गई ऐपण राखी बेहद पसंद आती है। बाजार में चीनी राखियों के बदले ऐपण राखी की भारी मांग है। ऐपण राखी के जरिए आज महिलाओं को घर बैठे-बैठे रोजगार मिल रहा है। विदेशों से लेकर देश के कोने-कोने से लोग ऐपण राखी मंगा रहे हैं। रामनगर, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ में भी कई महिलाओं और स्वयं सहायता समूहों के द्वारा भी ऐपण से बनी राखियां बनाई जा रही हैं। ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती कहती हैं कि मुझे खुशी है कि अब ऐपण कला घर की देहली से विश्व के फलक तक अपनी पहचान बना चुकी है और ऐपण के कलाकारों को ऐपण से स्वरोजगार भी मिल रहा है।
पहले पहाड़ों में ऐपण कला किचन तक ही सीमित थी। लेकिन अब यह कला पहाड़ों से निकलकर शहरों तक पहुुंच चुकी है। जीआई टैग मिलने के बाद यह देश में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने को तैयार है। लेकिन ऐपण कला को पेंटिंग के तौर पर अपनाकर इसे पारंपरिक रूप से आगे बढ़ाना होगा। मैं चाहती हूं कि यह कला सिर्फ लाल-सफेद तक ही न सिमटकर रहे।
मीनाक्षी खाती, ऐपण गर्ल रामनगर